लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे, जो अपनी सादगी के लिए जाने जाते हैं।
लाल बहादुर शास्त्री को देखकर कोई नहीं बता सकता था कि यह भारत के प्रधानमंत्री है। क्योंकि उनसे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू सूट बूट पहने हुए पोशाक में रहते थे।
जबकि लाल बहादुर शास्त्री एक आम आदमी की तरह धोती कुर्ता पहने हुए भारतीय की वेशभूषा में सादगी भरा जीवन व्यतीत करते थे।
इसी वजह से लाल बहादुर शास्त्री को लोग दिल से चाहते थे। इनकी मृत्यु आज भी एक राज बनी हुई है।
लाल बहादुर शास्त्री ने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल के दौरान मृत्यु हो जाने के कारण 9 जून 1964 को प्रधानमंत्री पद संभाला था।
यह भारत के स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी भी थे। उन्होंने देश की आजादी के लिए अनेक तरह की क्रांतियां और स्वतंत्रता की लड़ाइयां लड़ी थी।
वे स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा भी बने। इसीलिए उन्हें प्रधानमंत्री पद पर कार्यरत सादगी भरा जीवन व्यतीत करने और देश की सेवा करने के लिए “भारत रत्न” सम्मान से सम्मानित किया गया है।
लाल बहादुर शास्त्री को सन 1964 में भारत रत्न दिया गया था। सन 1965 में भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के समय प्रधानमंत्री के तौर पर बखूबी भूमिका निभाई।
प्रधानमंत्री होते हुए भी इनकी अपनी कोई गाड़ी नहीं थी। उन्होंने लोन लेकर एक गाड़ी ली थी। परंतु रहस्यमई तरीके से उनकी मौत हो गई। जिसके बाद इनकी पत्नी ने उस गाड़ी का लोन चुकाया था।
इस लेख में लाल बहादुर शास्त्री के बारे में बताया है, जिसमें इनका जीवन परिचय (lal bahadur shastri ka jivan parichay), आरंभिक जीवन इनकी शिक्षा, परिवार, जन्म स्थान, लाल बहादुर शास्त्री पुण्यतिथि आदि के बारे में बताया है।
लाल बहादुर शास्त्री का जीवन परिचय (Lal Bahadur Shastri Biography in Hindi)
नाम | लाल बहादुर शास्त्री |
जन्म और जन्म स्थान | 2 अक्टूबर 1904, मुगलसराय, वाराणसी (उत्तरप्रदेश) |
पिता का नाम | मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव |
माता का नाम | राम दुलारी देवी |
पत्नी का नाम | ललीता शास्त्री (1928 में शादी) |
संतान | 4 लड़के, 2 लड़कियां |
पेशा | राजनेता, स्वतन्त्रता सेनानी |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
पद | दूसरे प्रधानमन्त्री, संसद सचिव, रेलमंत्री |
सम्मान | भारत रत्न |
जाती | कायस्थ |
निधन | 11 जनवरी 1966, ताशकंद (रूस) |
लाल बहादुर शास्त्री कौन थे?
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के मुगलसराय में 2 अक्टूबर 1960 को हुआ था।
इनकी माता का नाम राम दुलारी देवी और पिता का नाम मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था। इनके 6 बच्चे थे, जिनमें 2 लड़कियां और 4 लड़के थे।
लाल बहादुर शास्त्री की पत्नी का नाम ललिता देवी था। वह हिंदू धर्म के कायस्थ जाति से संबंध रखते थे।
लाल बहादुर शास्त्री बचपन से ही बहादुर और निडर बालक थे, इसीलिए उन्हें बहादुर कहते थे। जिससे उनका नाम लाल बहादुर शास्त्री रखा गया, ऐसा किस्से और कहानियां में कहा जाता है।
लाल बहादुर शास्त्री के पिता प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक थे। लोग उनको ‘मुंशी जी’ कहकर संबोधित करते थे।
इनके मन में बचपन से ही देश प्रेम की भावना उत्पन्न थी। इसलिए उन्होंने कम समय में ही देश के स्वतंत्रता संग्राम से नाता जोड़ लिया।
लाल बहादुर शास्त्री का आरंभिक जीवन
लाल बहादुर शास्त्री ने बचपन से ही दुख और दर्द महसूस किया। क्योंकि कम आयु में ही उनके बचपन में पिता का स्वर्गवास हो गया था।
उनके देखभाल की जिम्मेवारी इनकी माता पर आ गई। इसीलिए इनकी माता उन्हें अपने पिता के घर मिर्जापुर लेकर आ गई।
लाल बहादुर शास्त्री के नाना का नाम हजारीलाल था, जिनका कुछ समय पश्चात निधन हो गया। अब लाल बहादुर शास्त्री किशोरावस्था में प्रवेश कर चुके थे।
लाल बहादुर शास्त्री की शिक्षा
लाल बहादुर शास्त्री के किशोरावस्था में आने पर उनकी प्रारंभिक शिक्षा हेतु मिर्जापुर के ही प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश करवाया।
यहां पर उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की और आगे की पढ़ाई के लिए हरिश्चंद्र हाई स्कूल काशी विद्यापीठ में पूर्ण की।
लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत भाषा के ज्ञाता थे। उन्होंने संस्कृत भाषा में स्नातक की डिग्री हासिल की थी।
लाल बहादुर शास्त्री को ‘शास्त्री’ की उपाधि काशी विद्यापीठ से ही प्राप्त हुई है। इसलिए उन्होंने अपने नाम के पीछे शास्त्री शब्द को भी जोड़ दिया।
हाई स्कूल की शिक्षा ग्रहण करने के बाद लोग लाल बहादुर शास्त्री नाम से पुकारने लगे। लाल बहादुर शास्त्री उस समय अंग्रेजों के खिलाफ नारा देने लग गए थे और स्वतंत्रता की अलख जगानी शुरू कर दी थी।
उस समय युवावस्था को देखते हुए इनका विवाह 1928 में ललिता शास्त्री के साथ करवा दिया गया, जिसके बाद इन दोनों की छह संताने हुई। इनके 4 पुत्र और दो पुत्रियां हुई।
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स्वतंत्रता सेनानी लाल बहादुर शास्त्री
विवाह के पश्चात लाल बहादुर शास्त्री स्वतंत्रता की लड़ाई में उतर गए और अंग्रेजों के खिलाफ तरह-तरह की क्रांतियां शुरू कर दी।
स्वतंत्रता की अलख जगाते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने ‘मरो नहीं मारो’ का नारा दिया, जो तेजी से पूरे देश में लोकप्रिय हो गया।
सन 1920 में अधिकारिक रूप से लाल बहादुर शास्त्री देश की आजादी के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल हो गए। इसी दौरान उन्होंने ‘भारत सेवा संघ’ ज्वाइन की और गांधीवादी विचारधारा के नेता बन गए।
स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान इन्होने देश के गरीब लोगों की सेवा की और अनेक तरह के कार्यक्रम स्थापित करवाए, जिसमें देश को अंग्रेजों से आजाद करने की योजना बनाई गई, लोगों को जागरूक किया गया।
धीरे-धीरे लाल बहादुर शास्त्री अंग्रेजों के निशाने पर आने लग गए। अंग्रेजों को इनसे डर लगने लगा। कुछ समय बाद अंग्रेजों ने इनको दबाने के लिए उन्हें जेल भेज दिया। विशेष रुप से सन 1921 में असहयोग आंदोलन में मुख्य रूप से भूमिका निभाई थी।
इसके बाद 1930 में दांडी यात्रा का अहम हिस्सा बने थे। यहां पर इनको काफी ज्यादा लोकप्रियता मिल चुकी थी।
अब उन्होंने वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाकर लोगों के चहेते स्वतंत्रता सेनानी बन गए थे।
अब समय आ चुका था द्वितीय विश्वयुद्ध का। दुनिया में द्वितीय विश्वयुद्ध जोर पकड़ रहा था और हर जगह तबाही-तबाही देखने को मिल रही थी।
द्वितीय विश्वयुद्ध की खबरें मिलते ही भारत में भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी ‘आजाद हिंद फौज का गठन’ करके ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया और स्वतंत्रता की लड़ाई को तेज कर दिया। वहीं दूसरी तरफ महात्मा गांधी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ को मजबूती दी।
इसी दौरान लाल बहादुर शास्त्री ने लोगों को जागरूक करने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा करने के लिए ‘करो या मरो’ का नारा दिया। लेकिन वर्ष 1942 में इलाहाबाद में हुए एक बड़े कार्यक्रम में शास्त्री जी ने इस नारे को बदल कर ‘मरो नहीं मारो’ में बदल दिया।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लाल बहादुर शास्त्री ने भी अपने आंदोलन को तीव्र कर दिया था। इसीलिए उन्हें इस आंदोलन की वजह से ही 11 दिन तक भूमिगत रहना पड़ा। उसके बाद 19 अगस्त 1942 को अंग्रेजों ने इनको गिरफ्तार भी कर लिया था।
स्वतंत्रता के बाद लाल बहादुर शास्त्री
देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद लाल बहादुर शास्त्री को देशवासियों ने बखूबी सहयोग दिया और अन्य तरह के विभिन्न पदों पर कार्यरत किया।
इन्होने भी देश की स्वतंत्रता के बाद देश के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। देश को आजादी मिलने के बाद इनको उत्तर प्रदेश की संसद का सचिव बनाया गया।
उसके बाद पुलिस एवं परिवहन मंत्रालय का कार्यभार दिया गया। इसी दौरान इन्होने पुलिस विभाग में भीड़ पर नियंत्रण पाने के लिए लाठी की बजाय पानी की बौछारों का प्रयोग करने का नियम बनाया। वह अत्यंत दयालु व्यक्ति थे।
इन्होने पुलिस एवं परिवहन मंत्रालय का कार्यभार संभालने के दौरान पहली महिला को कंडक्टर बनाया था। उनके इस काम की देश में काफी सराहना की गई।
वर्ष 1951 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव पद पर इनको नियुक्त किया गया।
इन्होने वर्ष 1952, 1957, 1962 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से विजय बनाया था। इन चुनावों में कांग्रेस की विजय के पीछे इनका बहुत बड़ा योगदान माना जाता है।
इनकी लोकप्रियता को देखते हुए भारत का दूसरा प्रधानमंत्री बनाया गया। जब प्रधानमंत्री पद पर स्थित पंडित जवाहरलाल नेहरु की आकस्मिक मौत हो गई तब इनको प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त किया गया।
परंतु इनके कार्यकाल में उन्हें अनेक तरह की कठिनाइयां देखने को मिली। इन्होने अपने कार्यकाल के दौरान ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था। इस नारे की वजह से उन्हें काफी लोकप्रियता देखने को मिली, देश के लोगों ने उन्हें काफी ज्यादा सहयोग किया।
कुछ समय बाद वर्ष 1965 में पाकिस्तान ने बिना किसी संकेत के भारत पर हमला कर दिया। दोनों देश युद्ध की स्थिति में आ गए और भयंकर युद्ध शुरू हो गया।
जब युद्ध को लेकर बैठक रखी गई तो उस बैठक में इनकी राय और आदेश मांगने पर इन्होने कहा कि “आप हमारे देश की रक्षा कीजिए और हमें बताइए कि हमें क्या करना चाहिए?” उसके बाद भारतीय जवानों ने पाकिस्तान को भारत की ताकत का एहसास कराया।
इस युद्ध में पाकिस्तान को करारी हार देखने को मिली। इस हार से पाकिस्तान काफी आश्चर्यचकित हो गया क्योंकि इस युद्ध से ठीक 3 वर्ष पहले ही चीन ने भारत को बुरी तरह से हराया था। फिर भी भारत ने पाकिस्तान को करारा झटका दिया।
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लाल बहादुर शास्त्री का निधन
भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बाद रूस और अमेरिका ने भारत पर शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव बनाया था।
इसलिए लाल बहादुर शास्त्री देश की शांति व्यवस्था को देखते हुए हस्ताक्षर करने के लिए राजी हुए।
ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए वह रूस की राजधानी ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति से मिले। यहां पर लाल बहादुर शास्त्री पर दबाव बनाकर हस्ताक्षर करवाए गए।
हस्ताक्षर करने के बाद उसी रात को 14 जनवरी 1964 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमई तरीके से मृत्यु हो गई।
आज भी इनकी मृत्यु का रहस्य एक रहस्य ही बनकर रह गया है। क्योंकि अनेक बार कोशिश करने के बाद भी कोई खास जांच नहीं हो पाई और लोकप्रिय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत का राज नहीं खुल पाया।
उस समय कहा गया कि शास्त्री जी को दिल का दौरा पड़ा था। परंतु सवाल तब खड़ा होता है जब इनकी मौत होने के बाद उनका पोस्टमार्टम ही नहीं किया गया।
कहा जाता है कि उन्हें जहर देकर मार दिया गया था या एक सोची समझी साजिश थी।
इनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने उनकी मौत पर अपना दुख व्यक्त करते हुए ‘ललिता के आंसू’ नाम की पुस्तक लिखी।
सन 1978 में लिखी गई इस पुस्तक में ललिता शास्त्री ने अपने पति लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमई तरीके से हुई मौत पर सवाल खड़े किए और अपना दुख व्यक्त किया।
इनके साथ ताशकंद समझौते हेतु रूस की राजधानी ताशकंद गए कुलदीप नैयर ने भी अनेक तरह के तथ्य बताएं लेकिन कोई काम नहीं आए।
किसी भी तरह की कोई जांच नहीं हुई और आज भी उन्हें न्याय नहीं मिला। वर्ष 2012 में लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री ने भी उनके पिता को न्याय दिलाने की मांग उठाई, लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिला।
लाल बहादुर शास्त्री की पुण्यतिथि हर वर्ष 11 जनवरी को मनाई जाती है। इनकी अस्तियां वाराणसी गंगा के किनारे विसर्जित की गई। उस घाट को विजय घाट का नाम दिया गया।
स्वर्गीय लोकप्रिय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने केवल 18 महीने ही प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा की थी। परंतु प्रत्येक देशवासियों के दिल में प्रधानमंत्री शास्त्री का नाम रहता था।
लोग इनको सादगी भरे जीवन के लिए जानते थे। उन्होंने अपने जीवन में देश की सेवा की थी। इसीलिए आज पूरा देश लाल बहादुर शास्त्री को नमन करता है।
FAQ
लाल बहादुर शास्त्री ने अंग्रेजों के खिलाफ देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाइयां लड़ी और आजादी के बाद किसानों के हित में अनेक सारे कार्य किए।
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के मुगलसराय में हुआ था।
लाल बहादुर शास्त्री की माता का नाम राम दुलारी देवी और पिता का नाम मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था।
लाल बहादुर शास्त्री को बचपन में लाल बहादुर वर्मा नाम से पुकारा जाता था।
लाल बहादुर शास्त्री की मौत आज भी एक रहस्य बना हुआ है। क्योंकि ताशकंद समझौते के लिए रूस की राजधानी ताशकंद गए थे। वहां पर समझौते की रात ही रहस्यमय तरीके से उनकी मौत की सूचना मिली। कहा जाता है कि जहर देकर उन्हें मारा गया और उनका पोस्टमार्टम भी नहीं किया गया। जिसके बाद किसी भी तरह की कोई भी जांच भी नहीं हुई।
निष्कर्ष
लाल बहादुर शास्त्री भारत के एक लोकप्रिय प्रधानमंत्री रह चुके हैं। उन्होंने अपने जीवन काल में अंग्रेजों के खिलाफ अनेक सारी लड़ाइयां लड़ी।
स्वतंत्रता की अलख जगाई और अंग्रेजों ने उन्हें जेल भी भेजा, तरह-तरह की यातनाएं भी सहनी पड़ी, फिर भी उन्होंने हमेशा देश की स्वतंत्रता के लिए कार्य करना नहीं छोड़ा।
देश आजाद होने के बाद उन्होंने अलग तरह के कार्य किए। देश के हित में कार्य किये, किसानों के हित में कार्य किये।
इस लेख में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जीवन परिचय (Lal Bahadur Shastri Biography in Hindi) बताया है। हमें उम्मीद है यह जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। इसे आगे शेयर जरुर करें।
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