Jallianwala Bagh Massacre in Hindi: जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के इतिहास के सबसे भयानक और दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं में से एक है, जो सन 1919 में घटी थी। इस घटना ने क्रांतिकारियों के ऊपर इतना प्रभाव डाला कि अंग्रेजों के खिलाफ उठने वाली आवाज डरने की बजाय और तेजी से तथा मजबूती के साथ उठने लगी।
जलियांवाला बाग हत्याकांड होने के बाद संपूर्ण दुनिया में अंग्रेजों की निंदा की जाने लगी। इस घटना को लेकर निंदा हुई लेकिन अंग्रेजों का कलेजा बिल्कुल भी नहीं पसीजा। जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के पंजाब प्रांत में हुआ था।
बरसों से भारत के लोग स्वतंत्रता संग्राम के तहत हिस्सा लेकर, क्रांतिकारी बनकर, जन जागरण कर्ता बनकर तरह तरह अपने देश भारत को अंग्रेजों से मुक्त करने के लिए अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरें तोड़ने के लिए प्रयास कर रहे थे। इसी कड़ी में भारत के पंजाब प्रांत में जलियांवाला बाग में सैकड़ों की संख्या में लोग जागरूक हो रहे थे।
अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठा रहे थे, लेकिन वहीं पर अंग्रेजों ने बिना किसी चेतावनी के और बिना किसी कारण के निर्दोष असहाय गरीब मजदूर और निर्धन तथा असहाय लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी और देखते ही देखते पूरा जलियांवाला बाग लाशों का श्मशान घाट बन गया।
जलियांवाला बाग हत्याकांड एक ऐसा घटनाक्रम था, जिसे देखने वाला प्रत्येक व्यक्ति जीवन जीने की राह छोड़ चुका था क्योंकि इस घटना ने लोगों के मन पर गंभीर ठेस पहुंचाई थी। एक साथ 1000 से भी अधिक लोगों की लाशों का ढेर देखकर लोग जीवन जीने की राह छोड़ चुके थे।
ऐसी घटना देखकर हर कोई हैरान रह गया और यही सोचने लगा कि आखिर अंग्रेज इतने निर्दई कैसे हो सकते हैं? लेकिन अंग्रेज बिल्कुल भी नहीं झुके और ना ही उन्हें इस पर अफसोस हो रहा था। ऐसी स्थिति में भारत के हर इलाकों से बड़े पैमाने पर क्रांतिकारी उठ खड़े हुए तथा अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड का इतिहास और कहानी | Jallianwala Bagh Massacre in Hindi
जलियांवाला बाग हत्याकांड का घटनाक्रम
जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना भारत के पंजाब प्रांत के अमृतसर शहर में जलियांवाला बाग स्थान पर हुई थी। यह घटना ब्रिटिश सरकार के कार्यकाल के दौरान सन 1919 में 13 अप्रैल को हुई थी। इसमें मरने वालों की संख्या 1000 से भी अधिक थी। जबकि लगभग 2000 से भी अधिक लोग बुरी तरह से घायल हुए थें, जिन्हें रात भर कुछ लोग उठा उठा कर अस्पताल लेकर गए और उनका उपचार करवाया।
यह घटनाक्रम अंग्रेजों द्वारा लागू किए गए एक कानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शन के समय हुआ था। उस समय जलियांवाला बाग पर कानून का विरोध कर रहे निर्दोष और व्यवसाय लोगों पर जनरल डायर ने बिना किसी कारण के गोलियां चलवा दी थी। आइए पूरा घटनाक्रम जानते हैं।
ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू किए गए कानून का संपूर्ण भारत में जगह-जगह पर विरोध हो रहा था। संपूर्ण देशवासी अंग्रेजों द्वारा लागू किए गए तरह-तरह के काले कानून का विरोध कर रहे थे। उसी दौरान सन 1919 में ब्रिटिश भारतीय सरकार ने एक कानून बनाने के लिए पेश किया जिसका नाम था “रोलेक्स”।
इस बिल को इंपीरियल लेजिसलेटिव काउंसिल ने मार्च 1919 को पास कर दिया था, जिसके बाद यह एक अधिनियम बन गया। इसीलिए भारत के कोने-कोने में इस बिल का विरोध होने लगा क्योंकि इस बिल्ल का मुख्य उद्देश्य भारत में उत्पन्न हो रही राजनीतिक गतिविधियां क्रांतिकारी गतिविधियां और अंग्रेजों के खिलाफ उठने वाली आवाज को हमेशा हमेशा के लिए दबाना था।
रोलेक्स एक्ट का विरोध
ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू किए गए इस अधिनियम के तहत भारत में किसी भी व्यक्ति को देशद्रोह के शक में गिरफ्तार किया जा सकता है तथा उस व्यक्ति को बिना किसी न्यायालय के सामने पेश किए हुए सीधे जेल में डाला जा सकता है।
साफ तौर पर इस बिल का मतलब है कि अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने वाले और क्रांति की अलख जगाने वाले लोगों को बिना किसी सबूत के आधार पर गिरफ्तार करके बिना किसी न्यायालय की अनुमति के ही जेल में रखा जाएगा। इस बिल में यह भी लिखा गया था कि 2 वर्ष तक उस व्यक्ति को बिना किसी जांच के आधार पर भी जेल में रखा जा सकता है।
इस तरह का काला कानून बनने के बाद संपूर्ण भारत में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन होने लगा, उसी स्थिति में अंग्रेजों ने जगह-जगह कर्फ्यू लगा दिया था। इस कानून का उद्देश्य लोगों को साफ तौर पर नजर आ रहा था कि भारत में हो रहे क्रांति तथा आंदोलन को दबाने के लिए एवं भारत के राजनीतिक स्तर को एवं भारत के राजनेताओं को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने इस कानून को बनाया था।
इस कानून का विरोध भारत के सभी बड़े-बड़े नेता क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी तथा संपूर्ण भारतवासी कर रहे थे, इसी कड़ी में भारत के पंजाब प्रांत में भी इस बिल का कई दिनों से विरोध हो रहा था। कई जगहों पर किस कानून का विरोध हिंसा के आधार पर हुआ बड़े पैमाने पर तरह तरह के आंदोलन हुए तरह-तरह की हड़ताल हुई तथा इस कानून का विरोध किया गया, जिसके चलते देश के कई हिस्सों में आंदोलन हिंसक हो गया।
जिसके तहत अंग्रेजों ने पंजाब के दो स्थानीय नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था तथा उन्हें अमृतसर से धर्मशाला में ट्रांसफर कर दिया था। वहां उन्हें कई दिनों तक नजरबंद करके रखा। इसीलिए पंजाब के स्थानीय लोगों ने अपने उन दोनों प्रसिद्ध नेताओं की रिहाई के लिए अंग्रेजों का दरवाजा खटखटाया लेकिन उन्होंने नहीं सुना।
अमृतसर के स्थानीय लोगों ने अपने दो नेताओं को रिहा करवाने के लिए तत्कालीन डिप्टी कमेटीर मेल्स इरविन से मुलाकात करना चाहते थे, लेकिन डिप्टी कमेटीर ने स्थानीय लोगों से मिलने के लिए इंकार कर दिया था। जिसके बाद स्थानीय लोग गुस्से से आगबबूला हो गए तथा जगह-जगह हिंसक प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था।
हिंसक प्रदर्शन के दौरान स्थानीय लोगों ने रेलवे स्टेशन को उखाड़ दिया, जगह-जगह सरकारी दफ्तरों में आग लगा दी थी तथा बिजली से संबंधित कार्यालय में आग के हवाले कर दिए थे, जिसकी वजह से अंग्रेजों के प्रशासनिक और संचार के साधन पूरी तरह से जलकर नष्ट हो गए।
इस हिंसक प्रदर्शन के बाद अमृतसर और पंजाब के कोने कोने में क्रांतिकारी आवाज उठने लगी और हिंसक प्रदर्शन होने लगे। जगह-जगह हो रहे हिंसक प्रदर्शन की वजह से अंग्रेजों के कार्यालय के तार जला देने से उनका आलाकमान से संपर्क टूट गया था क्योंकि अंग्रेज तार के माध्यम से संपर्क साधते थे।
ऐसी स्थिति में अंग्रेजी सरकार काफी गुस्से में आ गई और इस हिंसक प्रदर्शन को रोकने के लिए लोगों पर नियंत्रण पाने के लिए उपाय ढूंढने लगी। इसी कड़ी में अंग्रेजों ने पंजाब के अमृतसर शहर में हो रहे स्थानीय नेताओं को छुड़ाने के आंदोलन और हिंसक प्रदर्शन को दबाने के लिए जनरल डायर को अमृतसर के हालात सुधारने की जिम्मेदारी सौंपी।
अमृतसर में जनरल डायर
अब पंजाब प्रांत के अमृतसर के बिगड़े हुए हालात को काबू में पाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने जनरल डायर को जिम्मेदारी सौंप दी थी। जनरल डायर अब अपनी जिम्मेदारी के अनुसार इसे कम उम्र में करना चाहते थे। जनरल डायर 11 अप्रैल 1919 को अमृतसर पहुंचे और वहां पर हालात को बेहतर करने का काम शुरू कर दिया।
इस दौरान जनरल डायर ने अमृतसर के विभिन्न शहरों में मार्शल लॉ लागू कर दिया था, जिसके तहत नागरिकों को स्वतंत्र रूप से किसी भी भीड़भाड़ वाली जगह या सार्वजनिक समारोह में जाने पर रोक लगा दी थी।
अब ब्रिटिश कानून के अनुसार जनरल डायर के नेतृत्व में कोई भी व्यक्ति स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा नहीं ले सकता क्रांति नहीं कर सकता, आंदोलन नहीं कर सकता और ना ही हिस्सा ले सकता है। जनरल डायर ने पूरे शहर में आयोजित होने वाले सार्वजनिक कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगा दिया था, जो भी इसका उल्लंघन करता उसे पकड़ पकड़ कर जेल में डालना शुरू कर दिया था।
इसी दौरान जनरल डायर के नेतृत्व में 12 अप्रैल को कई स्थानीय नेताओं को भी जेल में डाल दिया गया था। इन नेताओं की लोकप्रियता स्थानीय लोगों में काफी ज्यादा थी, इसीलिए स्थानीय लोग जनरल डायर पर अधिक क्रोधित हो गए। इसी हालात को देखते हुए जनरल डायर ने संपूर्ण शहर में और अधिक सख्ती लागू कर दी थी।
अब 13 अप्रैल के दिन बैसाखी का त्यौहार था तथा कर्फ्यू भी लगाया गया था फिर भी त्यौहार के मध्य नजर हजारों की संख्या में लोग घरों से निकले और अमृतसर शहर स्थित हरी मंदिर साहिब जिसे स्वर्ण मंदिर कहा जाता है। वहां पर शीश नवाने के लिए गए यह मंदिर जलियांवाला बाग के नजदीक ही है।
इसीलिए अपने स्थानीय नेताओं की गिरफ्तारी पर शांतिपूर्ण वार्ता करने के लिए स्वर्ण मंदिर से लोग जलियांवाला बाग पहुंच गए। करीब 20000 लोग इस बाग में शांतिपूर्ण ढंग से सभा कर रहे थे। यहां पर सभी लोगों के बच्चे और परिवार साथ में थे।
जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना
सुबह लोग स्वर्ण मंदिर पहुंचने के बाद जलियांवाला बाग पहुंच गए, जहां पर शांतिपूर्ण तरीके से अपने स्थानीय नेताओं को छुड़ाने के लिए लोगों के बीच वार्ता हो रही थी। उसी समय जनरल डायर के पास सूचना मिली कि 13 तारीख को कोई बड़ा आंदोलन होने वाला है। दंगा भड़काया जा सकता है।
ऐसी स्थिति में जनरल डायर ने अपने 150 सिपाहियों के साथ जलियांवाला बाग के लिए कुच कर दिया। जलियांवाला बाग पहुंचते ही जनरल डायर ने अपने 150 सैनिकों को लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया था। उस समय लोग शांतिपूर्ण ढंग से अपनी सभा कर रहे थे, अचानक से जनरल डायर के आदेश से गोलियों की आवाज और लोगों के चीखने चिल्लाने की आवाज आने लगी।
जलियांवाला बाग चारों तरफ से 10 फीट ऊंची दीवारों से घिरा हुआ था, जिस से निकलने के लिए केवल एक ही मुख्य दरवाजा था। उस दरवाजे से जनरल डायर की सेना आते ही बंद कर दिया और अंधाधुंध असहाय लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दी।
इस गार्डन के अंदर एक कुआं भी बना हुआ है। उस कुएं में कूदकर भी कई लोगों ने अपनी जान दे दी। इसके अलावा जो लोग 10 फीट ऊंची दीवार कूदकर जान बचाने की कोशिश कर रहे थे, उन लोगों को भी जनरल डायर के अंग्रेजी सैनिकों ने गोलियों से भून कर मौत के घाट उतार दिया था। उस समय यहां का नजारा अत्यंत भयानक डरावना था।
कुछ ही समय में जलियांवाला बाग की जमीन का रंग पूरी तरह से लाल हो चुका था। पानी की तरह ढलान से होता हुआ लोगों का रक्त देकर निकल रहा था। यह नजारा देखकर भी अंग्रेज नहीं रुके और अंधाधुंध गोलियां बरसाते गए। सब लोगों के मौत के घाट उतारने के बाद ही अंग्रेज वहां से चले गए। उसके बाद रात हो चुकी थी, पूरी रात कुछ स्थानीय लोग बचे हुए थे।
वह माल ढोने वाली रथ गाड़ियों के ऊपर बेहोश लोगों को उठा उठा कर डॉक्टर एवं अस्पताल के पास लेकर जा रहे थे। कुछ ही समय में अस्पताल पूरी तरह से भर चुके थे। डॉक्टर के घर भर गए थे और इलाज करने के लिए पर्याप्त सामग्री भी नहीं बची थी। ऐसा नजारा देख हर कोई गंभीर दुखी हो गया था।
जलियांवाला बाग हत्याकांड होने के बाद इस नरसंहार में होने वाले लोगों के मौत की संख्या 370 बताई गई थी। लेकिन बाद में यह संख्या 1000 से भी ऊपर हो गई। जबकि घायल हुए लोगों की संख्या 2000 से भी अधिक थी। अंग्रेजों ने इस नरसंहार में मारे जाने वाले लोगों की संख्या पहले कम इसलिए बताइए कि उनकी छवि दुनिया में खराब ना हो तथा देश का माहौल और अधिक तरीके से ना बिगड़े।
लोग उनके खिलाफ खड़े ना हो, इसीलिए उन्होंने पहले कम संख्या बताई लेकिन बाद में यह आंकड़ा 1000 से भी अधिक हो गया था। तब वास्तव में संपूर्ण देश को पता चला कि या कितना बड़ा नरसंहार था। उसके बाद पूरी दुनिया भर में ब्रिटिश सरकार की आलोचना की गई।
जलियांवाला बाग हत्याकांड कमेटी
जलियांवाला बाग हत्याकांड ने देश को झकझोर कर रख दिया था तथा संपूर्ण दुनिया में इसकी चर्चा हो रही थी। तरह तरह से दुनिया भर के नेता और राष्ट्रीय अध्यक्ष अंग्रेजी सरकार को गलत ठहरा रहे थे, उनकी निंदा कर रहे थे। ऐसी स्थिति में अंग्रेजी सरकार ने जलियांवाला बाग तथा देश में हुए इस तरह के हिंसक घटनाओं पर एक जांच कमेटी बैठाई।
उस कमेटी ने हत्याकांड के हर पहलुओं की बारीकी से जांच करने की कोशिश की। जांच कमेटी ने जब जनरल डायर को बुलाया और उनसे प्रश्न किए तब जनरल डायर ने बिना किसी संकोच के इस बात को स्वीकार किया कि उन्होंने लोगों को बिना किसी चेतावनी के बिना किसी सूचना के गोलियों से भून दिया था।
जनरल डायर से जब इस तरह का नरसंहार करने की वजह पूछी गई तो उन्होंने कहा कि “मुझे सुबह 12:30 बजे जलियांवाला बाग में होने वाली बैठक के बारे में पता चला, लेकिन दिन भर मैंने कोई कदम नहीं उठाए। शाम के समय 4:00 बजे मैं अपने 150 सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग के लिए निकल गया, रास्ते में मेरे दिमाग में केवल एक ही बात है कि अगर उस बाग में लोग हुए, तो मैं उन पर गोलियां चलवा दुंगा। सभी लोगों को मरवा देंगे और मैंने ऐसा ही किया। जब मैं वहां पहुंचा, तो लोग शांतिपूर्वक ढंग से अपनी सभा कर रहे थे, लेकिन मैंने उन्हें देखते ही फायर करने का आदेश दे दिया था, जिसके बाद कोने में छुपने वाले और जमीन पर लेटने वाले लोगों को भी चुन चुन कर मार डाला।”
जनरल डायर ने कहा कि अगर “मैं चाहता तो बिना गोली चलाई भी लोगों को तितर-बितर कर सकता था, लोगों को वहां से भगा सकता था, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया क्योंकि लोग फिर से वह इकट्ठे हो जाते और मेरा मजाक उड़ाते, इसीलिए मैंने लोगों पर गोलियां चला दी थी।”
जनरल डायर ने कहा कि” यह मेरी ड्यूटी थी। वहां पर घायल हुए लोग अपने आप अस्पताल जा सकते हैं या कोई लोगों अस्पताल लेकर जा सकता था, उन्हें अस्पताल ले जाने की मेरी ड्यूटी नहीं थी। इसीलिए मैं वहां पर गोलियां चलाने के बाद वापस अपने कार्यालय लौट आया।”
इस कमेटी ने 8 मार्च 1920 को अपनी रिपोर्ट को सार्वजनिक करते हुए बताया कि जनरल डायर ने बिना किसी सूचना के और बिना किसी चेतावनी के लोगों पर अपनी मर्जी से गोलियां चलवाई थी। उनका यह कदम गलत था। जनरल डायर काफी देर तक गोलियां चलाते रहे, बचने की कोशिश करने वाले लोगों को भी चुन-चुन कर मारा गया और जो लोग घायल हुए उन्हें भी अस्पताल नहीं ले जाया गया।
इसके अलावा पंजाब में ब्रिटिश सरकार को गिराने की कोई साजिश भी नहीं हो रही थी। लोग वहां पर केवल शांतिपूर्ण ढंग से अपने स्थानीय गिरफ्तार हुए नेताओं को छुड़ाने के लिए विचार विमर्श कर रहे थे। इसी से संबंधित वहां पर सभा का आयोजन हुआ था।
जनरल डायर डायर की हत्या
इस हत्याकांड के बाद जनरल डायर को नौकरी से निकाल दिया गया था, जिसके बाद जनरल डायर लंदन चला गया। वहां पर वह अपना समय बिता रहा था। जलियांवाला बाग हत्याकांड देखकर भारतीय क्रांतिकारी उधम सिंह जनरल डायर को मारने की योजना बनाई। इस योजना को पूर्ण करने में सरदार उधम सिंह को 21 वर्षों का समय लग गया। लेकिन आखिरकार उन्होंने सफलतापूर्वक इस काम को अंजाम दे दिया।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लंदन में जनरल डायर टैक्सास हॉल में कुछ लोगों को संबोधित कर रहा था, वहां पर पहुंचकर भारतीय क्रांतिकारी सरदार उधम सिंह ने गोलियों से भूनकर जनरल डायर की हत्या कर दी।
कई वर्षों की मेहनत के बाद सरदार उधम सिंह 13 मार्च 1940 को लंदन के टैक्सास हॉल पहुंचे, जहां पर जनरल डायर भाषण दे रहा था। वहां पर सरदार उधम सिंह ने अपनी बंदूक निकाली और जनरल डायर को गोलियों से भून दिया था।
उसके बाद कोर्ट में पेश होने के बाद सरदार उधम सिंह ने कहा कि “मैं गर्व से कहता हूं कि मैं एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी हूं और मैंने अपने हजारों बेगुनाह जलियांवाला बाग हत्याकांड में मारे गए लोगों का बदला सफलतापूर्वक ले पाया। मुझे कोई अफसोस नहीं है।” जिसके बाद विदेशी अखबार और मीडिया वालों ने इस खबर को मुख्य हैडलाइन बनाया।
जनरल डायर को मारने के बाद लंदन न्यायालय ने सन 1940 में सरदार उधम सिंह को फांसी की सजा दे दी गई थी। न्यायालय में सरदार उधम सिंह ने कहा कि “मैं जनरल डायर को मारने के लिए 21 साल से इंतजार कर रहा था, जो अब पूरा हो चुका है। 21 वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद में जनरल डायर को मार पाया हूं।
बता दे कि लंदन की जेल में सरदार उधम सिंह को तरह-तरह की यातनाएं दी और कई समय तक तड़पाया था। लेकिन उन्होंने अपने लोगों का बदला लेने की खुशी में सब कुछ सहर्ष स्वीकार किया और सन 1940 को लंदन में फांसी के फंदे को चूम लिया था। यह समाचार मिलते ही संपूर्ण भारत में लोग सरदार उधम सिंह पर गर्व करने लगे तथा सन 1952 में सरदार उधम सिंह को शहीद का दर्जा दिया गया।
जब वर्ष 1997 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय भारत की यात्रा पर आई, तब वह भारत भ्रमण के दौरान जलियांवाला बाग काफी दौरा किया। वहां पर उन्होंने जूते उतारकर जलियांवाला बाग स्मारक के पास कुछ समय बैठकर 30 मिनट तक का मौन व्रत रखा था, जिसके बाद भारत के कई नेताओं ने महारानी एलिजाबेथ द्वितीय से माफी मांगने के लिए भी कहा था।
हालांकि महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने माफी नहीं मांगी। उनका बचाव करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने कहा कि उस घटना के समय महारानी एलिजाबेथ पैदा नहीं हुई थी, इसीलिए उन्हें माफी नहीं मांगनी चाहिए। उसके बाद ब्रिटेन के प्रिंस विलियम वर्ष 2016 में भारत दौरे पर आए, लेकिन उन्होंने जलियांवाला बाग नहीं जाने का फैसला किया।
जलियांवाला बाग हत्याकांड स्मारक
जलियांवाला बाग हत्याकांड विश्व प्रसिद्ध भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी और अत्यंत दयनीय घटना थी। इसीलिए वहां पर मारे गए लोगों की याद में एक स्मारक बनाने का वहां के लोगों ने फैसला लिया।
साल 1920 में वहां पर एक ट्रस्ट की स्थापना की गई और उसे ट्रस्ट के लोगों ने साल 1923 में लगभग ₹585000 में उसी जगह को खरीद लिया था तथा वहां पर स्मारक बनाने की जिम्मेदारी अमेरिकी आर्किटेक्ट को दी गई थी।
13 अप्रैल 1961 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के समक्ष आर्किटेक्ट ने डिजाइन बनाकर तैयार किया, जिसका खर्चा ₹900000 आया था। इस स्मारक “अग्नि की लौ” के नाम से भी जाना जाता है।
वर्तमान समय में पंजाब प्रांत के अमृतसर शहर में स्थित जलियांवाला बाग एक पर्यटक स्थल बन चुका है। यहां पर हर रोज हजारों की संख्या में दूरदराज से लोग इस घटना स्थल पर आते हैं। यहां पर लोगों को वह खौफनाक तथा भयानक मंजर देखने को मिलता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आज भी जलियांवाला बाग के दीवारों पर गोलियों के निशान है। यहां के स्थानीय निवासी घटनाक्रम को याद करने और अपने लोगों की यादगार में यहां पर आते हैं।
इस बाग में आज भी वहां मौजूद है, जिसमें महिलाएं लड़कियां, बच्चे और लोगों ने कूदकर अपनी जान दे दी थी। आज इस हत्याकांड को 100 से भी अधिक साल हो चुके हैं। हर वर्ष 13 अप्रैल के दिन जलियांवाला बाग हत्याकांड को शहिद लोगों की श्रद्धांजलि के रूप में मनाते हैं।
निष्कर्ष
जलियांवाला बाग हत्याकांड एक भारतीय इतिहास का अत्यंत खौफनाक और दुर्भाग्यपूर्ण घटना क्रम था, जिसने संपूर्ण भारत को झकझोर कर रख दिया था। दुनिया भर में इस घटनाक्रम की चर्चा हुई और अंग्रेजी सरकार की निंदा की गई थी।
वर्तमान समय में यहां पर पर्यटक स्थल बना हुआ है। जहां लोग यहां पर नरसंहार में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते हैं और यहां दीवार पर गोलियों के निशान देखकर उस घटनाक्रम का अंदाजा लगा सकते हैं।
इस आर्टिकल में हम आपको पूरी जानकारी के साथ विस्तार से जलियांवाला बाग हत्याकांड का घटनाक्रम बताया है। हमें उम्मीद है यह जानकारी आपको जरूर उपयोगी लगी होगी। अगर आपका इस आर्टिकल से संबंधित कोई प्रश्न है तो आप कमेंट करके बता सकते हैं।
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