Diwali Par Laxmi Ganesh Puja: दीवाली के दिन लक्ष्मी के साथ गणेशजी की पूजा की जाती है, जबकि लक्ष्मीजी के साथ विष्णु की पूजा होनी चाहिए। चूंकि Diwali Par Puja में हमारी मुख्य भावना धन एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है। धन की स्वामिनी लक्ष्मी को ही प्रधानता मिली है। बिना बुद्धि के धन की प्राप्ति निर्थक है और धन, बुद्धि दोनों की प्राप्ति हेतु ही Laxmi Pujan के साथ Ganesh Pujan का भी विधान है।

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दीवाली के दिन लक्ष्मी-गणेश की पूजा का कारण – Diwali Par Laxmi Ganesh Puja
दिवाली पर लक्ष्मी के साथ क्यों पूजे जाते हैं गणेश?
कथा – 1
लक्ष्मी के साथ Ganesh Puja की परम्परा के संबंध में अनेक दन्तकथाएं भी प्रचलित हैं। एक दन्तकथा के अनुसार एक राजा ने किसी लकड़हारे को चन्दन का एक जंगल पुरस्कार में दे दिया, किन्तु उस लकड़हारे में चन्दन के गुण एवं महत्त्व को समझने की बुद्धि नहीं थी। फलस्वरूप उसने चन्दन के जंगल को काट-काट कर जला डाला और पुनः वह पहले जैसा ही गरीब हो गया।
यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि उस लकड़हारे को धन के रूप में चन्दन का जंगल तो प्राप्त हो गया, लेकिन बुद्धि के अभाव में उसने कीमती चन्दन की लकड़ी को जला डाला। यह देख राजा समझ गया कि बिना बद्धि के धन को नहीं रखा जा सकता। अतः तभी से Diwali के दिन बुद्धि के दाता गणेश की भी पूजा लक्ष्मी के साथ होने लगी।
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कथा – 2
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार एक साधु को राजसी सुख भोगने की इच्छा हुई। अपनी इच्छा की पूर्ति हेतु उसने लक्ष्मी को कठोर तपस्या की। कठोर तपस्या के फलस्वरूप लक्ष्मी ने उस साधु को राजसुख भोगने का वरदान दे दिया। वरदान प्राप्त कर साधु राजा के दरबार में पहुंचा और राजा के पास जाकर राजा का राजमुकुट नीचे गिरा दिया। यह देख राजा क्रोध से कांपने लगा। किन्तु उसी क्षण उस राजमुकुट से एक सर्प निकल कर बाहर चला गया। यह देखकर राजा का क्रोध समाप्त हो गया और प्रसन्नता से उसने साधु को अपना मंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा।
साधु ने राजा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और वह मंत्री बना दिया गया। कुछ दिन बाद उस साधु ने राजमहल में जाकर सबको बाहर निकल जाने का आदेश दिया। चूंकि सभी लोग उस साधु के चमत्कार को देख चुके थे। अत: उसके कहने पर सभी लोग राजमहल से बाहर आ गए तो राजमहल स्वत: गिरकर ध्वस्त हो गया।

इस घटना के बाद तो सम्पूर्ण राज्य व्यवस्था का कार्य उस साधु के इशारे पर ही होने लगा। किन्तु अपने प्रभाव को देखकर साधु को घमण्ड हो गया और वह अपने को सर्वेसर्वा समझने लगा। अपने घमण्ड के वशीभूत होकर एक दिन साधु ने राजमहल के सामने स्थित गणेश की मूर्ति को वहां से हटवा दिया। क्योंकि उसकी दृष्टि में यह मूर्ति राजमहल के सौंदर्य को बिगाड़ रही थी।
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साधु को लक्ष्मी जी का स्वप्न
अपने इस घमण्ड में एक दिन साधु ने राजा से कहा कि उसके कुर्ते में सांप है। अतः वह कुर्ता उतार दें। राजा ने पूर्व घटनाओं के आधार पर भरे दरबार में अपना कुर्ता उतार दिया किन्तु उसमें से सांप नहीं निकला। फलस्वरूप राजा बहुत नाराज हुआ और उसने साधु को मंत्री पद से हटाकर जेल में डाल दिया। इस घटना से साधु बहुत दुःखी हुआ और उसने पुन: लक्ष्मी की तपस्या की।
लक्ष्मी ने साधु को स्वप्न दिया कि उसने गणेश की मूर्ति को हटाकर गणेश को नाराज कर दिया है। इसलिए उस पर यह विपत्ति आयी है। क्योंकि गणेश के नाराज होने से उसकी बुद्धि नष्ट हो गई तथा धन या लक्ष्मी के लिए बुद्धि आवश्यक है। अतः जब तुम्हारे पास बुद्धि नहीं रही तो लक्ष्मी भी चली गई। जब साधु ने स्वप्न में यह बात जानी तो उसे अपने किए पर बहुत पश्चाताप हुआ।
जब साधु को अपनी गलती का अहसास हो गया और उसने पश्चाताप किया तो अगले ही दिन राजा ने भी स्वतः जेल में जाकर साधु से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी और उसे जेल से निकाल कर पुनः मंत्री बना दिया। मंत्री बनने पर साधु ने पुनः गणेश की मृर्ति को पूर्ववत स्थापित करवाया, साथ ही साथ लक्ष्मी की भी मूर्ति स्थापित की और सर्व साधारण को यह बताया कि सुखपूर्वक रहने के लिए ज्ञान एवं समृद्धि दोनों जरूरी। हैं। इसलिए लक्ष्मी एवं गणेश दोनों का पूजन एक साथ करना चाहिए। तभी से Laxmi Pujan के साथ Diwali Par Ganesh Pujan की परम्परा कायम हो गई और दीपावली के दिन Laxmi Ganesh ki Puja होनी शुरु हो गई।
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