shiv shlok: भगवान शिव को देवों के देव महादेव कहा जाता है। क्योंकि जब सभी देवता हार मान जाते हैं तो भोले बाबा ही है, जो हर संभव से नैय्या को पार लगाने में सहायता करते हैं।
इनको मानने वाले विश्व में करोड़ों लोग है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए विष पान किया था और यह अपने हर भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं।
हिंदू धर्म में महादेव को कल्याण का देवता माना गया है। इनके व्यक्तित्व के विभिन्न रंग है। इन्हें दया और करुणा के लिए भी जाना जाता है। महादेव को बेलपत्र और जल चढ़ाने से वह प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की मनोकामना पूर्ण कर देते हैं।
यहां पर शिव श्लोक संस्कृत (shiv shlok in sanskrit), रूद्र श्लोक, शिव मंत्र श्लोक आदि अर्थ सहित शेयर कर रहे हैं।
रूद्र श्लोक (Shiv Shlok)
ॐ नमो भगवते रुद्राय नमः
इस मंत्र को रुद्र मंत्र भी कहा जाता है। इस मंत्र का जाप करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और जीवन में सुख भर आता है।
शिव मंत्र श्लोक (Shiv Mantra in Sanskrit)
भगवान शिव की आराधना का मूल मंत्र तो “ऊं नम: शिवाय” ही है लेकिन इस मंत्र के अतिरिक्त भी कुछ मंत्र हैं, जो महादेव को प्रिय हैं।
ॐ नमः शिवाय
इस मंत्र का जाप यदि हमेशा 108 बार किया जाएं तो व्यक्ति का मन और दिमाग शांत होता है महादेव हमेशा उस व्यक्ति पर कृपा बनाए रखते हैं।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्!
इस मंत्र को सर्वशक्तिशाली माना जाता है और यह शिव गायत्री मंत्र है। इस मंत्र का जप करने से व्यक्ति के मन में शांति बनी रहती है और जीवन आनंदमय हो जाता है।
शिव मंत्र संस्कृत
ॐ श्री रुद्राय नमः।
ॐशंकराय नमः ।
ॐ महेश्वराय नमः।
ॐ महादेवाय नमः।
ॐ नील कंठाय नमः।
भगवान शिव के संस्कृत श्लोक – Shiv Shlok
महाशिवरात्रि संस्कृत श्लोक
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्,
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
हम त्रि-नेत्रीय वास्तविकता का चिंतन करते हैं जो जीवन की मधुर परिपूर्णता को पोषित करता है और वृद्धि करता है। ककड़ी की तरह हम इसके तने से अलग हों, अमरत्व से नहीं बल्कि मृत्यु से हों।
*********
Mahashivratri Sanskrit Shlok
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं।
हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और हम सबके स्वामी शिवजी, आपको मैं नमस्कार करता हूं। निज स्वरूप में स्थित, चेतन, इच्छा रहित, भेद रहित, आकाश रूप शिवजी मैं आपको हमेशा भजता हूँ।
*********
शंकर जी के श्लोक – Shiva Shloka in Sanskrit
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे।।
भगवान शिव शंकर जो पर्वतराज हिमालय के नजदीक पवित्र मन्दाकिनी के तट पर स्थित केदारखण्ड नामक श्रृंग में निवास करते हैं और हमेशा ऋषि मुनियों द्वारा पूजे जाते हैं। जिनकी यक्ष-किन्नर, नाग व देवता-असुर आदि भी हमेशा पूजा करते हैं उन अद्वितीय कल्याणकारी केदारनाथ नामक शिव शंकर की मैं स्तुति करता हूँ।
*********
पद्मावदातमणिकुण्डलगोवृषाय कृष्णागरुप्रचुरचन्दनचर्चिताय।
भस्मानुषक्तविकचोत्पलमल्लिकाय नीलाब्जकण्ठसदृशाय नम: शिवाय।।
जो स्वच्छ पद्मरागमणि के कुण्डलों से किरणों की वर्षा करने वाले हैं, चन्दन तथा अगरू से चर्चित तथा भस्म, जूही से सुशोभित और प्रफुल्लित कमल ऐसे नीलकमलसदृश कण्ठवाले शिव शंकर को प्रणाम।
*********
शिव श्लोक इन संस्कृत (Mahadev Shlok)
यं डाकिनीशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि।।
शाकिनी और डाकिनी समुदाय में प्रेतों के द्वारा सदैव सेवित होने वाले और भक्तहितकारी भीमशंकर नाम से प्रख्यात भगवान शंकर को मेरा नमस्कार।
यह भी पढ़े: शिव चालीसा (लिरिक्स, महत्व, नियम, फायदे)
*********
Mahakal Shlok in Sanskrit
नमस्ते भगवान रुद्र भास्करामित तेजसे।
नमो भवाय देवाय रसायाम्बुमयात्मने।।
हे मेरे भगवान! हे मेरे रूद्र, अनंत सूर्यो से भी तेज आपका तेज है। रसरूप, जलमय विग्रहवाले हे! भवदेव मेरा आपको प्रणाम है।
*********
महादेव संस्कृत मंत्र – Shiva Slokas
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकालकालं कृपालं। गुणागारसंसारपारं नतोऽहं।।
तुरीय वाणी, ओंकार के मूल, ज्ञान, निराकार और इन्द्रियों से परे महाकाल के भी काल, गुणों के धाम, कैलाशपति, कृपालु, विकराल संसार से परे परमेश्वर को मेरा प्रणाम।
*********
Mahakal Shlok in Hindi
दृशं विदधमि क करोम्यनुतिशमि कथं भयाकुल:।
नु तिश्सि रक्ष रक्ष मामयि शम्भो शरणागतोस्मि ते।।
हे शम्भो, मैं अब दृष्टि लगाऊं, क्रिध्र देखूं, भयभीत में कैसे यहां रहूँ? मेरे प्रभु आप कहा पर है? आप मेरी रक्षा करों मैं आपकी शरण में आया हूँ।
*********
शिव संस्कृत श्लोक
आदित्य सोम वरुणानिलसेविताय यज्ञाग्निहोत्रवरधूमनिकेतनाय।
ऋक्सामवेदमुनिभि: स्तुतिसंयुताय गोपाय गोपनमिताय नम: शिवाय।।
जो चन्द्र, वरुण, सूर्य और अनिल द्वारा सेवित है और जिनका निवास अग्निहोत्र धूम एवं यज्ञ में है। वेद, मुनिजन तथा ऋक-सामादि जिसकी स्तुति प्रस्तुत करते हैं। उन नन्दीश्वरपूजित गौओं का पालन करने वाले भगवान शिव को मेरा प्रणाम।
*********
Mahadev Shlok in Sanskrit
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।
जो भगवान शिव शंकर संतजनों को मोक्ष प्रदान करने के लिए अवन्तिकापुरी उज्जैन में अवतार धारण किए हैं अकाल मृत्यु से बचने के लिए उन देवों के भी देव महाकाल नाम से विख्यात महादेव जी को मैं प्रणाम करता हूँ।
*********
महादेव स्टेटस श्लोक
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम: शिवाय।।
जो शिव आकाशगामिनी मन्दाकिनी के पवित्र जल से संयुक्त तथा चन्दन से सुशोभित हैं। नन्दीश्वर तथा प्रमथनाथ आदि गण विशेषों एवं षट् सम्पत्तियों से ऐश्वर्यशाली हैं, जो मन्दार–पारिजात आदि अनेक पवित्र पुष्पों द्वारा पूजित हैं। ऐसे उस मकार स्वरूप शिव को मैं प्रणाम करता हूँ।
*********
Shiv Shlok in Sanskrit
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति।।
जो मनुष्य इस स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं, उन पर शम्भु विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं।
*********
यह भी पढ़े: शिव तांडव स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
महाकाल संस्कृत स्टेटस
लम्बत्स पिङ्गल जटा मुकुटोत्कटाय दंष्ट्राकरालविकटोत्कटभैरवाय।
व्याघ्राजिनाम्बरधराय मनोहराय त्रिलोकनाथनमिताय नम: शिवाय।।
जो लटकती हुई पिङ्गवर्ण जटाओं के सहित मुकुट धारण करने से जो उत्कट जान पडते हैं। तीक्ष्ण दाढों के कारण जो अति विकट और भयानक प्रतीत होते हैं। साथ ही व्याघ्रचर्म धारण किए हुए हैं तथा अति मनोहर हैं तथा तीनों लोकों के अधीश्वर भी जिनके चरणों में झुकते हैं। उन भगवान शिव शंकर को मेरा प्रणाम।
*********
महाकाल संस्कृत श्लोक
सदुपायकथास्वपण्डितो हृदये दु:खशरेण खण्डित:।
शशिखण्डमण्डनं शरणं यामि शरण्यमीरम्।
हे शम्भो! मेरा हृदय दु:ख रूपी बाण से पीडित है और मैं इस दु:ख को दूर करने वाले किसी उत्तम उपाय को भी नहीं जानता हूँ। अतएव चन्द्रकला व शिखण्ड मयूरपिच्छ का आभूषण बनाने वाले, शरणागत के रक्षक परमेश्वर आपकी शरण में हूँ। अर्थात् आप ही मुझे इस भयंकर संसार के दु:ख से दूर करें।
*********
महाकाल मंत्र इन संस्कृत
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं। मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरं।।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा।।
जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं। जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है। जिनके सिर पर सुंदर नदी गंगाजी विराजमान हैं। जिनके ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा और गले में सर्प सुशोभित है।
*********
शिव श्लोक अर्थ सहित
देवगणार्चितसेवितलिंगम् भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम्।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्।।
मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं। जो लिंग देवगणों से पूजित तथा भावना और भक्ति से सेवित है और जिस लिंग की प्रभा-कान्ति या चमक करोड़ों सूर्यों की तरह है।
*********
महादेव संस्कृत श्लोक
न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यं।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो।।
मैं न तो योग जानता हूं, न जप और न पूजा ही. हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आप को ही नमस्कार करता हूं। हे प्रभो! बुढ़ापा तथा जन्म के दु:ख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दु:खों से रक्षा कीजिए। हे शम्भो! मैं आपको नमस्कार करता हूं।
करचरण कृतं वा क्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितम विहितं वा सर्वमे तत्क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो।।
हे भोलेनाथ, कृपा करके मेरे द्वारा हुए या मेरे शरीर, पांव, हाथ, कान, आँख या फिर शरीर के किसी दूसरे अंग से हुए अपराध को माफ़ करें। हे मेरे प्रभु, मेरे नाथ आपकी सदा जय हो।
*********
सदा शिव मंत्र
देवमुनिप्रवरार्चितलिंगम् कामदहं करुणाकरलिंगम्।
रावणदर्पविनाशनलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्।।
मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग देवताओं व श्रेष्ठ मुनियों द्वारा पूजित है। जिसने क्रोधानल से कामदेव को भस्म कर दिया, जो दया का सागर है और जिसने लंकापति रावण के भी दर्प का नाश किया है।
*********
महाकाल मंत्र संस्कृत
सविषैरिव भोगपगैखवषयैरेभिरलं परिक्षतम्।
अमृतैरिव संभ्रमेण मामभिषिाशु दयावलोकनै:।।
विषधरी भारी साँपों के समान इन सांसारिक विषयों ने मुझे भयभीत कर रखा है। अत: इनसे मैं परेशान हूँ। कृपया अमृत के समान, जीवनदायक अथवा मुत्तिफसाध्कद्ध अपने कृपाकटाक्षों के अवलोकन से मुझे बचाइए।
*********
महाकाल श्लोक
तस्मै नम: परमकारणकारणाय दिप्तोज्ज्वलज्ज्वलित पिङ्गललोचनाय।
नागेन्द्रहारकृतकुण्डलभूषणाय ब्रह्मेन्द्रविष्णुवरदाय नम: शिवाय।।
जो शिव कारणों के भी परम कारण हैं। अति दिप्यमान उज्ज्वल एवं पिङ्गल नेत्रों वाले हैं। सर्पों के हार-कुण्डल आदि से भूषित हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्रादि को भी वर देने वालें हैं, उन शिवजी को नमस्कार करता हूँ।
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम: शिवाय।।
शिव जो स्वयं कल्याण का रूप है, पार्वती के मुख कमलों को विकसित करने के लिए सूर्य है, दक्ष प्रजापति के यज्ञ को समाप्त करने वाले हैं, नीला जिसका कंठ है, जो धर्म की पताका है ऐसे शिव को मेरा प्रणाम।
*********
महाशिवरात्रि संस्कृत श्लोक
सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यै:।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि।।
जो भगवान् शंकर सुन्दर ताम्रपर्णी नामक नदी व समुद्र के संगम में श्री रामचन्द्र जी के द्वारा अनेक बाणों से या वानरों द्वारा पुल बांधकर स्थापित किये गये हैं। उन्हीं श्रीरामेश्वर नामक शिव को मैं नियम से नमस्कार करता हूँ।
*********
शिव आराधना श्लोक
श्वेतदेहाय रुद्राय श्वेतगंगाधराय च।
श्वेतभस्माङ्गरागाय श्वेतस्वरूपिणे नमः।।
हिंदी अनुवाद: सफ़ेद शरीर वाले, सफ़ेद गंगा धारण करने वाले, सफ़ेद भस्म को धारण करने वाले, सफ़ेद रुपी भगवान शिव को मेरा नमन।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं।अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं।।
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं। भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं।।
प्रचंड, श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किए, भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।
*********
शंकर जी के श्लोक
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिंगम् बुद्धिविवर्द्धनकारणलिंगम्।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्।।
मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो सभी प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों से लिप्त है। अथवा सुगन्धयुक्त नाना द्रव्यों से पूजित है, और जिसका पूजन व भजन बुद्धि के विकास में एकमात्र कारण है तथा जिसकी पूजा सिद्ध, देव व दानव हमेशा करते हैं।
*********
शिव पुराण संस्कृत श्लोक
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय।।
जो शिव नागराज वासुकि का हार पहिने हुए हैं, तीन नेत्रों वाले हैं, तथा भस्म की राख को सारे शरीर में लगाये हुए हैं। इस प्रकार महान् ऐश्वर्य सम्पन्न वे शिव नित्य-अविनाशी तथा शुभ हैं। दिशायें जिनके लिए वस्त्रों का कार्य करती हैं, अर्थात् वस्त्र आदि उपाधि से भी जो रहित हैं। ऐसे निरवच्छिन्न उस नकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।
मनोबुद्ध्यहङ्कारचित्तानि नाहं न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्रणनेत्रे।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुश्चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्।।
मैं न तो मन हूँ, ना तो बुध्दि हूँ, ना अहंकार हूँ, ना चित हूँ, ना तो कान हूँ, ना जीभ हूँ, ना नाक हूँ, ना आंख हूँ, ना आकाश हूँ, ना धरती हूँ, ना अग्नि हूँ, ना वायु हूँ, ना शुद्ध चेतना हूँ, अनंत शिव हूँ।
*********
शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम्
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम:शिवाय।।1।।
मंदाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथ महेश्वराय।
मण्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम:शिवाय।।2।।
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय बृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम:शिवाय।।3।।
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम:शिवाय।।4।।
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नम:शिवाय।।5।।
पञ्चाक्षरिमदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।6।।
यह भी पढ़े
जय जय महाकाल 🔱
V good
Shiv Ji ko Mera Naman ?❣️?
सादर प्रणाम