Essay on Pongal in Hindi: भारत विविधताओं में एकता का देश है। यहां कदम कदम पर लोगों के रहन-सहन, भाषा और पहनावे बदल जाते हैं। लेकिन एक चीज नहीं बदलता वह है लोगों की भाईचारा और एकता।
भारत में अनेक धर्म के लोग रहते हैं, जिनकी भाषा अलग है, जिनका रिती रिवाज त्योहार अलग है। लेकिन यहां सभी धर्म के लोग एक दूसरे के त्यौहार को साथ मिलकर हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं।
पोंगल त्योहार पर निबंध (pongal essay in hindi) में पोंगल के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।
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पोंगल पर निबंध | Essay on Pongal in Hindi
पोंगल त्योहार मुख्य रूप से दक्षिण भारत का त्योहार है, जो तमिलनाडु राज्य में बहुत ज्यादा प्रख्यात है। इस त्यौहार का इतिहास 100 वर्ष पुराना है। यह त्योहार 4 दिनों तक मनाया जाता है और इन 4 दिनों तक दक्षिण भारत में खूब चहल-पहल देखने को मिलती है।
लोग इस त्यौहार को मनाने की तैयारी में जुट जाते हैं। न केवल भारत में बल्कि दुनिया के अन्य देशों में भी जहां जहां तमिल लोग रहते हैं, वहां भी इस त्यौहार को बहुत ही हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाते हैं। इस पर्व का इतना ज्यादा महत्व है कि इस दिन तमिलनाडु राज्य में लगभग सभी विद्यालयों में अवकाश रहता है।
पोंगल और अपने देश की विभिन्न संस्कृति से परिचित होने के लिए बच्चों को भी विद्यालय में पोंगल त्योहार के ऊपर निबंध लिखने के लिए दिया जाता है। इसलिए आज के इस लेख में हम मुख्य रूप से 250, 400 और 800 शब्दों में पोंगल त्योहार पर निबंध (pongal par nibandh) लेकर आए हैं।
पोंगल पर निबंध (250 शब्द)
हमारा भारत त्योहारों का देश है। यहां पर अनेक प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं, उन्हीं में से एक है पोंगल। पोंगल तमिलनाडु का प्रसिद्ध त्योहार है। यह त्यौहार फसल के लिए धन्यवाद करने के उपलक्ष में मनाया जाता है। किसान सूर्य, पृथ्वी, बैल इत्यादि की पूजा करके उनका धन्यवाद करते हैं और इस त्योहार को मनाते हैं।
इस त्यौहार को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार 4 दिन तक चलता है। पोंगल आने से पहले ही घरों की साफ-सफाई होने लगती है। लोग सजावट करते हैं। नए-नए वस्त्र खरीदते हैं। बाजारों में रौनक लग जाती है और बहुत चहल पहल होती है।
इस त्यौहार के पहले दिन को भोगी पोंगल कहा जाता हैं। पहले दिन भगवान इंद्र की पूजा की जाती है और शाम के समय अपने पुराने वस्त्र और कूड़े को एकत्रित करके जलाया जाता है।
दूसरे दिन को थाई पोंगल कहते है। इस दिन एक अन्य प्रकार की खीर बनाई जाती है, जो कि नए धान और गुड़ से बनाई जाती है। इसके पश्चात सूर्य देव को भोग लगाकर उसका प्रसाद सभी को वितरित किया जाता है।
तीसरे दिन को मट्टू पोंगल कहा जाता है। तीसरे दिन बैल की पूजा की जाती है क्योंकि किसान के लिए बैल का बहुत ही अधिक महत्व है। बैल उनकी खेती बाड़ी में बहुत ही मददगार होता है।
चौथे दिन को तिरुवल्लुवर पोंगल कहा जाता है। इस दिन महिलाएं सुबह स्नान करके पूजा करती हैं। नए वस्त्र पहनकर सभी के घरों में मिठाई बांटती है और त्योहार की शुभकामनाएं देती हैं।
यह त्यौहार तमिलनाडु के वासियों के लिए बहुत ही प्रमुख त्यौहार होता है। इसीलिए इस त्यौहार को वह बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। इस त्यौहार को देश विदेश में रहने वाले लोग भी जो कि भारतीय हैं, वह भी बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।
पोंगल त्योहार पर निबंध 400 शब्दों में
पोंगल त्योहार मुख्य रूप से तमिलनाडु का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्यौहार तमिलनाडु के किसानों से जुड़ा हुआ है। इस दिन में कृषि देव को प्रसन्न करने के लिए पूजा करते हैं। जब दिसंबर के माह में सभी किसान अपने फसल की कटाई करके सुरक्षित रख लेते हैं तब जनवरी माह के मध्य दिनों से वे पोंगल के त्यौहार को मनाना शुरू करते हैं।
यह त्योहार मुख्य रूप से 4 दिनों का होता है। पोंगल शब्द तमिल भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है “उबालना”। इस दिन सभी किसान गुड और चावल को उबालकर भगवान सूर्य देव को भोग चढ़ाते हैं। इसी प्रसाद को पोंगल कहा जाता है और उसी के नाम पर इस त्यौहार का नाम पोंगल पड़ा है।
पोंगल का त्योहार हरियाली और संपन्नता को समर्पित त्योहार है। इसे दक्षिण भारत में एक द्रविड़ फसल त्योहार के रूप में मान्यता दिया गया है। इस त्यौहार के बारे में संस्कृत के कई पुराणों में भी मिलता है। यहां तक की हर त्यौहार की तरह पोंगल त्योहार से भी जुड़ी कई सारी पौराणिक कथाएं है।
पोंगल त्योहार को मनाने की तैयारी दक्षिण भारत के लोग कुछ दिन पहले से ही शुरु कर देते हैं। पोंगल त्योहार के आने से कुछ दिन पहले ही दक्षिण भारत के लोग अपने घरों की साफ-सफाई और पुरानी वस्तुओं को घर से हटाना शुरू कर देते हैं।
पोंगल त्योहार को 4 दिनों तक मनाया जाता है और इन चारों दिन तमिलनाडु में काफी चहल पहल रहती है। पहले दिन को भोगी पोंगल के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग अपने घरों की साफ-सफाई करके मिट्टी के बर्तनों पर कुमकुम और स्वास्तिक का चिन्ह बनाते हैं। उसके बाद वे भगवान इंद्र देव की पूजा करते हैं।
किसानों का मानना है कि अच्छी फसल के लिए वर्षा का होना बहुत जरूरी है और भगवान इंद्र वर्षा के देव कहलाते हैं, इसीलिए यदि उन्हें प्रसन्न में रखेंगे तो वर्षा होगी और इस तरह फसल भी अच्छी होगी।
पोंगल के दूसरे दिन को सूर्य पोंगल कहा जाता है। इस दिन में भगवान सूर्य की पूजा करते हैं। मिट्टी के बर्तन में चावल और गुड को उबालकर प्रसाद चढ़ाते हैं। इस दिन सभी किसान भगवान सूर्य की आराधना करके हमेशा उनकी दया दृष्टि बनाए रखने की प्रार्थना करते हैं।
पोंगल का तीसरा दिन मट्टू पोंगल कहलाता है। इस दिन गाय और बैलों की पूजा एवं अर्चना की जाती है। इस दिन सभी किसान अपने मवेशियों को नहला धुला कर उन्हें अच्छे से सजा देते हैं। उनके गले में घंटी और फूलों की मालाएं बनते हैं और फिर उनकी पूजा करते हैं।
पोंगल का चौथा दिन यानी अंतिम दिन कानुम पोंगल के नाम से जाना जाता है। इस दिन परिवार का पूरा सदस्य बड़ों के आशीर्वाद लेता है और फिर एक साथ बैठकर हल्दी के पत्ते पर चावल, मिठाई, सुपारी, गन्ने जैसे पकवानों को परोस कर खाता है।
पोंगल का त्योहार बनाने की विधि गोवर्धन पूजा से काफी मिलती-जुलती है लेकिन धार्मिक विविधता के कारण इस त्यौहार को अलग नाम से जाना जाता है। लेकिन त्योहार का उद्देश्य तो एक ही है हर्ष एवं उल्लास का संचार करना।
पोंगल त्योहार को देखने के लिए दूसरे राज्य के लोग भी तमिलनाडु राज्य में पहुंचते हैं। इस दिन वहां पर कई जगहों पर बहुत भारी मात्रा में बैलों की लड़ाई का आयोजन कराया जाता है और यह लड़ाई पोंगल के दिन काफी ज्यादा प्रख्यात है। जिस कारण लोग साल भर अपने बैलों को लड़ाई के लिए तैयार करते हैं। पोंगल का त्यौहार भाईचारा को प्रदर्शित करने का एक मंगलमय त्योहार है।
पोंगल पर निबंध (800 शब्द)
प्रस्तावना
पोंगल तमिलनाडु का बहुत ही प्रसिद्ध त्योहार है। इस त्यौहार को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार को फसल की कटाई के उपलक्ष में मनाया जाता है। यह त्यौहार धन, समृद्धि, संपन्नता, धूप, वर्षा इत्यादि का प्रतीक माना जाता है।
पोंगल क्यों मनाया जाता है?
यह त्योहार फसल की कटाई के उपलक्ष में मनाया जाता है। किसान इंद्रदेव को वर्षा के लिए धन्यवाद देने के लिए इनकी पूजा करते हैं एवं इस त्यौहार को धूमधाम के साथ मनाते हैं।
इस दिन सूर्य भगवान की भी पूजा होती है और बैल की भी पूजा होती है। वही इंद्रदेव की भी पूजा की जाती है। विभिन्न पूजा एक ही त्यौहार में होती हैं, इसीलिए इस त्यौहार को पोंगल कहा जाता है।
पोंगल त्योहार कैसे मनाया जाता है?
पोंगल त्योहार 4 दिन तक मनाया जाता है। इस त्योहार की रौनक 4 दिन तक बनी रहती है। बाजारों में रौनक लगी रहती है। लोग नए वस्त्र खरीदते हैं। हर्षोल्लास के साथ इस त्यौहार को मनाया जाता है। 4 दिन की विशेषताएं इस प्रकार हैं।
- पहला दिन
इस पर्व के पहले दिन को भोमि पोंगल के नाम से जाना जाता है। पहले देव इंद्र भगवान की पूजा की जाती है, क्योंकि इंद्रदेव को वर्षा के देवता माना जाता है। फसल के लिए अच्छी वर्षा का होना बहुत ही जरूरी है, इसीलिए इंद्र देव की पूजा की जाती है।
- दूसरे दिन
दूसरे दिन को थाई पोंगल या सूर्य पोंगल के नाम से भी जाना जाता है। दूसरे दिन भगवान सूरज की पूजा होती है। पोंगल नाम की खीर बनाई जाती है। यह खीर बहुत विशेष होती है। इस खीर को बनाने के लिए नए बर्तन में नई धान एवं गुड़ का प्रयोग किया जाता है। इसके पश्चात सूरज भगवान को भोग लगाकर सब लोग खीर खाते हैं।
- तीसरा दिन
पोंगल के तीसरे दिन को मट्टू पोंगल के नाम से जाना जाता है। इस दिन सबसे महत्वपूर्ण बैल की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि एक किसान को खेती-बाड़ी करने के लिए बैल की आवश्यकता होती है, इसलिए वह बैल को बहुत ही महत्वपूर्ण मानते हैं।
- चौथा दिन
पोंगल के चौथे दिन को तिरुवल्लर पोंगल या कन्नन पोंगल भी कहा जाता है। इस दिन विशेष प्रकार की पूजा की जाती है। महिलाएं सुबह उठकर स्नान करके पूजा करती हैं। नए वस्त्र पहनते हैं और सभी के घर जाकर मिठाइयां बांटते हैं एवं पोंगल की शुभकामनाएं देते हैं।
पोंगल मनाने के पीछे की कहानी
एक समय की बात है जब भगवान शंकर ने अपने बैल से धरती पर जाने के लिए कहा और कहा कि लोगों को यह संदेश दे। उन्हें हर रोज तेल से नहाना करना चाहिए और महीने में 1 बार खाना खाना चाहिए।
लेकिन बैल ने शंकर जी की कही बात के विपरीत करने के लिए कहा। जिसके चलते धरती के लोग 1 दिन तेल से स्नान करते हैं एवं रोज का खाना खाते हैं। इसीलिए भगवान शंकर क्रोधित हो गए और बैल को श्राप दे दिया।
बैल को हमेशा के लिए धरती पर रहने का श्राप दिया और यह भी कहा गया कि वह धरती पर रहने वाले लोगों के लिए फसल और अन्न उत्पादन में उनका सहयोग करेगा। तभी से बैल किसान के लिए सबसे आवश्यक हो गया।
पोंगल मनाने का क्या महत्व है?
यह त्यौहार मनाने के कई महत्वपूर्ण कारण है। जैसे कि पोंगल तब मनाया जाता है, जब फसल की कटाई का समय होता है और अच्छी कटाई के लिए पोंगल मनाया जाता है और सूर्य भगवान इंद्र भगवान को धन्यवाद दिया जाता है। इसीलिए यह बहुत ही प्रसिद्ध और हर्षोल्लास के साथ मनाने वाला त्यौहार है।
पोंगल के दिन सबसे आकर्षण क्या होता है?
इस दिन दक्षिण भारत में सभी चीज आकर्षक होती हैं। इस दिन प्रसिद्ध बैलों की लड़ाई भी होती है। बाजारों में रौनक होती है। घरों में साज सजावट की जाती है। घर के दरवाजे पर रंगोली बनाई जाती है। धन, संपन्ना, खुशहाली इत्यादि के लिए भगवान का धन्यवाद किया जाता है और विशेषकर पूजा की जाती है।
निष्कर्ष
भारत की ज्यादातर जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। सभी किसान लोग भगवान इंद्रदेव के प्रति हमेशा कृतज्ञ रहते हैं। क्योंकि भगवान इंद्र देव वर्षा के देव माने जाते हैं और बिना वर्षा के फसल नहीं हो सकती हैं।
ऐसे में जब अच्छी फसल होकर जब उसकी कटाई हो जाती है तब तमिलनाडु राज्य के लोग भगवान इंद्र देव को एवं भगवान सूर्य देव को अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए पोंगल त्योहार को बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन आयोजित होने वाले बैलों की लड़ाई पूरे भारत में प्रसिद्ध है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग तमिलनाडु राज्य पहुंचते हैं।
अंतिम शब्द
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