Gandhi Jayanti Essay in Hindi: आज हम यहां पर गाँधी जयंती पर निबंध शेयर कर रहे हैं। इस निबन्ध में हम गान्धी जी के बारे में जानकारी बातायेंगे जिससे आपको महात्मा गांधी जी के बारे सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त होगी। हम यहां पर अगल-अलग शब्दों में गान्धी जी पर निबन्ध लिखेंगे जिससे अलग-अलग कक्षाओं के विधार्थियों को मदद मिलेगी।
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गांधी जयंती पर निबंध – Gandhi Jayanti Essay in Hindi
महात्मा गांधी जयंती निबंध (200 Words)
महात्मा गान्धी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 गुजरात के पोरबन्दर में हुआ। गांधीजी का पूरा नाम मोहनचंद करमचंद गान्धी था। सम्पूर्ण भारत में उन्हें बापू के नाम से जाना जाता है। इन्होंने अपनी शुरूआत की शिक्षा गुजरात के ही स्कूल में की और आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गये।
गान्धी जी ने इंग्लैंड में अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी की। जब गांधीजी अपनी पढ़ाई करने के लिए भारत से बाहर विदेश में गये तो उन्होंने देखा कि वहां पर काले और भारतीय लोगों के बीच में भेदभाव किया जाता और भारत के लोगों से भी बर्बरता पूर्वक व्यवहार किया जाता है। इसके लिए गान्धी जी भारत में आकर आन्दोलन किया।
महात्मा गान्धी जी भारत के राष्ट्रपिता माने जाते हैं और इनकी जयंती एक विशेष कार्यक्रम के रूप में मनाई जाती है। इनकी जयंती हर साल 2 अक्टूबर को मनाई जाती है। आजादी के एक साल बाद ही गान्धी जी की नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को गोली मार दी थी।
गान्धी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ कई आन्दोलन किये जिससे हमें आजादी मिल पाई और अंग्रेज भारत छोड़कर निकल गये। भारत की आजादी के पीछे गांधीजी की बहुत बड़ी भूमिका है। महात्मा गान्धी अहिंसा और सच्चाई के सच्चे पुजारी थे।
गांधी जयंती पर निबंध (300 Words)
महात्मा गांधी ने भारत में जन्म लेकर भारत को अंग्रेजों से आजाद करवाने के लिए कई बड़े-बड़े आन्दोलन चलाये। गान्धी जी ने अहिंसा और सच्चाई के रास्ते पर चलकर आजादी हासिल की। गान्धी जी भारत के राष्ट्रपिता के रूप में जाने जाते है और गान्धी जी ने कभी अहिंसा के धर्म को नहीं छोड़ा।
महात्मा गान्धी का पूरा नाम मोहनचंद करमचंद गांधी था और उनका जन्म गुजरात के पोरबन्दर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ। गान्धी जी ने अपनी शिक्षा गुजरात के स्कूल से की और आगे की पढ़ाई के लिए वह इंग्लैंड चले गये।
गान्धी जी अपनी बाकि की पढ़ाई इंग्लैंड में ही पूरी की। गान्धी जी आजादी के लिए अंग्रेजों के सामने कई आन्दोलन किए जिसमें उनको कई बार जेल भी जाना पड़ा था। लेकिन अंत में वो आजादी लेकर ही माने थे। गान्धी जयंती के दिन सरकार पूरे भारत में शराब की बिक्री पर कठोरता से रोक लगाती है और इस दिन शराब नहीं बिकने देती है।
गान्धी जी ने अंग्रेजों से किसानों को उनका हक़ दिलाने के लिए भी कई आन्दोलन किये और आजादी के लिए भारत छोड़ो आन्दोलन भी चलाया। गान्धी जी के कई प्रयासों के बाद भारत आजाद तो हो गया लेकिन ये आजाद भारत गान्धी जी नहीं देख पाए थे। इन्होंने आजाद भारत में केवल एक साल ही सांस ली थी।
30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। उस दिन को आज भी याद किया जाता है। नाथूराम ने उस दिन गान्धी जी की हत्या तो कर दी लेकिन वो उनके विचारों को नहीं मिटा सका। गान्धी जी के विचार आज भी हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
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गांधी जयंती पर निबंध (500 Words)
प्रस्तावना
समाज सुधारक, अच्छा व्यक्तित्व, राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी इन सभी में गान्धी का नाम सबसे पहले आता है। गान्धी जी ने भारत को आजाद करवाने के लिए कई आन्दोलन किये और उन्होंने अपना पूरा जीवन भारत की आजादी के लिए लगा दिया था।
गान्धी जी के सम्मान में 2 अक्टूबर को पूरे विश्व में अहिंसा दिवस के रूप मनाया जाता है और भारत में गान्धी जयंती के रूप मनाया जाता है।
गान्धी जी का शुरूआती जीवन
महात्मा गान्धी जी का जीवन बहुत सरस जीवन था। इन्होंने अपने जीवन में आजादी के लिए कई लड़ाईयां लड़ी। गान्धी जा पूरा नाम मोहनचंद करमचंद गान्धी था। उनको पूरे भारत में महात्मा गान्धी या फिर बापू के नाम से जाना जाता है।
इन्होंने करमचन्द गांधी के घर पर 2 अक्टूबर 1869 को पोरबन्दर में जन्म लिया था। करमचंद गान्धी अग्रेजी हुकुमत के दीवान के रूप में काम करते थे। उनकी माता जी गृहिणी थी और वह सेवाभाव वाली महिला थी। उनके गुण हमें गान्धी जी में देखने को मिल सकते हैं।
गान्धी जी ने अपनी शिक्षा गुजरात के ही विद्यालय से की और आगे की पढ़ाई इंग्लेंड में पूरी की। उस समय बालविवाह ज्यादा होता था तो गांधीजी का विवाह 13 साल में ही हो गया था। उनकी पत्नी का नाम कस्तूरबा गान्धी था। कस्तूरबा को सभी लोग प्रेम से बा के नाम से पुकारते थे।
इनके बड़े भाई ने इनको कानून की पढाई के लिए इंग्लैंड भेज दिया था। गान्धी जी कानून की पढाई पूरी कर वापस भारत आ गये थे और यहां पर ही वकालत का काम शुरू कर दिया था। इन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अपनी वकालत का पूरा अभ्यास किया था। गान्धी जी ने अपना 1893 से 1914 तक का समय दक्षिण अफ्रीका में एक सार्वजनिक कार्यकर्ता और वकील के रूप में निकाला।
राजनीतिक जीवन
जब गान्धी जी दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर थे तो उन्होंने 1899 एंगलो बोअर युद्ध में एक स्वास्थ्य कर्मी के रूप में मदद की थी। इस युद्ध में लोगों की स्थिति को देखकर उन्होंने अपने जीवन में अहिंसा के मार्ग पर चलने का निर्णय किया।
जब गान्धी जी दक्षिण अफ्रीका में अपनी वकालत की पढ़ाई कर रहे थे तब वहां पर काले रंग के लोगों और भारतीयों के साथ बहुत भेदभाव किया जाता था। इसका शिकार गान्धी जी भी एक दिन हो गये थे। वहां पर भारतीयों को नीचा दिखाया जाता था।
एक दिन जब गांधीजी के पास ट्रेन की फर्स्ट एसी टिकट थी लेकिन उन्हें वहां से धक्के मारकर बाहर निकाल दिया गया था और गान्धी जी को मजबूर होकर तीसरी श्रेणी के डिब्बे में अपनी यात्रा करनी पड़ी। वहां की होटलों में भी गान्धी का प्रवेश भी वर्जित कर दिया गया था।
ये सभी बातें गान्धी जी के दिल पर लग गई और उन्होंने राजनीति आने कर निर्णय लिया ताकि काले लोगों और भारतीयों के साथ हो रहे इस भेदभाव को वो मिटा सके।
आजादी में सहयोग
भारत की आजादी में सबसे बड़ी भूमिका के रूप में गान्धी ने काम किया। इन्होंने अपने जीवन काल को पूरा ही आजादी के लिए लगा दिया। अपने पूरे जीवन में गान्धी जी कई अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन किये। जिसमें भारत छोड़ो आन्दोलन, सत्याग्रह आन्दोलन, नमक आन्दोलन मुख्य है। गान्धी जी ने आजादी तो दिला दी थी लेकिन आजादी के एक साल बाद नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को गोली मारकर हत्या कर दी थी।
उपसंहार
गान्धी जी ने अपने जीवन में बहुत अच्छे अच्छे काम किये। इन्होंने अपने जीवन में कभी अहिंसा का साथ नहीं छोड़ा और कभी सच्चाई के रास्ते से नहीं हटे। हमेशा गरीब लोगों की मदद की। गान्धी जी को भारत में राष्ट्रपिता के रूप में माना जाता है। उनकी याद में 2 अक्टूबर के दिन गान्धी जयंती के रूप में मनाई जाती है।
महात्मा गांधी पर निबन्ध (1600 Words)
रूपरेखा
पूरे भारत में ऐसे कई व्यक्ति है जिनकी किसी दूसरे के साथ तुलना नहीं की जा सकती। इन्होंने देश के हित में ऐसे कई कार्य भी किये, जिनको भूल पाना बहुत ही मुश्किल है। इन्हीं महापुरूषों में एक नाम आता है महात्मा गान्धी। गान्धी जी ने अपने पूरे जीवन काल में सत्य और अहिंसा का साथ कभी नहीं छोड़ा। इन्होंने हमेशा ही देश के हित जो कार्य किये वो सत्य और अहिंसा के साथ ही किये।
ब्रिटिश शासन के समय गान्धी जी ने कई आन्दोलन किये और आजादी के लिए बहुत प्रसास किये। इन सभी में भी गान्धी जी कभी धर्म, सच्चाई और अहिंसा को नहीं भूले। इनकी मदद से गान्धी जी ने भारत को आजाद करवाया और ब्रिटिश शासन से मुक्ति दिलवाई।
गान्धी जी का बचपन
गान्धी जी का बचपन बहुत सरल और साधारण तरीके से गुजरा। इन्होंने एक साधारण परिवार में जन्म लिया। गान्धी जी बचपन से ही बहुत सेवाभाव वाले और सभी के लिए लड़ने वाले रहे हैं। इसके पीछे का कारण उनकी माता जी है। गान्धी जी की माता जी हमेशा ग़रीब लोगों की मदद करती और उनकी सेवा के लिए हमेशा के लिए तैयार रहती, उनके अन्दर बहुत सेवाभाव था।
महात्मा गान्धी का जन्म गुजरात के पोरबन्दर में करमचंद गान्धी के घर 2 अक्टूबर 1869 को हुआ। महात्मा गान्धी का पूरा नाम मोहनचंद करमचंद गान्धी था। इनके पिता जी ब्रिटिश शासन में अग्रेज़ी हुकुमत के दीवान के रूप में काम किया करते थे और इनकी माता जी का नाम पुतलीबाई था, जो एक गृहिणी थी।
गान्धी जी समय में बालविवाह ज्यादा होता था। इस लिए गान्धी जी का विवाह 13 साल की उम्र में ही हो गया था। इनकी पत्नी का नाम कस्तूरबा गान्धी था। लेकिन इन्हें सभी प्यार से ‘बा’ के नाम से ही जानते थे।
उन्होंने अपने बचपन की पढ़ाई गुजरात ही विद्यालय में की और जब इनके विद्यालय की पढ़ाई पूरी हो गई तो उनके बड़े भाई ने इन्हें आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेज दिया। वहां पर इन्होंने कानून की पढ़ाई की।
जब इनकी कानून की पढ़ाई पूरी हो गई तो ये वापस इंडिया लौट आये। ब्रिटिश शासन के समय पूरे विश्व में काले रंग के लोगों और भारतीयों के साथ भेदभाव किया जाता था। उन्हें हर जगह पर अपमानित किया जाता था।
गान्धी जी ने एक अच्छे वकील और सार्वजनिक कार्यकर्त्ता के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भी कई अच्छे काम किये। वहां पर उनको भी भेदभाव और नीचा दिखाने की समस्या का सामना करना पड़ा था। गान्धी जी के फ़र्स्ट एसी का टिकेट था लेकिन वहां से गान्धी जी को धक्के मारकर बाहर निकाल दिया गया। फिर गान्धी जी को तीसरे श्रेणी के डिब्बे में अपनी यात्रा पूरी की।
इस दौरा गान्धी जी निर्णय लिया की वे इस समस्या के खिलाफ आवाज उठाएंगे और इनके खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे।
राजनिती की ओर झुकाव
गान्धी जी के पिता जी अंग्रेजी सरकार के समय में अग्रेजी हुकुमत के दीवान के रूप में काम करते थे। इस कारण उनके परिवार में राजनीती का प्रभाव तो पहले से ही बना हुआ था और उनकी माता जी भी बहुत सेवा भाव वाली महिला थी तो वो भी बहुत सार्वजनिक काम किया करती थी। इनसे गान्धी जी को बहुत प्रेरणा मिलती थी।
गान्धी जी आगे चलकर विश्व में भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव और नीचा दिखाने की समस्या का पूरा विरोध किया। उन्होंने इसके खिलाफ कई आन्दोलन भी किये। भारत को अंग्रेजी सरकार से आजादी दिलाने में गान्धी जी का महत्वपूर्ण योगदान और सहयोग है।
1893 से 1914 तक गान्धी जी ने दक्षिण अफ्रीका में आपना जीवन एक सार्वजनिक कार्यकर्ता के रूप में गुजारा। लेकिन जब 1915 में कांग्रेस के नेता गोपाल कृष्ण गोखले ने गान्धी जी से भारत लौटने का अनुरोध किया तो वे भारत लौट आये और कांग्रेस पार्टी से जुड़ गये। गान्धी जी ने कांग्रेस पार्टी का 1920 तक नेतृत्व किया और अच्छे से इस पार्टी का संचालन किया।
गान्धी जी के द्वारा किये गये आन्दोलन
चंपारण आन्दोलन
ये आन्दोलन गान्धी जी पहला आन्दोलन था। उस समय अंग्रेजी सरकार किसानों को अपनी फ़सल की पैदावार कम करने और नील की खेती करने के लिए मजबूर कर रहे थे। उनको उस समय एक तय कीमत पर नील की खेती करने के लिए कह रहे थे।
अंग्रेजों के किसानों पर दबाव देने के कारण गान्धी जी अंग्रेजों के खिलाफ एक आन्दोलन छेड़ा। इस आन्दोलन की शुरूआत गान्धी जी ने 1917 में चंपारण नाम एक गांव से की थी। अंग्रेजों ने गान्धी जी को मनाने के बहुत प्रयास किये। लेकिन गान्धी किसानों के हित के लिए पीछे नहीं हटे। अंत में अंग्रेजों को इनकी मांगे माननी पड़ी।
फिर इस आन्दोलन नाम चंपारण आन्दोलन पड़ गया। इस आन्दोलन से गान्धी जी को विश्वास हो गया था कि वो अंग्रेजों को भारत से अहिंसा के माध्यम से बाहर निकाल सकते हैं। इसके बाद गान्धी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ कई आन्दोलन किये।
खेड़ा आन्दोलन (खेड़ा सत्याग्रह)
महात्मा गान्धी ने खेड़ा गांव के किसानों की अंग्रजों के कर वसूलने की समस्या को लेकर ये आन्दोलन छेड़ा। 1918 गुजरात के खेड़ा गांव में बहुत भयंकर बाढ़ आ गई थी। बाढ़ की वजह से सभी किसानों की फसले बर्बाद गई थी और वो अंग्रेजों द्वारा लिए जा रहे भारी कर नहीं चुका पा रहे थे।
खेड़ा गांव में बाढ़ के कारण अकाल जैसा माहौल बन गया। लेकिन इस स्थिति में भी अंग्रेजी अफसर किसानों से कर वसूलना चाहते थे। उन्होंने कर में कोई कमी नहीं की किसान इस कर को नहीं चुका पा रहे थे। उनके पास ऐसा कुछ नहीं था, जिससे वह कर चुका सके।
ये समस्या वहां के किसानों ने गान्धी जी को बताई तब गान्धी जी उसी गांव में अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया। इस आन्दोलन में गान्धी जी को किसानों का पूरा सहयोग था। इस आन्दोलन के बढ़ते रूप को देखकर अंग्रेजी सरकार के पसीने छूटने लगे। अंत में हार मानकर उनको कर को माफ़ करना पड़ा। ये आन्दोलन खेड़ा सत्याग्रह के नाम से जाना गया।
असहयोग आंदोलन
भारत में धीरे-धीरे अंग्रेज भारतीयों पर अत्याचार करने लगे, हत्याएं होने लगी, जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ। इतना सबकुछ हो जाने पर गान्धी जी को यह महसूस हुआ कि समय पर इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई तो अंग्रेज भारतीयों पर क्रूरता बढ़ाते जायेंगे और हमारा जीना मुश्किल कर देंगे।
गान्धी जी पर जलियांवाला बाग़ हत्याकांड का बहुत बुरा असर पड़ा और इसके खिलाफ आवाज उठाई और असहयोग आन्दोलन की शुरूआत की। इस आन्दोलन में गान्धी जी पूरे भारत के लोगों से ये निवेदन किया कि वो सभी अंग्रेजों के सामान का बहिष्कार करें, सभी स्वदेशी वस्तुओं को अपनाएं।
इस आन्दोलन में गान्धी जी को सहयोग मिलने लगा था। सभी लोग जो अंग्रेजी हुकुमत में काम करते थे अपने पदों से इस्तीफा दे दिया। सभी ने अंग्रेजी सामान का बहिस्कार शुरू कर दिया, स्वदेशी अपनाने लगे थे।
ये आन्दोलन धीरे-धीरे बड़ा रूप ले रहा था। इससे अंग्रेज कमजोर होते जा रहे थे। इस आन्दोलन में चोरा चोरी कांड हुआ, सभी जगहों पर लूटपात होने लगी। ये आन्दोलन अहिंसा से हिंसा की ओर मुड़ने लगा। इस कारण गान्धी जी को ये आन्दोलन वापस लेना पड़ा और 6 महीने की जेल भी जाना पड़ा।
नमक आन्दोलन
अंग्रेजों का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था। अंग्रेज हमेशा कई वस्तुओं पर कर बढ़ा रहे थे। जिसमें नमक भी शामिल था। अंग्रजों ने नमक पर अधिक कर लगा दिया। नमक पर टैक्स लगाने से सभी को परेशानी होने लगी। इसके लिए गान्धी जी ने इसका विरोध किया।
गान्धी जी अपने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से 12 मार्च 1930 को नमक पर अधिक कर लगाए जाने के विरोध में दांडी यात्रा प्रारंभ की। यह यात्रा 6 अप्रैल 1930 को गुजरात के दांडी गांव में जाकर पूरी हुई।
इस यात्रा में हजारों लोगों ने गांधीजी का साथ दिया और दांडी में गांधीजी ने सभी को स्वयं नमक उत्पादन करने के लिए प्रेरित किया। इस आन्दोलन की पूरे विश्व में फ़ैल गयी थी। यह आन्दोलन गान्धी जी द्वारा अहिंसा से लड़ा गया था, जो पूर्ण रूप से सफ़ल रहा।
इस आन्दोलन को Namak Satyagrah, Dandi March और Dandi Yatra के नाम से भी जाना है। इस आन्दोलन से ब्रिटिश सरकार बहुत प्रभावित हुई थी। जिसके कारण हजारों लोगों को जेल में बंद कर दिया था।
भारत छोड़ो आन्दोलन
यह आन्दोलन गान्धी जी ने भारत को अंग्रजों से मुक्त करने के लिए किया था। ये आन्दोलन 8 अगस्त 1942 को शुरू हुआ था। इस आन्दोलन को नमक आन्दोलन का बहुत सहयोग मिला था।
जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो रहा था तो गान्धी जी ने भी इस इस आन्दोलन की शुरूआत की। उस समय अंग्रेजी सरकार अन्य देशों के साथ युद्ध लड़ने में लगी हुई थी।
अंग्रेजों की स्थिति बिगड़ती जा रही थी। तब यह निर्णय लिया गया कि भारतीयों को भी Second World War में शामिल किया जाए तो भारतीयों ने शामिल होने से मना कर दिया। फिर अंग्रेजी सरकार ने भारतीयों से वादा किया कि वे यदि द्वितीय विश्व युद्ध में साथ देंगे तो वे भारत को आजाद कर देंगे। ये सभी भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण ही संभव हुआ था। अंत में 1947 में भारत को आजादी मिल गई।
भारत छोड़ो आन्दोलन पूरी तरह से सफ़ल रहा था। इसकी सफ़लता के पीछे सभी भारतीयों का भी पूरा सहयोग था। इनकी एकजुटता ने ही भारत को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाई थी।
उपसंहार
गान्धी जी को भारत में बापू के नाम से जाना जाता है और इन्हें राष्ट्रपिता का भी दर्जा मिला हुआ है। इन्होंने अपना पूरा जीवन भारत के हित के लिए बलिदान कर दिया।
भारत में हर साल इनके जन्मदिन 2 अक्टूबर को गान्धी जयंती के रूप में और पूरा विश्व 2 अक्टूबर को अन्तराष्ट्रीय अहिंसा दिवस (International Day of Non-Violence) के रूप में मनाता है।
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