Gogaji Maharaj History in Hindi: गोगाजी को सांपों का देवता का जाता हैं। गोगाजी चौहान राजस्थान के प्रमुख का प्रसिद्ध लोक देवता है। गोगाजी के मंदिर तथा उनकी स्मृतियां राजस्थान के कोने-कोने में है। संपूर्ण राजस्थान वाले अपनी श्रद्धा से गोगाजी महाराज को सांपों का देवता के रूप में पूजते हैं।
वीर गोगा जी का इतिहास और जीवन परिचय इस आर्टिकल में हम आपको विस्तार से जानने वाले हैं, इसलिए इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें।
वीर गोगाजी का इतिहास और जीवन परिचय | Gogaji Maharaj History in Hindi
लोक देवता गोगाजी की प्रसिद्धि
गोगाजी राजस्थान के एक प्रमुख व प्रसिद्ध लोक देवता है, जिन्हें राजस्थानवासी घर-घर में पूजते हैं। प्रतिवर्ष राजस्थान के कोने-कोने में गोगा जी के मेले लगते हैं। गोगाजी की श्रद्धा और आस्था राजस्थानवासियों के दिलों में है। वे गोगा जी की पूजा करते हैं। लोक देवता वीर गोगाजी को राजस्थानवासी जाहरवीर गोगा जी के नाम से भी जानते हैं।
खासतौर पर राजस्थान में किसी को सांप काटता है, तो वह सबसे पहले गोगाजी के नाम का एक ताती (धागा) व्यक्ति के उस जगह पर बांधते हैं, “जहां पर सांप ने काटा है” उसके बाद उसे गोगाजी के मंदिर या स्थान पर लेकर जाते हैं। जहां पर पूजा-अर्चना करने वाला भोपा अपने मुंह से जहर को चूस कर निकाल देते हैं। सांप द्वारा काटा हुआ व्यक्ति इस तरह से बिल्कुल ठीक हो जाता है।
राजस्थान में गोगा जी के मंदिर पर सभी जाति व धर्म के लोगों का तांता लगा रहता है। लोग अपनी श्रद्धा और आस्था से गोगा जी महाराज को पूजते हैं तथा अपने दिल में रखते हैं। बता दें कि हर वर्ष “भादवा माह के कृष्णा नवमी” को गोगा जी महाराज के मेले संपूर्ण राजस्थान में लगते हैं। गोगाजी के मेले में लाखों की संख्या में लोग आते हैं तथा मेले का लुफ्त उठाते हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि राजस्थान के प्रमुख व प्रसिद्ध लोक देवता गोगाजी को न केवल राजस्थान बल्कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व गुजरात की अनेक सारी जातियों के लोग भी पूजते हैं तथा वे गोगा जी महाराज में अपनी आस्था रखते हैं। हर वर्ष लाखों लोग इन राज्यों से राजस्थान में गोगा जी के दर्शन हेतु आते हैं।
लोक देवता गोगाजी का जन्म और सामान्य परिचय
राजस्थान के प्रसिद्ध व प्रमुख लोक देवता गोगा जी महाराज का जन्म राजस्थान के चुरू जिले के “ददरेवा” में विक्रम संवत 1003 को चौहान राजपूत कुल में हुआ था। गोगा जी के पिताजी का नाम जेवर सिंह चौहान तथा माता का नाम रानी बाछल देवी है। गोगा जी की पत्नी रानी केलमदे थी।
बता दें कि गोगाजी भगवान गोरखनाथ को अपना गुरु मानते थे। गोगाजी का मंदिर हनुमानगढ़ जिले के गोगामेडी में स्थित हैं। जहां पर हर वर्ष लाखों श्रद्धालु आया करते हैं। गोगाजी के संपूर्ण राजस्थान के प्रत्येक गांव-कस्बे में मंदिर व स्थान बने हुए हैं, जहां पर हर वर्ष भादवा माह के कृष्णा नवमी को मेला लगता है।
वर्तमान समय में गोगा जी को अनेक नामों से पुकारते हैं। जैसे गोगा जी चौहान, गोगा जी, गोगा धर्मी, नाग देवता, जाहर जी इत्यादि। जबकि मुस्लिम समुदाय के लोग गोगा जी को नागपीर तथा जाहर पीर नाम से जानते हैं तथा वे गोगा जी की पूजा करते हैं।
लोक देवता गोगाजी का जीवन परिचय
राजपूत चौहान वंश में जन्मे गोगाजी एक सूर्य वीर योद्धा थे, जिन्हें भारत के आखिरी हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बाद चौहान कुल का दूसरा सबसे ताकतवर योद्धा कहा जाता हैं। वीर गोगाजी को राजस्थान में सांपों के देवता के रूप में पूजा जाता है, क्योंकि गोगा जी को नागराज का अवतार माना जाता है।
कुछ इतिहास के पन्नों में गोगाजी का पराक्रम व स्वाभिमान के किस्से सुनने को मिलते हैं परंतु गोगाजी किसी किताब के पन्नों के मोहताज नहीं है। क्योंकि संपूर्ण राजस्थानवासी गोगा जी महाराज को श्रद्धा से पूजते हैं और उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी गोगाजी के शौर्य वह चमत्कार की अनुभूति है।
इतिहास के पन्नों में कहा जाता है कि भारत के आखिरी हृदय हिंदू सम्राट वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान के बाद उन्ही चौहान कुल में जन्में गोगाजी ने मोहम्मद गजनी से युद्ध किया था। गोगा जी ने अपने पुत्रों के साथ मोहम्मद गजनी से भयंकर युद्ध किया, जिसमें वे वीरगति को प्राप्त हो गए। हालांकि इस बात की कहीं और जानकारी नहीं मिलती है।
लोक कथाओं में कहा जाता है कि गोगाजी को नाग देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त था। वे अत्यंत बलशाली और पराक्रमी योद्धा थे। लोक देवता के रूप में गोगा जी ने राजस्थान में अनेक चमत्कार किए हैं, जिनसे राजस्थानवासियों के बीच गोगाजी को लेकर अत्यधिक श्रद्धा और आस्था है।
लोक देवता गोगाजी के जन्म की कहानी
गोगा जी के माता-पिता नि:संतान थे। इसलिए वे संतान की खोज में एक सन्यासी गुरू के पास गए, जिनका नाम गुरु गोरखनाथ था। वे हनुमानगढ़ जिले के “गोगामेडी टीले” पर तपस्या कर रहे थे। गुरु गोरखनाथ ने गोगा जी के माता-पिता को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।
बता दें कि गुरु गोरखनाथ ने रानी को “गोगल नाम” का एक फल खाने के लिए कहा था। कुछ समय बाद रानी बाछल देवी गर्भवती हो गई और उनकी कोख से भादवा माह की “कृष्णा नवमी” के दिन गोगा जी चौहान का जन्म हुआ। कहा जाता है कि उसी गोगल फल खाने से गोगा जी का जन्म हुआ, इसलिए उनका नाम “गोगाजी” रखा गया।
लोक कथाओं में कहा जाता है कि जिस दिन गोगा जी का जन्म हुआ, उसी दिन उसी गांव में “भंगी के घर, ब्राह्मण के घर तथा हरिजन के घर एक-एक पुत्र” पैदा हुए। यह सभी आगे चलकर गोगाजी के घनिष्ठ मित्र बने तथा गुरु गोरखनाथ के शिष्य भी बने।
हनुमानगढ़ जिले की “ददरेवा क्षेत्र” में गोगा जी का जन्म हुआ, वहां पर गोगाजी का मुख्य और भव्य मंदिर बना हुआ है। उसके पास ही गुरु गोरखनाथ का आश्रम भी बना हुआ है। यहां पर बीकानेर के राठौड़ राजवंशों में कई वर्षों तक राज किया था। राठौड़ राजवंशों ने यहां पर सन् 1509 से 1947 तक शासन किया था।
लोक देवता गोगाजी का वैवाहिक जीवन
गोगाजी का विवाह “केलम दे” के साथ हुआ, जो कोलूमंड की राजकुमारी थी। राजस्थान के प्रसिद्ध तथा घर-घर में पूजे जाने वाले लोक देवता तथा गायों के रक्षक पाबूजी राठौड़ के बड़े भाई बुडोजी की पुत्री थी “तेलम दे”। परंतु वे अपनी पुत्री केलम दे का विवाह गोगाजी से नहीं करवाना चाहते थे। इस बात की जानकारी गोगाजी को लग चुकी थी। परंतु गोगाजी केलम दे से ही विवाह करना चाहते थे।
राजकुमारी केलम दे हमेशा बगीचे में घूमने के लिए जाती थी। इस बात की जानकारी गोगा जी को लगी। गोगा जी सांप का रूप धारण करके बगीचे में फूलों के पौधे पर बैठ गए। एक दिन जब केलम दे अपनी सहेलियों के साथ बगीचे में फूल तोड़ने के लिए गई और उन्होंने जैसे ही फूल तोड़ा सांप का रूप धारण किए गोगा जी ने केलम दे को डस लिया, जिससे वे उसी जगह पर मंत्रमुग्ध होकर बेहोश हो गई।
राजकुमारी के इस तरह से बेहोश होने पर पूरे राज परिवार में सन्नाटा छा गया तथा हर तरह के वेद को लाया गया, परंतु वह ठीक नहीं हो पाई। आखिरकार गोगा जी ने अपने नाम का एक धागा राजकुमारी के हाथ पर बांधने के लिए भेजा। उस धागे को केलम दे के हाथ पर बांधते ही वे होश में आ गई और एकदम से ठीक हो गई।
इसी चमत्कार को देखते हुए पाबूजी राठौड़ के बड़े भाई बुडोजी ने अपनी बेटी राजकुमारी केलम दे का विवाह वीर योद्धा गोगा जी चौहान के साथ करना तय कर लिया तथा उनका विवाह जल्द ही संपन्न करवा दिया गया। इस तरह से गोगाजी का राजकुमारी केलम दे के साथ विवाह संपन्न हुआ।
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लोक देवता गोगाजी का शासनकाल
गोगा जी का युद्ध इतिहास विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारीयो के साथ रहा है। बता दें कि गोगाजी के दो भाई थे, जो उनसे बड़े थे। फिर भी सबसे छोटे होने के उपरांत भी गोगाजी ददरेवा के शासक बनें। क्योंकि वे अत्यंत प्रभावशाली तथा शूरवीर योद्धा थे। कुछ समय बाद गोगाजी के बड़े भाई को कुछ लोगों ने इस तरह से भड़काया कि गोगाजी सबसे छोटे होने के उपरांत शासक हैं, जबकि वह बड़े होकर के कुछ नहीं कर रहे हैं।
उसके बाद गोगाजी के बड़े भाई ने गोगा जी के साथ विश्वासघात करना चाहा है, जिसमें गोगा जी ने उनका सिर काट के माता बाछल देवी के कदमों में रख दिया, जिनसे उनकी माता बाछल देवी ने गोगा जी को राज्य से बेदखल कर दिया। राज्य से बेदखल होने के बाद गोगा जी अपने गुरु गोरखनाथ के आश्रम चले गए थे।
जहां पर उन्होंने सिद्धि, योग तथा विभिन्न तरह का ज्ञान प्राप्त किया। लोक कथाओं में कहा जाता है कि गोगाजी गुरु गोरखनाथ के आश्रम से ही अपने सिद्धी से पत्नी केलम दे के पास चले जाते थे। जब इस बात का पता रानी बाछल देवी को लगा तब उन्होंने गोगा जी को पुनः राज्य बुला लिया। गोगा जी एक बार फिर ददरेवा के शासक बने।
लोक देवता गोगाजी का युद्ध इतिहास
आपकी जानकारी के लिए बता दें की अफगानिस्तान के गजनी से आक्रमणकारी मोहम्मद गजनवी हर वर्ष भारत में एक बार आता था तथा भारत के छोटे-छोटे व्यापारी और धनी व्यक्तियों को लूट कर उनसे सोना ले लेता था तथा हजारों गायों और बछड़ों, महिलाओं व लड़कियों सहित बहुत सारा सामान लूट कर पुनः अफगानिस्तान के गजनी भाग जाया करता था।
कहा जाता है कि मोहम्मद गजनवी के बढ़ते अत्याचार को देखते हुए गोगा जी ने अनेक बार मुस्लिम आक्रमणकर्ता मोहम्मद गजनवी पर हमला किया तथा उन्हें अपना पराक्रम दिखाया। मोहम्मद गजनवी को उनकी ताकत का अंदाजा लगा, जिससे गजनवी हिंदुस्तान में आना कम कर दिया, उसके बाद मोहम्मद गजनवी ने अपनी सेना को बढ़ाने पर जोर दिया।
मोहम्मद गजनवी फिर से हिंदुस्तान की तरफ बढ़ने लगा और यहां पर लूटमार, दरिद्रता, वेश्यावृत्ति और काटमार करने लगा, जिससे हिंदुस्तान की जमी पर बड़ा आघात लगा। बता दें कि मोहम्मद गजनवी अत्यंत ही क्रूर शासक था, जो भारत को लूटता और यहां के बेगुनाह व बेकसूर लोगों के खून से नदियां बहा था।
मोहम्मद गजनवी का सामना करने के लिए जो भी राजा युद्ध करते थे, उन्हें मोहम्मद गजनवी युद्ध में धोखे से मार देता था। इससे मोहम्मद गजनवी से युद्ध करने वाले राजा की संख्या भी कम हो गई और लोगों में मोहम्मद गजनवी का खौफ भी बढ़ता गया। धीरे-धीरे मोहम्मद गजनवी ने भारत के स्वर्ण मंदिरों को लूटना शुरू कर दिया तथा मंदिरों की मूर्तियों पर तोड़फोड़ शुरू कर दी। उसने सोमनाथ मंदिर को भी अनेक बार लूटा तथा वहां के हजारों पुजारियों का नरसंहार कर दिया।
कहा जाता है कि सन् 1024 ईस्वी को महमूद गजनवी सोमनाथ मंदिर को लूट कर आ रहा था। (जो कि गुजरात में आता है) तब वह रास्ता भटकने की वजह से गोगाजी के शासन क्षेत्र के करीब से निकलने लगा। गोगा जी को जब इस बात का पता चला, तब उन्होंने अपने पुत्रों को आसपास के सभी राज्यों में भेजा था कि युद्ध के लिए राजा का सहयोग ले सके। परंतु उस समय आसपास के सभी राजा रजवाड़ों ने साथ देने से इंकार कर दिया था।
जैसे-जैसे गजनवी नजदीक पहुंचता गया, वैसे-वैसे आसपास के सभी राजाओं ने गोगाजी का साथ देने से इनकार कर दिया। परंतु गोगाजी मोहम्मद गजनवी को ऐसे ही नहीं जाना देना चाहते थे। इसलिए गोगा जी ने अपने पुत्रों के साथ केसरिया बाना पहन कर गजनवी से लड़ने के लिए युद्ध भूमि में कूद गए।
गोगा जी ने अपने पुत्रों सहित 900 सैनिकों के साथ लाखों सैनिकों के सामने अपना शौर्य का प्रदर्शन दिखाना शुरू कर दिया। कहा जाता है कि गोगा जी ने अपने पुत्रों के साथ ऐसा प्रदर्शन दिखाया कि मोहम्मद गजनवी को अपने कुछ सैनिकों के साथ वहां से भागना पड़ा। परंतु 900 सैनिकों के साथ गोगा जी अपने पुत्रों सहित लाखों सैनिकों के बीच घिर गये थे। उन्होंने कई घंटों तक अपनी तलवार से मुस्लिमों को गाजर मूली की तरह काटा।
लोक देवता गोगाजी को वीरगति
सोमनाथ मंदिर को लूट कर जाते हुए मोहम्मद गजनवी के लाखों की सेना पर 900 सैनिकों के साथ वीर गोगाजी अपने पुत्रों के साथ कूद पड़े और काटमार शुरू कर दी, जिससे गजनवी तो भाग गया। परंतु वहां पर उनकी लाखों की सेना गोगाजी को चारों तरफ से घेर लिया था।
कई घंटों तक गोगाजी अपने पुत्रों के साथ शौर्य का प्रदर्शन दिखाते रहे तब तक उनके 900 सैनिक शहीद हो गए थे और अब लाखों सैनिकों ने गोगाजी को चारों तरफ से घेर कर धोखे से मार दिया था।
इस तरह से गोगाजी तथा उनके पुत्रों व अपने 900 सैनिकों के साथ मुस्लिम आक्रमणकारी द्वारा छल कपट के साथ मारने की बात कुछ इतिहास के पन्नों में मिलती है। लेकिन इसका कोई ठोस सबूत या कोई प्रमाण नहीं मिला है।
इसके अलावा लोक देवता गोगाजी के मरने और वीरगति को प्राप्त होने की कोई और जानकारी कहीं पर भी नहीं मिलती है। परंतु कुछ इतिहासकारों ने मुस्लिम आक्रांताओ के साथ हुए युद्ध में मिली वीरगति को भी मानने से इंकार कर रहे हैं।
लोक देवता गोगाजी की समाधि
राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता गोगा जी को संपूर्ण राजस्थानवासियों तथा गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब व हरियाणा इत्यादि जगहों के लोग अपनी आस्था व श्रद्धा से पूजते हैं। जगह-जगह गोगा जी महाराज के मंदिर और थान बने हुए हैं। परंतु गोगाजी का मुख्य मंदिर व समाधि स्थल राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के “नोहर” में स्थित हैं।
बता दें कि हनुमानगढ़ जिले के जिस “ददरेवा” क्षेत्र में गोगा जी का जन्म हुआ था, उससे यह लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर गोगा जी की समाधि तथा भव्य व दिव्य मंदिर बना हुआ है। यहां पर हर वर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
हनुमानगढ़ जिले के “नोहर” में गोगाजी का मंदिर व समाधि के पास गुरु गोरखनाथ का “धुणा” बना हुआ है। यहां पर आने वाले श्रद्धालु अपना मत्था टेककर मन्नत मांगते है व अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। लोक देवता गोगाजी के चमत्कार राजस्थानवासी भली-भांति जानते हैं।
गोगा जी के समाधि स्थल तथा मंदिर के पास गुरु गोरखनाथ की धुणी बनी हुई है। यहां पर आपको मुस्लिम स्थापत्य कला भी देखने को मिलती है। बता दें कि एक समय मुस्लिम आक्रमणकर्ता फिरोजशाह तुगलक रात के समय यहां से गुजर रहा था, तब उन्होंने यहां पर विश्राम किया था। उस रात फिरोजशाह तुगलक ने हजारों की घोड़े पर सवार सेना को अपनी तरफ आते देखा था। यह देखकर उनकी सेना में भगदड़ मच गई। इसी चमत्कार को देखकर तुगलक आश्चर्यचकित रह गया था।
उस चमत्कार को देखने के बाद फिरोज़ शाह तुगलक एक समय वापस यहां पर आता है और गोगाजी के नाम का यहां एक मंदिर बनाता है, जो कि मुस्लिम स्थापत्य कला में बना होता है। इस मंदिर में हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा गुजरात से लोग आते हैं। इसमें सभी जाति तथा धर्म के लोग शामिल होते हैं। विशेष तौर पर मुस्लिम समुदाय के लोग यहां पर अधिकांश आते हैं।
आज भी जिन लोगों को सांप काटता है, उन्हें गोगा जी के इस स्थान पर लाया जाता है और यहां गोगाजी के धुणे की भभुत लगाई जाती है, जिससे वह ठीक हो जाते हैं। बता दें कि गोगाजी अपने शासनकाल के दौरान जब गुरु गोरखनाथ के पास रहते थे, तब उन्होंने अपनी शक्ति से सांप द्वारा काटे हुए व्यक्तियों को ठीक कर देते थे।
जो सांप व्यक्ति को काटता था, उसी सांप को गोगाजी जहर चूसने के लिए वापस बुलाते थे। गोगाजी का यह चमत्कार उस समय संपूर्ण राजस्थान में अत्यधिक तेजी से फैलने लगा था तथा दूर दराज से लोग गोगाजी के पास आने लगे थे।
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लोक देवता गोगाजी चौहान का वंश
वर्तमान समय में राजस्थान में रह रहे कुछ चौहान राजपूत वंश स्वयं को गोगाजी का वंशज बताते हैं जबकि कुछ मुस्लिम परिवार भी खुद को वीर गोगा जी चौहान के वंशज बताते हैं तथा स्वयं को चौहान मुस्लिम कहते है। तो आइए एक नजर इतिहास पर डालते हैं कि इतिहास के पन्नों में क्या लिखा है।
जब मुस्लिम आक्रमणकारियों के साथ युद्ध करते हुए गोगाजी वीरगति को प्राप्त हो गए थे, तब उनके बाद “ददरेवा” का शासन गोगाजी के भाई बैरसी ने अपने हाथ में लिया। राजा बैरसी के बाद यहां के उत्तराधिकारी उनके पुत्र उदयराज बने।
गोगाजी की वंशावली उनके भाई बैरसी से शुरू होती है। बैरसी के पुत्र उदयराज थे, उदयराज के पुत्र जसकरण थे, जसकरण के पुत्र केसोराई, इनके पुत्र मदनसी, उनके पुत्र विजयराज, उनके पुत्र पृथ्वीराज, उनके पुत्र गोपाल, उनके पुत्र लालचंद, उनके पुत्र अजयचंद, उनके पुत्र जैतसी थे। यह सभी पीढ़ी दर पीढ़ी ददरेवा पर शासन करते रहे और इस बात के प्रमाण हेतु अनेक शिलालेख भी मौजूद है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गोगाजी के बाद 9 राणाओं ने ददरेवा पर गोगाजी के वंश के रूप में शासन किया था। परंतु उनके बाद 9वें शासक जैतसी चौहान को मुस्लिम बना दिया गया। उस समय के मुस्लिम बादशाह फिरोज़ शाह तुगलक उन्हें उठाकर ले गए तथा जबरदस्ती मुस्लिम बना दिया था।
फिरोजशाह तुगलक ने जैतसी को “कायस खान” नाम दिया और उन्हें नवाब बना दिया था, जिसके बाद वे मुस्लिम तो बन गए, परंतु उनकी श्रद्धा और आस्था हमेशा गोगाजी के कुल में ही रही। आज भी चौहान से मुस्लिम बने चौहान मुस्लिम वंश के मुसलमान गोगा जी को बड़ी ही श्रद्धा और आस्था से पूजते हैं।
लोक देवता गोगाजी का मेला
गोगाजी के मेले में हिंदू-मुस्लिमों का मिश्रण देखने को मिलता है। बता दें कि गोगाजी ने अपने शासनकाल में कभी भी हिंदू-मुसलमान में भेदभाव नहीं किया था तथा किसी जाति में भी भेदभाव नहीं किया। इसलिए आज के समय में गोगाजी महाराज को संपूर्ण राजस्थान तथा आसपास के राज्य में पूजा जाता है। इसमें सभी जाति व धर्मों के लोग शामिल है।
वैसे तो संपूर्ण राजस्थान के प्रत्येक छोटे-बड़े गांव कस्बे व मोहल्लों में गोगा जी के मंदिर और स्थान बने हुए हैं, जहां पर हर वर्ष भादवा माह में मेले लगते हैं। परंतु गोगाजी का सबसे प्राचीन और मुख्य मंदिर “ददरेवा” में बना हुआ है, जहां गोगाजी का जन्म हुआ था।
यहां पर हर वर्ष श्रावण माह से लेकर भादवा माता का मेला लगा रहता है। यहां आसपास के अन्य राज्यों से हिंदू-मुस्लिम तथा सभी जाति धर्म के लोग आते हैं और अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। आज के समय में संपूर्ण राजस्थान में गोगाजी के मंदिरों तथा स्थान पर भोपा रहते हैं, जो गोगा जी की पूजा अर्चना और सेवा करते हैं। गोगाजी के मंदिरों में रहने वाले भोपे सांप द्वारा काटे हुए लोगों का जहर निकालते हैं तथा समाज सेवा करते हैं।
बता दें कि राजस्थान के कोने-कोने में गोगा जी महाराज के छोटे बड़े मंदिर व स्थान बने हुए हैं, जिसमें अनेक सारे मंदिर प्राचीन है और अनेक सारे आधुनिक भी है। राजस्थान में गोगा जी के मेले में लोगों का अत्यंत उत्साह देखने को मिलता है क्योंकि यह राजस्थान में सबसे प्राचीन मेलों में से एक हैं, जो कई वर्षों से चला आ रहा है।
गोगाजी का प्रतीक चिन्ह सांप है। इसलिए जहां पर भी गोगा जी की मूर्तियां लगी हुई होती हैं, उन सभी पर सांप की आकृति बनी हुई होती है। इसके अलावा लकड़ी या लोहे पर बनी सांप की आकृति भी गोगाजी का ही चिन्ह है, जिसे लोग अपने घरों में रखकर पुजा करते हैं।
आमतौर पर गोगाजी के मंदिरों में उन्हीं लोगों को लाया जाता है, जिन्हें सांप ने काटा हो। आज इतिहास में गोगा जी को शौर्य, बलिदान, ताकत, समाज सेवा तथा चमत्कार के तौर पर घर-घर में लोक देवता के रूप में पूजा जाता हैं।
निष्कर्ष
“गोगाजी का इतिहास और जीवन परिचय (Gogaji Maharaj History in Hindi)” इस आर्टिकल में हमने आपको गोगाजी के जन्म से लेकर गोगा जी की समाधि तथा गोगा जी की प्रसिद्धि के बारे में संपूर्ण जानकारी विस्तार से बता दी हैं। इस आर्टिकल को अंत तक पूरा पढ़ने के बाद आपको गोगाजी के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त हुई होगी।
उम्मीद करते हैं कि यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा। यदि आपका इस आर्टिकल से संबंधित कोई प्रश्न है तो आप कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और इस जानकारी को आगे शेयर जरूर करें।
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