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बिना पटाखों की दिवाली पर निबंध

भारत के सभी त्योहारों में दिवाली को एक सर्वोत्तम त्योहार के रूप में देखा जाता है, जिसे हिंदू धर्म के लोग हर साल अक्टूबर के महीने में गणेश और पार्वती भगवान का पूजा करके मनाते है।

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Image : Diwali Without Crackers Essay in Hindi

हम यहां पर बिना पटाखों की दिवाली पर निबंध शेयर कर रहे है। बिना पटाखों की दिवाली पर निबंध के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेयर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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बिना पटाखों की दिवाली पर निबंध 250 शब्द (Diwali Without Crackers Essay in Hindi)

दिवाली एक ऐसा त्यौहार है, जिस दिन लोग गणेश और पार्वती भगवान की पूजा करते हैं और घर को साफ सुथरा करके रोशनी से सजाने का प्रयास करते हैं। इस दिन को हर साल ठंडी के महीने अक्टूबर या नवम्बर में मनाया जाता है।

इस दिन लोग दिए मोमबत्ती और विभिन्न प्रकार के लाइट से अपने घर को सजाते हैं ताकि रोशनी चारों ओर बिखेरी जा सके। दिवाली के इस त्यौहार को पहले पटाखों से नहीं मनाया जाता था।

इस त्यौहार की मान्यता है कि आज ही के दिन भगवान राम अपने घर अयोध्या लौटे थे, इस वजह से लोग इस दिन को काफी हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। जिस रफ्तार से हमने तरक्की की इंसानी जीवन को और सरल बनाने के लिए हमने विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के तरीके ढूंढे।

इस वजह से त्योहार को मनोरंजक बनाने के लिए पटाखों का खोज किया गया। इस त्यौहार में बच्चे हो या बड़े पटाखे फोड़ने के शौकीन होते हैं। मगर हमें इस बात को समझना चाहिए कि हम अपने पर्यावरण की वजह से जीवित है और पटाखों की वजह से पर्यावरण दूषित होता है।

आजकल जितने भी पटाखे आप बाजार में खरीदने जा रहे हैं, सब में बारूद और विभिन्न प्रकार के रसायन मिले होते हैं। जिसमें से निकला दुआ इंसानी शरीर के लिए तो हानिकारक होता ही है। साथ में पेड़ पौधे और हमारे वातावरण को भी दूषित करता है, जिससे बीमारियों की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है।

हालांकि आजकल इको फ्रेंडली पटाखे भी आ चुके हैं अर्थात ऐसे पटाखे जिनमें से निकला धुँआ आपकी सेहत को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाता।

हमें इस बात का प्रयास करना चाहिए कि हम दिवाली को एक रोशनी का त्योहार ही माने और इसे हर्षोल्लास के साथ मनाएं। हम इसे कभी भी पटाखों के साथ मना कर अपने आसपास के पर्यावरण को दूषित ना करें।

बिना पटाखों की दिवाली पर निबंध (500 शब्द)

हर साल अक्टूबर के महीने में जब लगभग भारत के सभी क्षेत्र एक पौराणिक कथाओं पर आधारित एक प्राचीन प्रचलित त्यौहार है, जिसे लोग रोशनी के त्योहार के रूप में जानते हैं। इसे हिंदू धर्म का पालन करने वाले सभी लोग पूरे विश्व में मनाते हैं।

इस दिन हम अपने घर को साफ सुथरा करके रोशनी से सजाते हैं और मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के पटाखों को भी फोड़ते हैं। हालांकि दिवाली में पटाखे फोड़ने की परंपरा बीते कुछ दशकों में आई है।

यह त्यौहार हिंदू ग्रंथों के मुताबिक बहुत ही पुराना है। इससे तब मनाया गया था जब भगवान श्री राम 14 वर्ष का वनवास काटकर अपने घर वापस लौटे थे। तब से लेकर आज तक हिंदू धर्म के सभी लोग इस त्यौहार को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।

इस त्यौहार के दिन विभिन्न प्रकार के नए-नए कपड़े पहन कर भगवान गणेश और लक्ष्मी की पूजा करते हैं। माना जाता है कि आज के दिन लक्ष्मी की पूजा करने से घर में धन और सुख-शांति बनी रहती है।

बीते कुछ दशकों में हमने पटाखे की खोज की और उसमें से निकलने वाली चिंगारियां और आवाज बच्चों और बूढ़ों को आकर्षित करती है। इस वजह से हर कोई इस तरह के पटाखे को छोड़कर अपनी खुशी जाहिर करने की कोशिश करता है।

इस बात में कोई बुराई नहीं है साथ ही 1 दिन पटाखे फोड़ने से हमारा पर्यावरण विलुप्त नहीं हो जाएगा। मगर इंसानियत तरक्की ने पर्यावरण को पहले ही बहुत जन जोड़ कर रख दिया है। हमारे द्वारा बनाए गए विभिन्न यंत्र जिसमें से रोजाना विभिन्न प्रकार के प्रदूषण होते हैं, वह हमारे पर्यावरण को बहुत दूषित करते है।

इसके बाद अगर हम एक दिन ऐसा चुने जिस दिन पर्यावरण को जमकर तकलीफ दी जाए तो यह पर्यावरण और यहां मौजूद पेड़-पौधों के लिए एक बहुत बड़ी बेईमानी होगी। हमें पर्यावरण और इसके फल फूल धूप पानी के लिए शुक्रिया द व्यक्त करना चाहिए।

हालांकि अब लोग धीरे-धीरे जागरुक हो रहे हैं और त्यौहार में किसी भी प्रकार के पेड़ पौधों को नुकसान पहुंचाने वाले नियम का पालन करने से बच रहे है।

इस जागरूकता ने ही बिना पटाखे की दिवाली मनाने की एक मुहिम शुरू की, जिसमें हर किसी को बताया कि बिना पटाखों के भी दिवाली मनाई जा सकती है। दिवाली एक खुशियों का त्यौहार है, जिस दिन हमें रोशनी को बढ़ावा देना चाहिए और अपने सभी परिवार के साथ मिलकर इस त्योहार को हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए।

अगर हम दिवाली में पटाखे फोड़ना कम नहीं करेंगे और इसी प्रकार पर्यावरण को प्रदूषण के हवाले करते रहेंगे। साथ ही अलग-अलग धर्म के लोग अगर रोजाना विभिन्न प्रकार के त्यौहार पटाखे फोड़ कर मनाने लगे तो पर्यावरण एक दिन विलुप्त हो जाएगा और यह इंसानी सभ्यता के खात्मा का कारण बनेगा।

इस बात को समझते हुए बिना पटाखे की दिवाली मनाने की मुहिम चल रही है। हम उम्मीद करते हैं कि पटाखों की अहमियत कोई खास नहीं है। दिवाली में इस वजह से आप इस बात को समझे होंगे कि बिना पटाखों की दिवाली मनाई जा सकती है।

बिना पटाखों की दिवाली पर निबंध (850 शब्द)

प्रस्तावना

दिवाली एक ऐसा त्यौहार है, जिसे रोशनी का त्योहार कहा जाता है। हर साल अक्टूबर के महीने में इस त्यौहार को मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग अपने घर को साफ करके उसे सजाते हैं। नए-नए कपड़े पहनकर गणेश और पार्वती की पूजा करते हैं। आजकल लोग हर चीज में मनोरंजन ढूंढ रहे हैं।

पुराने जमाने में पूजा करना ही एक मनोरंजन हुआ करता था। मगर आज हमें पूजा-पाठ मनोरंजक नहीं लगता है। इस वजह से पटाखों का खोज किया गया और इस त्यौहार को मनोरंजक बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के पटाखे बच्चे और बड़ों को दिए गए। इसका फायदा यह हुआ कि हर कोई पटाखे की तरफ इस कदर आकर्षित हुआ है कि पर्यावरण को भूल गए।

त्यौहार इस तरह मनाना चाहिए, जिसमें इस तरह के कोई काम ना हो, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचे। कई सालों से इस बारे आवरण और पेड़-पौधों ने इंसानी सभ्यता को इस धरती पर बनाए रखने का काम किया है। आखिर यह त्यौहार भी पारंपरिक और पौराणिक कथाओं से मेल रखती है।

इस त्यौहार के खातिर हमें अपने पर्यावरण की इज्जत करनी चाहिए। हम इस बात को समझते हैं कि आप अपने पर्यावरण की इज्जत करते हैं। बीते कुछ दशकों में इंसानी सभ्यता ने इतनी तरक्की कर ली है कि आज दिन पटाखों का इस्तेमाल किया जा रहा है।

उसमें विभिन्न प्रकार के रसायन और बारूद मिलाए जाते हैं, जिनमें से निकला दुआ इंसानी शरीर को काफी हद तक नहीं छोड़ कर रख देता है और पर्यावरण के सभी पेड़ पौधों के लिए भी काफी हानिकारक होता है।

पटाखे दिवाली से किस तरह जुड़ गए?

जैसा कि आपको पता होगा दिवाली भारत के कुछ और पारंपरिक त्यौहारों में से एक है। इस त्यौहार को कई सदी से मनाया जा रहा है, जिसका मूल उद्देश्य भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी और बुराई की अच्छाई पर जीत को मनाना है।

लोग इस त्यौहार को काफी पसंद किया करते हैं और इस दिन अपने घर को सजा कर दिए और मोमबत्ती लगाते है ताकि उनका घर और भी खूबसूरत लग सके।

आज से कई वर्ष पहले पटाखे नहीं हुआ करते थे। उस दिन लोगों के इस त्यौहार को अपने परिवार के साथ हंसी खुशी से पूजा पाठ करके और अपने घर को सजा कर मनाया करते थे। मगर जिस तरह इंसान ने तरक्की कि उसे मनोरंजन की लालसा बढ़ने लगी।

इस वजह से उसने पटाखे की खोज की। धीरे-धीरे दिवाली के दिन पटाखे फोड़ने की एक परंपरा बना दी गई। शुरुआत में इस परंपरा से कोई खास नुकसान नहीं होता था। मगर जिस कदर इंसानी सभ्यता ने तरक्की की वैसे वैसे हमने ऐसे यंत्र बनाए जिनके इस्तेमाल से रोजाना पर्यावरण को काफी नुकसान होता है।

अब इतने नुकसान के बाद हम एक दिन ऐसा मनाते हैं, जिस दिन पटाखे फोड़कर हम अपने पर्यावरण को थोड़ा और अधिक दूषित करते हैं।

हमें इस बात को समझना चाहिए कि यह पर्यावरण और पेड़ पौधे हमें खुशी और जीवन देने के लिए बनाए गए हैं। हम इनके प्रति अगर आदर और सम्मान नहीं दे सकते तो हमें इन्हें पटाखों के धोनी में झोंकने का कोई अधिकार नहीं है।

लोग धीरे-धीरे इस बात से जागरूक भी हो रहे हैं और इस बात को समझ रहे हैं कि पर्यावरण को पटाखे में से निकलने वाले दोनों से काफी नुकसान होता है।

पटाखे क्यों नहीं फोड़ने चाहिए?

अगर आप यह सोच रहे हैं कि 1 दिन पटाखा फोड़ने से क्या हो जाएगा, तो बता दें कि इससे कुछ खास तकलीफ नहीं होगी ऐसा नहीं है कि 1 दिन पटाखा फोड़ने से हमारा पर्यावरण नष्ट ही हो जाएगा।

मगर हमें इस बात को समझना चाहिए कि जब इंसानी सभ्यता ने इतनी तरक्की की तो उसने ऐसे ऐसे यंत्र बनाए, जो रोजाना पर्यावरण को तकलीफ पहुंचाती है।

अब हमें एक दिन ऐसा चुनना चाहिए, जिस दिन हम इस पर्यावरण को सम्मान दे सके, ना कि दीवाली जैसे दिन को चुनना चाहिए, जिस दिन हम पटाखों के हवाले करके अपने पर्यावरण को और ज्यादा दूषित करें।

आपको यह भी पता होना चाहिए कि जिस पटाखों के प्रति आप इतने ज्यादा आकर्षक हो रहे हैं, उन पटाखों में विभिन्न प्रकार के रसायन और बारूद मिलाए जाते हैं।

जिससे इंसानी शरीर को भी काफी नुकसान होता है कि जिस घर में बूढ़े इंसान रहते हैं उनकी जीवन आयु को और कम कर देता है। पटाखों से निकलने वाले धुंए करीब 100 सिगरेट के जलने के बराबर होते हैं।

इको फ्रेंडली पटाखे से मनाए दिवाली

हम जानते हैं कि दीवाली में पटाखे फोड़ने की परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। इसे अचानक के किसी एक दिवाली बंद करना बहुत ही मुश्किल है। साथ ही बच्चों को पटाकर बहुत पसंद आते हैं। इस वजह से बच्चों की जिद पर काबू नहीं पाया जा सकता।

मगर आपको बता दें कि आजकल इंसानी सभ्यता नहीं इतनी ज्यादा तरक्की कर ली है कि अपने आप को स्वस्थ रखने के लिए और अब मस्ती मजाक करने के लिए भी पटाखों का खोज कर लिया है।

अर्थात हमारे बीच इको फ्रेंडली पटाखे आ चुके हैं। एक ऐसा पटाखा जिसमें से निकला हुआ धुंआ ना तो आपके शरीर को कोई नुकसान पहुंचाएगा ना ही हमारे पर्यावरण को।

वैसे तो हमें कोशिश करना चाहिए कि हम बिना पटाखे की ही दिवाली मना लें और अपने घर परिवार के साथ अच्छे पकवान और वक्त बिताकर दिवाली का त्यौहार मनाना चाहिए।

अपने बच्चों के लिए इको फ्रेंडली पटाखे खरीदें, जिस पटाखें से धुँआ कम निकले और अगर निकलेगा भी तो इस प्रकार का होगा’ जिससे पर्यावरण और शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा।

निष्कर्ष

बिना पटाखों की दिवाली मनाना आवश्यक है। यह एक तरह से हमारे पर्यावरण को सम्मानित भी करता है और दिखाता है कि आप एक जागरूक इंसान हैं, जो पर्यावरण की चिंता करते है। मगर इको फ्रेंडली पटाखे भी एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं।

अंतिम शब्द

आज के आर्टिकल में हमने बिना पटाखों की दिवाली पर निबंध (Diwali Without Crackers Essay in Hindi) के बारे में बात की है। मुझे पूरी उम्मीद है कि हमारे द्वारा लिखा गया यह निबन्ध आपको पसंद आया होगा। इसे आगे शेयर जरूर करें।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।