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मजदूर की कहानी (अलिफ लैला की कहानी)

घर की मालकिन जुबैदा ने सबको अपने-अपने विचार तथा अपने-अपने सफाई में कुछ बोलने का मौका दिया। जब मजदूर की बारी आई तो जुबैदा ने मजदूर को अपनी कहानी सबके सामने प्रस्तुत करने के लिए कहा।

मजदूर डरा हुआ था, क्योंकि उसके पीछे एक शक्तिशाली युवा जो तेज धार तलवार लिए खड़ा था। मजदूर अपनी कहानी सुनाने लगा, उसने कहा कि अगर मेरे लिए पहली बार आना नहीं हुआ, किंतु मैं इस घर में पहले भी आ चुका हूं।

एक दिन की बात है जब मैं सुबह-सुबह अपने काम की तलाश में जैसा कि हर रोज निकलता था, वैसा ही उस दिन भी निकला और बाजार में कटोरा लेकर खड़ा हुआ था। तभी आपकी बहन अमीना मजदूर ढूंढते हुए मेरे पास आई और उसने मुझसे कहा कि क्या तुम मेरा सामान ढोने के लिए चलोगे। मैं काम के लिए वहां खड़ा हुआ था। मैंने तुरंत ही हां किया और उसके साथ चल दिया।

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आपकी बहन अमीना सबसे पहले मुझे एक जूस की दुकान पर लेकर गई और वह जूस की दुकान में अंदर गई और मैं बाहर खड़ा रहा। काफी देर के उपरांत वह जब दुकान से बाहर निकली। उनके हाथ में ढेर सारा जूस था, जो मुझे उठाने के लिए कहा।

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मैं किसी तरह उस जूस को उठाकर आगे बढ़ा। उन्होंने मुझे अपने पीछे आने के लिए कहा। उनके पीछे चलता रहा, हम एक सब्जी वाले की दुकान पर पहुंचे और वह सब्जियों के मोल भाव जानने लगी। उसके बाद भी सब्जियों के दाम को कम करवाने की बात करने लगी।

कुछ देर के बाद उन्होंने ढेर सारी सब्जी खरीदी और मुझे थमा दी, मैं वह सब्जी लेकर आगे बढ़ा। उनके पीछे-पीछे मैं एक फल की दुकान पर पहुंचा, वहां पर उन्होंने अनेकों प्रकार के फल मीठे-खट्टे तथा जूस वाले फल लिए और उन फलों की टोकरी को मेरे सर पर रखने को कहा।

उसके बाद वह सारा सामान लेकर मैं उनके पीछे-पीछे एक मांस की दुकान पर गया, जहां पर मांस बिक रहा था। अमीना ने ढेर सारा मांस खरीदा और उन्होंने कहा कि यह सारा मांस तुम अपने साथ लेकर मेरे घर चलो। मैं उनकी बात सुनता रहा, वह सारा मांस तथा बाकी का सामान कुछ कंधे पर तथा कुछ सर पर रख कर मैं उनके घर के लिए उनके साथ-साथ निकल पड़ा।

वह मजदूर कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहने लगा कि मैं हर रोज की तरह उस दिन भी काम पर निकला था और चार पैसे कमाने के लिए तथा अपना पेट भरने के लिए मैं उस दिन भी बाजार के किनारे सड़क पर खड़ा हुआ था, लेकिन आपकी बहन आकर मुझे उस दिन काम दिया। मैं अपना पेट पालने के लिए चुपचाप जैसा भी काम मिलता व कर लेता था।

क्योंकि मुझे अपना जीवन चलाना होता था और जो सामान वह मुझे दे दी, मैं उनको लेकर उनके साथ घर आया। धन्य हो आप जैसे लोगों का कि आपने मुझे यहां पर रुकने दिया, आराम करने दिया और भोजन खिलाया। मुझे इससे ज्यादा और क्या चाहिए, मैं गरीब हूं, मैं एक मजदूर हूं, मैं इससे अधिक अपने सपने में भी नहीं सोच सकता।

आप लोगों ने मेरे साथ बहुत अच्छा किया, लेकिन मुझे यह अभी तक समझ नहीं आ रहा है कि मैंने गलती कहां कि मुझसे क्या गलती हो गई कि आपने मुझे मारने का अर्थात मेरे गले को काटने का आदेश दे दिया। मेरे गले की तलवार से मैं इतना भयभीत नहीं हो रहा हूं कि जितना आपने मेरे कार्य को गलत कहा, क्योंकि मैं हर रोज कमा कर खाने वाला व्यक्ति हूं। मैं झूठ नहीं बोलता।

जुबैदा ने कहा मुझे तुम्हारी बातों में सच्चाई नजर आ रही है। तुम सच बोल रहे हो या तुम मानते हो। मजदूर ने कहा मैं अपनी जान दे सकता हूं, लेकिन मैं झूठ नहीं बोल सकता। क्योंकि मैं एक मजदूर हूं और रोज कमाकर खाता हूं।

जुबेदा ने कहा ठीक है तुम यहां से निकल जाओ और दोबारा इधार मत आना। उसके गले से तलवार हटकर उसे बहुत अच्छा लगा, और वो बहुत खुश हुआ। मजदूर ने जुबेदा से वहां कुछ देर रुकने के लिए आज्ञा मांगी।

क्योंकि वह बाकी फकीरों की कहानी भी सुनना चाहता था, वह जानना चाहता था कि उनके साथ क्या हुआ। जुबैदा ने उसे इशारे से किनारे खड़े होने के लिए आज्ञा दी। मजदूर किनारे खड़ा हो गया। आप पहले फकीर की कहानी आपको अगली स्टोरी मैं पढ़ने को मिलेगी।

अलिफ लैला की सम्पूर्ण कहानियों के लिए यहाँ क्लिक करें

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