Biography of Arunima Sinha in Hindi: आज हम ऐसी महिला पर्वतारोही की बात करने जा रहे हैं जो कि विकलांग है। जी हां, इस पर्वतारोही महिला का नाम अरुणिमा सिन्हा है। आज के इस लेख में हम आपको बताने वाले हैं अरुणिमा सिन्हा की जीवनी और उनसे जुड़े संपूर्ण इतिहास को।
यदि आप अरुणिमा सिन्हा के बारे में जानना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही लेख को पढ़ रहे हैं। तो आइए जानते हैं कि अरुणिमा सिन्हा का जीवन परिचय (Arunima Sinha Biography in Hindi) क्या है?
अरुणिमा सिन्हा का जीवन परिचय – Biography of Arunima Sinha in Hindi
अरुणिमा सिन्हा कौन है?
अरुणिमा सिन्हा एक ऐसी महिला है जो कि विकलांग है। विकलांग होने के बाद भी यह पर्वतारोही है अर्थात यह विकलांग होने के बावजूद भी पर्वतों पर चढ़ती है। अरुणिमा सिन्हा बचपन से ही विकलांग नहीं है, उनका एक ट्रेन एक्सीडेंट हुआ था जिसके कारण उन्हें काफी चोट भी आई थी।
अतः इस घटना के दौरान उन्हें अपना एक पैर भी त्यागना पड़ा था। अरुणिमा सिन्हा ने एक विद्यालय से पर्वतारोहण का कोर्स किया हुआ था। इसके अलावा यह बचपन से ही वॉलीबॉल और फुटबॉल को अपना प्रिय खेल माना करती थी। अरुणिमा सिन्हा एक बहुत ही साहसी महिला है।
अरुणिमा सिन्हा का जन्म
अरुणिमा सिन्हा का जन्म वर्ष 1988 के जुलाई माह के 20 तारीख को उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में हुआ था। अरुणिमा सिन्हा के माता पिता कौन है, यह नहीं पता चल पाया है क्योंकि लोगों का ऐसा मानना है कि अरुणिमा सिन्हा को किसी और ने पाला है।
अरुणिमा सिन्हा की शिक्षा
अरुणिमा सिन्हा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश से ही पूरा किया है। उत्तर प्रदेश में अपना पठन-पाठन पूरा करने के बाद अरुणिमा सिन्हा नेहरू इंस्टीट्यूट आफ माउंटेनियरिंग नामक कॉलेज में दाखिल हो गई। इन्होंने उत्तरकाशी से पर्वतारोहण का भी कोर्स किया हुआ था। अरुणिमा सिन्हा को पर्वतारोहण करना और वॉलीबॉल खेलना काफी पसंद था। अतः यह पर्वतारोहण करने के साथ-साथ वॉलीबॉल भी खेला करती थी।
अरुणिमा सिन्हा का ट्रेन हादसा कैसे हुई?
एक बार अरुणिमा सिन्हा ने सीआईएसएफ की परीक्षा के लिए आवेदन किया था। इसके लिए उन्हें इस परीक्षा में शामिल होना था। इस परीक्षा में शामिल होने के लिए उन्हें दिल्ली जाना पड़ा था। वर्ष 2011 की अप्रैल माह की 21 तारीख को अरुणिमा सिन्हा पद्मावत एक्सप्रेस में यात्रा कर रही थी। यात्रा के दौरान कुछ बदमाशों ने उनसे सोने की चेन और उनके बैग को छीनने की कोशिश की।
इस छीना झपटी के दौरान अरुणिमा सिन्हा ट्रेन से नीचे गिर गई। ट्रेन से नीचे गिरने के पश्चात अरुणिमा सिन्हा दूसरे ट्रैक पर चली गई, तभी उस ट्रैक पर उन्होंने रेलगाड़ी को आते हुए देखा, जब तक कि वह स्वयं को बचाने के लिए पटरी से हट पाती तब तक ट्रेन उनके पैरों को कुचल चुका था।
इस दुर्घटना की छानबीन होने के बाद यह पता लग पाया कि इस दुर्घटना के बाद उनके पैर के ऊपर से लगभग 49 रेलगाड़ियां गुजर चुकी थी। 49 रेलगाड़ियां गुजर जाने का अनुमान आप स्वयं भी लगा सकते हैं कि कितना दर्दनाक रहा होगा। इस हादसे के बाद उन्हें एक हॉस्पिटल में शिफ्ट किया गया।
अरुणिमा सिन्हा का एक पैर काटना पड़ा
इस ट्रेन दुर्घटना के कारण अरुणिमा सिन्हा का पैर इतने बुरी तरीके से कुचला जा चुका था कि उनका एक पैर काटना पड़ा। अरुणिमा सिन्हा का एक पैर काटने के बाद भी अस्पताल में एक बिस्तर पर लेटी थी। परिवार के लोग उन्हें देखते थे और स्वयं में ही रोते थे। अरुणिमा सिन्हा को अन्य लोगों के दृष्टि से एक गरीब तथा दुखियारी औरत के रूप में देखा जाता था।
अरुणिमा सिन्हा को यह बात बहुत ही बुरी लगी और उन्होंने यह फैसला कर लिया कि वह ऐसा कार्य करेंगी जो कि लोगों के लिए एक मिसाल बन सके। अपने इस फैसले को पूरा करने के लिए उन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने का फैसला कर लिया।
क्या अरुणिमा सिन्हा का दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने का फैसला सफल हुआ?
अरुणिमा सिन्हा का यह मानना था कि जो उनका कटा हुआ पैर है, वह उनकी कमजोरी नहीं बन सकता, इसके लिए उन्होंने अपनी ताकत को बरकरार रखा। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने के लिए अरुणिमा सिन्हा ने कटे हुए पैर में एक फाइबर और लोहे की मिक्स्ड पैर लगवाया। अरुणिमा सिन्हा जिस पर्वत चोटी पर चढ़ी थी, उस पर्वत चोटी का नाम माउंट एवरेस्ट था।
अरुणिमा सिन्हा के साथ घटी रेल दुर्घटना और उसके बाद घटित अन्य सभी दुर्घटनाएं इतनी दर्दनाक थी कि अरुणिमा सिन्हा की आंखों में बार-बार आंसू आ जाते थे। परंतु अरुणिमा सिन्हा की आंसुओं ने और कमजोर बनाने की बजाय उन्हें और भी अधिक प्रोत्साहन दिया। अरुणिमा सिन्हा ने विश्व की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने का खिताब भी अपने नाम कर लिया और दुनिया की सबसे पहली ऐसी औरत बन गई जो कि विकलांग होने के बावजूद भी माउंट एवरेस्ट जैसे सर्वोच्च चोटी पर चढ़ी।
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अरुणिमा सिन्हा का प्रोत्साहन
अरुणिमा सिन्हा का विवाह हो गया था और इस रेल दुर्घटना के साथ ही उनका तलाक भी हो गया था। फिर भी अरुणिमा सिन्हा ने हार नहीं मानी। उनका प्रोत्साहन उनकी बड़ी बहन और उनकी मां ने किया और इस संकट के समय में उनकी मां और बहन ने उनका साथ दिया।
ऐसे बहुत कम ही लोग थे जो अरुणिमा सिन्हा को प्रोत्साहन दे सके। उन्होंने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी प्रकार के प्रयास किए और अंततः दिल्ली के एक संगठन ने नकली पैर प्रदान कराएं। इस नकली पैर के लिए अरुणिमा सिन्हा ने कहा-
“एम से छुटकारा पाने के बाद दिल्ली के एक संगठन ने मुझे नकली पैर दिए। इसके बाद मैंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। मैंने सीधा ट्रेन पकड़ा और जमशेदपुर पहुंची, वहां मैं बछेंद्री पाल से मिली जिन्होंने माउंट एवरेस्ट को चढ़ने के लिए मुझे अपने शिष्य के रूप में स्वीकार किया। बछेंद्री पाल से मिलने के बाद मानो जैसे मुझे पैर ही लग गए उसके बाद मुझे लगने लगा कि अब मेरा सपना जरूर पूरा होगा।”
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के बाद अरुणिमा सिन्हा के निकले आंसू
बछेंद्री पाल से मिलने के बाद अरुणिमा सिन्हा ने माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई शुरू कर दी। माउंट एवरेस्ट पर चढ़ते समय अरुणिमा सिन्हा को उच्च कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अंततः जब अरुणिमा सिन्हा ने माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई को पूरा करके 21 मई 2013 को 10:55 बजे उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया। माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने के बाद उनकी आंखों से आंसू आ गए।
अरुणिमा सिन्हा का यह कहना था कि माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने के बाद उन्होंने बहुत रोया परंतु उनके आंसुओं में से ज्यादातर अंशु खुशी के थे। उन्होंने माउंट एवरेस्ट पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने सभी दुखों को मुझे छोड़ दिया और दुनिया के सर्वोच्च चोटी पर पहुंचने के बाद उन्होंने अपने जीवन को एक नए सिरे से शुरू किया।
माउंट एवरेस्ट के अलावा अन्य चोटियों की चढ़ाई
अरुणिमा सिन्हा ने माउंट एवरेस्ट के अलावा अन्य चोटियों की भी चढ़ाई को भी अंजाम दिया है। जिनमें से कुछ चोटियों के नाम और उनकी ऊंचाई नीचे निम्नलिखित रुप से दर्शाई गई है।
- अर्जेटीना के अकोंकागुआ पर्वत पर (6961 मीटर)
- यूरोप के एलब्रुस पर्वत पर (5631 मीटर)
- अफ्रीका के किलिमंजारी पर्वत पर (5895 मीटर)
अरुणिमा सिन्हा के द्वारा इस कार्य को करने का उद्देश्य
अरुणिमा सिन्हा द्वारा इस कार्य को करने के पीछे उद्देश्य था कि कोई भी व्यक्ति स्वयं की शारीरिक अवस्था को देख कर के किसी भी प्रकार की निष्क्रियता ना करें बल्कि अपनी उस अवस्था से बाहर निकालने का रास्ता ढूंढे। अरुणिमा सिन्हा के द्वारा इस कार्य को करने के पीछे मुख्य उद्देश्य यही था।
अरुणिमा सिन्हा को मिले सम्मान/पुरस्कार
- वर्ष 2015 में अरुणिमा को भारत सरकार द्वारा भारत के चौथे सबसे बड़े सम्मान पदमश्री से नवाजा गया।
- वर्ष 2016 में अरुणिमा को तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर अवार्ड प्रदान किया गया। इस अवार्ड को अर्जुन पुरस्कार के समान माना जाता है।
- वर्ष 2018 में अरुणिमा सिन्हा प्रथम महिला पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
उतरप्रदेश सरकार ने अरुणिमा सिन्हा के इस जज्बे को सलाम करते हुए 25 लाख रुपये का चेक इनाम के रूप में प्रदान किया। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार ने 20 लाख रुपये प्रदान किये और समाजवादी पार्टी द्वारा भी 5 लाख की राशि प्रदान की गई।
भारत भारती संस्था, सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) द्वारा विकलांग महिला अरुणिमा सिन्हा को दुनिया की सबसे शीर्ष चोटी माउंट एवरेस्ट चढ़ाई करके तिरंगा फहराने के लिए सुनपुर रत्न अवॉर्ड से सम्मानित करने की घोषणा की। इसके बाद अरुणिमा सिन्हा को वर्ष 2016 में अम्बेडकरनगर महोत्सव समिति द्वारा अम्बेडकरनगर रत्न पुरस्कार प्रदान किया गया।
इन सबके अलावा अरुणिमा सिन्हा को राज्य स्तर पर भी कई बार सम्मानित किया जा चुका है।
निष्कर्ष
आज के इस लेख “अरुणिमा सिन्हा की कहानी (Arunima Sinha Story in Hindi)” में आपको बताया कि किस प्रकार अरुणिमा सिन्हा ने अपनी शारीरिक दशा खराब होने के कारण भी एक ऐसा फैसला लिया जिसे करना सामान्य लोगों के लिए बहुत ही मुश्किल था। फिर भी उन्होंने अपने इस फैसले को पूरा किया और हमें कभी ना हारने का उद्देश्य दिया।
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