Essay on Golden Temple in Hindi: स्वर्ण मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जिसमें सिख धर्म का पालन करने वाले लोगों के द्वारा काफी अहमियत दी जाती है। इस गुरुद्वारे की ख्याति का कारण सोने की बनावट और सफेद संगमरमर पर खूबसूरत कलाकृति है।
दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम आप सभी लोगों को स्वर्ण मंदिर पर निबंध के विषय में ही बताने वाले हैं। यदि आप स्वर्ण मंदिर पर निबंध जानना चाहते हैं, तो हमारे इस लेख के साथ अंत तक अवश्य बने रहे।
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स्वर्ण मंदिर पर निबंध | Essay on Golden Temple in Hindi
स्वर्ण मंदिर पर निबंध (250 शब्द)
गोल्डन टेंपल या स्वर्ण मंदिर भारत के सबसे प्रचलित पर्यटन स्थलों में से एक है। यह एक प्रचलित सिख धर्म का पालन करने वाले लोगों के लिए एक धार्मिक स्थल है। हर रोज इस धार्मिक स्थल को देखने और यहां अपनी पूजा अर्चना करने सैकड़ों लोगों की भीड़ जुटती है।
इसे श्री हरमंदिर साहिब कहते हैं। कई जगहों पर इसे दरबार साहिब या स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर पंजाब के अमृतसर नाम के शहर में स्थित है। इस मंदिर को सिखों के चौथे गुरु श्री रामदास जी ने स्थापित किया था और वहां एक सरोवर का निर्माण किया था, जिसका नाम अमृतसर रखा था। बाद में उस सरोवर के नाम पर चारों तरफ एक शहर बसा और उसे अमृतसर के नाम से ही प्रचलित कर दिया गया।
अगर हम स्वर्ण मंदिर के इतिहास की बात करें तो इसमें आपको सिखों का बलिदान और अपने धर्म के प्रति सच्ची निष्ठा नजर आएगी। इस मंदिर की नीव सिखों के चौथे गुरु श्री रामदास जी ने रखी थी। आगे चलकर इस गुरुद्वारे का पूरा काम लाहौर के एक सूफी गुरु मियां मीर ने 1588 में करवाई थी।
कई बार धर्म युद्ध में सिखों के इस गुरुद्वारे को नष्ट भी किया गया। मगर भक्तों की सच्ची निष्ठा ने इस गुरुद्वारे को दोबारा खड़ा किया और हर बार इसे पहले से और ज्यादा खूबसूरत बनाया। आज इस गुरुद्वारे की बाहरी हिस्से को सोने का बनाया गया है जिस वजह से इस गुरुद्वारे ने पूरे विश्व भर में अपनी प्रचलिता हासिल की है।
सिख धर्म में गुरुद्वारे की बड़ी अहम भूमिका रखी गई है। सिख धर्म के लोग अपने जीवन में होने वाले सभी काम में गुरुद्वारा जाते है। शादी-ब्याह जैसे पावन अवसर पर वे केवल गुरुद्वारे में पूजा करने के बाद ही अपने कार्य को सफल मानते है।
केवल स्वर्ण मंदिर की नहीं सिखों ने एक से एक गुरुद्वारे में विभिन्न स्थानों पर बनाए है और हर एक गुरुद्वारा इन के प्रचलित महागुरु गुरु नानक जी को अर्पण है। इस प्रसिद्ध गुरुद्वारे में विश्व का सबसे बड़ा लंगर लगता है और भारत ही नहीं विश्व भर से श्रद्धालु इस गुरुद्वारे में अपनी पूजा अर्चना करने के बाद भोग ग्रहण करते हैं।
स्वर्ण मंदिर पर निबंध (500 शब्द)
जब भी हम सिखों की बात करते हैं तो सबसे पहले हमारे मन में स्वर्ण मंदिर की तस्वीर आती है। पूरे विश्व में सोने का बना यह मंदिर अपनी ख्याति बिखेर रहा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि सबसे पहले इस गुरुद्वारे को सोने का नहीं बनाया गया था कहीं बाहर विभिन्न धर्म युद्ध में नष्ट होने के बाद भक्तों की सच्ची निष्ठा ने इसे पहले से और बेहतर बनाने के प्रयास में सोने का बनाया।
स्वर्ण मंदिर भारत के पंजाब राज्य में अमृतसर नाम के शहर में स्थित है। आपको बता दें कि इस शहर का नाम सिक्खों के चौथे गुरू रामदास जी के द्वारा बनाए गए अमृतसर सरोवर के नाम पर रखा गया है।
स्वर्ण मंदिर को श्री हरीमंदिर साहिब भी कहते है। इसे 15वी सदी में लाहौर के सूफी धर्मगुरु मियां मीर के द्वारा बनाया गया था, जब उन्हें सिक्खों के चौथे गुरु रामदास जी के द्वारा आदेश मिला था। यह एक प्रसिद्ध गुरुद्वारा है जो अपनी सुंदरता और सोने की बनावट की वजह से पूरे विश्व भर में प्रचलित है।
सोने के मंदिर में चारों और दरवाजे रखे गए हैं, जो इस बात को प्रमाणित करते हैं कि आप सिख धर्म के मंदिर में किसी भी दिशा से और किसी भी धर्म के व्यक्ति के रूप में आ सकते हैं।
इस गुरुद्वारे को आज से कई साल पहले 1588 में लाहौर के सूफी गुरु मियां मीर के द्वारा बनाया गया था जबकि इस गुरुद्वारे की सिखों के चौथे गुरु रामदास जी द्वारा रखी गई थी। इस मंदिर को जिस स्थान पर बनाया जाना था उस स्थान पर राम दास जी ने एक सरोवर का निर्माण किया था जिसका नाम अमृतसर रखा गया था।
आगे चलकर उनके द्वारा बनाए गए इस गुरुद्वारे को पूरे विश्व में ख्याति मिली, जिस वजह से लोगों का मन भी इस कदर वहां आया कि सरोवर पर बसे इस स्वर्ण मंदिर के चारों ओर एक शहर बस गया, जिसे आज हम भारत के अमृतसर शहर के रूप में जानते है। 1588 में इस गुरुद्वारे को बनाने का काम शुरू किया गया था। 1601 इसवी में गुरुद्वारा बनकर तैयार हुआ था। इस मंदिर को बनाने के लिए जमीन मुगल सम्राट अकबर रक्त से खरीदा गया था।
यह एक प्रसिद्ध स्थल है जहां लगभग हर सिख धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति एक बार जाना जाता है। इस गुरुद्वारे में हर साल 40 लाख से ज्यादा लोग आते है और विभिन्न तरीके से पूजा-पाठ करते है। मुगल सम्राट के जमाने से लेकर आज तक स्वर्ण मंदिर की प्रतिभा कम नहीं हुई है और सभी लोग इस मंदिर के दीवाने हैं।
सरकार इस तरह के पर्यटन स्थल के कीमत को अच्छे से समझती है। इस वजह से इस तरह के लोग को और भी खूबसूरत बनाने का प्रयास कर रही है। स्वर्ण मंदिर को विभिन्न प्रकार के दान दक्षिणाए भी मिलती है, जिसके दम पर यह गुरुद्वारा अपने आप को दिन पर दिन और भी खूबसूरत बनाता जा रहा है।
स्वर्ण मंदिर पर निबंध (850 शब्द)
प्रस्तावना
स्वर्ण मंदिर का निर्माण करने की नींव 1588 में सिक्खों के चौथे गुरू रामदास जी द्वारा रखी गई थी। इस मंदिर का निर्माण 1601 में खत्म हुआ था और आज के दिन यह मंदिर है सिख धर्म पालन करने वाले लोगों के लिए सबसे पवित्र स्थल है। हर साल इस गुरुद्वारे में 40 लाख से 50 लाख पर्यटन आते है।
सभी गुरुद्वारों में स्वर्ण मंदिर सबसे अहम भूमिका रखता है। इस गुरुद्वारे को श्री हरीमंदिर साहिब के नाम से भी जानते हैं। इसके अलावा बहुत सारे लोग इसे साहिब दरबार भी कहते हैं। इस गुरुद्वारे को देखने के लिए ना केवल सीख बल्कि विभिन्न धर्म के लोगों की भीड़ उमड़ती है। यह हम गुरुद्वारा भारत के पंजाब राज्य के अमृतसर शहर में स्थित है।
कैसे बना स्वर्ण मंदिर?
आज स्वर्ण मंदिर को भारत के कुछ सबसे प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों में से एक माना जाता है। अगर हम इस के इतिहास पर गौर करें तो आपको पता चलेगा कि शुरुआत में इस मंदिर को सोने का नहीं बनाया गया था। यह एक साधारण गुरुद्वारा था जिसे सिक्खों के चौथे गुरू रामदास जी द्वारा शुरू किया गया था।
बाद में इस गुरुद्वारे पर विभिन्न धर्म युद्ध में कई बार आक्रमण किया गया। हर बार यह गुरुद्वारा टूटा मगर भक्तों की सच्ची श्रद्धा ने इससे पहले से और बेहतर बना कर खड़ा किया। हर बार खुद को पहले से बेहतर बनाने की होड़ ने इस गुरुद्वारे को सोने का बनाया जिस वजह से गुरुद्वारे ने अपनी ख्याति विश्व भर में हासिल की।
इस गुरुद्वारे को बनाने के लिए 1588 में सिखों के चौथे गुरू रामदास जी ने नींव रखी थी। आगे चलकर इस काम को आगे बढ़ाया। लाहौर के सूफी गुरु मियां मीर ने उन्होंने इस गुरुद्वारे के कार्य को 1601 ईसवी में खत्म करवाया। जब यह गुरुद्वारा बनने जा रहा था तो इसको जमीन को उस जमाने के राजा मुगल सम्राट अकबर से खरीदा गया था।
जहां इस गुरुद्वारे को बनाए जाने के बारे में विचार किया जा रहा था, वहां सिखों के चौथे गुरु रामदास जी ने एक सरोवर का काम करवाया था, जिसका नाम अमृतसर रखा गया था।
आगे चलकर कुछ सरोवर के पास गुरुद्वारे को बनाया गया और उस गुरुद्वारे के चारों और शहर बसे जिस शहर का नाम अमृतसर रख दिया गया जिसे आप भारत के पंजाब राज्य में पाएंगे। जब 1601 इसवी में या गुरुद्वारा बनकर तैयार हुआ तो इस बार कई बार धर्म के लोगों के द्वारा आक्रमण किया गया और गुरुद्वारे को नष्ट करने का प्रयास किया गया।
हर बार जब यह गुरुद्वारा किसी धर्म युद्ध है नष्ट हुआ तो भक्तों की सच्ची निष्ठा ने इसे पहले से और बेहतर बना कर खड़ा किया। इस प्रक्रिया में आगे बढ़ते बढ़ते या गुरुद्वारा धीरे-धीरे सोने का हो गया। आज स्वर्ण मंदिर का आगे का हिस्सा लगभग पूरी तरह सोने का बन चुका है और इसमें सफेद संगमरमर से कारीगरी की गई है जो इसकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ाता है।
क्यों है स्वर्ण मंदिर इतना प्रचलित?
आज के समय में रोजाना कई हजार की भीड़ स्वर्ण मंदिर में उमड़ती है 1 साल की अगर बात करें तो 40 लाख से 50 लाख लोग स्वर्ण मंदिर में पूजा पाठ करने आते हैं।
इसके अलावा स्वर्ण मंदिर में दुनिया का सबसे बड़ा लंगर लगता है, जहां कई लाख की संख्या में लोग आकर भोजन ग्रहण करते हैं। आप गुरुद्वारे में लगे लंगर में जाकर खाना खा सकते है, वहां किसी भी धर्म के लोग को खाना खिलाया जाता है। अपने प्रसिद्ध धार्मिक स्थल और सुंदरता की वजह से स्वर्ण मंदिर ने पूरे विश्व में ख्याति हासिल की है।
हमें कब जाना चाहिए स्वर्ण मंदिर?
अगर आप सिख धर्म से ताल्लुक रखते हैं तो आपको अपने जीवन में एक बार स्वर्ण मंदिर अवश्य जाना चाहिए। स्वर्ण मंदिर में जाने के लिए हर श्रद्धालु जीवन भर इंतजार करता है। सिख धर्म में ऐसा माना जाता है कि अपने जीवन में एक बार श्री हरिमंदिर साहिब जाने से उनका उद्धार होता है और वे अपने जीवन में किए पाप कर्मों से शांति पा सकते है।
निष्कर्ष
अगर आप किसी और धर्म से संबंध रखते हैं तो भी आप स्वर्ण मंदिर देखने जा सकते हैं वह एक खूबसूरत पर्यटक स्थल है जहां हर साल लाखों की तादाद में लोग आते हैं। आपको स्वर्ण मंदिर देखने के लिए साल में कोई भी समय सही रहेगा क्योंकि यहां सालों भर भीड़ एक समान ही रहती है।
स्वर्ण मंदिर केवल सिखों के लिए ही नहीं बल्कि सभी धर्मों के लिए अपने दरवाजे खोल कर रखा है आपको विभिन्न धार्मिक स्थलों पर घूमना चाहिए इससे आपको विभिन्न प्रकार का ज्ञान होता है।
अंतिम शब्द
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