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बतुकम्मा त्योहार पर निबंध

Essay on Bathukamma Festivals In Hindi : भारत देश में रहने वाले अलग-अलग जाति धर्म के लोग अपने संस्कृति के अनुसार अलग-अलग त्योहार को अधिक महत्व देते हैं। भारत जहां पर बहुत सारे त्यौहार अलग-अलग समुदाय द्वारा अलग-अलग रूप में मनाया जाता है। हम यहां पर बतुकम्मा त्योहार पर निबंध शेयर कर रहे है। इस निबंध में बतुकम्मा त्योहार के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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बतुकम्मा त्योहार पर निबंध | Essay on Bathukamma Festivals In Hindi

बतुकम्मा त्यौहार पर निबंध (250 शब्द)

भारत देश में अनेक धर्म और जाति के लोग होते है, जो अपने संस्कृति के हिसाब से त्यौहार मानते है अथवा मानते है।उन्हीं में से एक है बतुकम्मा। बतुकम्मा त्यौहार को बठुकम्मा भी कहा जाता है। यह तेलंगाना का एक क्षेत्रीय त्यौहार है, जो नीचे वर्ग की महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। यह त्योहार पूरे तेलंगाना राज्य में 9 दिन तक मनाया जाता है। इसे फूलों का त्योहार भी कहा जाता है। इस पूजा में अनेक प्रकार और रंग के फूलों का इस्तेमाल किया जाता है। बतुकम्मा त्यौहार यह की संस्कृति और पारंपरिक भावनाओ को दर्शाता है।

इस त्योहार में स्त्री को मान्यता दिया गया है तथा ये स्त्री के सम्मान में मनाया जाने वाला त्यौहार है। इस दिन महिलाएं फूलों के सात परत बनाकर उसमें गोपुरम मंदिर की आकृति बनती है और उसकी पूजा करती है। यह पूजा महालय अमावस्या में मनाया जाता है। और नवरात्रि के अष्टमी में खत्म होता है। बतुकम्मा सितंबर और अक्टूबर के महीने में आता है। हजारों साल पुराना इस त्योहार में मां पार्वती की पूजा की जाती है। हमारे भारत देश में कई सारे ऐसे त्योहार है जो हमारी संस्कृति को दिखाती है, बतुकमा भी उन्हीं में से एक है।

बतुकम्म्मा का अर्थ होता है देवी मां ज़िंदा है और स्त्री उनकी पूजा करती है। महागौरी के रूप में पूजने वाला यह त्योहार तेलंगाना की हर महिला करती है। प्रकृति को धन्यवाद देते हुए तरह तरह के फूलों के साथ इसकी पूजा समप्त  होती है। यह त्योहार की मान्यता पूरे राज्य में है।

बतुकम्मा त्योहार पर निबंध (800 शब्द)

प्रस्तावना

भारत देश विविधता में एकता वाला देश हैं। यहां पर हर जाति, हर वर्ग यहां तक कि हर राज्य के भी अपने अलग खास त्योहार होते हैं। भारत देश त्यौहारो का मेला हैं। यहां साल में हर महीने के हर दिन कोई न कोई त्योहार मनाया जाता हैं। बतुकम्मा त्योहार भी उन त्योहारों में से एक हैं।

यह त्योहार तेलंगाना में मनाया जाता हैं। यह त्यौहार तेलंगाना की पिछड़े वर्ग की महिलाओं के द्वारा उत्साह पूर्वक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं। इसमें कई तरह के फूलों का उपयोग किया जाता हैं। इसलिए इसे रंगों का रीजनल त्यौहार कहा जाता हैं। पूरे तेलंगाना क्षेत्र में भठुकम्मा का त्यौहार 9 दिनों तक मनाया जाता हैं। यह त्यौहार तेलंगाना की संस्कृति व सभ्यता को दर्शाता हैं।

इस फूलों के त्यौहार में फूलों से कई प्रकार की अलग-अलग आकृतियां बनाई जाती हैं। इस में उपयोग किए जाने वाले फुल आयुर्वेदिक दृष्टि से भी उपयोगी होते हैं। फूलों से सात परत के गोपुरम मंदिर का निर्माण किया जाता हैं। तेलुगु में बतुकम्मा का मतलब होता हैं की देवी मां जिंदा हैं। इस दिन बतुकम्मा को माता गौरी के रूप में पूजा जाता हैं। यह त्योहार स्त्री के सम्मान के लिए मनाया जाता हैं।

बतुकम्मा त्यौहार कब मनाया जाता है

हिंदू पंचांग के अनुसार बतुकम्मा पर्व श्राद्ध पक्ष, भादो की अमावस्या जिसे महालय की अमस्या भी कहा जाता हैं। यह इस दिन से प्रारंभ होता हैं और नवरात्रि की अष्टमी के दिन यहां समाप्त होता हैं। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार भठुकम्मा सितंबर -अक्टूबर में मनाया जाता हैं। तेलंगाना में कहा जाता है, कि यहां मानसून के अंत में शुरू होकर शीत ऋतु की प्रारंभ तक मनाया जाता हैं।

बतुकम्मा त्यौहार हजार साल पुराना हैं। इस पर्व मैं सलोसिया, शैन्ना, मेरीगोल्ड, कमल, कुकुमिस पतियों का उपयोग करके विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनाई जाती हैं।

बतुकम्मा त्यौहार की कहानी

बठुकम्मा त्योहार का इतिहास- वेमुल्लावाड़ा चालुक्य राजा राष्ट्रकुट राजा के उप -सामंत थे। चोल राजा और राष्ट्रकुट के बीज हुए युद्ध में चालुक्य राजा ने राष्ट्रकुट का साथ दिया। 973 ई. मे राष्ट्रकूट राजा के उप -सामंत थेलापुद्धू द्वितीय ने आखिरी राजा खुर्द द्वितीय हरा दिया और अपना आजाद कल्याणी चालुक्य राज्य का निर्माण किया।

वर्तमान का तेलंगाना राज्य यही राज्य हैं। वैमुलावाडा के साम्राज्य के समय राजा राजेश्वर का मंदिर बहुत ज्यादा प्रसिद्ध था। तेलंगाना के लोग इनकी बहुत ज्यादा पूजा आराधना करते थे। चोल के राजा परान्ताका सुंदरा राष्ट्रकूट के राजा के साथ युद्ध से घबरा गए थे। तब किसी ने बोला राजा राजेश्वर उनकी मदद कर सकते हैं।

राजा चोल राजा राजेश्वरी के भक्त बन गए उन्होंने अपने बेटे का नाम राजा राजा रखा। राजा राजा ने 985 से 1014 ई. तक राज्य किया। उनके बेटे राजेंद्र चोल जो उनके सेनापति थे सत्यासय ने हमला करके उसको जीत लिया और राजेश्वर जी का मंदिर तुडवा दिया। एक बड़ी शिवलिंग उपहार के तौर पर अपने पिता को भेंट की।

1006 ई. राजा राजा चोला ने इस शिवलिंग के लिए बड़े मंदिर का निर्माण करवाया। 1010 में ब्रिहदेश्वरा नाम से मंदिर की स्थापना होती हैं। वेमुलावाड़ा से शिवलिंग को तन्जवुरु मैं स्थापित कर दिया गया। जिससे कि तेलंगाना के लोग बहुत दुखी हुए। तेलंगाना छोड़ने के बाद पार्वती के दुख को कम करने के लिए बतुकम्मा की शुरुआत हुई।
जिसमें फूलों से एक बड़ी पर्वत की आकृति बनाई जाती हैं। इसके ऊपर सबसे पहले हल्दी से गौरम्मा बनाकर रखा जाता हैं। इस दौरान नाच गाना होता हैं। शिव के पार्वती को खुश करने के लिए यह त्यौहार हजार साल से मनाया जा रहा हैं। तेलंगाना में बड़ी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं।

बतुकम्मा त्यौहार का महत्व

इस पर्व के पीछे खास उद्देश्य हैं। वर्षा ऋतु में सभी जगह पानी आ जाता हैं जैसे तालाब ,कुएं,नदिया आदि सभी पानी से भर जाते हैं। पृथ्वी भी गीली सी हो जाती हैं और फूल खिलने लगते हैं। फूलों के कारण प्रकृति में बाहर आती हैं इसलिए प्रकृति को धन्यवाद करने के लिए तरह-तरह के फूलों के साथ इस त्यौहार को मनाया जाता हैं। इस दिन वहां के सांस्कृतिक लोक गीत गाए जाते हैं। यह त्यौहार बहुत ही ज्यादा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं।

निष्कर्ष

भारत में अनेक जाति धर्म के लोग निवास करते हैं। सभी जाति धर्म के लोग अलग-अलग देवता की पूजा करते हैं और अलग-अलग त्योहार को अलग-अलग ढंग से मनाते हैं। तेलंगाना में बतुकम्मा त्योहार काफी लोकप्रियता के साथ मनाया जाता है। तेलंगाना पर यह त्यौहार वर्षा ऋतु के दौरान बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

अंतिम शब्द

आज के आर्टिकल में हमने बतुकम्मा त्योहार पर निबंध ( Essay on Bathukamma Festivals In Hindi) के बारे में संपूर्ण जानकारी आप तक पहुंचाई है। हमें उम्मीद है, कि हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी। यदि किसी व्यक्ति को आर्टिकल से संबंधित कोई भी सवाल यह सुझाव है। तो वह हमें कमेंट के माध्यम से बता सकता है।

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