Hindi Poems for Kids: कविता का मतलब कम शब्दों में अधिक भाव को व्यक्त करना होता है। कविता चाहे छोटी हो या थोड़ी बड़ी लेकिन उनका अर्थ हमारे जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालती है।
विद्यालय में होने वाले कार्यक्रमों में बच्चों को छोटी छोटी कविताएं बोलने को कहा जाता है। जब बच्चे मंच पर कविताएं बोलते है तो उनका हौसल बढ़ता है और उनकी बोलने का डर मिटता है।
यदि आप स्कूल में बोलने के लिए कविता खोज रहे हैं और आपको सुंदर कविता हिंदी में बच्चों के लिए चाहिए तो आप बिल्कुल सही जगह पर है।
यहां पर हम बच्चों के लिए कविता का विशाल संग्रह शेयर कर रहे हैं। यह कविताएं बच्चों के लिए प्रेरक कविताएं के रूप में महत्वपूर्ण है।
बच्चों के लिए कविता (Hindi Poems for Kids)
हे भगवान
हे भगवान, हे भगवान।
हम सब तेरी हैं संतान।
ईश्वर हमको दो वरदान।
पढ़ लिख कर हम बनें महान।
हमसे चमके हिन्दुस्तान।
यह छोटी सी कविता हिंदी में बच्चों के लिए बहुत अच्छी है, जिसे बच्चे आसानी से याद भी कर सकते हैं और बिना डरे बोल भी सकते हैं।
क्लास मॉनिटर
यह मॉनिटर बन कक्षा के बड़ी शान दिखाते हैं,
क्लास में रौब है बाहर धक्के खाते हैं।
झूठी झूठी शिकायतों से हम सब को पिटवाते हैं,
मीठी मीठी बातों से टीचर जी को बहलाते हैं।
टीचर के ना आने पर खुद शासक बन जाते हैं,
ज़रा सा कुछ बोल दो टीचर से शिकायत करने जाते हैं।
छोटी छोटी बातों का बतंगड़ बनाते हैं,
मैडम इनको जल्दी बदलो हम सब यही चाहते हैं।
अनोखा घर
सबका अपना होता है,
सबको रहना होता है,
और जहाँ सुख-दुःख होता है,
वह अनोखा घर होता है।
चार-दीवार के अंदर रहते सब,
समय पता नही बीत जाता है कब,
वह अनोखा घर होता है।
जहाँ सब अपना काम करते है,
मिल-जुलकर साथ हमेशा रहते है,
वह अनोखा घर होता है।
आज मनुष्य की हरकतों से घर बिखरता जा रहा है,
एकता का वातावरण पिघलता जा रहा है,
कहीं ऐसा ना हो कि कोई कहे पहले ऐसा होता था,
हर अच्छा घर, अनोखा घर होता था।
फूल
कितने सुंदर कितने प्यारे फूल
सब के मन को भाते फूल,
अद्भुत छटा बिखेरते फूल
इन्दर्धनुष के हरे रंग के फूल।
गजरा माला साज सजावट
कितने उपयोग में आते फूल,
महक मिठास चहुं ओर फैलाते
अपना अस्तित्व बताते फूल।
कई मौसमी कई बारहमासी
किस्म – किस्म के आते फूल,
मंद पवन में अटखेलिया करते
जैसे कुछ कहना चाहते फूल।
हम न रहेंगे
हम न रहेंगे
तब भी तो यह खेत रहेंगे,
इन खेतों पर घन लहराते
शेष रहेंगे,
जीवन देते
प्यास बुझाते
माटी को मदमस्त बनाते
श्याम बदरिया के
लहराते केश रहेंगे।
हम न रहेंगे
तब भी तो रतिरंग रहेंगे,
लाल कमल के साथ
पुलकते भृंग रहेंगे,
मधु के दानी
मोद मनाते
भूतल को रससिक्त बनाते
लाल चुनरिया में लहराते
अंग रहेंगे।
कस्बे की शाम
हिंदी कविता बच्चों के लिए
झुरमुट में दुपहरिया कुम्हलाई
खेतों में अन्हियारी घिर आई
पश्चिम की सुनहरिया घुंघराई
टीलों पर, तालों पर
इक्के दुक्के अपने घर जाने वाले पर
धीरे धीरे उतरी शाम!
आँचल से छू तुलसी की थाली
दीदी ने घर की ढिबरी बाली
जम्हाई ले लेकर उजियाली,
जा बैठी ताखों में
घर भर के बच्चों की आँखों में
धीरे धीरे उतरी शाम!
इस अधकच्चे से घर के आँगन
में जाने क्यों इतना आश्वासन
पाता है यह मेरा टूटा मन
लगता है इन पिछले वर्षों में
सच्चे झूठे, खट्टे मीठे संघर्षों में
इस घर की छाया थी छूट गई अनजाने
जो अब झुक कर मेरे सिरहाने–
कहती है
“भटको बेबात कहीं!
लौटोगे अपनी हर यात्रा के बाद यहीं!”
धीरे धीरे उतरी शाम!
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बिल्ली रानी
कितनी प्यारी, कितनी न्यारी,
बिल्ली रानी है अनूठी,
चुपके से अंदर यूँ घूस जाती,
पता चलने न देती।
पैर भी उनके बजते नहीं,
दूध खीर पी जाती,
कुछ न छोड़ती,
सारा चाट कर जाती।
मौक़ा मिलते ही
बिल्ली रानी अपना पेट भर लेती,
घर वाले देखते रह जाते,
बिल्ली रानी अपना काम कर लेती,
फिर भी सबको प्यारी लगती
बिल्ली रानी।
लकड़ी की काठी काठी पे घोड़ा
लकड़ी की काठी काठी पे घोड़ा
घोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा।
घोड़ा पहुंचा चौक में चौक में था नाई
घोड़ेजी की नाई ने हज़ामत जो बनाई
टग-बग टग-बग टग-बग टग-बग
घोड़ा पहुंचा चौक…
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा।
घोड़ा था घमंडी पहुंचा सब्जी मंडी
सब्जी मंडी बरफ़ पड़ी थी बरफ़ में लग गई ठंडी
चग-बग चग-बग चग-बग चग-बग
घोड़ा था घमंडी…
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा।
घोड़ा अपना तगड़ा है देखो कितनी चरबी है
चलता है महरौली में पर घोड़ा अपना अरबी है
टग-बग टग-बग टग-बग टग-बग
घोड़ा अपना तगड़ा है…
बाँह छूड़ा के दौड़ा घोड़ा दुम उठा के डौड़ा।
लकड़ी की काठी काठी पे घोड़ा
घोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा।
मेरी किताब
मेरी किताब एक अनोठी किताब,
रहना चाहती हरदम मेरे पास।
बातें अनेक करती जुबानी
सिखलाती ढंग जीने का।।
मेरे प्रश्नों के उत्तर इसके पास,
हल करती तुरंत बार-बार।
हर एक पन्ने का नया अंदाज़,
मजबूर करता मुझे समझने को बार-बार।।
नया रंग नया ढंग,
मिलेगा भला ऐसा किस के पास।
मेरी किताब एक अनोठी किताब,
रहना चाहती हरदम मेरे पास।।
सुबह
सूरज की किरणें आती हैं,
सारी कलियाँ खिल जाती हैं,
अंधकार सब खो जाता है,
सब जग सुंदर हो जाता है।
चिड़ियाँ गाती हैं मिलजुल कर,
बहते हैं उनके मीठे स्वर,
ठंडी ढंडी हवा सुहानी,
चलती है जैसे मस्तानी।
ये प्रातः की सुखबेला है,
धरती का सुख अलबेला है,
नई ताज़गी नई कहानी,
नया जोश पाते हैं प्राणी।
खो देते हैं आलस सारा,
और काम लगता है प्यारा,
सुबह भली लगती उनको,
मेहनत प्यारी लगती जिनको।
मेहनता सबसे अच्छा गुण है,
आलस बहुत बड़ा दुर्गुण है,
अगर सुबह भी अलसा जाए,
तो क्या जग सुंदर हो पाए।
दादी माँ
माँ से प्यारी दादी माँ,
घर की मुखिया दादी माँ।
बाहर से झगड़ा कर आते,
तब गोद में छुपाती दादी माँ।
मम्मी जब पीटने आती,
तब बचाती दादी माँ।
अपने हिस्से की चीजें,
हमें खिलाती दादी माँ।
रात को बिस्तर में बिठाकर,
कहानी सुनाती दादी माँ।
औरत-मर्द सब बाहर जाते,
घर में रहती दादी माँ।
मंदिर जैसे भगवान बिना,
घर जैसे बिन दादी माँ।
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सोने के हिरन
आधा जीवन जब बीत गया
बनवासी सा गाते रोते
तब पता चला इस दुनियां में
सोने के हिरन नहीं होते।
संबंध सभी ने तोड़ लिये
चिंता ने कभी नहीं छोड़े
सब हाथ जोड़ कर चले गये
पीड़ा ने हाथ नहीं जोड़े।
सूनी घाटी में अपनी ही
प्रतिध्वनियों ने यों छला हमे
हम समझ गये पाषाणों के
वाणी मन नयन नहीं होते।
मंदिर मंदिर भटके लेकर
खंडित विश्वासों के टुकड़े
उसने ही हाथ जलाये जिस
प्रतिमा के चरण युगल पकड़े।
जग जो कहना चाहे कह ले
अविरल जल धारा बह ले
पर जले हुए इन हाथों से
अब हमसे हवन नहीं होते।
बादल
काले-काले उमड़कर बादल,
लाए पानी भरकर बादल।
बादलों ने जब डाला डेरा,
छाया आकाश में घोर अंधेरा।
दूर से आया चलकर बादल,
लाया पानी भरकर बादल।।
बच्चा बूढा नहीं कोई उदास,
बुझेगी तपती धरती की प्यास।
नहीं भागेगा डर के बादल,
लाया पानी भरकर बादल।।
धरा से लेकर पर्वत की चोटी,
गिरी उन पर बूंदे मोटी-मोटी।
बरसेगा आज जमकर बादल,
लाया पानी भरकर बादल।।
गली-कूचों में पानी-पानी,
बादल की है यही कहानी।
देता जीवन मरकर बादल,
लाया पानी भरकर बादल।।
चित्र
चित्र से उठते हैं तरह-तरह के रंग
लाल-पीले-नीले-हरे
आकर खो जाते हैं हमारी आंखों में
फिर भी चित्रों से खत्म नहीं होता
कभी भी कोई रंग।
रंग अलग-अलग तरह के
कभी अपने हल्के स्पर्श से तो कभी गाढ़े स्पर्श से
चिपके रहते हैं,
चित्र में स्थित प्रकृति और जनजीवन से।
सभी चाहते हैं गाढ़े रंग अपने लिए
लेकिन चित्रकार चाहता है
मिले उन्हें रंग
उनके व्यक्तित्व के अनुसार ही,
जो उघाड़े उनका जीवन सघनता में।
अक्सर यादें रह जाती हैं अच्छी कलाकृतियों की
रंग तक भी याद आते रहते हैं
लेकिन जो अंगुलियां गुजर गयी हजारों बार
इन पर ब्रश घुमाते हुए
कितना मुश्किल है समझ पाना
कौन सी भाषा में वे लिख गयी
और सचमुच क्या कहना चाहती हैं वे।
भारतीय रेल
एक बार हमें करनी पड़ी रेल की यात्रा
देख सवारियों की मात्रा
पसीने लगे छूटने
हम घर की तरफ़ लगे फूटने।
इतने में एक कुली आया
और हमसे फ़रमाया
साहब अंदर जाना है?
हमने कहा हां भाई जाना है
उसने कहा अंदर तो पंहुचा दूंगा
पर रुपये पूरे पचास लूंगा
हमने कहा समान नहीं केवल हम हैं
तो उसने कहा क्या आप किसी सामान से कम हैं?
जैसे तैसे डिब्बे के अंदर पहुचें
यहां का दृश्य तो ओर भी घमासान था
पूरा का पूरा डिब्बा अपने आप में एक हिंदुस्तान था
कोई सीट पर बैठा था, कोई खड़ा था
जिसे खड़े होने की भी जगह नही मिली वो सीट के नीचे पड़ा था।
इतने में एक बोरा उछालकर आया ओर गंजे के सर से टकराया
गंजा चिल्लाया यह किसका बोरा है?
बाजू वाला बोला इसमें तो बारह साल का छोरा है।
तभी कुछ आवाज़ हुई और
इतने मैं एक बोला चली चली
दूसरा बोला या अली
हमने कहा काहे की अली काहे की बलि
ट्रेन तो बगल वाली चली।
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सुप्रभात
नयन से नयन का नमन हो रहा है,
लो उषा का आगमन हो रहा है।
परत पर परत चांदनी कट रही है,
तभी तो निशा का गमन हो रहा है।
क्षितिज पर अभी भी हैं अलसाए सपने,
पलक खोल कर भी, शयन हो रहा है।
झरोखों से प्राची कि पहली किरण का,
लहर से प्रथम आचमन हो रहा है।
हैं नहला रहीं, हर कली को तुषारें
लगन पूर्व कितना जतन हो रहा है।
वही शाख पर हैं पक्षियों का कलरव,
प्रभाती सा लेकिन, सहन हो रहा है।
बढ़ी जा रही है जिस तरह से अरुणिमा,
है लगता कहीं पर हवन हो रहा है।
मधुर मुक्त आभा, सुगन्धित पवन है,
नए दिन का कैसा सृजन हो रहा है।
जन्म दिन मुबारक हो
जन्म दिन मुबारक हो, मुबारक हो जन्मदिन।
आपके जीवन में, बार – बार आये यह दिन।।
दुनिया का मालिक, आपको बख्शे अच्छी सेहत।
खुशियाँ ही खुशियाँ, बरसाती रहे उसकी नेमत।।
माना आइना नहीं जाता मेघ मल्हार, बुजुर्गों के किये।
फिर भी बहुत कुछ हो सकता है बुजुर्गों के लिए।।
शारीरिक शक्ति, अगर कुछ कम हो भी गयी तो क्या है?
तजुर्बे का खज़ाना बुजुर्गों ने जमा किया है।।
आपका वक़्त था, नौजवान थे, पहनाई थी जीवन साथी ने जयमाला।
अब भी वक्क्त है, बुद्धिमानी, परोपकार, सेवा पर नहीं लगा ताला।।
परिवर्तन है नियम कुदरत का, सिर झुकाकर आपने कबुल किया।
जो भी चाहा जिंदगी में, इज़्ज़त, ईमानदारी से वसूल किया।।
बदलते वक़्त ने नहीं छोड़ा इस लायक, दिखाए नजाकत।
बता कर रास्ता नौजवान पीढ़ी को, दिखाएं अपनी लियाकत।।
सुखा गुलाब, जवान लोगों को नहीं देता आनंद।
सुखी पंखुड़ियां, बन सकती औषधि, बनती गुलकंद।।
जन्म दिन मुबारक हो, मुबारक हो जन्मदिन।
डाकिया आया
देखो एक डाकिया आया,
थैला एक हाथ में लाया।
पहने है वह खाकी कपड़े,
कई चिट्ठियां हाथ में पकड़े।
चिट्ठी में संदेशा आया,
शादी में है हमें बुलाया।
शादी में सब जाएंगे,
खूब मिठाई खाएंगे।
तारे
लगते तारे कितने प्यारे, आसमान के हैं रखवाले,
आसमान में टीप–टिप करते, बच्चे इनके हैं मतवाले,
प्यारे–प्यारे ये चमकीले, सब को मन के भाने वाले,
शाम जब होने को आती, लाल रंग के ये हो जाते,
सारी रात बच्चों की भाँती, इधर उधर को सैर लगाते,
सारी रात बातें कर–करके, सुबह होते ही घर को जाते,
दिन को सोते लूप–छुप करके, शाम को मन बहलाने आते,
जब बादल कड़के बिजली चमके, रोते अपने घर को जाते,
ऐसे बच्चों तुम भी चमके, पढ़ लिख कर जग के रखवाले,
तभी नाम रोशन हो सकता, इस जग के जो रहने वाले,
यही दुआएं हम सब की है, बनोगे तुम जग के रखवाले,
लगते तारे कितने प्यारे, आसमान के हैं रखवाले।
समोसे
बहुत बढ़ाते प्यार समोसे
खा लो‚ खा लो यार समोसे।
ये स्वादिष्ट बने हैं क्योंकि
माँ ने इनका आटा गूंधा
जिसमें कुछ अजवायन भी है
असली घी का मोयन भी है
चम्मच भर मेथी है चोखी
जिसकी है तासीर अनोखी
मूंगफली‚ काजू‚ मेवा है
मन–भर प्यार और सेवा है।
आलू इसमें निरे नहीं हैं
मटर पड़ी है‚ भूनी पिट्ठी
कुछ पनीर में छौंक लगा कर
हाथों से सब करीं इकट्ठी
नमक ज़रा सा‚ गरम मसाला
नहीं मिर्च का टुकड़ा डाला।
मैं भी खालूं‚ तुम भी खा लो
पानी पी कर चना चबा लो
तुमसे क्या पूछूं कैसे हैं
जैसे हैं ये बस वैसे हैं
यानी सब कुछ राम भरोसे
अच्छे या बेकार समोसे।
बहुत बढ़ाते प्यार समोसे
खा लो खा लो‚ यार समोसे
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दर्द माँ-बाप का
वे बच्चे जो करते हैं माँ-बाप का तिरस्कार,
अक्ल आती है उन्हें जब पड़ती है बुरे वक़्त की मार।
क्या करे दुनिया ही ऐसी है,
बेटे तो बेटे बेटियां भी ऐसी हैं।
माँ-बाप का खून करते हैं बच्चे,
जब बारी आती है अपनी तो रो पड़ते हैं बेचारे बच्चे।
माँ-बाप के सहारे जीते थे कभी बच्चे,
अब बच्चों के सहारे जीते हैं माँ-बाप।
बच्चों के द्वारा गाली मिलती है उन्हें बेशुमार,
पर क्या करें उम्र ही इतनी लम्बी है कि खानी पड़ेगी ही मार।
सौ में से एक लाल निकलता है आज्ञाकारी,
वह भी बिगड़ जाता है पाकर बुरी सांगत और यारी।
बच्चे ने अपने ही माँ-बाप को त्यागा है,
पर वह नहीं जानता की वह कितना अभागा है।
खराब करते हैं इज़्ज़त माँ-बाप की बच्चे,
पर क्या सोचा है कि कभी उनकी इज़्ज़त खराब करेंगे उनके बच्चे।
भारत के त्यौहार
भारत वर्ष में हम भारतीय
सम्भवतः सभी पर्व मनाते हैं।
धर्म निरपेक्षता पहचान इसकी
धरती आनन्द मग्न सदा रहती।
अनेक त्यौहार कभी कभार
माह दो माह के भीतर-भीतर
हर धर्म में मनाए जाते हैं।
कभी ईद, दिवाली इकट्ठे हुए
कभी आनन्द चौदस और
गणेश-चतुर्दशी
पोंगल और लोहड़ी हैं
कभी गुरू पर्व क्रिसमस जुड़ जाते हैं।
श्रृंखला बद्ध तरीके से जब
हम बड़े-बड़े उत्सव मनाते हैं।
फूलों की बौछार आसमाँ करते
हृदय आनन्द विभोर हो जाते हैं।
हमारी राष्टीय एकता और अखंडता
इसी सहारे जीवित है
सब धर्म यहाँ उपस्थित हैं
सब धर्म की राह दिखाते हैं
भारत वर्ष को शत-शत नमन
हम तभी भारतीय कहलाते हैं।
पिता की भावनाएं
माँ को गले लगाते हो, कुछ पल मेरे भी पास रहो,
पापा याद बहुत आते हो? कुछ ऐसा भी मुझे कहो,
मैंने भी मन मे जज़्बातोँ के तूफान समेटे हैँ,
ज़ाहिर नही किया, न सोचो पापा के दिल में प्यार न हो।
थी मेरी ये ज़िम्मेदारी घर मे कोई मायूस न हो,
मैं सारी तकलीफेँ झेलूँ और तुम सब महफूज़ रहो,
सारी खुशियाँ तुम्हें दे सकूँ, इस कोशिश मे लगा रहा,
मेरे बचपन में थी जो कमियाँ, वो तुमको महसूस न हो।
है समाज का नियम भी ऐसा पिता सदा गम्भीर रहे,
मन मे भाव छुपे हो लाखोँ, आँखो से न नीर बहे!
करे बात भी रुखी-सूखी, बोले बस बोल हिदायत के,
दिल मे प्यार है माँ जैसा ही, किंतु अलग तस्वीर रहे।
भूली नही मुझे हैं अब तक, तुतलाती मीठी बोली,
पल-पल बढते हर पल मे, जो यादोँ की मिश्री घोली,
कन्धोँ पे वो बैठ के जलता रावण देख के खुश होना,
होली और दीवाली पर तुम बच्चोँ की अल्हड टोली।
माँ से हाथ-खर्च मांगना, मुझको देख सहम जाना,
और जो डाँटू ज़रा कभी, तो भाव नयन मे थम जाना,
बढते कदम लडकपन को कुछ मेरे मन की आशंका,
पर विश्वास तुम्हारा देख मन का दूर वहम जाना।
कॉलेज के अंतिम उत्सव मेँ मेरा शामिल न हो पाना,
ट्रेन हुई आँखो से ओझल, पर हाथ देर तक फहराना,
दूर गये तुम अब, तो इन यादोँ से दिल बहलाता हूँ,
तारीखेँ ही देखता हूँ बस, कब होगा अब घर आना।
अब के जब तुम घर आओगे, प्यार मेरा दिखलाऊंगा,
माँ की तरह ही ममतामयी हूँ, तुमको ये बतलाऊंगा,
आकर फिर तुम चले गये, बस बात वही दो-चार हुई,
पिता का पद कुछ ऐसा ही है फिर खुद को समझाऊंगा।
सब दोस्त थकने लगे है
साथ-साथ जो खेले थे बचपन में,
वो सब दोस्त अब थकने लगे है,
किसी का पेट निकल आया है,
किसी के बाल पकने लगे है।
सब पर भारी ज़िम्मेदारी है,
सबको छोटी मोटी कोई बीमारी है,
दिनभर जो भागते दौड़ते थे,
वो अब चलते चलते भी रुकने लगे है,
उफ़ क्या क़यामत हैं,
सब दोस्त थकने लगे है।
किसी को लोन की फ़िक्र है,
कहीं हेल्थ टेस्ट का ज़िक्र है,
फुर्सत की सब को कमी है,
आँखों में अजीब सी नमीं है।
कल जो प्यार के ख़त लिखते थे,
आज बीमे के फार्म भरने में लगे है,
उफ़ क्या क़यामत हैं,
सब दोस्त थकने लगे है।
देख कर पुरानी तस्वीरें,
आज जी भर आता है,
क्या अजीब शै है ये वक़्त भी,
किस तरहा ये गुज़र जाता है,
कल का जवान दोस्त मेरा,
आज अधेड़ नज़र आता है।
कल के ख़्वाब सजाते थे जो कभी,
आज गुज़रे दिनों में खोने लगे है,
उफ़ क्या क़यामत हैं,
सब दोस्त थकने लगे है।
निष्कर्ष
यहां पर बच्चों की कविताएं हिंदी में (hindi kavita for kids) शेयर की है, जो छोटी होने के साथ ही बहुत सुंदर भी है। यह बच्चों को जरुर पसंद आएगी।
हम उम्मीद करते हैं आपको यह हिंदी कविता संग्रह बच्चों के लिए पसंद आएगा, इन्हें आगे शेयर जरुर करें। आपको यह कविताएं कैसी लगी, हमें कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं।
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