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गुजराती नववर्ष क्यों मनाया जाता है? जाने महत्व और पौराणिक कथा

नव वर्ष का अर्थ होता है साल का अंत होने के बाद नए साल की शुरुआत। भारत में ज्यादातर लोग ग्रेगोरियन कैलेंडर का इस्तेमाल करते हैं और ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार नया साल 1 जनवरी को आता है। लेकिन भारत में अलग-अलग प्रांतों एवं समुदाय के लोग अपनी मान्यताओं के अनुसार नववर्ष मनाते हैं।

ठीक इसी तरह भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात का भी अपना अलग नववर्ष होता है। उनका नव वर्ष कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को शुरू होता है, जो दिवाली के 1 दिन के बाद होता है। इस तरह सभी गुजरातियों के लिए दिवाली का दिन साल का अंतिम दिन होता है और दिवाली के बाद का दूसरा दिन उनके लिए नए साल की शुरुआत होती है।

Gujarati Nav Varsh Kyu Manaya Jata Hai
Image: Gujarati Nav Varsh Kyu Manaya Jata Hai

यह दिन गोवर्धन पूजा जिसे अन्न कूट पूजा भी बोलते हैं, उसके लिए भी काफी महत्व रखता है। गुजरातियों में ज्यादातर लोग छोटे बड़े व्यवसाय से जुड़े हुए हैं, जिस कारण गुजरातियों का नया साल चोपड़ा पूजा के रूप में भी महत्वपूर्ण रखता है।

जिस तरह ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हर साल 1 जनवरी को लोग धूमधाम से नए साल की शुरुआत करते हैं वैसे गुजराती लोग भी अपने नववर्ष की शुरुआत बहुत ही धूमधाम से करते हैं।

तो चलिए इस लेख में आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि किस तरह गुजराती लोग अपने नववर्ष को मनाते हैं और इस दिन किस तरह गोवर्धन पूजा की जाती है।

गुजराती नववर्ष का महत्व

नए साल का महत्व हर एक व्यक्ति के लिए बहुत होता है क्योंकि साल भर हम कई सारी परेशानियों से गुजरते हैं। कुछ साल हमारे लिए अच्छा रहता है तो कुछ साल हमारे लिए ज्यादा अच्छा नहीं रहता है। कुछ साल हमें अपने बिजनेस में ज्यादा फायदा मिलता है तो कुछ साल हमें केवल नुकसान ही भुगतना पड़ता है।

ऐसे में नया साल हर व्यक्ति नए उम्मीद के साथ शुरू करता है कि यह साल उसके लिए अच्छा होगा। इसके लिए भगवान से भी प्रार्थना करता है कि इस साल उसकी व्यवसाय एवं जीवन पर भगवान की कृपा बनी रहे।

गुजरातियों में नया साल दिवाली के बाद का दिन होता है, जो हिंदू कैलेंडर के हिसाब से कार्तिक महीने में पढ़ता है। दिवाली के दिन पूरे देश में आतिशबाजी होती है, लोग धूमधाम से इस त्योहार को मनाते हैं परंतु गुजरातियों में यह दिन उनके साल का अंतिम दिन होता है।

गुजराती नववर्ष क्यों मनाया जाता है?

गुजराती नव वर्ष मनाने के पीछे कुछ पौराणिक कथाएं जुड़ी है, जिनमें एक कथा निम्न है:

गुजराती नव वर्ष के दिन गोवर्धन पूजा की जाती है और गोवर्धन से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जो भगवान श्री कृष्ण से संबंधित है। भगवान श्री कृष्ण का बचपन गोकुल में बीता जहां वे अपने दोस्तों के साथ गायों को पालते थे और गोकुल में लगभग सभी लोगों का व्यवसाय गायों को पालना एवं दूध दही बेचना होता था।

हर साल गोकुल में निवास करने वाले लोग भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए पूजा करते थे एवं बहुत ज्यादा मात्रा में उन्हें प्रसाद चढ़ाते थे ताकि भगवान इंद्र प्रसन्न होकर वर्षा करें और खेती हो तथा हरी भरी घास उगे ताकि गायों के लिए चारा मिल सके।

लेकिन एक दिन बाल कृष्णा सभी गोकुल वासियों को समझाते हैं कि भगवान इंद्र की पूजा करने के बजाय उन्हें पहाड़ों एवं मवेशियों के प्रति अपना श्रद्धा दिखाना चाहिए। क्योंकि उन्ही के कारण उन्हें आपूर्ति एवं संसाधन प्राप्त होता है, जिसके बाद सभी गोकुल वासियों ने गोवर्धन पर्वत एवं गायों की पूजा की तैयारी की।

गोकुल वासियों का भगवान इंद्र को छोड़ पर्वत एवं गायों की पूजा करने की तैयारी देख भगवान इंद्र को बहुत ही ज्यादा ठेस पहुंचता है और वह क्रोध में आ जाते हैं, जिसके पश्चात वे गोकुल में बहुत ही तेज एवं लगातार बारिश प्रवाह करते हैं और यह बारिश लगभग 7 दिन एवं 7 रात तक जारी रही।

इसके बाद पूरा गोकुल पानी से भर गया, लोगों का घर भी पानी में डूबने लगा, गायों के लिए एवं लोगों के लिए रहने की कहीं जगह नहीं बची। तब भगवान श्रीकृष्ण लोगों एवं मवेशियों को आश्रय एवं सुरक्षा प्रदान करने के लिए अपने कनिष्ठ उंगली से गोवर्धन पर्वत को उठा लिया।

जिसके नीचे गोकुल के सभी वासी एवं मवेशियों को सुरक्षित आश्रय प्राप्त किया और जब तक बारिश नहीं रुकी तब तक वहीं पर रूके रहे। अंत: भगवान इंद्र को अपनी गलती का एहसास होता है और उनका घमंड चूर चूर हो जाता है, जिसके बाद में बारिश को रोक देते हैं।

इस तरीके से गोवर्धन पर्वत को उठा कर भगवान श्री कृष्ण सभी गोकुल वासियों एवं मवेशियों की जान बचाई तथा भगवान इंद्र के घमंड को तोड़ा था। तब से ही गुजराती नव वर्ष के दिन गोवर्धन पूजा एवं कार्यों की पूजा करने की प्राचीन परंपरा है। यह दिन कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष का था, जो दिवाली के 1 दिन बाद पड़ता है।

गुजराती नववर्ष कैसे बनाते हैं?

नव वर्ष अतीत को भूल कर और लोगों के बीच के गलतफहमियां और निराशा को भुलाकर नए सिरे से रिश्ते को शुरू करने का दिन होता है। इसीलिए इस दिन सभी गुजराती लोग नए कपड़े पहन कर मंदिर पूजा करने जाते हैं एवं अपने सगे संबंधियों के घर मिलने के लिए जाते हैं। एक दूसरे को साल मुबारक एवं नए वर्ष का अभिनंदन देते हैं।

इस दिन महिलाएं अपने घर पर स्वादिष्ट मिठाई और स्नैक्स तैयार करती हैं। परिवार के साथ एवं अपने रिश्तेदारों के साथ एक सुखद समय बिताती है एवं अपने पड़ोसियों के बीच मिठाई वितरित करते हैं और खुशियां बांटते हैं। गुजरातियों का नया साल गोवर्धन पूजा के रूप में भी जाना जाता है और भारत के अन्य हिस्सों में भी धार्मिक रूप से इसे मनाया जाता है।

यह दिन गुजरातियों के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन वे चोपड़ा पूजा भी करते हैं, जिसमें वे पुराने खाता बही को बंद करनके नए किताबों को खोलते हैं और नए सिरे से फिर से आंकड़ों को दर्ज करते हैं, जो नए साल के मुनाफे की शुरुआत होती हैं। इस दिन मां लक्ष्मी, सरस्वती एवं गणपति की पूजा करके एवं शुभ प्रतीकों के साथ चिन्ह बनाकर लाभदायक वित्तीय वर्ष की प्रार्थना करते हैं।

गुजरातियों का नया वर्ष वित्तीय वर्ष की शुरुआत का भी संकेत होता है। इस दिन मारवाड़ी लोग बहुत ही शुभ मानते हैं और इस दिन माता लक्ष्मी भगवान गणेश का घर में आगमन होता है। इस दिन बहुत से गुजराती एवं मारवाड़ी व्यापारी शेयर भी खरीदते हैं। यहां तक कि कोई कोई नया बिजनेस भी शुरू करता है।

गुजराती नव वर्ष के दिन गोवर्धन पूजा विधि

गोवर्धन पूजा के दिन सुबह जल्दी उठकर शरीर पर तेल की मालिश करके स्नान करने की परंपरा होती है। हालांकि बहुत से लोग इस परंपरा को नहीं मानते हैं, वे सिर्फ इतना ही कर लेते हैं।

  • स्नान के पश्चात पूजा की सभी सामग्रियों को इकट्ठा करना होता है, उसके बाद पूजा के स्थल पर बैठ जाना होता है।
  • पूजा शुरू करने से पहले अपने कुल देवी देवताओं का ध्यान करना होता है।
  • उसके बाद श्रद्धा भाव से गोबर से गोवर्धन पर्वत को तैयार करना होता है, जिससे एक लेटे हुए पुरुष की आकृति देनी होती हैं।
  • तैयार किए गए गोवर्धन के मध्य में भगवान श्री कृष्ण की छोटी सी प्रतिमा स्थापित करनी होती है।
  • गोवर्धन का जो नाभि स्थान होता है, वहां पर एक कटोरे जितना हिस्सा खाली छोड़ना चाहिए। जहां पर मिट्टी का दीपक रखा जाता है, जिसमें सहायता से दूध गंगाजल दही इत्यादि को डालकर इसे प्रसाद स्वरूप अंत में बांटा जाता है।
  • गोवर्धन का पूजा पाठ करने के बाद गीत गाते हुए 7 बार गोवर्धन की परिक्रमा की जाती है। जब गोवर्धन की परिक्रमा की जाती है तो दो व्यक्ति को एक साथ परिक्रमा करना पड़ता है, जिसमें एक व्यक्ति को हाथ में जल का लोटा लेना होता है एवं दूसरे व्यक्ति को जौ लेकर चलना होता है।
  • प्रथम व्यक्ति जमीन पर जल गिराते हुए फेरा लगाता है तो वही दूसरा व्यक्ति जौ बोते हुए परिक्रमा करता है।
  • गुजराती नव वर्ष में गोवर्धन पूजा के दौरान कुछ स्थानों पर गायों को स्नान करा कर एवं पुष्प मालाओं से सजाने की परंपरा है। जिन लोगों में ऐसी परंपरा नहीं है तो वह भी चाहे तो गायों को स्नान कर उनके सिंघ पर घी लगाकर गुड खिला सकते हैं।
  • गायों की पूजा करने के दौरान एक मंत्र का उच्चारण करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है, जिससे उस व्यक्ति के घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती है और मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है।

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गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त

गुजराती नव वर्ष के दिन हर साल गोवर्धन पूजा करने का मुहूर्त अलग-अलग हो सकता है परंतु समय सुबह और शाम का होता है। गोवर्धन पूजा सुबह और शाम दो समय की जाती है।

सुबह के समय भगवान श्री कृष्ण एवं गोवर्धन पर्वत की फूल, फल एवं मिष्ठान आदि से पूजा अर्चना की जाती है और संध्या काल में अन्नकूट का भोग लगाकर आरती की परंपरा है।

गुजराती नव वर्ष के दिन चोपड़ा पूजा का महत्व

गुजरातियों में कॉपी किताब को चोपड़ा कहा जाता है और कॉपी, किताब अर्थात अध्ययन से संबंधित सभी प्रकार की चीजें मां सरस्वती का प्रतीक होती है। गुजरातियों में नववर्ष के दिन चोपड़ा पूजा भी किया जाता है। इस दिन गुजरातियों के लिए नया साल होने के कारण वे अपने साल भर के बही खातों को या पुस्तकों को पवित्र करते हैं।

बड़े-बड़े गुजराती व्यवसाई इस दिन किताबों में अपना साल भर का लेखा-जोखा करते हैं, उसकी वह पूजा करते हैं। क्योंकि साल भर वे जितनी लाभ कमाए हैं, उसकी सभी आंकड़े एवं डाटा वे उन पुस्तकों में दर्ज करके रखे होते हैं।

इसीलिए वे इस दिन चोपड़ा की पूजा करके मां लक्ष्मी, भगवान गणेश एवं देवी सरस्वती का आशीर्वाद लेते हैं ताकि उनका व्यवसाय हमेशा वृद्धि करता रहे और उन्हें अच्छी कमाई होती रहे।

हालांकि आज का समय तो डिजिटल और टेक्नोलॉजी का हो गया है, जिसके कारण ज्यादातर व्यवसाय अपने व्यवसाय के वित्तीय डाटा को लैपटॉप या अन्य सॉफ्टवेयर में प्रबंधित करके रखते हैं लेकिन तभी उनके लिए भी चोपड़ा पूजा का महत्व बहुत ज्यादा रहता है।

इसीलिए वे इस दिन किताबों के बजाय लैपटॉप को ही किताबों के जगह पर रखकर पूजा करते हैं। मां लक्ष्मी, गणपति और देवी सरस्वती के सामने अपने लैपटॉप या किताबों के ऊपर ओम, स्वास्तिक और शुभ लाभ जैसे पवित्र चिन्ह बनाते हैं।

उसके बाद शुभ मुहूर्त पर पूजा करते हैं। गुजरातियों में इस दिन चौघड़िया मुहूर्त बहुत ही ज्यादा प्रचलित है और यह मुहूर्त चौकड़ी पूजा करने के लिए बिल्कुल शुभ माना जाता है।

चोपड़ा पूजा की पूजन विधि

  • चोपड़ा पूजा गुजरातियों के अतिरिक्त राजस्थान एवं महाराष्ट्र में भी काफी महत्व रखता है। पूजा शुभ मुहूर्त में की जाती है। पूजा की शुरुआत सबसे पहले एक ऊंचे चबूतरे पर नए कपड़े के टुकड़े को भी बिछा कर किया जाता है, जिसके केंद्र में मुट्ठी भर अनाज रखकर उसमें सोने, चांदी या फिर तांबे का कोई एक बर्तन रखा जाता है।
  • उसके बाद एक घड़े को लिया जाता है और उसमें तीन चौथाई घड़े में पानी, सुपारी, एक सिक्का, चावल के दाने एवं फूल को भरा जाता है।
  • उसके बाद पांच आम के पत्ते को घड़े पर रख उसके ऊपर चावल के दानों से भरा कटोरे के बर्तन को रखा जाता है।
  • उसके बाद चावल के दानों पर हल्दी से कमल खींचकर देवी लक्ष्मी की मूर्ति को सिक्कों के साथ बर्तन के शिर्ष पर रखा जाता है। इसके दाहिनी ओर भगवान गणेश की मूर्ति को भी विराजमान किया जाता है।
  • उसके बाद अध्ययन से संबंधित किताब, टोपी, कलम को रखकर वहां पर दीपक जलाया जाता है और फिर पूजा की शुरुआत की जाती हैं।
  • मां लक्ष्मी की पूजा करने के दौरान वैदिक मंत्रों का भी जाप किया जाता है और फिर मूर्ति पर फूल चढ़ाकर प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराया जाता है और फिर उस पर सोने के आभूषण या मोती वाले आभूषण के पानी से स्नान कराया जाता है।
  • स्नान कराने के पश्चात मूर्ति को वापस बर्तन में रख दिया जाता है, जिस पर चंदन का लेप, माला, इत्र, हल्दी, कुमकुम, अगरबत्ती गुलाब, बेल के पत्ते, गेंदा के फूल चढ़ाए जाते हैं।
  • उसके बाद फुले हुए चावल, जीरा, नारियल, धनिया के बीज एवं मिठाइयों से प्रसाद बनाया जाता है, जिसे मां लक्ष्मी को समर्पित करके आरती की जाती हैं, उसके बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है।

गुजराती नव वर्ष के दिन इन चीजों की रखें सावधानियां

  • गुजराती नव वर्ष के दिन गोवर्धन पूजा भी किया जाता है और इस दिन जो भी गोवर्धन पूजा करें तो ध्यान रहे कि बंद कमरे में गोवर्धन पूजा ना करें। बंद कमरे में गोवर्धन पूजा करना अशुभ माना जाता है।
  • गोवर्धन पूजा के दौरान साफ-सुथरे पहने कपड़े पहनने चाहिए। इसीलिए गोवर्धन परिक्रमा के दौरान ध्यान रहे कि स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े पहन के ही पूजा करें।
  • गोवर्धन की जब पूजा की जाती है तो कभी भी बीच में गोवर्धन परिक्रमा को अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए, ऐसा करना अशुभ माना जाता है।
  • गोवर्धन पूजा जिसमें गौ का अर्थ होता है गौ माता रानी गाय। गौ माता का संबंध भगवान श्रीकृष्ण से है क्योंकि भगवान श्री कृष्ण गौवाले थे, जो गायो एवं उनके बछड़ों को पालते थे। इसलिए गोवर्धन पूजा के दौरान भगवान श्री कृष्ण की भी पूजा करनी चाहिए।
  • गुजराती नव वर्ष के दिन गोवर्धन पूजा के दौरान हल्के पीले या नारंगी रंग के वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है। आज के दिन काले रंग के कपड़े नहीं पहनना चाहिए।
  • गोवर्धन पूजा में गोवर्धन की परिक्रमा लगाकर पूजा की जाती है। ध्यान रहे नंगे पैर से ही गोवर्धन की पूजा करें। हालांकि जिन्है स्वास्थ्य या उम्र से संबंधित समस्या है तो रब्बड या कपड़े के जूते पहन सकते हैं लेकिन चमड़े के चप्पल या जूते पहनने से बचे।
  • गुजराती नव वर्ष के दिन गोवर्धन की पूजा होती है, मां सरस्वती की पूजा होती है, इसीलिए इस दिन भूल से भी शराब या मांस का सेवन नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष

इस लेख में आपने भारत का पश्चिमी राज्य गुजरात में मनाए जाने वाले नववर्ष के बारे में जाना, जो दिवाली के 1 दिन के बाद शुरू होता है। यह दिन गुजरातियों के लिए नया साल होता है और इनके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।

इस लेख में यह भी जाना कि गुजराती नव वर्ष कब और क्यों मनाया जाता है? किस तरीके से गुजराती लोग अपने नए साल को अपने परिवार एवं रिश्तेदारों के साथ मनाते हैं एवं गोवर्धन पूजा एवं चोपड़ा पूजा के महत्व के बारे में भी जाना।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।