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परिवार की प्रेरणादायक कहानी

Family Story in Hindi: परिवार ही बच्चों की प्रथम पाठशाला है, जहां उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है। परिवार के द्वारा दी गई शिक्षाएं जीवन आत्मसात होती रहती है।

महापुरुषों की जीवनी इस बात की साक्षी है कि उनके व्यक्तित्व के निर्माण में परिवार की प्रमुख भूमिका रही है।

Image: family story in hindi with moral

आदिम समय में जब आज की तरह शिक्षण संस्थाएं नहीं थी तो परिवार ही शिक्षा की मुख्य संस्था थी। परिवार में ही बालक स्नेह, प्रेम, दया, सहानुभूति, त्याग बलिदान, आज्ञा का पालन आदि का पाठ सीखता है।

इस आर्टिकल के द्वारा 5 पारिवारिक शिक्षाप्रद कहानियां (family stories in hindi) के बारे में बताएँगे, जो आपको काफी मददगार साबित होगी।

परिवार की कहानी (Family Story in Hindi)

पैसा और पिता (फैमिली स्टोरी)

एक समय की बात है। एक छोटे से कस्बे में मगन नाम का आदमी रहता था। मगन अपने घर में बेटे और पत्नि के साथ रहता था। मगन गरीब था, इसलिए वह दिन रात अपने परिवार की जरूरतें पूरी करने में लगा रहता था। वह हर हाल में बेटे और पत्नी की खुशी चाहता था।

मगन एक छोटी सी कम्पनी में काम करता था। जहाँ उसकी आमदनी घर खर्चे जितनी हो जाती थी। लेकिन फिर भी मगन कम्पनी वाला काम खत्म करके दूसरी जगह जाया करता था ताकि कुछ और पैसे कमा सके।

काम में व्यस्त होने से वह अपने परिवार को समय नहीं दे पाता था। मगन 24 में से 15 घण्टे घर से बाहर काम मे निकाल देता था। रात को देर से आता और सुबह जल्दी जाता था। इस तरह कुछ दिन बीतते गए। एक दिन मगन की पत्नी ने उससे कहा कि आप पूरे दिन काम करते है और हमें समय नहीं देते है।

वैसे भी हमारा खर्चा आराम से निकल जाता है तो आप इतनी मेहनत क्यों करते हो? हमारे पास जितना है, उसी में हमे खुश रहना चाहिए। चलिए आज हम तीनों कही घूमने चलते है।

तब मगन कहता है कि बस कुछ समय मुझे और मेहनत करने दो फिर आराम ही आराम है। इस तरह मगन मेहनत करने में लगा रहता है।

उसका बेटा भी उससे अक्सर कहता रहता था कि पापा आप मेरे साथ खेलो, बैठो और मुझसे बातें करो। लेकिन मगन हमेशा काम के लिए कहकर कभी उसे समय नहीं दे पाता था। कुछ समय और बीता अब मगन की किस्मत चमकी। मगन की नौकरी जिस कंपनी में थी, अब उसका मालिक मगन को मैनेजर बना देता है।

क्योंकि मगन काफी समय से वहाँ काम करता था और अब वह मालिक का विश्वाशपात्र बन गया था। मैनेजर बनने के बाद मगन बहुत अमीर हो गया, उसकी आमदनी अच्छी खासी थी। अब वह कुछ भी खरीद सकता था। उसकी गिनती धनी लोगों में होने लगी।

पत्नी और बेटा बस एक बार कोई चीज मांग लेते तो वह तुरंत हाजिर कर देता था। एक दिन बेटा और पत्नी दोनों मगन से बहुत ज्यादा जिद करते है कि वे तीनों समुद्र के किनारे घूमने चले।

मगन कहता है कि ठीक है आज चलेंगे। लेकिन मुझे कम्पनी में थोड़ा काम है, इसलिए तुम दोनों समुद्र के किनारे पहुँचो मैं सीधा कम्पनी से काम खत्म करके पहुँचता हूँ।

पत्नी और बेटा दोनों वहाँ चले जाते हैं। तभी समुद्र में बहुत बड़ी सुनामी आ जाती है और आसपास के लोगों को भी बहा ले जाती है। पत्नी और बेटा दोनों पानी मे बह गए। जब मगन वहाँ पहुँचता है तो ऐसी हालत देख घबरा जाता है। उसने हर जगह देखा लेकिन सब कुछ नष्ट हो चुका था।

उसे यकीन हो गया कि उसकी पत्नी और बेटा भी बह गए। वो जोर-जोर से रोने लगा और अपनी पत्नी की बात को याद करने लगा कि हमारे पास जितना है, उसी में खुश रहना चाहिए और अपने परिवार के साथ खुशी के नए पल बनाने चाहिए ताकि हम उसे हमेशा अपने दिल में संभाल कर रख सके। पैसों का क्या है, कभी होंगे तो कभी नहीं होंगे।

सीख: हमेशा अपने परिवार के साथ समय निकालकर बैठना चाहिए।

पिता बेटा और वक्त (Family Story Hindi)

एक समय की बात है। राजन अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहता था। राजन का ज्यादा समय काम करने में बीत जाता था।

वह रात को देरी से आता था और सुबह जल्दी निकल जाता था, इसलिए उसकी और उसके बेटे की मुलाकात मुश्किल से ही हो पाती थी। देर से आने के कारण बेटा सो जाता था और सुबह भी सोया हुआ रहता था।

एक दिन रविवार का दिन था। उस दिन राजन को घर से ही काम करना था। इसलिए वह सोफे पर बैठकर आराम से लैपटॉप पर काम करता है। तभी उसका छोटा सा बेटा राजन के पास आकर बैठा।

राजन उसकी तरफ नहीं देखता है। बेटा कहता है कि “पापा मैं आपसे एक बात पूछना चाहता था।” राजन को लगता है कि उसे कुछ चाहिए होगा, इसलिए पूछ रहा है। राजन बिना बेटे की तरफ देखे कहता है कि हाँ पूछो।

बेटा कहता है कि पापा आप एक घंटे का कितना कमा लेते हो। राजन को गुस्सा आता है। वह कहता है कि “तुम्हें क्या करना है, इस बात से जरूर तुम्हें कोई फालतू की चीज या खिलौना चाहिए, इसलिए पैसों के बारे में पूछ रहे हो। ये सब तुम्हारे काम की चीज नहीं है, जाओ जाकर सो जाओ और मुझे मेरा काम करने दो।”

बेचारा बेटा चुपचाप जाकर अपने कमरे में सो जाता है।

काफी रात हो गई थी। अब राजन आपना काम पूरा करके सोने जाता है तो उसे बेटे की याद आती है कि उसने कैसे बेचारे बच्चे को डांट दिया। शायद उसे सच मे कुछ जरूरी चाहिए होगा, नहीं तो वह पैसों का क्यों पुछता।

ऐसा सोचकर राजन बच्चे के कमरे में जाता है और उसके माथे पर हाथ फेरता है। मेरे बच्चा सो गया क्या? तभी बच्चा अचानक उठ बैठा और बोला नहीं पापा मैं जागा हुआ हूँ।

पिता बच्चे से कहता है कि बेटा मैं उस वक्त व्यस्त था, अब बोलो तुम्हे कितने पैसे चाहिए। बेटा कहता है कि मुझे पैसे नहीं चाहिए। आप बस मुझे इतना बता दीजिए कि आप एक घंटे का कितना कमा लेते है।

पिता कहता है कि मैं एक घंटे में 100 रुपये कमाता हूँ। बेटा झट से उठकर अपने गुल्लक को तोड़कर उसमें से 100 रुपए निकाल लाया और पिता को दिए और बोला ये लो 100 रुपये क्या आप अपना 1 घंटा मेरे साथ बिता सकते हैं।

ये सुनकर पिता हैरान हो गया। उसे मन ही मन बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। आज से ही उसने अपने मन मे ठान ली थी कि वह अपना समय बेटे को भी देगा। उस रात दोनों बाप बेटे मिलकर खूब सारी बातें करते हैं। अब राजन समझ गया था कि परिवार के साथ वक्त बिताना कितना जरूरी है।

सीख: काम करना औऱ पैसे कमाना जरूरी है। लेकिन अपनों के साथ समय बिताना भी जरूरी है।

दो भाई-मोहन और सोहन (Family Motivational Story in Hindi)

एक समय की बात है। एक गाँव मे मोहन और सोहन नाम के दो भाई रहते थे। उनके माता-पिता कुछ समय पहले ही एक दुर्घटना में चल बसे थे।

अब दोनों भाई ही एक दूसरे का सहारा थे। मोहन सोहन से बड़ा था। इसलिए मोहन अपने भाई की हर जरूरत पूरी करना अपनी जिम्मेदारी मानता था।

वह चाहता था कि सोहन अच्छा पढ़ लिखकर नौकरी करे। इसलिए मोहन दिन-रात मेहनत करके पैसे कमाता था और उन पैसों से सोहन की पढ़ाई का खर्चा उठाता था।

मोहन एक कारखाने में काम करता था। कारखाने का काम खत्म करके वह चाय की दुकान खोलता था। ताकि कुछ और पैसे कमा सके, जिससे सोहन की फीस और उसकी जरूरतें अच्छे से पूरी कर सके।

मोहन सुबह जल्दी कारखाने जाता था, इसलिए वह जल्दी उठकर घर का सारा काम करता था और दोनों के लिए खाना बनाकर रख देता था ताकि सोहन को पढ़ने में कोई दिक्कत ना आए।

इस तरह दिन बीतते गए और सोहन की स्कूल की पढ़ाई पूरी हुई। अब उसने मोहन के सामने कॉलेज जाने की इच्छा जताई। मोहन के लिए कॉलेज की फीस भरना थोड़ा मुश्किल था। लेकिन फिर भी वह सोहन की बात मानता लेता है ताकि उसकी पढ़ाई ना रुके।

अब मोहन को और ज्यादा काम करना पड़ता था। मोहन रात को 12 बजे तक कारखाने और चाय की दुकान वाला काम खत्म करके घर आता था और सुबह जल्दी 5 बजे निकल जाता था।

इस तरह समय गुजरा और सोहन ने अपनी कॉलेज की पढ़ाई जारी रखी। वह कॉलेज में अच्छे से पढ़ने लगा। इधर मोहन दिन-रात खून पसीना एक करके पैसे कमाता था। मोहन की नींद पूरी नहीं होने से वह कुछ बीमार सा रहने लगा था।

फिर भी वह हर हाल में काम करता रहा। उसके मन मे एक ही उम्मीद थी कि सोहन पढ़कर बड़ा आदमी बनेगा तो सब ठीक हो जाएगा और उसे इतना ज्यादा काम भी नहीं करना पड़ेगा।

इस तरह से 3 साल बीत गए। आज सोहन के कॉलेज की पढ़ाई पूरी हुई और उसके कॉलेज का परिणाम आने वाला था। मोहन बहुत खुश था कि सोहन बहुत अच्छे अंकों से पास होगा।

मोहन उस शाम को मिठाई लेकर जल्दी घर पहुंच गया और घर जाकर सोहन का इंतजार करने लगा। उसने सोचा कि आज सोहन के आते ही वह उसे मिठाई खिलायेगा।

मोहन अपने भाई का इंतजार करने बैठ जाता है। काफी समय बीत जाने पर भी सोहन का कुछ पता नहीं था। मोहन बार-बार दरवाजे पर जाकर देखता रहा। इस तरह रात के 11 बज चुके थे।

अब मोहन का भय बढ़ने लगा। लेकिन फिर भी उसने खुद को संभाला और कहा कि कैसा लड़का है परिणाम अच्छा आया होगा, इसलिए दोस्तों के साथ पार्टी करने चला गया होगा और अपने भाई को ही भूल।

वह मन को बहलाने लगा। अब तो काफी समय हो गया। मोहन को लगा, उसके भाई को कही कुछ हो तो नहीं गया और वह डर गया।

कुछ देर बाद कोई दरवाजा पर आया। अब मोहन ने राहत की सांस ली और कहा चलो ये लड़का आ गया। उसने दरवाजा खोला और देखा कि कुछ पुलिस वाले आये है। मोहन डर के मारे कांपने लगा और पूछा कि आप लोग क्यों आये हो?, मेरा भाई कहाँ है, वो ठीक तो है ना।

इतने में एक पुलिस वाले के पीछे से सोहन निकला और मोहन के पैरों में पड़ गया। मोहन ने उसे उठाकर गले से लगा लिया और कहा “भगवान का शुक्रिया की तू ठीक है, मैं तो बहुत डर गया था।”

इतने में एक पुलिस वाला कहता है कि मोहन जी आप बहुत भाग्यशाली है कि आपके पास सोहन जैसा भाई है। सोहन ने आज वो कर दिखाया है, जो हर कोई नहीं कर पाता है। इसने अपनी कॉलेज की पढ़ाई के साथ पुलिस की भर्ती की तैयारी भी की थी।

आज उसके परिणाम भी आये है। सोहन ने दोनों परीक्षाओं में बहुत अच्छे अंक प्राप्त किये है। कुछ दिन बाद इसकी ट्रैनिंग शुरू होगी और फिर नौकरी पक्की हो जाएगी। ये सुनकर सोहन ने कहा कि “भाग्यशाली तो मै हूं, जिसने ऐसा भाई पाया है। इन्होंने मेरी हर जरूरत को पूरा किया है और उसके लिए कड़ी मेहनत की।”

लेकिन अब समय आ गया है कि ये आराम करें और में इनकी हर जरूरत पूरी करूँगा। ये देख मोहन खुशी से रोने लगा। दोनों भाई आपस मे गले लगे। पुलिस वालों ने उन्हें बधाई दी और सबने मिठाई खाई।

सीख: परिस्थिति कैसी भी हो, लेकिन कभी मेहनत करना मत छोड़ो। एकदिन आपको सफलता जरूर मिलेगी।

माँ बेटी की कहानी

एक समय की बात है। एक रीना नाम की लड़की अपने माता-पिता के साथ रहती थी। वह अपने माता-पिता की इकलौती बेटी थी। उसके माता-पिता उससे बहुत प्यार करते थे।

इसलिए वह जो भी मांगती थी, उसे लाकर देते है। उसके पिता इतने ज्यादा पैसे नहीं कमा पाते थे लेकिन फिर भी वह अपनी बेटी की हर इच्छा पूरी करते थे।

एक दिन रीना ने अपने पापा से कहा कि पापा मेरी चप्पल पुरानी हो गई है, क्या आप मेरे लिए नई चप्पल लाओगे। पिता ने अगले दिन नई चप्पल लाने का वादा किया।

पिता अगले दिन नई चप्पल लेकर आये। रीना नई चप्पल देख बहुत खुश हुई और चप्पल पहनकर पूरे दिन मोहल्ले में उछल कूद करती रही। शाम को वह घर आई और चप्पल उतारकर सो गई। अगली सुबह रीना वह चप्पल नहीं पहनती है और अपनी पुरानी चप्पल पहनकर खेलने चली जाती है।

मम्मी से कहकर जाती है कि “मम्मी मुझे ये चप्पल पसंद नहीं है, मैं अपनी पुरानी चप्पल ही पहनूँगी।” उसकी ये बात उसके पापा सुन लेते है। इतने में रीना बाहर खेलने भाग जाती है।

रीना के पिता उसके पीछे गए और उसे अपने पास बुलाकर कहा कि “बेटा अगर तुम्हें नई चप्पल नहीं पहननी थी तो तुमने क्यों मंगवाई और तुमने उसे कल पूरे दिन पहनकर रखा अब हम इसे वापस दुकानदार को भी नहीं दे सकते है।”

रीना कहती है कि “पापा मैंने यह चप्पल मम्मी के लिए मंगाई थी। क्योंकि उनकी चप्पल टूट सी गई है और वह खर्चे के डर से कभी अपने लिए नई चप्पल नहीं मांगती है। इसलिए मैंने वह चप्पल कल पूरे दिन पहनकर रखी ताकि मम्मी उसे वापस करने का न बोल सके।”

अपनी बेटी की ये बात सुनकर पापा बहुत गर्व महसूस करते है और दरवाजे पर खड़ी मम्मी भी बेटी की बात सुन रही थी, वह भी मन ही मन बहुत खुश हुई कि इतनी सी बच्ची में इतनी समझ है। दोनों माता-पिता एकदूसरे के सामने देखकर मुस्कुराते है और बेटी को प्यार करने लगते है।

सीख: हमेशा अपने माता-पिता की मजबूरी को समझना चाहिए।

बूढ़ा पिता और बेटा- संस्कार

एक समय की बात है। एक नौजवान बेटा और उसका बूढ़ा बाप घर से बाहर टहलने निकलते है। वे टहलते हुए बातें करते है और मौसम का आनन्द उठाते है।

बेटा अपने बाप की बहुत इज्जत करता है। तभी बेटे को वहाँ एक रेस्टोरेंट दिखता है तो वह पिता से कहता है कि चलिए पिताजी हम रेस्टोरेंट चलकर खाना खाते है।

दोनों रेस्टोरेंट जाते है और खाना आर्डर करते है। पिता और बेटा खाना खाते हुए बातें करते हैं। पिता कहता है कि बेटा क्या तुम्हें पता है, जब तुम छोटे थे तो मैं, तुम और तुम्हारी माँ यहाँ अक्सर खाना खाने आते थे। बेटा कहता है कि पिताजी मुझे याद है, इसीलिए तो मैं आज आपको यहाँ लेकर आया हूँ। पुरानी यादें ताजा हो जाएगी।

पिता अपने बेटे की ऐसी बातें सुनकर मन ही मन बहुत खुश हुआ। दोनों खाना खाने लगे। खाना खाते समय पिता के हाथ से खाना गिर जाता है और उसके कपड़े गंदे हो गए।

ये देखकर वहाँ बैठे हुए लोग हँसने लगे। लेकिन बेटे को कोई फर्क नहीं पड़ा। दोनों आराम से अपने खाने का आनंद लेते है।

जब दोनों का खाना पूरा हुआ तो बेटा बड़े आदर के साथ पिता का हाथ पकड़ता है और उन्हें वाशरूम में ले जाता है तो फिर से रेस्टोरेंट के सारे लोग उन्हें देखकर हँसने लगते है। बेटे को कोई फर्क नहीं पड़ा।

वाशरूम में जाकर वह पिता के कपड़ों में लगे दाग धब्बे साफ करता है और उन्हें हाथ पकड़कर बाहर लाता है।

वे दोनों अपना बिल मैनेजर को देते है और जाने लगते है। तभी मैनेजर बेटे को कहता है कि साहब आप यहाँ कुछ भूल रहे हो। बेटा कहता है कि नहीं तो मैं कुछ नहीं भूल रहा हूँ।

मैनेजर कहता है कि साहब आप यहाँ इन लोगों के लिए एक सीख छोड़कर जा रहे हो कि कभी भी बूढ़े माता-पिता के लिए शर्मिंदगी महसूस नहीं करनी चाहिए और हमेशा उनका सहारा बनाना चाहिए।

सीख: अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए।

निष्कर्ष

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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