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क्यों और कब मनाई जाती है करवा चौथ? जाने इसके पीछे की कहानी और पूजा विधि

भारत की स्त्रियां प्राचीन काल से ही पतिव्रता रही है। वे अपने पति को भगवान के समान समझती है और पति के दीर्घायु के लिए किसी भी परीक्षा से गुजर सकती है।

हर साल महिलाएं अपने पति के दीर्घायु के लिए करवा चौथ का व्रत रखती है। यह हिंदू समुदाय का विशेष पर्व होता है, जो पति-पत्नी के बीच के प्यार को कायम रखने और उनके रिश्ते को मजबूत बनाता है।

Karwa Chauth Kyu Manaya Jata Hai
Image: Karwa Chauth Kyu Manaya Jata Hai

पति पत्नी के बीच के प्रेम को दर्शाने वाला बेहद निष्ठा पूर्वक एवं श्रद्धा भाव से रखा जाने वाला यह व्रत विशेष रुप से उतरी भारत की महिलाएं रहती है लेकिन अब धीरे-धीरे अन्य राज्यों की महिलाएं भी व्रत को रखने लगी है।

इस व्रत से जुड़ी कई सारी कथाएं है। इस व्रत को रखने का भी विधि-विधान होता है, जिसके बारे में हम आज के इस लेख में विस्तार पूर्वक जानेगें।

करवा चौथ क्या है और कब मनाया जाता है?

करवा चौथ का त्योहार सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष दिन होता है। यह व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती है। करवा चौथ के व्रत को हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह व्रत महिलाओं के लिए विशेष दिन होता है। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती है।

लाल रंग की साड़ी में वह पूरी तरीके से तैयार हो जाती हैं और आलता और मेहंदी अपने हाथों एवं पांव में लगाती है। इस दिन महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखती है और भगवान शिव पार्वती एवं गणेश जी की पूजा करती है। संध्याकाल में चंद्रमा को जल अर्पण करने के पश्चात ही इस व्रत का पारण करती है।

करवा चौथ का व्रत महिलाएं कुछ निर्धारित सालों तक ही करती है। यह व्रत 12 से 16 वर्ष तक लगातार रखना चाहिए, जिनकी जैसी इच्छा। महिला चाहे तो लंबे समय तक के लिए जीवन पर्यंत के लिए भी इस व्रत को रख सकती है या फिर 12 या 16 वर्ष के बाद इस व्रत का उद्यापन करके समाप्ति कर सकती है।

करवा चौथ क्यों मनाया जाता है?

करवा चौथ का व्रत प्राचीन काल से ही महिलाएं अपने पति के लंबी उम्र के लिए करती आ रही है। इस दिन औरतें निर्जला व्रत रखती है। अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है। उनके सुख समृद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करती है।

पुराणों में ऐसी कई सारी कथाएं है, जिसमें पतिव्रता महिलाओं ने अपने पति के प्राणों की रक्षा और लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत किया है, जो फलदाई साबित हुआ है। यह व्रत पति पत्नी के मजबूत रिश्ते विश्वास एवं प्यार का प्रतीक है।

यह व्रत एक तरह महिलाओं की परीक्षाएं होती है। महिलाएं इस व्रत के रूप में एक तरह का तप करती है और तप का अर्थ होता है त्यागना। महिलाएं इस दिन भोजन और जल त्याग कर पूरे दिन निर्जल व्रत रखती है। वह चौथ का चांद देखकर ही भोजन ग्रहण करती है।

ऐसे में कई बार देर रात तक चांद नहीं दिखता और कभी-कभी तो मौसम खराब होने के कारण या बादल घिरा होने के कारण चांद नजर ही नहीं आता है। ऐसे में महिलाएं देर रात या अगले दिन तक भी अपना व्रत नहीं तोड पाती है।

इस तरह महिलाएं अपने पति के दीर्घायु के लिए ऐसी कठिन परीक्षा से गुजर जाती है। इस व्रत को करने का उद्देश्य पति के दीर्घायु के अतिरिक्त घर की सुख समृद्धि भी रहता है क्योंकि जब औरतें यह व्रत करती है तो उस समय रबी की फसल यानी कि गेहूं की फसल बोई जाती है।

ऐसे में कुछ स्थानों पर महिला करवा में गेहूं भी भर कर रखती है और भगवान को अर्पित करती है ताकि उनकी यहां गेहूं की शानदार फसल पैदा हो।

करवा चौथ से जुड़ी कथा

करवा चौथ से जुड़ी कई कथाएं है। हम यहां पर आपको चार मुख्य कथा बताने वाले है।

प्रथम कथा

करवा चौथ की पूजा विधि होती है, उसे बहुत विधि विधान के साथ पूरा करना होता है। करवा चौथ के दिन महिलाएं चांद को जल चढ़ा कर ही भोजन ग्रहण करती है और यदि पूजा अधूरा छोड़ दिया जाए या विधि विधान से ना किया जाए तो महिला के पति पर कुछ भी अनहोनी हो सकती है और इसी से जुड़ी एक प्रचलित कथा है।

बहुत समय पहले की बात है। एक वीरावती नाम की महिला थी। उसके सात भाई थे। वह अपने सातों भाइयों में बहुत ज्यादा लाडली थी। उसके तनिक कष्ट भी उनके भाइयों से देखा नहीं जाता था। कुछ समय के बाद वीरावती की शादी दूसरे गांव के एक राजकुमार से हो गई।

शादी के बाद वीरावती ने पहला करवा चौथ आरंभ किया। वह करवा चौथ मनाने के लिए अपने मायके आई थी। पूरे दिन वह भूखी थी ताकि रात में चांद को देखने के बाद चांद को जल अर्पित करके भोजन ग्रहण कर सके परंतु उस दिन चांद निकल ही नहीं रहा था।

दिन भर निर्जल रहने के कारण वीरावती काफी कमजोर हो गई थी। इसकी यह दुर्दशा उसके भाइयों से देखी नहीं जा रही थी। तब उसके सात भाइयों में से एक भाई को एक विचार आता है। वह अपने अन्य भाइयों की सहायता से अपने घर के कुछ दूर घने झाड़ियों के बीच एक पेड़ पर दीपक रख देता है और उसके सामने एक छन्नी रख देता है ताकि दूर से देखने पर यह बिल्कुल चांद जैसा प्रतीत हो।

उसके बाद भागकर अपनी बहन के पास जाता है और अपनी बहन वीरावती को कहता है कि देखो बहन चांद निकल आया है। अब तुम भोजन ग्रहण कर सकती हो। वह अपने भाइयों के झांसे में आ जाती है। वह उस दीपक की रोशनी को चांद की रोशनी समझकर उसी को जल अर्पित करके भोजन ग्रहण करने बैठ जाती है।

लेकिन भोजन का निवाला मुंह में रखने से पहले ही वीरावती को अशुभ संकेत मिलने लगे। जैसे ही वह पहला निवाला अपने मुंह में लेने जाती है कि निवाले में बाल निकल आता है। उसके बाद दूसरा निवाला लेते वक्त उसे छींक आ जाती है और जैसे ही वह तीसरा निवाला उठाती है तब तक खबर आता है कि उसके पति की मृत्यु हो गई।

यह खबर सुनकर वीरावती अत्यंत दुखी हो गई और वह अपने आपको अपने इस कृत्य के लिए दोषी ठहराने लगे। उसके विलाप को देखकर भगवान इंद्र की पत्नी इंद्राणी को दया आ जाती है और वह वीरावती को सांत्वना देने के लिए उसके पास चली जाती है।

तब वीरावती इंद्राणी से पूछती है कि ऐसा उसके साथ क्यों हुआ‌? तब इंद्रानी ने कहा कि तुमने बिना चंद्रमा को देखे ही जल अर्पण कर दिया और इस व्रत को तोड़ दिया। इसी कारण तुम्हारे पति की असामयिक मृत्यु हो गई।

उसके बाद वीरावती कुछ उपाय पूछती है तब इंद्रानी उसे सुझाव देती है कि तुम करवा चौथ के व्रत के साथ प्रत्येक माह की चौथ को भी व्रत रखो। यदि तुम यह व्रत श्रद्धापूर्वक करती हो तो तुम्हारा पति पुनः जीवित हो जाएगा।

उसके बाद विरावती करवा चौथ के व्रत के साथ पूरे भक्ति भाव से प्रत्येक माह की चौथ को भी व्रत रखती थी। विरावती की यह मेहनत कामयाब हुई और अंत: उसका पति जीवित हो गया।

द्वितीय कथा

करवा चौथ को मनाने के पीछे एक और कथा यह भी है कि जब यमराज पतिव्रता सावित्री के पति सत्यवान की आत्मा को लेने के लिए धरती पर आए थे तब सावित्री यमराज से अपने पति के जीवन की भीख मांगने लगी। वह निवेदन करने लगी कि यमराज उसके पति की आत्मा को ना लेकर जाए।

जब यमराज नहीं माने तब सावित्री ने अन्न जल ग्रहण करना छोड़ दिया और सावित्री अपने पति के शरीर के सामने लेट कर विलाप करने लगी, जिससे यमराज विचलित हो गए। तब यमराज ने सावित्री को कहा कि तुम अपने पति के प्राणों के अतिरिक्त कुछ भी वर मांग सकती हो। सावित्री के सास ससुर अंधे थे, उसने सर्वप्रथम अपने सास-ससुर के रोशनी वापस देने का वर मांगा।

उसके बाद उसने कई पुत्रों के संतान होने का भी वरदान मांगा। यमराज ने उसके इस दोनों वरदान पर हां कर दी। परंतु सावित्री एक पतिव्रता पत्नी थी, जिस कारण वह किसी अन्य पुरुष के बारे में सोच भी नहीं सकती थी।

इसीलिए यमराज को अंत में अपने वचन से बाध्य होकर उसके पति के प्राणों को लौटाना पड़ा था। इस तरह तब से यह मान्यता है कि महिलाएं निर्जला व्रत रखकर अपने पति के लंबी उम्र की कामना करते हुए हर साल करवा चौथ का व्रत रखती है।

तीसरी कथा

करवा चौथ से जुड़ी एक कथा द्रोपदी के साथ भी संबंधित है। माना जाता है कि एक बार अर्जुन नीलगिरी के पहाड़ियों पर तपस्या करने के लिए गए थे, उसी समय चारों पांडवों पर कष्ट आ जाता है। अपने पति को कष्ट से निकालने के लिए द्रोपदी को कुछ नहीं सुझा। तब वह भगवान श्री कृष्ण का ध्यान लगाती है, जिसके पश्चात भगवान श्री कृष्ण प्रकट होते हैं।

वह भगवान श्री कृष्ण को पांडव पुत्रों की रक्षा के लिए निवेदन करती है। तब भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं तुम्हारी स्थिति को समझ सकता हूं। यदि तुम अपने पति के प्राणों की रक्षा करना चाहती हो तो तुम एक काम करो।

कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत रखो। इससे तुम इस समस्या से बहुत जल्दी निकल जाओगी। द्रोपदी ने बहुत श्रद्धा भाव से इस व्रत को किया, जिसके पश्चात उसे पांडव पुत्रों का दर्शन हो गया और उन पर से सभी संकट दूर हो गए।

करवा चौथ की पूजन विधि

करवा चौथ के दिन जो महिलाएं सरगी का सेवन करती है तो उन्हें सुबह जल्दी उठकर सूर्योदय से पहले ही सरगी का सेवन कर लेना चाहिए और जो महिला सरगी का सेवन नहीं करती है तो उन्हें सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के पश्चात दिनभर निर्जला व्रत रखना चाहिए।

दिन भर वे भगवान शिव और मां पार्वती का स्मरण कर सकती है। उसके बाद रात्रि के समय पूजन के समय सोलह श्रृंगार करके तैयार हो जाएं। इस दिन महिलाएं लाल रंग के कपड़े पहनने के बाद दीवार पर सबसे पहले करवा चौथ की पूजा का चित्र बनाएं। वैसे महिला चाहे तो बाजार से भी लाया हुआ कैलेंडर लगा सकते हैं।

उसके बाद आटे में हल्का हल्दी मिलाकर आयपन बनाना होता है, जिससे जमीन पर साथ घेरे बनाते हुए चित्र बनाना होता है। इस चित्र के ऊपर ही करवा रखना होता है और करवा के ऊपर नया दिपक रखना होता है।

करवा के भीतर खीर, बतासे, चुरा साबुत, अनाज डाले और करवा में 21 सींके भी लगाने चाहिए। उसके बाद करवा के ऊपर रखे, दीपक को प्रज्वलित करना होता है। उसके आसपास खीर हलवा पूरी पकवान जो भी सामग्री भोग के लिए बने होते हैं, उन्हें वहां पर रखने होते हैं।

इस पूजा में मुख्य रूप से प्रसाद के रूप में चावल के आटे का प्रयोग किया जाता है। जब व्रत को तोड़ा जाता है तो सबसे पहले इसी प्रसाद को ग्रहण करना होता है। उसके बाद एक लोटे में जल रखें ताकि चंद्रमा को अर्घ्य दिया जा सके। अब पूजा करते समय करवा चौथ से जुड़ी जो कथाएं हैं, उनका पाठ करना चाहिए।

फिर जब चांद निकल जाए तब चलनी से पति के चेहरे को देखने के बाद फिर चांद का दर्शन करना चाहिए और फिर चंद्रमा को अर्घ देना चाहिए और पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करनी चाहिए।

चंद्र देव को जल अर्पण करने के बाद पति के हाथ से जल ग्रहण करना चाहिए। उसके बाद पति का आशीर्वाद लेना चाहिए। फिर घर में सास ससुर और बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेकर इस व्रत का पारन करना चाहिए।

करवा चौथ के दिन इन चीजों की रखें सावधानी

  • करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले ही उठकर सरगी खा लेना चाहिए।
  • जिस दिन करवाचौथ होता है, उस दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए और दिन में भी उस दिन नहीं सोना चाहिए। उस दिन पूरा दिन भगवान शिव और पार्वती का स्मरण लेने और भजन कीर्तन करने में व्यतीत करना चाहिए।
  • करवा चौथ के व्रत में औरतें सोलह श्रृंगार के साथ तैयार होती है। इस दिन महिलाओं को ना किसी अन्य के सिंदुर या श्रृंगार का प्रयोग करना चाहिए ना ही अपने सिंदूर और श्रृंगार किसी अन्य को देने चाहिए। इसके साथ ही यदि श्रृंगार करते वक्त कोई आभूषण टूट जाए तो उसे कूड़ेदान में फेंकने के बजाय बहते जल में प्रवाहित करना चाहिए।
  • करवा चौथ के दिन धारदार चीजों का इस्तेमाल करना अपशकुन माना जाता है जैसे कि इस दिन सिलाई कढ़ाई या कैंची का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • करवा चौथ के दिन सुहागन स्त्रियों को शांत रहना चाहिए। अपने पति या किसी से भी विवादों में नहीं उलझना चाहिए और ना ही मुंह से अपशब्द निकालने चाहिए।
  • करवा चौथ के दिन स्त्रियों को काले या भूरे रंग के कपड़े नहीं पहनना चाहिए। इस रंग के कपड़े इस दिन अशुभ माने जाते हैं। हो सके तो इस दिन लाल रंग के ही कपड़े पहनने चाहिए, जो सुहागन स्त्रियों का प्रतीक है। इसके साथ ही यह प्यार का भी प्रतीक है।
  • करवा चौथ के दिन किसी भी सोए हुए व्यक्ति को नहीं जगाना चाहिए। इस दिन किसी भी सोए हुए व्यक्ति को जगाना अशुभ माना जाता है।
  • करवा चौथ में बहुत सी महिलाएं सरगी का पालन करती है, जो लोग सरगी का पालन करती है। ऐसी महिलाओं को सुबह जल्दी उठकर सरगी का सेवन कर लेना चाहिए। क्योंकि सरगी का समय निकल जाने के बाद फिर इसका सेवन करने से यह व्रत टूट सकता है।
  • करवा चौथ के दिन सफेद वस्तु का दान करना अशुभ माना जाता है। इसलिए इस दिन भूलकर भी दूध, चावल, सफेद मिठाईयां, सफेद कपड़े जैसे चीजों का दान नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष

करवा चौथ स्त्रियों का बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व होता है, जिसे वे अपने पति के लंबी उम्र के लिए रखती हैं। हमें उम्मीद है कि आज के इस लेख करवा चौथ क्यों और कब मनाया जाता है? (Karwa Chauth Kyu Manaya Jata Hai) के जरिए आपको करवा चौथ से जुड़ी तमाम जानकारी मिल गई होगी। इसे आगे शेयर जरुर करें।

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Rahul Singh Tanwar
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राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।