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दिवाली पर मां लक्ष्मी के साथ गणेशजी की पूजा क्यों होती है?

Diwali Par Laxmi Ganesh Puja: दीवाली के दिन लक्ष्मी के साथ गणेशजी की पूजा की जाती है, जबकि लक्ष्मीजी के साथ विष्णु की पूजा होनी चाहिए। चूंकि दिवाली पूजा में हमारी मुख्य भावना धन एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है।

धन की स्वामिनी लक्ष्मी को ही प्रधानता मिली है। बिना बुद्धि के धन की प्राप्ति निर्थक है और धन, बुद्धि दोनों की प्राप्ति हेतु ही लक्ष्मी पूजन के साथ गणेश पूजन का भी विधान है।

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दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन का महत्व

जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं, माता लक्ष्मी धन की देवी है और माता लक्ष्मी की कृपा से मानव के जीवन में ऐश्वर्य और वैभव की प्राप्ति होती है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि कार्तिक अमावस्या के पावन तिथि दिवाली के दिन माता लक्ष्मी का पूजन करने से धन की देवी लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती है और मानव जन को समृद्धि का आशीर्वाद देती है।

माता लक्ष्मी का जन्मोत्सव दीपावली के दिन 1 दिन पहले आने वाले शरद पूर्णिमा के दिन पड़ता है और इसी दिन सही दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है और माता लक्ष्मी का पूजन भी किया जाता है।

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दिवाली के दिन विघ्नहर्ता गणपति के पूजन का महत्व

हमारे पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विघ्नहर्ता गणेश जी को बुद्धि का देवता कहा जाता है और हिंदू धर्म में पूछा और कर्मकांड गणपति की पूजा के बिना शुरू ही नहीं होता।

ऐसा कहा जाता है कि माता लक्ष्मी के द्वारा समृद्धि का वरदान प्राप्त होने के बाद व्यक्ति को धन संजोए रखने के लिए बुध की आवश्यकता होती है, इसलिए मानव जन भगवान गणपति की पूजा करते हैं।

दीपावली में गणेश लक्ष्मी की पूजा क्यों होती है? (diwali par laxmi ganesh ki puja kyu hoti hai)

कथा – 1

लक्ष्मी के साथ गणेश पूजा की परम्परा के संबंध में अनेक दन्त कथाएं भी प्रचलित हैं। एक दन्तकथा के अनुसार एक राजा ने किसी लकड़हारे को चन्दन का एक जंगल पुरस्कार में दे दिया, किन्तु उस लकड़हारे में चन्दन के गुण एवं महत्त्व को समझने की बुद्धि नहीं थी। फलस्वरूप उसने चन्दन के जंगल को काट-काट कर जला डाला और पुनः वह पहले जैसा ही गरीब हो गया।

यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि उस लकड़हारे को धन के रूप में चन्दन का जंगल तो प्राप्त हो गया, लेकिन बुद्धि के अभाव में उसने कीमती चन्दन की लकड़ी को जला डाला। यह देख राजा समझ गया कि बिना बद्धि के धन को नहीं रखा जा सकता। अतः तभी से दिवाली के दिन बुद्धि के दाता गणेश की भी पूजा लक्ष्मी के साथ होने लगी।

कथा – 2

एक अन्य कथा के अनुसार एक बार एक साधु को राजसी सुख भोगने की इच्छा हुई। अपनी इच्छा की पूर्ति हेतु उसने लक्ष्मी को कठोर तपस्या की। कठोर तपस्या के फलस्वरूप लक्ष्मी ने उस साधु को राजसुख भोगने का वरदान दे दिया। वरदान प्राप्त कर साधु राजा के दरबार में पहुंचा और राजा के पास जाकर राजा का राजमुकुट नीचे गिरा दिया।

यह देख राजा क्रोध से कांपने लगा। किन्तु उसी क्षण उस राजमुकुट से एक सर्प निकल कर बाहर चला गया। यह देखकर राजा का क्रोध समाप्त हो गया और प्रसन्नता से उसने साधु को अपना मंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा।

साधु ने राजा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और वह मंत्री बना दिया गया। कुछ दिन बाद उस साधु ने राजमहल में जाकर सबको बाहर निकल जाने का आदेश दिया। चूंकि सभी लोग उस साधु के चमत्कार को देख चुके थे। अत: उसके कहने पर सभी लोग राजमहल से बाहर आ गए तो राजमहल स्वत: गिरकर ध्वस्त हो गया।

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Diwali Par Laxmi Ganesh Puja

इस घटना के बाद तो सम्पूर्ण राज्य व्यवस्था का कार्य उस साधु के इशारे पर ही होने लगा। किन्तु अपने प्रभाव को देखकर साधु को घमण्ड हो गया और वह अपने को सर्वेसर्वा समझने लगा। अपने घमण्ड के वशीभूत होकर एक दिन साधु ने राजमहल के सामने स्थित गणेश की मूर्ति को वहां से हटवा दिया। क्योंकि उसकी दृष्टि में यह मूर्ति राजमहल के सौंदर्य को बिगाड़ रही थी।

साधु को लक्ष्मी जी का स्वप्न

अपने इस घमण्ड में एक दिन साधु ने राजा से कहा कि उसके कुर्ते में सांप है। अतः वह कुर्ता उतार दें। राजा ने पूर्व घटनाओं के आधार पर भरे दरबार में अपना कुर्ता उतार दिया किन्तु उसमें से सांप नहीं निकला। फलस्वरूप राजा बहुत नाराज हुआ और उसने साधु को मंत्री पद से हटाकर जेल में डाल दिया। इस घटना से साधु बहुत दुःखी हुआ और उसने पुन: लक्ष्मी की तपस्या की।

लक्ष्मी ने साधु को स्वप्न दिया कि उसने गणेश की मूर्ति को हटाकर गणेश को नाराज कर दिया है। इसलिए उस पर यह विपत्ति आयी है। क्योंकि गणेश के नाराज होने से उसकी बुद्धि नष्ट हो गई तथा धन या लक्ष्मी के लिए बुद्धि आवश्यक है। अतः जब तुम्हारे पास बुद्धि नहीं रही तो लक्ष्मी भी चली गई। जब साधु ने स्वप्न में यह बात जानी तो उसे अपने किए पर बहुत पश्चाताप हुआ।

जब साधु को अपनी गलती का अहसास हो गया और उसने पश्चाताप किया तो अगले ही दिन राजा ने भी स्वतः जेल में जाकर साधु से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी और उसे जेल से निकाल कर पुनः मंत्री बना दिया। मंत्री बनने पर साधु ने पुनः गणेश की मृर्ति को पूर्ववत स्थापित करवाया।

साथ ही साथ लक्ष्मी की भी मूर्ति स्थापित की और सर्व साधारण को यह बताया कि सुखपूर्वक रहने के लिए ज्ञान एवं समृद्धि दोनों जरूरी। हैं। इसलिए लक्ष्मी एवं गणेश दोनों का पूजन एक साथ करना चाहिए। तभी से लक्ष्मी पूजन के साथ गणेश पूजन की परम्परा कायम हो गई और दीपावली के दिन लक्ष्मी-गणेश की पूजा होनी शुरु हो गई।

निष्कर्ष

हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह दिवाली पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की साथ में पूजा क्यों की जाती है? (lakshmi ganesh puja) जानकारी पसंद आई होगी, इसे आगे शेयर जरूर करें। यदि आपका इससे जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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