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भगत सिंह का जीवन परिचय

Bhagat Singh Biography in Hindi

Bhagat Singh Biography in Hindi: भगत सिंह भारत के महान विभूतियों में से एक है। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे प्रभावशाली क्रांतियां में से एक भगत सिंह थे, जो देश के स्वतंत्रता दिलाने की लड़ाई में सभी नौजवानों के लिए यूथ आईकॉन थे।

मात्र 23 वर्ष के आयु में ही भगत सिंह ने अपने देश के लिए प्राण न्योछावर कर दिए। भगत सिंह का जीवन संघर्षों से भरा रहा। उनका जीवन संघर्ष आज भी नौजवानों को प्रेरणा देती है, प्रोत्साहित करती है।

इस लेख में भगत सिंह की जीवनी (Bhagat Singh Biography in Hindi) के बारे में जानेंगे, जिसमें इनके जन्म, परिवार, शिक्षा, क्रांतिकारी जीवन, भगत सिंह की मृत्यु कब और कैसे हुई आदि के बारे में बताया है।

भगत सिंह का जीवन परिचय (Bhagat Singh Biography in Hindi)

नामभगत सिंह
जन्म और जन्म स्थान27 सितंबर 1960, बंगा गाँव, तहसील जरनवाला, जिला लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान में)
पिता का नामसरदार किसान सिंह
माता का नामविद्यावती कौर
वैवाहिक स्थितिअविवाहित
शिक्षाडी.ए.वी. हाई स्कूल (लाहौर), नेशनल कॉलेज (लाहौर)
आन्दोलनभारतीय स्वतन्त्रता संग्राम
प्रमुख संगठनहिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएसन, नौजवान भारत सभा
प्रसिद्धिक्रांतिकारी
जीवनकाल23 वर्ष
स्मारकद नेशनल शहीद मेमोरियल, हुसैनवाला, पंजाब
मृत्यु23 मार्च 1931 को शाम के 7: 33 बजे (फांसी), लाहौर (पाकिस्तान)
फांसी का कारणबड़े अंग्रेजी सरकार के अधिकारी की हत्या का आरोप

भगत सिंह का प्रारंभिक जीवन

भगत सिंह एक आर्य सामाजिक सिख परिवार से थे। उनका जन्म 27 सितंबर 1907 (अश्विन कृष्णपक्ष सप्तमी) को लायलपुर जिले के बंगा नामक स्थान पर हुआ था, जो कि वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है। उनके पैतृक गांव भारत पंजाब में स्थित खट्कड़ कलां है।

उनके पिता का नाम किशन सिंह था। उनके जन्म के समय उनके पिता, उनके चाचा और परिवार के कुछ और सदस्य जेल में थे। क्योंकि 1906 में ब्रिटिश सरकार के द्वारा औपनिवेशीकरण विधेयक लागू किया गया था।

उसके खिलाफ प्रदर्शन में भाग लेने के जुर्म में उन लोगों को जेल में डाल दिया गया था। उनकी माता का नाम विद्यावती कौर था। भगत सिंह के कुल 10 भाई बहन थे।

भगत सिंह की शिक्षा

भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव से पूरी हुई। उसके बाद उनके पिता ने उनका दाखिला लाहौर के दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में करा दिया। बहुत छोटी उम्र से ही देशभक्ति की भावना उनमें जागृत हो चुकी थी। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से बचपन में ही जुड़ चुके थे।

भगत सिंह ने अपनी ग्रेजुएशन की शिक्षा लाहौर के नेशनल कॉलेज से पूरी की थी। भगत सिंह बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में बहुत अच्छे थे। इसके साथ ही वह बहुत अच्छे एक्टर भी थे।

वे अपने कॉलेज के दौरान कई नाटक में भाग लिया करते थे। उनके स्क्रिप्ट देशभक्ति से परिपूर्ण होते थे। उन्हें लिखने का भी बहुत शौक था। अपने कॉलेज के दौरान उन्हें निबंध में कई सारे प्राइस मिल चुके थे।

वे शुरुआत से ही बहुत मस्त मौले इंसान थे। कॉलेज में पढ़ने के दौरान वे बाकी युवाओं को देश की आजादी में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित भी करते थे।

भगत सिंह का परिवार था क्रांतिकारी

भगत सिंह को अपने परिवार से ही देशभक्त और क्रांतिकारी के संस्कार मिले थे। उनके पिता किशन सिंह खुद एक क्रांतिकारी थे। इसके अलावा उनके एक चाचा सरदार अजीत सिंह भी महान भारतीय देशभक्त थे।

उनके चाचा के खिलाफ 22 मामले दर्ज हुए थे, जिसके कारण उन्हें ईरान भागने के लिए मजबूर होना पड़ा था। उनके परिवार गदर पार्टी के समर्थक थे, इसी कारण भगत सिंह के मन में बचपन से ही देश भक्ति का खून उनके जहन में दौड़ रहा था।

अपने परिवार के कुछ क्रांतिकारी सदस्यों से भगत सिंह में देश के प्रति लगाव और समर्पित होने का भाव जागृत हुआ। भारत को अपनी माता मानते हुए उन्होंने देश को आजादी दिलाने का संकल्प बहुत कम उम्र में ही ले लिया था।

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भगत सिंह एक क्रांतिकारी के रूप में

भगत सिंह बचपन से ही गांधी जी के असहयोग आंदोलन का समर्थन करते थे। जब वे कॉलेज में थे, उस समय उनकी मुलाकात भगवती चरण, सुखदेव थापर और भी कुछ लोगों से हुई थी।

उस समय देश में आजादी की लहर बहुत जोरों शोरों पर थी। देश प्रेम में आकर भगत सिंह अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर देश की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड का उन पर बहुत ही गहरा असर हुआ।

उसके बाद वे खुले आम अंग्रेजों को ललकारते थे, ब्रिटिश बुक्स को जला दिया करते थे। जब चोरी चारा हत्याकांड हुआ तब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को बंद कर दिया।

गांधी जी के उस फैसले से भगत सिंह बहुत ही नाराज हुए। उसके बाद गांधीजी के अहिंसावादी रास्ते पर चलना छोड़कर वे दूसरी पार्टी से जुड़ गए। भगत सिंह नौजवान भारत सभा में शामिल हो गए, जहां पर उन्हें सभा का सेक्रेटरी बनाया गया।

1928 में वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन पार्टी से जुड़ गए, जिसका निर्माण चंद्रशेखर ने किया था। उसके बाद चंद्रशेखर आजाद और अन्य क्रांतिकारी सदस्यों के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया।

30 अक्टूबर 1928 को ब्रिटिश सरकार के द्वारा जबरन साइमन कमीशन को लागू करने पर जब लोगों के द्वारा विरोध किया गया तो उस विरोध प्रदर्शन में लाला लाजपत राय के सर पर ब्रिटिश सरकार के द्वारा लाठी चार्ज होने से घायल गए और फिर उनकी मृत्यु हो गई।

लाला लाजपत राय की मृत्यु से भगत सिंह को बहुत ज्यादा आघात पहुंचा। जिसके बाद उन्होंने ब्रिटिश सरकार से प्रतिशोध लेने की ठानी।

फिर अपने दो दोस्त राजगुरु और सुखदेव के साथ मिलकर लाला लाजपत राय की मृत्यु के जिम्मेदार ऑफिसर जेपी सांडर्स को मारने का प्लान बनाया। लेकिन भूलवश असिस्टेंट पुलिस सौन्देर्स को मार डाला। उसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पकड़ने के लिए चारों तरफ जाल बिछाया।

खुद की जान बचाने के लिए भगत सिंह ने सिख धर्म के नियमों की अवहेलना करते हुए अपनी दाढ़ी मूछ कटवा डाली। उस समय उनके लिए अपने धर्म से भी बड़ा उनका देश धर्म था। अपने देश की रक्षा के लिए वे कुछ भी करने को तैयार थे।

शहीद भगत सिंह की मृत्यु

वर्ष 1929 को भगत सिंह ने अपने दो साथी राजगुरु और सुखदेव के साथ ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कुछ बड़ा धमाका करने का सोचा। भगत सिंह ने अलीपुर रोड स्थित ब्रिटिश सरकार की असेंबली हॉल में बम फेंक दिया।

बम फेंकने के बाद भी वे वहां से हटे नहीं, इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते रहे। वहीं पर रुक कर उन्होंने खुद को गिरफ्तार करवा दिया। उसके बाद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव तीनों लोगों पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई।

जेल में रहते हुए भी भगत सिंह शांत नहीं रहे, जेल में हिंदू कैदियों के साथ हो रहे अत्याचार का उन्होंने विरोध किया। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु तीनों को फांसी दे दी गई।

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव तीनों को फांसी की सजा 24 मार्च को देने का फैसला सुनाया गया था लेकिन तीनों की रिहाई के लिए उस समय पूरे देश में प्रदर्शन हो रहा था।

जिसके कारण अंग्रेजों को डर था कि कहीं अगले ही दिन फैसला बदल ना जाए। उस डर से अंग्रेजों ने 23 मार्च के मध्य रात्रि में ही तीनों को फांसी  दी। जनसमूह विरोध प्रदर्शन ना करें, उस डर से उन्होंने तीनों का अंतिम संस्कार भी जेल में ही कर दिया।

कहते हैं कि जब तीनों को फांसी दी जा रही थी, उस समय भी तीनों के चेहरे पर जरा भी डर नहीं था। तीनों मुस्कुराते हुए इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगा रहे थे।

उनके हौसलों को देखकर एक पल के लिए तो ब्रिटिश सरकार के भी होश उड़ गए थे। एक सच्चा देशभक्त हिंदुस्तानी ही खुशी-खुशी इस तरह देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर सकता है।

निष्कर्ष

भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी जब हमारे देश में जन्म लेते हैं तो हमारे देश की भूमि धन-धान्य हो जाती है। आज भले ही वे हमारे बीच नहीं है लेकिन देश के लिए उनका बलिदान आज भी युवाओं को प्रेरित करती है।

देश की आजादी में उनके बलिदान, उनके योगदान को हमेशा याद रखने के लिए उनके मृत्यु दिवस 23 मार्च को हर साल शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।

हमें उम्मीद है कि इस लेख में भगत सिंह का जीवन परिचय हिंदी में के जरिए आपको भगत सिंह के जीवन संघर्षों के बारे में जानने को मिला होगा।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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