हमारा भारतीय इतिहास अंग्रेजों के चंगुल से पूरी तरह से जकड़ लिया गया था, ऐसे में भारतवर्ष के नागरिकों को अंग्रेजों के द्वारा किए जाने वाले जुल्म को सहना पड़ता था। भारतीय इतिहास में ऐसे बहुत से नागरिक थे, जिन्होंने अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार नहीं की और भारत की आजादी के लिए कठिन परिश्रम किया।
ऐसे में ही एक नाम हमारे सामने आता है, देश के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का। चंद्रशेखर आजाद देश के ऐसे महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने भारत मां की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों को हंसते-हंसते न्योछावर कर दिए।
चंद्रशेखर आजाद बहुत ही उग्र स्वभाव के व्यक्ति थे, जिसके कारण वे अपने बचपन से ही भारत में होने वाले क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेते थे। चंद्र शेखर आजाद ने एक ऐसी कसम खाई थी कि वे अपने जीते जी कभी भी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे।
आज इस लेख में चंद्रशेखर आजाद कौन थे?, चंद्रशेखर आजाद का जीवन कैसे रहा?, चंद्रशेखर आजाद का संघर्षों से भरा क्रांतिकारी जीवन और चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु इत्यादि के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।
यदि आप चंद्रशेखर आजाद के बारे में जानने के लिए इच्छुक हैं, तो कृपया आप हमारे द्वारा लिखे गए इस महत्वपूर्ण लेख को अवश्य पढ़ें।
चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय (जन्म, परिवार, आन्दोलन और मृत्यु)
चंद्रशेखर के बारे में संक्षिप्त जानकारी
नाम | चंद्रशेखर आजाद |
जन्म | 23 जुलाई 1906 |
जन्म स्थान | भाबरा गाँव (चन्द्रशेखर आज़ादनगर) (वर्तमान: अलीराजपुर जिला) |
माता | जगरानी देवी |
पिता | पंडित सीताराम तिवारी |
भाई | सुखदेव पंडित |
पेशा | क्रांतिकारी |
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम | 17 दिसंबर 1928 |
मृत्यु | 27 फरवरी 1931 |
चंद्रशेखर आजाद कौन है?
चंद्रशेखर आजाद भारत के क्रांतिकारी हैं, जो कि भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक हैं। चंद्रशेखर आजाद के रगों में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध नफरत की भावना थी। बचपन से ही ऐसी भावना होने के कारण वह थोड़े उग्र स्वभाव के हो गए थे, जिसके कारण उन्होंने अपने बचपन से ही भारत को आजाद करने के लिए बहुत से आंदोलनों में हिस्सा लेने लगे।
चंद्रशेखर आजाद भारत के ऐसे क्रांतिकारियों थे, जिन्होंने भारत को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों तक की बलि दे दी और उन्होंने ऐसा प्रण लिया था कि वे अपने जीते जी स्वयं को अंग्रेजों के हाथ नहीं आने देंगे, जिसका उन्होंने भली-भांति पालन किया।
चंद्रशेखर आजाद का जन्म और परिवार
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को भाबरा गाँव (चन्द्रशेखर आजाद नगर नाम से प्रसिद्ध), अलीराजपुर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। इनके पूर्वज उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में स्थित बदरका गांव के थे। चंद्रशेखर आजाद एक ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते थे।
चंद्रशेखर आजाद के पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी था, जोकि पेशे से एक पंडित थे और इनकी माता का नाम जगरानी देवी था। इसके अलावा चंद्रशेखर आजाद के एक बड़े भाई भी थे, जिनका नाम सुखदेव पंडित था।
चंद्रशेखर आजाद के भाई भी उन्हीं की तरह एक वीर और साहसी क्रांतिकारी थे। चंद्रशेखर आजाद और सुखदेव पंडित दोनों ही काफी कम उम्र में भारत की स्वतंत्रता के लिए शहीद हो गए थे।
चंद्रशेखर आजाद के बचपन का नाम क्या था?
चंद्रशेखर आजाद एक ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते थे, अतः चंद्रशेखर आजाद के बचपन का नाम चंद्रशेखर तिवारी था।
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चंद्रशेखर का नाम आजाद कैसे पड़ा?
चंद्रशेखर आजाद वर्ष 1921 ईस्वी में महात्मा गांधी के द्वारा शुरू किए गए और असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया था। जिस समय उन्होंने असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया था, उस समय वह मात्र 15 वर्ष के थे। चंद्रशेखर आजाद बचपन से ही गांधीजी का अनुसरण करते थे, जिसके कारण वह गांधी जी के योजनाओं और आंदोलनों में हिस्सा लेने के लिए सदैव तत्पर रहते थे।
महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल होने के बाद चंद्रशेखर आजाद की पहली गिरफ्तारी हुई थी। चंद्रशेखर आजाद को ब्रिटिश ऑफिसर के द्वारा थाने में ले जाकर जेल में बंद कर दिया गया। चंद्रशेखर आजाद को दंड के तौर पर दिसंबर में कड़ाके की ठंड में भी ओढ़ने-बिछाने के लिए कोई बिस्तर नहीं दिया गया।
चंद्रशेखर आजाद को जब अर्ध रात्रि में ब्रिटिश ऑफिसर देखने आया तो वह इन्हें देखकर दंग रह गया, क्योंकि चंद्रशेखर आजाद उस जेल में दंड बैठक लगा रहे थे और ऐसे कड़ाके ठंड में भी चंद्रशेखर आजाद पसीने से भीग गए थे।
चंद्रशेखर आजाद अगले ही दिन न्यायालय में पेश कर दिया गया। चंद्रशेखर आजाद थोड़े उग्र स्वभाव के थे, जिसके कारण उन्होंने मजिस्ट्रेट से उनका नाम पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि मेरा नाम “आजाद” है। फिर मजिस्ट्रेट ने उनसे कड़े शब्दों में पूछा तुम्हारे पिता का क्या नाम है, चंद्रशेखर आजाद ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया “स्वतंत्रता”।
अब मजिस्ट्रेट थोड़ा क्रोधित हो गया और पूछा कि तुम्हारा पता क्या है, चंद्रशेखर आजाद ने जवाब दिया “जेल”। अपने सवालों के ऐसे जवाब सुनने के बाद मजिस्ट्रेट आग बबूला हो गया और उसने चंद्रशेखर आजाद को 15 कोड़े की सजा सुनाई।
अब चंद्रशेखर आजाद का नाम बनारस के प्रत्येक घर में सुनाई देने लगा और यहीं से चंद्रशेखर आजाद का नाम चंद्रशेखर तिवारी से आजाद हो गया।
संघर्षों से भरा जीवन और क्रांतिकारी जीवन
जैसा कि हम सभी जानते हैं चंद्रशेखर आजाद महात्मा गांधी का अनुसरण करते थे और चंद्रशेखर आजाद ने वर्ष 1921 में गांधी जी के द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में भाग लिया था। इसके बाद वर्ष 1922 में चौरी चौरा कांड घटित होने से महात्मा गांधी नाराज हो गए और उन्होंने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।
महात्मा गांधी के द्वारा इस आंदोलन को वापस ले लिए जाने पर चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान नाराज हो गए थे।
इस घटना के बाद चंद्रशेखर आजाद “हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन संगठन” में सक्रिय सदस्य के रूप में निर्वाचित किए गए। अब हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन संगठन का निर्वाचन करना चंद्रशेखर आजाद का कर्तव्य हो गया।
इस संगठन को चलाने के लिए धनराशि की आवश्यकता थी, जिसके लिए चंद्रशेखर आजाद ने अपने 9 साथियों के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम देने की ठानी और सरकारी खजाने को लूट लिया। काकोरी कांड में शामिल हुए सभी आरोपियों को पुलिस के द्वारा पकड़ लिया गया, परंतु चंद्रशेखर आजाद पुलिस के चंगुल से बचकर निकल गए।
अब भारत के एक प्रसिद्ध समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय की मृत्यु से संपूर्ण भारतवर्ष में नाराजगी छाई हुई थी। लाला लाजपत राय की मृत्यु 17 नवंबर 1928 को हुई थी। लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और अन्य क्रांतिकारी एक साथ मिलकर विचार बनाया।
लाला लाजपत राय की मृत्यु के ठीक 1 महीने बाद (17 दिसंबर 1928) क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश ऑफिसर सांडर्स को दिनदहाड़े गोली से उड़ा दिया।
इन सभी के बाद चंद्रशेखर आजाद ने अपना क्रांतिकारी जीवन कुछ दिनों तक झांसी में भी व्यतीत किया था। चंद्रशेखर आजाद ने झांसी से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित ओरछा जंगल में बंदूक से निशानेबाजी का अभ्यास करते थे।
चंद्रशेखर आजाद स्वयं के साथ-साथ अपने नौजवानों को भी निशानेबाजी की शिक्षा देते थे। चंद्रशेखर आजाद ने ऐसा कई दिनों तक साधु के भेष में किया।
चंद्रशेखर आजाद के जीवन के बारे में रोचक तथ्य
चंद्रशेखर को हम आजाद के नाम से जानते हैं लेकिन इनका पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था। लेकिन इसके पीछे की भी एक बहुत ही रोचक कहानी है कि किस तरीके से यह तिवारी से आजाद कहलाए।
दरअसल जब इन्हें गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने पर अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था और जज के सामने पेश किया गया तो वहां इनसे इनके नाम, पिता का नाम और उनके पता के बारे में पूछा जाता है।
तब यह अपना नाम बताते हुए कहते हैं मेरा नाम आजाद है, पिता का नाम स्वतंत्रता और पता कारावास है। इस घटना के बाद चंद्रशेखर तिवारी चंद्रशेखर आजाद के नाम से जाना जाने लगे।
- क्रांतिकारी की जोश चंद्रशेखर आजाद में बचपन से ही था। मात्र 14 वर्ष की उम्र में इन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग ले लिया था।
- असहयोग आंदोलन का अचानक महात्मा गांधी द्वारा बंद करने की घोषणा करने के बाद चंद्रशेखर आजाद क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़कर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बने।
- चंद्रशेखर आजाद स्वयं तो एक बहादुर क्रांतिकारी थे, इसके अतिरिक्त इन्होंने दूसरे युवाओं को भी प्रेरित किया।
- चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान अंग्रेजों से छिपने के लिए कई बार झांसी का सहारा लिए जहां पर इन्होंने एक मंदिर में 4 फीट चौड़ी और 8 फीट गहरी गुफा बनाई थी, यहां ये सन्यासी के बेश में रहा करते थे।
- ऐसा माना जाता है कि चंद्रशेखर आजाद के गुप्त ठिकाने के बारे में जब अंग्रेजों को पता चल गया था तब ये स्त्री का वेश बनाकर अंग्रेजों को चकमा दिये थे।
- चंद्रशेखर आजाद हमेशा अपने साथ माउजर (ऑटोमेटिक पिस्टल) रखा करते थे।
- चंद्रशेखर आजाद एक अचूक निशानेबाज थे। झांसी से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ओरछा गांव में वे अन्य दूसरे क्रांतिकारियों को भी निशानेबाजी का प्रशिक्षण दिया करते थे। यही नहीं इस गांव में वे पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के नाम से बच्चों के अध्यापन का भी कार्य करते थे।
- चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों के हाथ कभी भी जीवित गिरफ्तार नहीं होने की प्रतिज्ञा ली थी और इसी प्रतिज्ञा पर कायम रहने के लिए अंत समय में जब चंद्रशेखर आजाद अंग्रेज सैनिकों के द्वारा घिर गए तब स्वयं को अपने गोली से मार कर आत्महत्या कर लिए।
- कहा जाता है एक बार चंद्रशेखर आजाद रूस जाकर स्टालिन की मदद लेना चाहते थे, जिसके लिए इन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरु से 1200 रुपए की मदद भी मांगे थे।
- चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में हुई और इनके सम्मान में उस पार्ख का नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद रख दिया गया। यही नहीं उनके गांव का भी नाम बदल दिया गया और उन्ही के नाम पर रख दिया गया। इनके गांव का नाम धिमारपूरा था, जिसे बदलकर आजादपुरा रखा गया।
- चंद्रशेखर आजाद का बचपन का ज्यादातर जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र भावरा गांव में व्यतीत हुआ। जिस कारण वे वहां के भील बालकों के साथ रहते थे और उन्हीं के साथ रहते रहते यह धनुष बाण चलाना भी सीखें। हालांकि चंद्रशेखर आजाद की माता जगरानी देवी इन्हे संस्कृत का विद्वान बनाना चाहती थी।
चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु
चंद्रशेखर आजाद ने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को इतना विस्तार दे दिया था कि ब्रिटिश शासक उनसे भयभीत रहते थे। चंद्रशेखर आजाद ब्रिटिश शासक की लिस्ट में सबसे ऊपर थे। भारतीय ईस्ट इंडिया के पुलिस ऑफिसर चंद्रशेखर आजाद को जिंदा या मुर्दा किसी भी हालत में पकड़ना चाहती थी।
चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपने दो सहयोगियों से मिलने के लिए आने वाले थे। चंद्रशेखर आजाद के एक सच्चे साथी ने उनके साथ विश्वासघात किया और चंद्रशेखर आजाद की सूचना ब्रिटिश शासकों को दे दी।
सूचना मिलते ही ब्रिटिश पुलिस ने अल्फ्रेड पार्क को चारों तरफ से घेर लिया। जैसे ही चंद्रशेखर आजाद इस पार्क में आए वैसे ही ब्रिटिश पुलिस कर्मी ने उन्हें घेर लिया और उन्हें आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया, परंतु चंद्रशेखर आजाद ने अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हुए अकेले ही तीन पुलिसकर्मियों को मार डाला।
चंद्रशेखर आजाद ने इसके बाद भी स्वयं को पुलिसकर्मियों से घिरा हुआ पाया, जिसके कारण उन्होंने अपनी कसम का ध्यान रखते हुए स्वयं को ही गोली मार ली और शहीद हो गए। इस तरह चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में हुई।
पंडित चंद्रशेखर तिवारी।
काशी विद्यापीठ।
उनके ही मुखबिर के द्वारा विश्वासघात।
27 फरवरी 1931
इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में।
चंद्रशेखर आजाद ने क्रांतिकारी गतिविधियों को इतना ज्यादा विस्तार दे दिया था कि ब्रिटिश शासक भी उनसे भयभीत होने लगी थी। जिसके बाद चंद्रशेखर को जिंदा या मुर्दा किसी भी हालत में पकड़ने की घोषणा कर दी गई। उसके बाद चंद्रशेखर जब ब्रिटिश सेनाओं के कब्जे में आ गए तो उनके हाथ नहीं मरना चाहती थे। यही कारण था कि वह स्वयं के बंदूक से ही स्वयं को गोली मारकर आत्महत्या कर ली।
‘दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे,’ यह नारा चंद्रशेखर आजाद ने दिया था।
इस पार्क का नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद पार्क रख दिया गया है। इतना ही नहीं जिस गांव में उनका जन्म हुआ था, उस गांव का भी नाम उनके नाम पर रखा गया और वहां पर इनके नाम का स्मारक भी बनाया गया।
15 वर्ष की उम्र में इन्हें सबसे पहले सजा दी गई थी। अंग्रेजों के सैनिकों द्वारा इन्हें बहुत कोड़े मारे जा रहे थे लेकिन बार-बार यह बस भारत माता का नारा लगा रहे थे। उसके बाद जब इन्हें अदालत में ले जाया गया और वहां पर उनके नाम और उनके पिता का नाम और उनके पता को पूछा गया तब इन्होंने बताया कि मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता है और मेरा पता जेल है। चंद्रशेखर आजाद के इस जवाब के कारण ही उसी दिन से इन्हें तिवारी के जगह पर चंद्रशेखर आजाद कहा जाने लगा।
निष्कर्ष
हमने यहाँ पर चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय हिंदी में विस्तार से बताया है। हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह लेख अवश्य पसंद आया होगा, इसे आगे आगे शेयर जरूर करें। यदि अपका इस लेख से जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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