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कन्यादान कविता का सार और भावार्थ

Kanyadan Summary And Explanation: जैसा कि हम सभी जानते है, भारतीय संस्कृति में कन्यादान का बहुत बड़ा महत्त्व है। विवाह के समय माता-पिता वर पक्ष को अपनी कन्या देते है और कुछ रीतियां निभाते है, इसे कन्यादान कहते है।

यहां कवि ऋतुराज ने कन्यादान पर एक कविता प्रस्तुत की है और विवाह के बाद किस प्रकार स्त्री का जीवन बदलता है और उसे क्या-क्या विकट परिस्थितियो का सामना करना पड़ सकता है, बताया है।

किस प्रकार माँ-बेटी को विदा करते समय सीख दे रही है, उसे अपने जीवन के अनुभवों से जोड़कर आने वाले वक्त के लिए तैयार कर रही है ताकि उसका जीवन सुख से बीत सके। यह सब इस कविता के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है।

इसमें माँ परम्परागत आदर्शो की सीख जैसे “जिस घर डोली जाती है, अर्थी भी वही से उठनी चाहिए” इस प्रकार की सीख न देकर उसे हिंसा, अत्याचार और शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने को कह रही है।

कन्यादान के समय चिंतित हो उठी माँ को ऐसा लग रहा है जैसे उसकी जीवन भर की जमा पूंजी कोई ले जा रहा है। अपनी अपरिपक्व बेटी के लिए माँ को ऐसा लग रहा है कि उसकी बेटी अभी ससुराल के जीवन और वहां की परिस्तिथियों का सामना करने के योग्य नहीं है।

Kanyadan Summary And Explanation
Kanyadan Summary And Explanation

माँ जानती है कि उसकी भोली और नादान बच्ची ने सिर्फ सुख का अनुभव किया है। दुःख से कैसे निकलना है, उसे नहीं आता। अपना अनुभव बांटते हुए माँ प्रमाण देकर बेटी को सिखाने की कोशिश कर रही है।

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कन्यादान कविता का सार और भावार्थ (Kanyadan Summary And Explanation)

विदाई के समय बेटी को माँ ने चार मुख्य बातें बताई है जो उसे भावी जीवन में काम आयेंगे।

मां अपनी पहली सीख में कहती है

बेटी कभी अपने रूप पर घमंड नही करना। रूप, सौन्दर्य सब अस्थायी होते हैै, समय के साथ इनका महत्व घट जाता है। इसीलिए इन चीजों को लेकर कभी अहंकार मत करना।

अपनी दूसरी बात बताते हुए माँ कहती है।

आग का प्रयोग सदैव भोजन पकाने में करना किन्तु यदि इसी आग का प्रयोग कोई तुम्हें जलाने में करें तो आवाज उठाना, विरोध करना। क्योंकि आग में रोटियां सेंकी जाती है, यह आग तुम्हें जलाने के लिए नहीं है।

यहाँ पर कवि अपने शब्दों से दहेज़ के लालचियों पर प्रहार कर रहा है जो पैसों के लिए अपनी बहु को जीवित ही आग के हवाले कर डालते हैं, उन्हें मृत्यु की गोद में सुला देते हैं।

अपनी तीसरी बात में माँ बेटी से कहती है।
स्त्रियां वस्त्र और आभूषण की शौक़ीन होती है, उनका इन सामानों के प्रति विशेष मोह होता है। लेकिन तुम इन सामानों के मोह के बन्धनों में मत फंसना। क्योंकि आगे के जीवन में ये वस्त्र आभूषण तुम्हारे लिए जंजीर बन जाएँगी।

अपनी अंतिम सीख में माँ कहती है।
बेटी, लड़की हो पर लड़की जैसे दिखाई मत देना लज्जा, विनम्रता, मर्यादा, शिष्टता, संस्कार सभी स्त्री के मुख्य आभूषण है, सुलभ गुण है, इनका कभी त्याग मत करना, इन्हें बनाये रखना। लेकिन इसे कभी अपनी कमजोरी मत बनने देना। यदि कोई तुम्हारे साथ अन्याय करें तो आवाज उठाना अत्याचार का डटकर सामना करना अपनी आवाज बुलंद करना।

कन्यादान कविता का भावार्थ

काव्यांश – 1 

कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो।

कविता का भाव 

ऊपर की पंक्तिया कवि की कन्यादान को लेकर क्या भावना है, उसका लड़की की माँ के रूप में बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है। जब माँ बेटी का कन्यादान कर रही होती है तब उसका दुःख और डर दोनों स्वभाविक है। विदाई के समय माँ की बेटी को लेकर क्या मनोदशा है, वह बता रहा है।

माँ और बेटी न सिर्फ माँ-बेटी बल्कि एक दूसरें को समझने वाली, सुख-दुःख बाँटने वाली सच्ची मित्र भी होती है। लेकिन जब बेटी दूर हो रही है तो माँ को ऐसा लग रहा है कि उसकी जीवन भर की जमा पूंजी को वह कन्यादान के रूप में दान कर रही है।

काव्यांश – 2

लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की।

कविता का भाव 

उपरोक्त पंक्तियों में कवि ऋतुराज यह बता रहे हैं कि कन्या सयानी नहीं है, अभी उसमें अपरिपक्वता है। वह भोली भाली और मासूम बच्ची है, वह दुनियादारी से परे है। अपनी मां के घर उसने सुख देखा है, उसे केवल खुशियों का ही अनुभव है। इसीलिए आने वाली परिस्थितियां कैसी होंगी, वह उनसे कैसे निपटेगी उसे ज्ञान नहीं।

कवि आगे बताते हैं कि जिस प्रकार धुंधली रोशनी में हमें किताबों के अक्षर स्पष्ट दिखाई नहीं देते कोई उन अक्षरों को स्पष्ट रूप से पढ़ नही पाता, सिर्फ अंदाजा लगा सकता है। वैसे ही, उस लड़की के सामने भी अभी काल्पनिक सुखों की एक धुंधली सी छाया है, उसे व्यावहारिकता का ज्ञान नहीं। ससुराल की परिस्थितिया, जिम्मेदारियां व संघर्ष उसको अभी कुछ भी अंदाजा नहीं है। यानि उसके पास जो भी ज्ञान हैं, वह अस्पष्ट हैं। केवल मां द्वारा दिया गया थोड़ा सा ज्ञान हैं।

काव्यांश 3

माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के।

कविता का भाव 

मां बेटी को कहती है कभी अपनी सुंदरता पर अभिमान मत करना, यह सब अस्थाई होता है। अपने आप को शीशे में निहारकर ज्यादा खुश मत होना, समय के साथ तुम्हारी सुंदरता घट जाएगी।

आगे मां कहती हैं आग रोटियां सेंकने के लिए होती है, उंगलियां जलाने के लिए नहीं, तुम्हें अपनी रक्षा स्वयं करनी होगी। यदि कोई तुम्हें उस आग में जलाने का प्रयास करें तो तुम उसे रोकना, उसका विरोध करना, उसे सफल मत होने देना। कवि यहां दहेज के लालचियों पर निशाना साधते हुए कह रहे हैं कि कुछ लोग दहेज के लिए अपनी बहु को आग के हवाले करने से भी नही चूकते।

आगे कवि द्वारा मां के माध्यम से बेटी को सीख दी जा रहीं हैं कि तुम वस्त्र आभूषण आदि के मोह मत फंसना। यह सब सुंदरता तो बढ़ाते हैं किंतु महिलाओं के लिए बंधन होते है। मां इन सब सामानों को स्त्रियों के लिए बेड़ियां मानती हैं और नहीं चाहती कि उसकी बेटी किसी बंधन में बंधी रह जाए।

काव्यांश 4

माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।

उपरोक्त पंक्तियों में मां चाहती हैं कि उसकी बेटी सशक्त बने, वह कमज़ोर या दबी-कुचली अबला नारी न रह जाय। वह अपनी समस्याओं का हल स्वयं खोजे, खराब परिस्थितियों का सामना डटकर करें। समाज के स्त्रियों का शोषण होता हैं क्योंकि उन्हें कमज़ोर माना जाता है।

स्त्रियों के गुण दया क्षमा शीलता, विनम्रता, लज्जा उनका आभूषण है न कि उनकी कमजोरी। मां कहती हैं कि बेटी हर अत्याचार, अन्याय और बेईमानी के खिलाफ आवाज उठाती रहना। कभी असहाय महसूस न करना, मुसीबत पड़ने पर दूसरों के सहायता मांगने के बजाय अपने आप को सक्षम बनाना।

कन्यादान कविता के प्रश्न व उनके उत्तर

1.कन्यादान किसे कहते है?

यह भारतीय संस्कृति को परंपरा है, जिसमें विवाह के समय माता-पिता बेटी को वर पक्ष को देने से पहले एक रीति निभाते है, जिसे कन्यादान कहते हैं। कन्यादान का अर्थ होता है अपनी बेटी अर्थात अपनी कन्या को किसी और को दान दे देना।

2. कविता में कन्यादान के समय मां के मन में क्या विचार आ रहे हैं, वह चिंतित क्यों है?

कन्यादान करते समय मां को ऐसा लग रहा है जैसे कोई उसके पूरे जीवन की पूंजी उससे दूर ले जा रहा है। मां चिंतित है क्योंकि उसको बेटी नादान और भोली भाली है, मायके में उसने सिर्फ सुख देखा है। दुख कैसे झेलना है, दुख से कैसे निपटना है, उसे नही आता। ससुराल में परिस्थितियों का सामना करने में अभी वह अपरिपक्व है।

3. मां ने विदाई के समय बेटी को क्या सीख दी?

विदाई के समय मां ने बेटी को 4 मुख्य बाते बताई।

पहला:- कभी अपने रूप पर घमंड मत करना। रंग रूप सा अस्थाई होते है, समय के साथ ये महत्वहीन हो जाते है।

दूसरा:- आग का प्रयोग रोटियां सेंकने में करना, लेकिन यदि कोई इस आग से तुम्हे जलाने का प्रयास करे तो उसका विरोध करना

“मां बेटी से कह रही हैं कि यदि ससुराल में तुमसे दहेज मांगा जाए और तुम्हें प्रताड़ित किया जाए तो तुम चुप होकर मत सहना अपनी आवाज बुलंद करना।”

तीसरा:- स्त्रियां वस्त्र आभूषण की शौकीन होती हैं लेकिन तुम इन बंधनों में मत पड़ना। यह स्त्रियों के लिए जंजीर होती हैं।

चौथा:- मां कहती है लड़की हो लेकिन लड़की जैसी दिखाई मत देना। लज्जा, शील, विनम्रता स्त्री के आभूषण है, इन्हे कभी मत छोड़ना। लेकिन इन्हें कभी अपनी कमजोरी मत बनने देना। अन्याय और अत्याचार कभी मत सहना, आवाज उठाना।

4. मां ने बेटी को आग के बारे में की बताया?

मां ने बताया आग खाना पकाने के लिए होता हैं। यदि इस आग से कोई तुम्हें जलाने का प्रयास करें तो पुरजोर विरोध करना।

5. एक मां की क्या इच्छा होती हैं की उसकी बेटी किस प्रकार बने उसका चरित्र कैसा हो।

मां चाहती है कि उसकी बेटी उत्तम चरित्र वाली हो, उसमे विनम्रता हो लज्जा हो, वह संस्कारी हो सभी का सम्मान करें। किंतु यदि कोई उसे नुकसान पहुंचाने का प्रयास करें तो वह विरोध उसका करें। अपनी समस्या स्वयं सुलझाने की कोशिश करें। वह मजबूत बने और सभी परिस्थितियों का सामना डटकर करें।

6. इस कविता से आपने क्या सीखा अपने अनुभव लिखे।

इस कविता से हमने सीखा कि स्त्री समाज का अभिन्न अंग है वह अबला नहीं। समाज में सदैव स्त्रियों का शोषण हुआ है किंतु मां उसे मजबूत रहने की सलाह दे रही है। बेटी अपनी मां से ही सब कुछ सीखती है अतः मां की सीख से वह अपने खिलाफ हो रहे अत्याचारों के विरोध में अपनी आवाज बुलंद करें।

कन्यादान के कवि ऋतुराज का जीवन परिचय

कन्यादान नामक मार्मिक कविता की रचना करने वाले कवि ऋतुराज मूल रूप से भरतपुर निवासी है, वहीं उनका जन्म हुआ। सन 1940 में जन्में कवि की शिक्षा दीक्षा जयपुर राजस्थान में हुई। राजस्थान विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रेजी में एम. ए. किया। उसके बाद अध्यापन कार्य में लग गए। करीब 40 साल तक उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में अध्यापन कार्य किया। वर्तमान में जयपुर ही उनका निवास स्थान है।

कवि की कविताओं में मुख्य विषय दैनिक जीवन से जुड़े अनुभव उनका यथार्थ भाव होता हैं। वे बहुत सामान्य विषय जैसे जो घटना वास्तविक जीवन में घट चुकी है उसपर लिखना पसंद करते हैं। सामाजिक शोषण अत्याचार सामाजिक विडंबना उनकी कविताओं की रचना का आधार है।

कवि ऋतुराज द्वारा रची गई कविताएं

ऋतुराज ने बहुत सारी कविताएं लिखी है लेकिन उनमें से 8 ऐसी कविताएं है जो पाठको तक पहुंच चुकी है अर्थात् प्रकाशित हो चुकी है। उनमें से कुछ प्रमुख कविताओं के नाम निम्न है:

  • सुरता निरत, पुल पर पानी, लीला मुखारविंद इत्यादि।

कवि को अपनी कला के लिए सम्मानित भी हुए हैं और पुरस्कार भी प्राप्त किए है, जो निम्न है:

  • पुरस्कार – बिहारी पुरस्कार, मीरा पुरस्कार इत्यादि।
  • सम्मान – पहल सम्मान, परिमल सम्मान, सोमदत्त इत्यादि।

हमने क्या सीखा?

हमने यहां पर “कन्यादान कविता का सार और भावार्थ (Kanyadan Summary And Explanation)” विस्तार से जाना है, साथ ही इसके प्रश्न-उतर पर भी चर्चा की है। उम्मीद करते हैं कि आप इस कविता को विस्तारपूर्वक जान गये होंगे, इस जानकारी को आगे शेयर जरूर करें।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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