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करवा चौथ पर निबंध

Essay on Karwa Chauth in Hindi: करवा चौथ हिंदुओं का बहुत ही प्रमुख त्योहार है। करवा चौथ सुहागिनों का महत्वपूर्ण त्यौहार है। हम यहां पर करवा चौथ पर निबंध शेयर कर रहे है। इस निबंध में करवा चौथ के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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करवा चौथ पर निबंध | Essay on Karwa Chauth in Hindi

करवा चौथ पर निबंध 250 शब्द (Karwa Chauth Essay in Hindi)

यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। वह अपने पति की लंबी उम्र और आयु के लिए उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए इस व्रत को रखती हैं। करवा चौथ का व्रत इस प्रकार रखा जाता है कि वह पूरे दिन भर में कुछ भी नहीं खाती और पीती हैं। औरतें सिर्फ अपने पति को सम्मान देने के लिए और उनकी आयु को लंबी करने के लिए इस व्रत को बहुत ही भावपूर्ण के साथ रखती हैं।

ऐसा कहा जाता है कि यह व्रत इसीलिए रखा जाता है क्योंकि सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से बचा कर वापिस ले आई थी। तभी से करवा चौथ मनाई जाती है और इसकी विधि विधान द्वारा पूजा करी जाती है। रात को चंद्रमा देखकर उस को अर्घ्य दिया जाता है, इसके पश्चात ही महिलाएं भोजन करती हैं।

करवा चौथ के दिन औरतें बहुत ही अच्छे से सजे सवर कर तैयार होती हैं और पति को ऐसा लगता है कि मानो आज कोई चांद ही उतरकर धरती पर आ गया हो। औरतें अपने पति की खुशहाली के लिए इस व्रत को रखती है और यही कामना करती है कि उनके पति अपने जीवन में सब कुछ पाया और हमेशा खुश रहे।

कार्तिक माह के चौथ के दिन करवा चौथ आती है। महिलाएं हाथ एवं पैरों में मेहंदी लगाती हैं। देखा जाए तो पहले की महिला अपने आदमी पर ही निर्भर रहती थी। चाहे वह उसके पिता हो, भाई हो, पति हो या गुरु हो ऐसा कहा जाता था कि आदमी के बिना समाज ही संपूर्ण नहीं होता है, परंतु आज ऐसा नहीं माना जाता है। सभी को यही महसूस होता है कि जिस तरह से आदमी के बिना समाज पूरा नहीं है, उसी तरह से औरतों के बिना भी समाज पूरा नहीं होता है।

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करवा चौथ व्रत पर निबंध 400 शब्द (Essay on Karva Chauth in Hindi)

प्रस्तावना

भारत एक धार्मिक देश है और यहाँ पर कई प्रकार के त्यौहार मनाएं जाते हैं। हर त्यौहार का एक अलग और विशेष महत्व होता है। भारत में महिलाएं अपने पति को भगवान के समान मानती है और उनकी लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत करती है।

करवा चौथ व्रत क्या है?

करवा चौथ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, करवा+चौथ, जहां पर करवा का अर्थ होता है मिट्टी का बर्तन और वहीं पर चौथ का अर्थ होता है चतुर्थी या औरत पत्नी अपने पति के दीर्घायु के लिए रखते हैं और दुआ करती हैं कि उनकी जोड़ी यूं ही हमेशा सलामत रहे।

करवा चौथ व्रत कब मनाया जाता है?

प्रत्येक मास में 2 पक्ष होते हैं कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष। ऐसे में करवा चौथ व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। हम यह भी कह सकते हैं कि इस व्रत को कार्तिक मास की पूर्णिमा के 4 दिन पहले ही मनाया जाता है।

दीपावली से पहले भी इस त्यौहार का एक निश्चित दिन है। यदि हम बात करें हिंदू मान्यताओं की तो दीपावली के 9 दिन पूर्व करवा चौथ व्रत रखा जाता है। वहीँ हम बात करें अंग्रेजी कैलेंडर की तो अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार करवा चौथ का व्रत अक्टूबर या फिर नवंबर के महीने में मनाया जाता है।

करवा चौथ व्रत क्यों मनाया जाता है?

करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति के लंबी उम्र में के लिए करती हैं। हिंदू मान्यताओं में ऐसा मानना है कि करवा चौथ का व्रत करने से पति एवं पत्नी के बीच का प्रेम बढ़ता है तथा साथ ही साथ पत्नी अपने पति के लिए करवा चौथ का व्रत रखती है, जिससे उसके पति की दीर्घायु होती है।

करवा चौथ का व्रत कैसे रखते हैं?

  • करवा चौथ का व्रत 1 दिन मनाया जाने वाला त्यौहार है, जिसे सुबह से ज्यादा से लेकर शाम को चंद्रमा के दर्शन तक सुहागिन महिलाएं निर्जल व्रत रखती हैं।
  • इस व्रत में बहुओं की सासु अपने बहुओं के लिए सरगी बनाती हैं।
  • इस दिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर सरगी खाती हैं।
  • सरगी में मुख्य रूप से सेवइयां, फल एवं सूखे मेवे खाए जाते हैं।
  • करवा चौथ व्रत को दिन भर महिलाएं कठिन परिश्रम के साथ करती हैं, जिसमें वह सुबह से लेकर शाम तक ना अन्य ग्रहण करती हैं और ना ही जल।
  • करवा चौथ व्रत की पूजा के लिए एक निश्चित मुहूर्त निर्धारित होता है।
  • इस पूजा के लिए सुहागिन महिलाएं सुंदर सुंदर वस्त्र धारण करती हैं, इसने लाल वस्त्र को ज्यादा मानता है दी जाती है। क्योंकि लाल वस्त्र सुहाग का रंग होता है, ना केवल सुंदर वस्त्र तथा साथ ही साथ 16 श्रृंगार भी करती हैं।
  • शाम के समय सभी महिलाएं पूजा करने के पश्चात चंद्र उदय होने का बेसब्री से इंतजार करती हैं और उसके पश्चात एक हाथ में छन्नी लेकर चंद्रमा के दर्शन करती हैं तथा दूसरे हाथ से चंद्रमा को जल चढ़ाते हैं।
  • छलनी से चंद्रमा के दर्शन करने के पश्चात चंद्रमा की तरफ से छलनी को घुमा कर अपने पति के चेहरे या फिर छवि को देखती हैं। फिर अपने पतियों के चरण को स्पर्श करती हैं, जिसके पश्चात पति उन्हें अपने हाथों से जल ग्रहण कराता है, जिसके साथ ही यह पूजा समाप्त हो जाती है।

उपसंहार

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ का विशेष महत्व है। इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत करती है। इस दिन को महिलाएं अन्न ग्रहण नहीं करती है और पति के लिए कामना करती है।

करवा चौथ पर निबंध 850 शब्द (Karva Chauth par Nibandh)

प्रस्तावना

करवा चौथ का व्रत सुहागिनों द्वारा हिंदू महिला रखती है। करवा चौथ का त्यौहार कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए और उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए सूर्योदय से चंद्रमा उदय तक उपवास करती हैं। चंद्रमा उगने के पश्चात अरघ देकर भोजन करती हैं।

करवा चौथ का महत्व

हिंदू धर्म के हिसाब से ऐसा माना जाता है कि जो स्त्री अपने पति के लिए व्रत नहीं रखती है, उसकी आयु कम हो जाती है। क्योंकि ऐसा ही कुछ पौराणिक कथाओं में दिखाया और दर्शाया गया है और उसमें इस बात का जिक्र भी किया गया है कि किस तरह से स्त्री के द्वारा व्रत ना करने से उसकी पति की मृत्यु हो जाती है।

अगले ही दिन जैसे ही वह व्रत करती है, उसका पति जी उठता है। तो यही मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और इसे पूरी श्रद्धा भाव के साथ निभाया जाता है।

पूजा विधि

करवा चौथ के दिन उपवास रखा जाता है। यह व्रत केवल शादीशुदा विवाहित महिलाएं ही रखती हैं क्योंकि यह व्रत बहुत ही पवित्र माना जाता है। करवा चौथ को बहुत ही पालन और नियमों के साथ किया जाता है।

इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले भोजन कर लेती है, जिसे सरगी कहा जाता है। व्रत के दौरान ना तो महिला पानी पी सकती है और ना ही कुछ खा सकती है। करवा चौथ के व्रत की कथा सुनी जाती है। पूजा के दौरान सभी महिलाएं एक नई नवेली दुल्हन की तरह सजती है। पूरा सोलह सिंगार करती हैं जैसे सुंदर साड़ी, चूड़ियां, टीका, बिंदी, नथनी, सभी प्रकार के गहने पहनती हैं।

करवा चौथ में कुछ सामग्रियों की भी आवश्यकता होती है, जो कि महत्वपूर्ण होती है। जैसे मिट्टी का मटका, मटके को गणेश जी का रूप भी माना जाता है। धातु का कलश जैसे कि लोटा और उसमें स्वच्छ पानी भरा जाता है।

इसके पश्चात फूल, अंबिका गौरी माता की छोटी मूर्ति, फल, मट्ठी और दाल, चावल, इसके साथ ही थाली सजाई जाती है। जिसमें सिंदूर, अगरबत्ती और चावल इन सब को अच्छी तरह से सजाया जाता है। इसके पश्चात इन्हीं सभी चीजों को देवी-देवताओं पर चढ़ाया जाता है और उनकी अच्छी प्रकार से पूजा की जाती है।

इस दिन सभी परिवार के लोग इकट्ठा होकर एक दूसरे के साथ खुशियां मनाते हैं। कई महिलाएं तो मंदिर और बगीचों में जाकर भी पूजा करती हैं। कई महिलाएं एकत्रित होकर कहानी सुना करती हैं। वह अपनी पूजा की थाली को बहुत ही अच्छे से सजाते हैं। जब चांद निकलता है तब महिलाएं चांद की परछाई को सबसे पहले पानी में देखती हैं। इसके पश्चात दुपट्टा अथवा छन्नी से देखती है। इसके पश्चात अपने पति को देखती हैं और अपने पति की आरती उतारती हैं, आशीर्वाद लेती हैं।

पति के द्वारा पानी पिलाया जाता है और अपने व्रत को तोड़ते हैं और चंद्रमा के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हैं। अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए इसी प्रकार करवा चौथ की पूजा की जाती है।

करवा चौथ की कहानी / कथा

एक समय की बात है। सात भाइयों की एक बहन थी, जिसका नाम था वीरवती। वह सात भाइयों में एकलौती थी, इसीलिए वह सभी भाइयों को बहुत ही प्रिय थी। उसकी शादी के पश्चात पहला करवा चौथ का व्रत पड़ा। पहला होने की वजह से उसका यह व्रत माता पिता के घर में ही मनाया गया। परंतु वीरवती को यह ज्ञात नहीं था कि यह व्रत कठिन होता है।

इसके पश्चात जब वीरगति को भूख और प्यास तड़पाने लगी। तब वह बाहर जाकर इधर उधर चांद को ढूंढने लगी। परंतु उसे चांद नहीं दिखा। वीरवती को देख उसके भाई विचलित हो उठे, जिसकी वजह से उन्होंने पीपल के पेड़ पर छाया बनाई और ऐसा प्रतीत किया कि मानो चांद निकल आया।

अपनी बहन को कहा कि चांद निकल आया है। पूजा करके व्रत खोल लो, परंतु उनकी भाभियों ने मना किया कहा कि चांद नहीं निकला है। परंतु वह नहीं मानी और चांद की पूजा कर ली और खाना खाने बैठ गई।

जैसे ही वह खाना खाने बैठी, पहला निवाला लेते ही उनके सेवकों ने आकर उन्हें यह सूचना दी कि उनके पति की मृत्यु हो गई है। जैसे ही उन्होंने यह सूचना सुनी वह परेशान हो गई और रोने लगी जब रात को रोते रोते सो गई।

तब सपने में देवी प्रकट हुई और उन्होंने कहा कि अगर तुम पूरी लगन और श्रद्धा के साथ करवा चौथ का व्रत रखोगे तो तुम्हारा पति जी जाएगा। तत्पश्चात वीरवती द्वारा वह व्रत पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ रखा गया। इससे यम भी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने प्रसन्न होकर उसके पति को जीवनदान दिया।

इस कहानी को करवा चौथ के दिन सुना जाता है और हमें यह बताया जाता है कि अगर हम करवा चौथ का व्रत रखते हैं तो उसे पूरी लगन और श्रद्धा के साथ रखना चाहिए अन्यथा इसका फल अच्छा नहीं होता है।

निष्कर्ष

हिंदुओं के प्रतीक त्योहारों में से करवा चौथ भी बहुत ही प्रसिद्ध त्योहार है। इसे बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। सुहागिन अपने पति की लंबी आयु के लिए इस व्रत को बहुत ही श्रद्धा के साथ पूर्ण करती हैं। बाजारों में बहुत ही रौनक होती है।

अंतिम शब्द

आज हमने इस लेख में आपको करवा चौथ पर निबंध (Karva Chauth Per Nibandh) के बारे में महत्वपूर्ण बातें बताई हैं, जो कि एक व्रत को सफल बनाने के लिए होती हैं। आशा करते हैं कि आपको यह लेख पसंद आया होगा। अगर आपको इससे संबंधित कोई भी जानकारी चाहिए तो आप कमेंट बॉक्स में कमेंट कर सकते हैं।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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