आज के लेख में हम भारत के ऐसे क्रांतिकारी के जीवन के बारे में जानने वाले हैं, जिनका प्रसिद्ध नारा “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” आज भी लोगों के दिलों में है। हम ऐसे शख्सियत की बात करने वाले हैं, जिन्हें लोकमान्य तिलक के नाम से जाना जाता है।
इन्हें भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के जनक के रूप में भी जाना जाता है, जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने अपने जीवन काल में शिक्षक, वकिल, सामाजिक कार्यकर्ता, नेशनल लीडर और स्वतंत्रता संग्रामी के रूप में कार्य किया।
जब कांग्रेस 2 दलों में विभाजित हो गया तब यह गरम दल के नेता थे, जो गांधी जी के कथनों का पूरी तरह समर्थन ना करते हुए कहते थे कि अहिंसा सत्याग्रह पूरी तरीके से अपनाना सही नहीं। जहां जरूरत है, वहां हिंसा अपनाना जरूरी है।
आज भले ही गंगाधर तिलक हमारे बीच नहीं है, लेकिन इनका नारा आज भी इन्हें हमारे बीच होने का एहसास दिलाता है। यदि आप बाल गंगाधर तिलक के जीवन के बारे में सब कुछ जानना चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
क्योंकि इस लेख में हम बाल गंगाधर तिलक का प्रारंभिक जीवन, इनकी शिक्षा, इनका राजनीतिक सफर, इनसे जुड़े कुछ रोचक तथ्य आदि जानने वाले हैं।
बाल गंगाधर तिलक का जीवन परिचय (जन्म, परिवार, शिक्षा, पत्रिका, जेल, किताब, मृत्यु)
बाल गंगाधर तिलक के विषय में संक्षिप्त जानकारी
नाम | केशव गंगाधर तिलक |
उपाधी | लोकमान्य तिलक |
जन्म | 23 जुलाई 1856 |
जन्म स्थान | रत्नागिरी (महाराष्ट्र) |
शिक्षा | एलएलबी |
स्कूल | एंग्लो – वर्नाकुलर |
माता | पार्वतीबाई गंगाधर |
पिता | गंगाधर रामचंद्र तिलक |
पत्नी | सत्यभामा |
राजनीतिक पार्टी | इंडियन नेशनल कांग्रेस |
बाल गंगाधर तिलक का प्रारम्भिक जीवन
बाल गंगाधर तिलक का जन्म महाराष्ट्र में स्थित रत्नागिरी जिले के एक छोटे से चिखली नामक गांव में 30 जुलाई 1856 को हुआ था। इनके पिता का नाम गंगाधर रामचंद्र तिलक और माता का नाम पार्वती बाई गंगाधर था।
उनकी पत्नी का नाम सत्यभामा था, जिनसे 1871 में इनका विवाह हुआ था। बाल गंगाधर तिलक बचपन से ही बहुत तेज तरार विद्यार्थी थे और काफी साहसिक थे।
बाल गंगाधर तिलक की शिक्षा
बाल गंगाधर तिलक के पिता का स्थानांतरण रत्नागिरी से पुणे हो गया, जिसके बाद बाल गंगाधर तिलक का दाखिला पुणे के एंग्लो – वर्नाकुलर स्कूल में हुआ। यहां से इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। पुणे आने के बाद मात्र 16 वर्ष की उम्र में ही इनके माता का देहांत हो गया। इसके कुछ समय के बाद इनके पिता का भी देहांत हो गया।
इतनी छोटी उम्र में माता-पिता दोनों का ही जीवन से साथ छूट जाना बहुत ही कष्टदायक होता है। घर में निराशा छा गई, लेकिन बाल गंगाधर तिलक ने हार नहीं मानी। इन परिस्थितियों के सामने झुके नहीं आगे बढ़े। हमेशा ही एक प्रभावशाली छात्र बने रहे।
स्कूली शिक्षा के दरमियान इन्हें गणित और संस्कृत विषय से काफी लगाव था। अंग्रेजी विषय इन्हे पसंद नहीं था, अक्सर यह अंग्रेजी विषय की आलोचना किया करते थे। इनके अनुसार अंग्रेजी विषय भारत की सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है। स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद ये पुणे के डेक्कन कॉलेज में प्रवेश लिया। फिर वहां से संस्कृत और गणित विषय में 1877 में स्नातक की डिग्री हासिल की।
उसके बाद वे मुंबई के सरकारी लो कॉलेज में प्रवेश लिए और फिर 1879 में एलएलबी की डिग्री हासिल की। शिक्षा पूरी होने के बाद बाल गंगाधर तिलक ने पुणे के एक निजी स्कूल में शिक्षण का कार्य किया। लेकिन फिर 1880 में अन्य शिक्षकों के साथ मतभेद होने के कारण इन्होंने पढ़ाना छोड़ दिया।
राष्ट्रवादी शिक्षा को सहयोग दिया
बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रवादी शिक्षा को प्रेरित करते हुए देश के युवाओं को उच्च और अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करने का इन्होंने प्रयास किया, जिसके लिए इन्होंने कॉलेज के बैचमेट्स और महान समाज सुधारक गोपाल गणेश आगरकर और विष्णु शास्त्री चिपुलंकर के साथ मिलकर “डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी” की स्थापना की थी।
बाल गंगाधर तिलक ने भारत के संस्कृति के आदर्श के प्रति लोगों को जागरूक किया और विद्यार्थियों को नई दिशा प्रदान किया। इन्होंने हमेशा ही अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली की आलोचना की। ब्रिटिश विद्यार्थियों और भारतीय विद्यार्थियों के बिच होने वाले दोगला व्यवहार का जमकर विरोध किया।
बाल गंगाधर की पत्रिका
ब्रिटिश शासन के कारण भारतीयों का संघर्ष और परेशानियों को देखते हुए बाल गंगाधर तिलक ने लोगो में जागरूकता फैलाने के लिए उनके अंदर स्वशासन की भावना जागृत करने के लिए 1881 में दो पत्रिकाएं मराठा दर्पण और केसरी शुरू की।
मराठा दर्पण अंग्रेजी में और केसरी पत्रिका मराठी भाषा में प्रकाशित होती थी। इन दोनों पत्रिकाओं में बाल गंगाधर तिलक अंग्रेजी शासन की आलोचना करते थे और यह दोनों ही पत्रिका बहुत जल्द जनता में लोकप्रिय हो गई।
बाल गंगाधर तिलक का राजनीतिक सफर
साल 1890 को बाल गंगाधर तिलक कांग्रेस में शामिल हो गए, लेकिन बहुत जल्दी वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैया के विरोध में बोलने लगे। इन्हीं के साथ अन्य नेता भी इस रवैया के विरुद्ध हो गए, जिस कारण साल 1960 में कांग्रेस दो भागों में विभाजित हो गया नरम दल और गरम दल।
गरम दल में बाल गंगाधर तिलक के साथ बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय शामिल हुए, जिस कारण इन तीनों को लाल बाल पाल के नाम से जाना जाने लगा।
राजद्रोह के आरोप पर जाना पड़ा जेल
बाल गंगाधर तिलक कई बार आजादी की लड़ाई में ब्रिटिश सरकार के सामने रोड़ा बनकर खड़े हुए, इन्होंने अपने समाचार पत्र को हथियार बनाया और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जिस कारण इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। इनके द्वारा शुरू की गई समाचार पत्र मराठा दर्पण और केसरी में इन्होंने कई बार खुलकर अंग्रेजों का विरोध किया।
इन्होंने क्रांतिकारी खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी के बम हमले का भी समर्थन किया। ब्रिटिश बाल गंगाधर तिलक को भारतीय अशांति का पिता कहकर पुकारा करते थे। एक बार तो बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में “देश दुर्भाग्य” नामक शीर्षक से एक लेख लिख डाला, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध किया।
जिस कारण इन पर देशविद्रोही का दोष लगाकर भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए के अंतर्गत 27 जुलाई 1897 को गिरफ्तार कर लिया गया और 6 वर्ष के लिए बर्मा के मांडले जेल में कैद कर दिया।
बर्मा जेल में इन्हें बहुत यातना दी गई। जेल में रहने के दरमियान बाल गंगाधर तिलक ने वहां के प्रबंधन से कुछ किताबें लिखने की मांग की, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने किसी भी प्रकार के राजनीतिक गतिविधियों पर किताब लिखने पर रोक लगा दिया। जिसके बाद बाल गंगाधर ने कई किताबें अपने कारावास की सजा के दौरान लिखी।
हालांकि इसमें किसी प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ा विषय नहीं था। जेल में रहते हुए इनके द्वारा लिखी गई किताबों में से “गीता रहस्य” नामक पुस्तक काफी ज्यादा प्रख्यात हुई। जेल में रहने के दरमियान ही इन्हें एक चिट्ठी मिली कि उनकी पत्नी का देहांत हो गया है।
लेकिन ब्रिटिश सरकार की तुगलकी नीतियों की वजह से वह अपनी मृतक पत्नी का अंतिम दर्शन भी कर नहीं पाए। जेल से निकलने के बाद अपने देश प्रेम की भावना के आगे इस दुख की घड़ी का शोक भी नहीं मनाया बल्कि जेल से छूटते ही वे दुबारा कांग्रेस में शामिल हो गए और फिर एनी बेसेंट और मोहम्मद अली जिन्ना के साथ मिलकर साल 1919 को अखिल भारतीय होमरूल लीग की स्थापना की।
बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु
1 अगस्त 1920 को लोकमान्य तिलक की स्वास्थ्य खराब होने से मुंबई में मृत्यु हो गई। इनकी मौत पर पंडित जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी ने श्रद्धांजलि अर्पण करते हुए इन्हें आधुनिक भारत का निर्माता और भारत के क्रांति का जनक कहा। मृत्यु के बाद भी इन्होंने देश की जनता के दिलों में एक अलग छाप छोड़ी।
बहुत से लोगों ने तो इनके मौत के कारणों को बर्मा जेल में इनको दी गई यातना बताई। लोगों के अनुसार बर्मा के जेल में 6 साल की कैद के दौरान बाल गंगाधर तिलक को बहुत यातनाएं दी गई, जिस कारण इनकी उम्र घट गई।
बाल गंगाधर तिलक उस वक्त एक ऐसे शख्सियत थे, जिनके प्रति लोगों के मन में बहुत ही सम्मान और प्रेमभाव था, जिस कारण आंदोलन को चलाने के लिए जब महात्मा गांधी को पैसे की कमी हो गई। तब गांधी जी ने बाल गंगाधर तिलक के नाम का सहारा लिया।
इनके मृत्यु के 1 साल के बाद इनके बरसी पर तिलक स्वराज फंड की स्थापना की, जिससे 1 करोड़ रुपए जुटाने में गांधी जी सक्षम हो पाए।
गणेश उत्सव का आरंभ कैसे किया?
बाल गंगाधर तिलक सार्वजनिक रूप से गणेश उत्सव को शुरू किया था। हालांकि भगवान गणेश की पूजा भारत में पुराने समय से ही होते आ रही है। महाराष्ट्र के पेशवाहों ने गणेश उत्सव का त्योहार मनाने की परंपरा का आरंभ किया था।
अंग्रेजों के शासन के दौरान भारत में लोग इकट्ठा होकर अंग्रेजो के खिलाफ षड्यंत्र बनाते थे तब अंग्रेजों को इस बात का डर होने लगा, जिस कारण उन्होंने लोगों को बिना किसी वजह के एकजुट होने से मना कर दिया। जिसके बाद बाल गंगाधर तिलक अक्सर समुद्र की चौपाटी पर जाकर बैठते और वहां पर घंटों लोगों को एकजुट करने का तरीका सोचते।
एक बार इसी तरह सोचने के दौरान बाल गंगाधर तिलक के मन में लोगों को एकजुट करने के लिए गणपति पूजा को घरों से निकालकर बाहर सार्वजनिक रूप से एकजुट होकर मनाने के बारे में रणनीति बनाई, जिसमें हर जाति के लोग शामिल होंगे।
इस तरह बाल गंगाधर तिलक सार्वजनिक रूप से गणेश उत्सव का आरंभ कर ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को संदेश देने, जनमानस में सांस्कृतिक चेतना जगाने और लोगों को एकजुट करने का प्रयास किया।
बाल गंगाधर तिलक के जीवन से जुड़े कुछ रोचक प्रसंग
साहसी बाल गंगाधर
बाल गंगाधर बचपन से ही बहुत ही निडर व्यक्ति थे, जिनमें सच बोलने की हिम्मत थी। वह कभी भी अन्याय के सामने झुकते नहीं थे, अन्याय के खिलाफ बोलते थे। इसी से जुड़ा इनका एक बचपन का प्रसन्न है। जब यह स्कूल में पढ़ा करते थे तो एक बार स्कूल में पढ़ने के दौरान कुछ बच्चे मूंगफली खा कर मूंगफली के छिलके को क्लास रूम में इधर-उधर फैला दिए, जिसके कुछ देर के बाद शिक्षक क्लास में प्रवेश किये।
कक्षा की गंदी हालत को देख उन्हें बहुत क्रोध आया और उन्होंने सभी बच्चों को लाइन में खड़े करके दो-दो डंडे मारना शुरू कर दिया। लेकिन जब बाल गंगाधर तिलक की बारी आई तो उन्होंने हाथ आगे नहीं फैलाया। तब उनके शिक्षक ने कहा कि हाथ आगे फैलाओ।
बाल गंगाधर तिलक ने कहा कि जब मैंने गंदगी नहीं की है तो फिर मैं हाथ क्यों फैलाऊं? इस बात से इनके शिक्षक को और भी ज्यादा क्रोध आया और उन्होंने बाल गंगाधर तिलक की शिकायत प्रधानाचार्य से कर दी।
प्रधानाचार्य ने बाल गंगाधर तिलक कि शिकायत उनके घर तक पहुंचाई और दूसरे दिन बाल गंगाधर तिलक के पिता जी को बुलाया गया। पिताजी ने कहा कि मेरा पुत्र बिल्कुल सही बोल रहा है। क्योंकि उसके पास पैसे रहते ही नहीं है कि वह मूंगफली खरीद सके।
इस तरह बाल गंगाधर तिलक ने सच कहा और अन्याय के विरुद्ध खड़े हुए। यदि उस दिन बाल गंगाधर तिलक शिक्षक से डर के बिना गलती के ही सजा प्राप्त करके घर चले जाते तो शायद फिर दोबारा जिंदगी में सच बोलने का हिम्मत नहीं कर पाते।
बाल गंगाधर तिलक के इस छोटे से प्रसंग से हर किसी को सीख मिलती है कि जीवन में जब अन्याय हो तो तुरंत उस अन्याय के खिलाफ बोलना चाहिए, वरना जो व्यक्ति अन्याय के सामने डर जाता है, वह दोबारा सच बोलने की हिम्मत नहीं कर पाता।
कठिन प्रश्नों में थी रुचि
बाल गंगाधर तिलक बचपन से ही कठिनाइयों का सामना करने में रुचि रखते थे। जब ये स्कूल में पढ़ा करते थे तब इन्हें संस्कृत और गणित के विषय में बहुत ज्यादा रुचि हुआ करती थी। विद्यालय में जब गणित की परीक्षा हुआ करती थी तो बाल गंगाधर तिलक सबसे पहले कठिन सवालों को हल किया करते थे।
इनके इस कार्यों को देख एक बार इनके एक दोस्त ने इस पर प्रश्न करते हुए कहा कि आखिर तुम सबसे कठिन सवालों को हल क्यों करते हैं? यदि तुम आसान सवालों को हल करते तो तुम्हें ज्यादा अंक प्राप्त होते। बाल गंगाधर तिलक ने अपने दोस्त को समझाते हुए कहा कि मुझे हमेशा कुछ नया सीखने का मन करता है।
यदि मैं हमेशा आसान सवालों को हल करूंगा तो फिर मैं कठिन सवालों को कभी भी हल नहीं कर पाऊंगा और ना ही उसे हल करने का प्रयत्न कर पाऊंगा। ऐसे में मैं तो कभी कुछ नया सीख ही नहीं पाऊंगा। यदि जिंदगी में कुछ नया सीखना है तो कठिन रास्ता चुनो। जीवन के हर एक कठिनाइयों को यदि चुनौती की तरह देखें तो आप उसे आसानी से हल कर पाते हैं।
बाल गंगाधर तिलक द्वारा लिखी गई किताबें
बाल गंगाधर तिलक को जब इनके केसरी पत्रिका में “देश दुर्भाग्य” शीर्षक से लिखे गए लेख के कारण बर्मा के जेल में सजा सुनाई गई तो जेल में रहने के दौरान उन्होंने कई पुस्तकें लिखी। किताब गितारहस्य बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध हुई, जिसने जनमानस को बहुत ज्यादा प्रेरित किया। बाल गंगाधर तिलक ने निम्नलिखित पुस्तके लिखी:
- कर्मयोग शास्त्र
- वेद काल का निर्णय
- वेदों का काल निर्णय और वेदांत ज्यैतिष
- आर्यों का मूल निवास स्थान
बाल गंगाधर तिलक के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य
- बाल गंगाधर तिलक बचपन से ही पढ़ने में काफी तेज तरार थे। यही कारण था कि अपने परिश्रम के बल पर ही वे अपने विद्यालय में मेधावी छात्रों में गिने जाते थे। यह पढ़ने के साथ-साथ व्यायाम भी करते थे, जिस कारण उनका शरीर हष्ट पुष्ट था।
- बाल गंगाधर तिलक ने जब अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी की तो इनके परिवार लोगों को इनसे आशा थी कि वकालत शुरू करके धन कमाएंगे और परिवार को सुख देंगे। लेकिन बाल गंगाधर तिलक हमेशा से ही देश की सेवा करना चाहते थे। उन्होंने भले ही वकालत की पढ़ाई की थी, लेकिन इन्हें वकालत में बिल्कुल भी रुचि नहीं था। यह देश की सेवा करना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने एक विद्यालय में ₹30 महीने की तनख्वाह पर शिक्षण कार्य शुरू की।
- बाल गंगाधर तिलक ने बर्मा के जेल में कैदी रहने के दौरान भागवत गीता का अध्ययन किया और गीता रहस्य नामक पुस्तक भी लिखी, जो इनके छह वर्ष के कारावास के बाद प्रकाशित हुआ।
- अंग्रेजों के खिलाफ विरोध उत्पन्न कर सके और जन समूह में जागरूकता फैलाने के लिए लोकमान्य तिलक ने लोगों को एकजुट करने के लिए गणेश उत्सव और शिवाजी जैसे उत्सव को महाराष्ट्र में सप्ताह भर मनाना प्रारंभ किया, जो आज तक मनाया जाता है।
- बाल गंगाधर तिलक ने देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्होंने अंग्रेजों के अन्यायों का निडरता से विरोध किया। इनके साहस भरे स्वभाव और सच्चे जननायक होने के कारण लोगों ने इन्हें लोकमान्य तिलक की उपाधि दी।
- बाल गंगाधर तिलक ने मराठी भाषा में “केसरी” और “मराठा दर्पण” के नाम से दो दैनिक समाचार पत्र शुरू की है, जिसके जरिए जनसमूहों में भारत के स्वतंत्रता की भावना को जागृत करते थे। इसमें इन्होंने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति उनके हीन भावना का कटाक्ष आलोचना किया है।
- इनकी केसरी पत्रिका में देश का दुर्भाग्य नाम से लिखे लेख में इन्होंने अंग्रेजों के नीति का विरोध किया, जिसके कारण इन्हें बर्मा के जेल में 6 वर्ष के लिए कारावास की सजा भी दी गई थी।
- भारत के स्वतंत्रता के आंदोलन में हजारों महान क्रांतिकारियों में से एक बाल गंगाधर तिलक का भी नाम है, जिन्होंने “स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है” के नारे से स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लाखों लोगों को प्रेरित किया।
- बाल गंगाधर तिलक बचपन से ही नीडर स्वभाव के थे, जो अन्याय के विरुद्ध लड़ते थे। यह अन्याय को सहन करने वालों में से नहीं थे।
- बाल गंगाधर तिलक बहुत ही उदार दिल के व्यक्ति थे। बचपन से ही उनके अंदर यह उदारता की भावना थी। एक बार इनकी माता ने इनको मिठाई के दो टुकड़े दिए, जिनमें से बड़ा टुकड़ा इन्हें खाने के लिए कहा और छोटे टुकड़े को इनके मित्र को देने के लिए कहा। जब यह बाहर गए तो वहां पर अपने दोस्त को बड़ा टुकड़ा देखकर छोटा टुकड़ा स्वयं खा लिया। इनकी माता यह सब प्रसंग देख रही थी और उसके बाद फिर माता ने बाल गंगाधर तिलक को घर के अंदर बुलाया और कहा कि जब मैंने तुम्हें बड़ा टुकड़ा स्वयं खाने के लिए और छोटा टुकड़ा तुम्हारे दोस्त को देने के लिए कहा था तो फिर तुमने ऐसा क्यों नहीं किया? बाल गंगाधर तिलक ने कहा कि मुझे दूसरों को अधिक देने में अत्यधिक आनंद आता है। बाल गंगाधर तिलक की तरह ही हर व्यक्ति दूसरों को ज्यादा देने में और स्वयं को कम देने में विश्वास करें तो जीवन में संघर्ष समाप्त हो जाए और अपने आप स्नेह और सौजन्य की भावना उत्पन्न हो जाए।
FAQ
बाल गंगाधर तिलक ने एक समाज सुधारक, दार्शनिक और पत्रकार के तौर पर अपनी पहचान बनाई। इसलिए इन्हें लोकमान्य का उपाधि दिया गया।
बाल गंगाधर तिलक के पिता का नाम गंगाधर रामचंद्र तिलक और माता का नाम पार्वती बाई गंगाधर था।
बाल गंगाधर तिलक का जन्म महाराष्ट्र में स्थित रत्नागिरी जिले के एक छोटे से चिखली नामक गांव में 30 जुलाई 1856 को हुआ था।
रत्नागिरी
ब्रिटिश शासन के दौरान लोगों में जनजागृति का कार्यक्रम करने के लिए, लोगों में देश प्रेम की भावना जगाने के लिए और अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष का साहस भरा भाव उत्पन्न करने के लिए बाल गंगाधर तिलक ने महाराष्ट्र में गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव जैसे त्योहार सप्ताह भर मनाना प्रारंभ किया।
साला 1892 में भाऊसाहेब रंगारी नामक स्वतंत्रता सेनानी ने की थी। इस प्रकार श्रीमंत भाऊसाहेब रंगारी गणपति ट्रस्ट वास्तव में पहला सार्वजनिक गणेशोत्सव है।
बर्मा के जेल में 6 साल की कैद के दरमियान बाल गंगाधर तिलक ने श्रीमद भगवत गीता के कर्म योग की वृहद व्याख्या करते हुए गीता रहस्य नामक पुस्तक की रचना की। इस ग्रंथ के माध्यम से बाल गंगाधर तिलक ने लोगों को बताया कि गीता का चिंतन स्वार्थपूर्ण सांसरिक जीवन बिताने के बाद अवकाश के समय खाली बैठकर पुस्तक पढ़ने वाले लोगों के लिए नहीं है।
बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में देश का दुर्भाग्य नामक शीर्षक से एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध किया था। जिसके कारण ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए के अंतर्गत राजद्रोह के अभियोग में 27 जुलाई 1897 को बर्मा के मांडले जेल में 6 वर्ष की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।
नहीं बाल गंगाधर तिलक ने किसी भी प्रकार के हिंदू परंपराओं में दखलअंदाजी नहीं दी। वैसे तो यह खुद के कम उम्र में शादी करे जाने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन फिर भी हिंदू रीतियों और मान्यताओं के साथ छेड़छाड बिल्कुल पसंद नहीं थी।
निष्कर्ष
आज के लेख में हमने आपको एक प्रमुख क्रांतिकारी बाल गंगाधर तिलक के जीवन के बारे में बताया, जिसमें आपने बाल गंगाधर तिलक का प्रारंभिक जीवन, इनके माता-पिता, इनका परिवार, शिक्षा, इनका राजनीतिक सफर और इनसे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों को जाना।
हमें उम्मीद है कि यह लेख आपको पसंद आई होगी, इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। यदि आपका इस लेख से जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
यह भी पढ़े
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन परिचय
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जीवन परिचय