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छठ पूजा क्यों मनाया जाता है?, महत्व और पौराणिक कथा

भारत में हिंदुओं के कई सारे त्यौहार मनाए जाते हैं। उन्ही में से एक पर्व है छठ पर्व, जिसे महापर्व कहा जाता है। क्योंकि यह चार दिनों का पर्व होता है।

छठ पूजा विशेष रूप से बिहार और झारखंड राज्य का मुख्य पर्व है। वैसे उत्तर भारत के लोग जहां-जहां पर बसे हुए हैं, उन तमाम देश-विदेश में भी छठ का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव को समर्पित पर्व है। पूरी दुनिया उगते सूरज को अर्घ्य देती है लेकिन यह एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें डूबते सूरज को भी अर्घ्य दिया जाता है।

Chhath Puja Kyu Manaya Jata Hai
Image: Chhath Puja Kyu Manaya Jata Hai

हर पर्व की तरह इस पर्व को मनाने के पिछे भी पौराणिक कथाएं हैं। तो चलिए इस लेख में हम छठ पर्व कब और क्यों मनाया जाता है तथा इससे जुड़े और भी रोचक तथ्यों के बारे में जानते हैं।

छठ पर्व कब मनाया जाता है?

छठ पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार यह चेत्र मास में मनाया जाता है। चेत्र मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को “चैती छठ” कहा जाता है। वहीं दूसरा छठ कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाया जाता है। कार्तिक महीने में मनाया जाने वाले छठ पर्व को “कार्तिकी छठ” कहा जाता है।

साल 2023 में छठ पर्व की शुरुआत 17 नवंबर 2023 से शुरू होगी और 20 नवंबर 2023 को समाप्त होगी। इस पर्व की तैयारी 8-10 दिन पहले से ही शुरू हो जाता है। चारों तरफ साफ सफाई होने लगती है, बाजार में तरह-तरह के फल बिकने शुरू हो जाते हैं।

छठ पूजा क्यों मनाया जाता है?

छठ पर्व को मनाने के कई कारण है। इसके बारे में ऋग्वेद ग्रंथ में भी जिक्र किया गया है। छठ पर्व मनाने की पीछे की कुछ प्रसिद्ध पौराणिक कथाएं इस प्रकार है:

राजा प्रियवंद से जुड़ा है छठ पर्व की परंपरा

छठ पर्व से जुड़ी एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा सतयुग के एक राजा प्रियवंद से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि राजा प्रियवंद निसंतान थे, जिसके कारण वे महर्षि कश्यप को अपनी समस्या बताते हैं। महर्षि कश्यप पुत्र प्राप्ति यज्ञ करवाते हैं। यज्ञ के दौरान बने प्रसाद को प्रियवंद की पत्नी को देते हैं।

प्रियवंद की पत्नी खीर खाकर गर्भवती हो जाती है लेकिन वह मृत पुत्र को जन्म देती है। इस वियोग में प्रियवंद अपना भी प्राण त्यागने लगते हैं कि उसी समय भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट होती है और वह राजा प्रियवंद को कहती है कि मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुए हैं इसीलिए मेरा नाम षष्टि है।

अगर तुम षष्टि के दिन मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार प्रसार करूं तो तुम्हें जल्द ही पुत्र प्राप्ति होगा। राजा प्रियवंद षष्टि के दिन छठी छठी मां की बहुत ही विधि विधान पूर्वक पूजा करते हैं, जिसके बाद उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है।

महाभारत काल से जुड़ा है छठ पर्व की परंपरा

छठ पर्व की परंपरा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि महाभारत काल में सूर्यपुत्र कर्ण प्रतिदिन नहाने के बाद भगवान सूर्य देव को जल अर्पित करते थे। भगवान सूर्य देव की कृपा से ही कर्ण शक्तिशाली और महान योद्धा बने। उन्हीं से ही छठ पर्व की शुरुआत हुई।

इतना ही नहीं कहा जाता है कि द्रौपदी ने भी छठ पर्व किया था। जब जुए में पांचो पांडव अपने राज पाट खो बैठते हैं तब द्रौपदी भगवान सूर्य देव की पूजा आराधना करती हैं ताकि उन्हें दोबारा अपने खोए हुए राज पाट वापस मिल जाएं।

द्रोपदी छठ का व्रत रखती हैं और विधि विधान पूर्वक सूर्य देव की पूजा करती है। इसके पश्चात पांचो पांडवों को उनके राज पाट वापस मिल जाते हैं।

मां सीता ने भी किया था छठ पर्व

कहा जाता है कि 14 वर्ष का वनवास पूर्ण हो जाने के बाद जब मां सीता अयोध्या लौटी तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि मुनियों के आदेश पर राजसूर्य करने का फैसला किया। इसके लिए वह मुग्दल ऋषि के आश्रम में जाती हैं। जहां पर मुग्दल ऋषि उन पर गंगाजल छिड़ककर उन्हें पवित्र करते हैं।

उसके बाद मां सीता कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य देव की उपासना करती है। सप्तमी को सूर्योदय के समय जल अर्पित करके सूर्योदय से दोबारा आशीर्वाद प्राप्त करती है।

छठ पूजा कैसे मनाया जाता है?

छठ पर्व एक दिन या दो दिन का पर्व नहीं है। यह महापर्व है क्योंकि यह चार दिन का पर्व होता है। छठ पर्व की शुरुआत चार दिन पहले से ही कर दी जाती है। छठ पर्व के चारों दिन इस प्रकार हैं:

नहाय-खाय

छठ पर्व का पहला दिन नहाय खाय कहलाता है। इस दिन छठ व्रत रखने वाली महिलाएं घर की साफ सफाई करके सुबह-सुबह नहाती है और उसके बाद का चावल, कद्दू या लौकी की सब्जी और चने दाल को बड़े नियम धर्म से बना कर खाती हैं।

लोहंडा या खरना

छठ पर्व का दूसरा दिन खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है। इस दिन छठ व्रत रखने वाली महिलाएं पूरे दिन उपवास रखती है और शाम के समय अरवा चावल, गन्ने के जूस के साथ या फिर दूध के साथ पका कर खीर बनाया जाता है।

फिर सबसे पहले प्रसाद के रूप में सभी छठी व्रती खाती है, जिसे खरना कहा जाता है। उसके बाद घर के बाकी अन्य सदस्यों को प्रसाद स्वरूप यह खीर दिया जाता है।

पहला अर्घ्य

छठ पर्व के तीसरे दिन सूर्य देव को पहला आर्घ्य शाम के समय पड़ता है। इस दिन सूर्यास्त सूर्य देव को जल अर्पित किया जाता है। इस दिन पूरे दिन भर चहल-पहल रहता है। सभी के घर पर इस दिन छठ पर्व के डलिया को फल-फूल, ठेकूआ, लड्डू ,चीनी का सांचा, गन्ना जैसे कई प्रकार के चीजों से सजाया जाता है।

उसके बाद पूरे परिवार सहित शाम के समय लोग डाल लेकर घाट पर पहुंचते हैं और फिर वहां पर डूबते सूरज को अर्घ्य देकर अपने घर और परिवार के समृद्धि और सुख के लिए प्रार्थना किया जाता है। रास्ते में जाते समय और वापस लौटते समय लोग छठी माता का गीत गाते हैं।

सुबह का अर्घ्य

छठ पर्व के चौथे दिन उगते सूरज को अर्घ्य देकर छठ पर्व की समाप्ति की जाती है। शाम के समय डूबते सूरज को अर्घ्य देने के बाद दूसरे दिन व्रती के साथ परिवार का पूरा सदस्य डाल को लेकर तालाब, नहर या नदी के किनारे पहुंचते हैं।

यहां व्रती के साथ परिवार का पूरा सदस्य डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देता है और अपने परिवार के सुख समृद्धि की प्रार्थना करता है। यह छठ पर्व 36 घंटे से भी अधिक दिनों के बाद समाप्त होता है। 4 दिन की कठिन व्रत के बाद व्रती चौथे दिन प्रसाद खाकर व्रत का पारण करती हैं।

निष्कर्ष

उपरोक्त लेख में आपने उत्तर भारत का प्रमुख त्योहार छठ पर्व कब और कैसे मनाया जाता है तथा छठ पर्व से जुड़ी प्रसिद्ध पौराणिक कथाओं के बारे में जाना।

हमें उम्मीद है कि आज के इस लेख के माध्यम से आपको छठ पर्व से जुड़े सभी प्रश्नों का जवाब मिल गया होगा। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें।

Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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