भारत में हर एक बच्चे से बच्चा भी रामायण के बारे में जानता है और रामायण में रावण की एक महत्वपूर्ण भूमिका है।
रावण का नाम सुनते ही 10 मुख वाला राक्षस की काल्पनिक चित्र हमारे मन में बन जाती हैं क्योंकि 10 सिर रावण की पहचान है और इसीलिए इसे दशानन भी कहा जाता है।
रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है और इसी बुराई का अंत कर जीत के प्रतीक के तौर पर हर साल दशहरे के दिन रावण के पुतले को जलाया जाता है।
हालांकि रावण ने मां सीता का अपहरण किया था, इसलिए हम रावण को बुराई का प्रतीक मानते हैं और वैसे भी वह राक्षस कुल का था लेकिन उसके बावजूद रावण में कई ऐसे गुण थे, जो उसे महान बनाते हैं।
कई पौराणिक ग्रंथों के अनुसार रावण ग्रंथों का ज्ञाता था। उसने अपनी बुद्धिमता और ज्ञान से भगवान शिव शंकर को भी रिझा लिया था।
इस लेख में रावण का इतिहास (History of Ravana in Hindi) के बारे में जानेंगे। जिसमें रावण का परिवार, रावण का जन्म, रावण किस जाति का था, रावण का ससुराल आदि के बारे में विस्तार से बताया है।
रावण का इतिहास (History of Ravana in Hindi)
नाम | रावण |
अन्य नाम | दासिस रावण, दासिस सविथि महा रावण, लंकेश्वर, लंकेश्वरन, दशानन, रावुला, रावणेश्वरन, ईला वेंधर, लंकापति, और रावणसुर |
रावण की माता का नाम | कैकसी |
रावण के पिता का नाम | विश्रवा |
रावण के भाई | विभीषण, कुंभकरण, अहिरावण (कुछ स्त्रोतों के अनुसार), कुबेर (सौतेला भाई) |
रावण की बहन | शूर्पणखा (चंद्रमुखी) |
पत्नी का नाम | 3 पत्नियां, मंदोदरी |
रावण की संतान | 7 पुत्र (इंद्रजीत, अक्षय कुमार, अतिकाय, देवांतक, नारंतक, त्रिशिरा और प्रहस्त) |
रावण की जाति | ब्राह्मण |
रावण का ससुराल | मंडोर, जोधपुर (राजस्थान) |
रावण का जन्म
रावण का जन्म ऋषि विश्रवा और राक्षसी कैकसी के यहां हुआ था। रावण ब्रह्मराक्षस था क्योंकि उसके पिता एक ब्राह्मण थे और माता राक्षस कुल की थी।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि रावण की मां कैकसी के पिता और देयों के राजा सोमाली चाहते थे कि कैकसी की शादी नश्वर दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति से हो ताकि उससे एक असाधारण संतान का जन्म हो सके।
कैकसी के पिता ने विश्व के बड़े से बड़े राजाओं के प्रस्ताव को ठुकरा दिया, उन्हें कोई भी अपने से बड़ा शक्तिशाली व्यक्ति नहीं मिला।
तब कैकसी ने ऋषियों में अपने वर की खोज की और आखिर में ऋषि विश्रवा को वर के रूप में चुना। विवाह के पश्चात आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को रावण का जन्म हुआ था।
रावण के भाई बहन
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रावण के दो भाई थे, जिनका नाम विभीषण और कुंभकरण था।
कुंभकरण भी रावण की तरह राक्षस प्रवृत्ति का था। लेकिन विभीषण राक्षस कुल में जन्म लेने के बावजूद भगवान राम का परम भक्त था।
कुछ स्त्रोतों में रावण के एक और भाई का उल्लेख है, जिसका नाम अहिरावण बताया जाता है।
रावण का एक सौतेला भाई भी था, जिसका नाम कुबेर था और रावण ने अपने सौतेले भाई कुबेर से अपने शक्तियों के दम पर लंका छीन ली थी और उसका राजा बन गया था।
रावण की एक बहन थी, जिसका नाम चंद्रमुखी था, जो बाद में शूर्पणखा के नाम से पहचानी गई।
रावण की शिक्षा
रावण ने अपने पिता ऋषि विश्रवा के सानिध्य में पवित्र ग्रंथ एवं वेदों के ज्ञान में महारत हासिल की। इसके साथ ही युद्ध कला में भी प्रवीण हुए।
रावण को बचपन से ही वीणा बजाने का शौक था। इन्हें एक उत्कृष्ट वीणा वादक भी कहा जाता था। इनके ध्वज पर वीणा का चिन्ह हुआ करता था।
अपने प्रारंभिक शिक्षा के बाद रावण ने कई वर्षों तक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की।
कहा जाता है कि रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए 10 बार अपने सिर को काट कर के बलिदान दिया था और दसों बार कटे हुए सिर के जगह पर दूसरा शिर आ जाता था।
उसकी तपस्या पूरी हुई और भगवान शिव उससे प्रसन्न हो गए। उसने भगवान शिव से अमरता का वरदान मांगा। लेकिन भगवान शिव ने रावण को अमरता का वरदान देने से मना कर दिया।
तब रावण ने अहंकार में आकर नश्वर इंसानों को छोड़कर देवता, राक्षसों, सांप और जंगली जानवरों से कोई भी हानि ना होने का वर मांगा।
यही कारण था कि रावण को कोई भी परास्त नहीं कर पाता था। तब रावण का वध करने के लिए स्वयं भगवान विष्णु मनुष्य के रूप में राम के नाम से धरती पर अवतार लिए थे।
रावण लंका का राजा कैसे बना?
रावण को लंकेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह लंका का राजा था। लेकिन लंका का राजा रावण कैसे बना इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है।
कहा जाता है कि भगवान शिव से चमत्कारी शक्तियां प्राप्त करने के बाद रावण अपने दादा सुमाली की मदद से अपनी शक्तियों का विस्तार करने के लिए सेना का नेतृत्व करने लगा। उसकी नजर लंका पर भी पड़ी।
कहा जाता है कि लंका का निर्माण भगवान शिव जी ने मां पार्वती के लिए भगवान विश्वकर्मा के द्वारा करवाया था और इस सुंदर और रमनिय लंका ग्रह प्रवेश की पूजा करवाने के लिए ऋषि विश्रवा को बुलाया गया था।
उन्होंने पूजा के बाद दक्षिणा में लंका को ही मांग लिया। रावण के सौतेले भाई कुबेर ने रावण और अपने अन्य भाई बहनों को संदेश पहुंचाया कि अब लंका उन सभी का हो चुका है।
लेकिन रावण कुबेर से श्रीलंका को अपनी शक्तियों के बल से छीन कर खुद उस पर कब्जा कर लिया। इस तरह रावण लंका का राजा बना।
भगवान शिव का परम भक्त था रावण
रावण को भगवान शिव का परम भक्त कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि लंका क राजा बनने के बाद रावण भगवान शिव से मिलने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचता है।
लेकिन वहां पर भगवान शिव के वाहन नंदी रावण को अंदर जाने से मना कर देते हैं, जिससे क्रोधित होकर रावण नंदी को चिढ़ाने लगते हैं।
इधर नंदी भी रावण से क्रोधित हो उठते हैं और उन्हें श्राप दे देते हैं कि तुम्हारे लंका को एक वानर नष्ट कर देगा।
रावण अहंकार में आकर कैलाश पर्वत को उठा लेता है और नंदी को कहता है कि वह शिव समेत पूरे कैलाश को लंका ले जाएगा।
उसके इस अहंकार को देख भगवान शिव कैलाश पर अपने पैर की सबसे छोटी उंगली को रखकर कैलाश पर्वत को वापस जमीन पर स्थापित कर देते हैं।
लेकिन इसके कारण रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब जाता है और पूरे कैलाश पर्वत का वजन उसके हाथों पर आ जाता है, जिससे वह जोर से कराह उठता है। उसकी कराह इतनी तेज होती है कि इससे पृथ्वी तक कांप उठती है।
कहा जाता है इसी घटना के बाद भगवान शिव ने लंकेश्वर को रावण का नाम दिया था, जिसका अर्थ होता है तेज दहाड़।
रावण को इस घटना के बाद अपनी गलती का एहसास होता है, जिसके बाद वह भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपनी नसों को तोड़कर तार की तरह इस्तेमाल करके एक संगीत बनाता है, जिसमें भगवान शिव का गुणगान करता है।
यही संगीत शिव तांडव स्त्रोत के नाम से जाना जाता है। इस रचना से भगवान शिव रावण से प्रसन्न होते हैं और उसे माफ कर देते हैं।
भगवान शिव प्रसन्न होकर रावण को चंद्रहास नाम का तलवार भी देते हैं। कहा जाता है कि इस घटना के बाद रावण भगवान शिव का आजीवन भक्त बन गया।
रावण का विवाह
रावण की तीन पत्नियां थी, उसकी पहली पत्नी का नाम मंदोदरी था। मंदोदरी एक पतिव्रता स्त्री थी और भगवान शिव की परम भक्त थी।
पौराणिक कथाओं में मंदोदरी का जन्म हेमा नाम की अप्सरा के गर्भ से बताया गया है। मंदोदरी को पंच कन्याओं में से एक माना जाता है, जिन्हें चीर कुमारी के नाम से भी जाना जाता था।
कहा जाता है कि मंदोदरी भगवान शिव की पूजा और तप से उन्हें प्रसन्न करती है और उनसे पृथ्वी के सबसे शक्तिशाली और विद्वान पुरुष से उनका विवाह होने का वरदान मांगती हैं।
इसी वरदान के फलस्वरूप मंदोदरी और रावण की मुलाकात श्री बिल्वेश्वर नाथ मंदिर में होती है, जहां पर रावण मंदोदरी की खूबसूरती से मोहित हो जाता है और उससे विवाह कर लेता है।
मंदोदरी के अतिरिक्त रावण की दो और पत्नियां थी। कहा जाता है कि रावण की तीन पत्नियों से इसे 7 पुत्र प्राप्त हुए थे। जिनके नाम है: इंद्रजीत, अक्षय कुमार, अतिकाय, देवांतक, नारंतक, त्रिशिरा और प्रहस्त थे।
क्या सही में रावण के 10 सिर थे?
रावण को दशानन नाम से जाना जाता है और हर कोई जानता है कि रावण के 10 सिर हुआ करते थे लेकिन कई शास्त्रों में बताया गया है कि रावण के जो 10 सिर थे, वह भ्रमित रूप से थे।
दरअसल रावण अपने गले में नौ रत्नों से बनी सुंदर माला पहनता था। उन नवरत्नों में बहुत बड़े-बड़े मोती लगे हुए थे।
जिसकी चमक इतनी तीव्र हुआ करती थी कि उसके कारण रावण का एक प्रत्यक्ष सिर के साथ ही 9 अप्रत्यक्ष सिर भी नजर आता था।
रावण को त्रिलोक विजेता क्यों कहा जाता है?
रामायण एवं कई पौराणिक ग्रंथों में रावण को त्रिलोक विजेता के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
जिसके पीछे का कारण बताया जाता है कि रावण अपनी शक्तियों और नीतियों के बलबूते अपने आसपास के सभी मुख्य राज्य जैसे वराहद्वीप, शंख द्वीप, कुश द्वीप, अंग द्वीप, मलय द्वीप, यशदीप और आंध्रालय पर आक्रमण करके अपने अधीन कर लेता है। उसके बाद उसकी नजर लंका पर भी पड़ती है।
उस समय लंका पर रावण के सौतेले भाई कुबेर का शासन था, जिसे हराकर रावण लंका पर भी विजय प्राप्त कर लेता है।
कुबेर के पास पुष्पक नाम का एक विमान था, जो मन की गति से चलता था। रावण उसे भी कुबेर से छीन लेता है, जिसके बाद रावण उसी विमान के जरिए इंद्रलोक पर भी अपना आधिपत्य जमा लेता है।
वहां पर वह अपने पुत्र मेघनाथ को भेजता है, जो इंद्र को हराकर इंद्रलोक को अपने नाम कर लेता है।
इसी कारण मेघनाथ को इंद्रजीत के नाम से भी जाना जाता है। यही कारण है कि रावण को त्रिलोक विजेता के नाम से जाना जाता है।
रावण की महान रचनाएं
रावण वेदों एवं शास्त्रों का ज्ञानी था। इसने अपने जीवन काल में कई सारी महान रचनाएं की थी, जिनमें से कुछ इस प्रकार है:
शिव तांडव स्त्रोत
रावण का सबसे प्रसिद्ध रचना शिव तांडव स्त्रोत है। इस स्तुति की रचना रावण ने तब किया था जब वह शक्ति प्रदर्शन के तौर पर कैलाश पर्वत को अपने हाथों पर उठा लिया था।
लेकिन भगवान शिव जी ने अपने पैरों की अंगुलियों को कैलाश पर्वत पर रखकर नीचे पर्वत को स्थापित किया, जिससे रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया।
उस समय रावण भगवान शिव से क्षमा मांगते हुए भगवान शिव का गुणगान करते हुए स्तुति गान करने लगता है, जो बाद में शिव तांडव स्त्रोत के नाम से जाना जाता है।
रावण संहिता
रावण द्वारा रचित एक और पुस्तक रावण संहिता है। रावण ने इस पुस्तक में अपने जीवन के कई बातें लिखी हैं।
इसमें रावण ने ज्योतिष से जुड़ी भी कई सारी जानकारियां दी है। इस पुस्तक को कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
उपरोक्त रचना के अतिरिक्त रावण ने अंक प्रकाश,रावणीयम, नाड़ी परीक्षा, प्राकृत लंकेश्वर, ऋग्वेद भाष्य, इंद्रजाल, कुमारतंत्र, प्राकृत कामधेनु आदि पुस्तकों की भी रचना की थी।
रावण की इच्छाएं
- रावण एक विद्वान और बलशाली व्यक्ति था। वह अपने शक्ति से अपनी तमाम इच्छाओं को पूरी कर लेना चाहता था। रावण की इच्छा थी कि स्वर्ग तक पहुंचने के लिए एक ऐसी सिढी हो, जिसके जरिए सीधे मोक्ष प्राप्त किया जा सके।
- रावण चाहता था कि सोने में सुगंध हो ताकि सोने को अगर पहना जाए या कहीं भी सोने को लगाया जाए तो वह जगह सुगंध से बाहर जाए। इसके साथ ही सोने को खोजने में आसानी हो। रावण को सोने से काफी लगाव था। वह दुनिया भर के सोने पर अपना आधिपत्य जमाना चाहता था। इसलिए वह पूरे लंका को ही सोने से आच्छादित कर दिया था।
- रावण चाहता था कि धरती के सभी जीवों के खून का रंग सफेद हो जाए। क्योंकि सभी देवताओं के साथ युद्ध के समय खून जब नदी में मिलने लगी तो सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा था। इससे रावण अपने आपको दोषी मानने लगा था। इसलिए वह चाहता था कि खून का रंग सफेद होने पर पानी में मिलने के बाद पानी सफेद ही रहेगा।
- रावण का रंग काला होने के कारण वह चाहता था कि सृष्टि के सभी मनुष्य का रंग काला हो ताकि कोई भी उसके काले रंग की निंदा ना कर सके।
रावण के जीवन का अंत
रामायण का ज्ञान रखने वाला हर एक व्यक्ति जानता है कि रावण का वध भगवान श्रीराम ने किया था।
रामायण के अनुसार रावण ने भगवान राम की पत्नी सीता का अपहरण किया था। कहा जाता है कि रावण की बहन शूर्पणखा राम की सुंदरता पर मोहित हो गई थी और उसने एक सुंदर स्त्री का रूप लेकर भगवान राम के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था।
लेकिन भगवान राम ने यह कहकर प्रस्ताव को मना कर दिया कि उनका विवाह मिथिला राज कुमारी जानकी से हुआ है। वह अपनी पत्नी के होते हुए किसी पराई स्त्री से विवाह नहीं रचा सकते हैं।
जिसके बाद शूर्पणखा मां सीता को खत्म करने के लिए उन पर आक्रमण करती है कि इसी बीच लक्ष्मण आकर अपने बाणों से शूर्पणखा के नाक को काट देते हैं।
क्रोधित शूर्पणखा रावण के पास जाती हैं और रावण को उसकी बेइज्जती का बदला लेने के लिए कहती है।
रावण ऋषि मारीच के पास जाता है और उसे छल पूर्वक मां सीता के अपहरण करने में मदद करने के लिए बोलता है।
मारीच एक सुंदर हिरण का रूप लेकर मां सीता को लुभाता है, जिसे पकड़ने के लिए भगवान राम हिरण के पीछे भागने लगते हैं।
उसी बीच चिल्लाने की आवाज आती है, जिसके बाद लक्ष्मण भगवान श्री राम के पीछे भाग पड़ते हैं।
इसी बीच समय का फायदा उठाते हुए रावण आता है और छल पूर्वक मां सीता का अपहरण कर लंका ले जाता है। वहां वह मां सीता को अशोक वाटिका में रख देता है।
बाद में भगवान श्री राम वानर सेना बनाते हैं और वानर सेना की मदद से लंका पर हमला करते हैं।
8 दिनों के युद्ध के पश्चात भगवान श्री राम अंत में रावण का वध करते हैं और इस तरह बुराई पर विजय प्राप्त करके सीता को वापस अयोध्या लेकर जाते हैं।
रावण के बारे में कुछ रोचक तथ्य
- रावण एक प्रवीण वीणा वादक था। वह शुरू से ही बहुत अच्छा विणा बजाया करता था। यहां तक कि उसके ध्वज में भी विणा का चिन्ह हुआ करता था। कहा जाता है कि उसके वीणा वादन को सुनने के लिए स्वर्ग लोक से देवता भी आते थे।
- रावण से संबंधित एक रोचक कहानी यह भी है कि जब रावण के पुत्रों का जन्म हो रहा था तब उन्हें अजय और अमर बनाने के लिए वह नवग्रहों को 11 स्थान पर रहने का आदेश देता है। लेकिन शनि देव रावण के बात की अवहेलना करते हुए 12वें स्थान पर जाकर बैठ जाते हैं, जिससे क्रोधित होकर रावण शनिदेव को बलपूर्वक कई वर्षों तक अपने महल में बंदी बना कर रखे थे।
- रावण त्रिलोक विजेता था। वह बहुत ही बलवान और शक्तिशाली था लेकिन उसके बावजूद वह किष्किंधा के नरेश बाली से हार गया था। उन्होंने रावण को 6 महीने तक अपने कांख में दबा कर रखा था।
- रावण ने मां सीता का अपहरण कर अशोक वाटिका में रखा था। लेकिन इन 11 महीनों में रावण एक बार भी मां सीता को छू तक नहीं सका। क्योंकि रावण को श्राप मिला था कि अगर वह किसी पराई स्त्री को बिना उसकी इच्छा के छुएगा तो उसके सिर के 10 टुकड़े हो जाएंगे।
- रावण ने द्वापर और सत युग में भी जन्म लिया था। द्वापर युग में वह शिशुपाल और सत युग में हिरणृयकश्यप के नाम से जन्म लिया था।
- लंका में आज भी रावण की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि रावण के समय लंका में कोई भी व्यक्ति गरीब नहीं था, पूरी तरीके से यह राज्य समृद्ध था।
- भगवान श्री राम के द्वारा रावण का वध करने के समय भगवान राम ने लक्ष्मण को रावण से ज्ञान लेने के लिए भेजा था।
FAQ
रावण राक्षस कुल का था लेकिन बहुत विद्वान था। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार कहा जाता है कि रावण छह शास्त्र और चार वेदों का ज्ञाता था। उसके शासनकाल में लंका का वैभव चरम पर था और उसका खुद का महल सोने का बना हुआ था, इसीलिए लंका को सोने की नगरी भी कहा जाता था।
रावण को दशानन के नाम से जाना जाता है। 10 सर के साथ ही इसके 10 नाम भी है। जैसे दासिस रावण, दासिस सविथि महा रावण, लंकेश्वर, लंकेश्वरन, दशानन, रावुला, रावणेश्वरन, ईला वेंधर, लंकापति, और रावणसुर।
रामायण और पौराणिक ग्रंथों के अनुसार रावण का जन्म त्रेता युग में महा ऋषि विश्रवा और उनकी पत्नी राक्षस राजकुमारी के यहां हुआ था।
वैसे तो रावण के 10 नाम है। लेकिन मूल रूप से रावण को दशग्रीव का नाम दिया गया था, जिसका अर्थ 10 सिर वाला होता है।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार रावण ने 3 अवतार लिए थे। पहला सतयुग में हिरण्यकश्यप नाम के राक्षस के रूप में जन्म लिया था, त्रेता युग में रावण के रूप में और द्वापर युग में शिशुपाल के रूप में जन्म लिया था।
रावण को ब्रह्मराक्षस कहा जाता था। क्योंकि रावण में एक क्षत्रिय और राक्षसी दोनों के गुण थे। उसके पिता ऋषि विश्रवा एक ब्राह्मण थे, वहीं उसकी माता कैकसी एक राक्षस कुल की थी। यही कारण है कि रावण बेहद ही बलशाली और बड़ा शिव भक्त था।
रावण के दादा जी ऋषि पुलस्त्य थे, जिन्हें ब्रह्मा के 10 मानस पुत्रों में से एक माना जाता है। वह सात महान ऋषियों के समूह यानी कि सप्त ऋषि के सदस्य थे।
रावण की जाति ब्राह्मण थी।
निष्कर्ष
इस लेख में रामायण का एक महत्वपूर्ण किरदार, शक्तिशाली और विद्वान राजा लंकेश्वर के जीवन परिचय के बारे में जाना।
रामायण पढ़ने वाला हर एक व्यक्ति रावण के बारे में जानता है। लेकिन रावण के जीवन से जुड़ी बहुत सारी ऐसी बातें हैं, जिसके बारे में लोगों को नहीं मालूम।
इस लेख में रावण के जीवन के उन तमाम रोचक तथ्यों के बारे में बताया, जिससे बहुत से लोग अज्ञात हैं।
हमें उम्मीद है कि इस लेख के जरिए रावण के संपूर्ण जीवन के बारे में आपको जानने को मिला होगा।
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