बटुकेश्वर दत्त एक स्वतंत्रता सेनानी है, जिन्होंने देश की आजादी के लिए बलिदान दिया। पहली बार बटुकेश्वर दत्त को भगत सिंह के साथ असेंबली में बम फेंकने वाले क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने पर देखा गया था।
उसके बाद लोगों ने बटुकेश्वर दत्त को स्वतंत्रता सेनानी मान लिया और सहयोग करना शुरू कर दिया था। बटुकेश्वर दत्त ने भगत सिंह के साथ मिलकर अनेक सारे विद्रोह किए और अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने में बहुत बड़ा योगदान दिया।
बटुकेश्वर दत्त अपने जीवन में अनेक सारे अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा। बटुकेश्वर दत्त को अंग्रेजों की गुलामी बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। उन्होंने अंग्रेजों से देश को आजाद कराने के लिए हर संभव प्रयास किए, अनेक बार जेल गए, तरह-तरह की प्रताड़ना सहन की, अंग्रेजों ने उन्हें अनेक तरह की सजा दी, फिर भी जेल से छूटने के बाद फिर से उन्होंने विद्रोह करना शुरू कर दिया और हर समय अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे।
हमारे देश में 23 मार्च के दिन शहीद दिवस मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन अंग्रेजों ने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु जैसे स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारियों को फांसी की सजा दी थी।
इस दिन देश के सभी स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, बलिदान दिया, सजा भुगती, उन सभी को याद किया जाता है। इस कड़ी में बटुकेश्वर दत्त भी शामिल है। दत्त ने भी तरह-तरह की लड़ाइयां लड़ी, विद्रोह किया और हर संभव प्रयास से अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए थे। तो आइए आज उनका जीवन परिचय जान लेते हैं।
बटुकेश्वर दत्त का जीवन परिचय (जन्म, परिवार, शिक्षा, काला पानी सजा, प्रताड़ना, मृत्यु)
बटुकेश्वर दत्त की जीवनी एक नजर में
नाम | बटुकेश्वर दत्त |
जन्म | 18 नवंबर 1910 |
जन्म स्थान | औरी ग्राम, जिला नानी बेदवान (बंगाल) |
शिक्षा | स्नातक की डिग्री |
पिता का नाम | गोष्ट बिहारी दत्त |
माता का नाम | – |
पत्नी का नाम | अंजलि दत्त |
शादी | नवंबर 1947 |
पहचान | स्वतंत्रता सेनानी |
कार्य | स्वतंत्रता आंदोलन, विद्रोह, क्रांति |
सजा | काला पानी की सजा, जेल, प्रताड़ना |
मृत्यु | 20 जुलाई 1965 |
बटुकेश्वर दत्त का प्रारंभिक जीवन
बटुकेश्वर दत्त का जन्म औरी ग्राम जिला नानी बेदवान (बंगाल) में 18 नवंबर 1910 को हुआ था। बटुकेश्वर दत्त के पिता का नाम गोष्ट बिहारी दत्त था। उनकी पत्नी का नाम अंजली दत्त था। वह हिंदू धर्म से संबंध रखते थे।
बटुकेश्वर दत्त ने पीपीएन कॉलेज कानपुर से स्नातक की डिग्री हासिल की, जिसके बाद सन 1925 में उनके माता-पिता का देहांत हो गया। उसके बाद उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद और वीर भगत सिंह से हुई और वे स्वतंत्रता सेनानी बन गए।
बटुकेश्वर दत्त ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ज्वाइन कर लिया और कानपुर से कार्य करना प्रारंभ कर दिया था। इस दौरान उन्हें बम बनाने का कार्य सिखाया जाता था और अंग्रेजों से किस तरह से लड़ना है यह भी सिखाया जाता था।
बटुकेश्वर दत्त ने राजगुरु, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद इन सभी प्रमुख और लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर अनेक जगहों पर अंग्रेजों पर बम बरसाए, अंग्रेजों का नाश किया और जगह-जगह विद्रोह किया था।
नेशनल असेंबली में बम फोड़ना
पहली बार बटुकेश्वर दत्त ने सन 1929 में 8 अप्रैल को दिल्ली में स्थित केंद्रीय विधानसभा (जो वर्तमान में संसद भवन है) पर अंग्रेजों पर भगत सिंह के साथ मिलकर बम विस्फोट कर दिया था, क्योंकि उस समय ब्रिटिश सरकार की तानाशाही बढ़ गई थी।
देश की संसद में ब्रिटिश सरकार भारतीय के खिलाफ दो बिल पास कर रही थी, जिसे बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह ने बम विस्फोट करके नहीं करने दिया। स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद ने अपनी अगुवाई में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी का गठन करवाया था।
इस आर्मी में बटुकेश्वर दत्त को अहम सदस्य बना दिया गया था। बटुकेश्वर दत्त का जज्बा देखकर चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह काफी खुश हुए और उन्होंने बटुकेश्वर दत्त को अपना दोस्त मान लिया, जिसके बाद उन्होंने मिलकर अनेक सारे कार्य किए।
बटुकेश्वर दत्त ने आर्मी के तहत ट्रेनिंग ली और तरह-तरह की क्रांतिकारी गतिविधियों में सीधे तौर पर भाग लिया। क्रांतिकारियों के खिलाफ अंग्रेज सरकार ने “डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट” लाने की योजना बनाई, तो बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह ने भी इस बिल का विरोध करने के लिए एक योजना बनाई और नेशनल असेंबली में बम फोड़ने का मन बनाया।
दिल्ली की संसद में बम फोड़ने का इरादा केवल अंग्रेजों को चेतावनी देना था, ना किसी को जान से मारना का। इस बम विस्फोट के बाद पोस्टर उछाल कर अपना विरोध प्रदर्शन प्रदर्शित करना था और वह दिन आ गया। सन 1929 को 8 अप्रैल के दिन देश की संसद में अंग्रेजी सरकार ने पब्लिक सेफ्टी बिल पेश करने के लिए रखा।
लेकिन संसद में किसी भी तरह से भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त चोरी छुपे घुस गए और बिल पेश होते ही खाली टेबल के ऊपर बम फोड़ दिया। इसमें किसी को कोई भी हानि नहीं हुई, लेकिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
कोर्ट में बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह ने भी इस बात को कहा कि बम फोड़ने का अर्थ केवल उन लोगों को जगाना था, जो उनकी बात नहीं सुनते हैं। उन्होंने बम विस्फोट के जरिए केवल अपना विरोध जाहिर किया था, जिसके बाद एक रिपोर्ट में भी यह खुलासा हो गया कि बम इतना शक्तिशाली नहीं था। केवल विरोध प्रदर्शन करने के लिए इस्तेमाल किया गया था।
गिरफ्तारी के समय बटुकेश्वर दत्त एवं भगत सिंह ने “इंकलाब जिंदाबाद – साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” के नारे भी लगाए थे। इन्हें गिरफ्तार करने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के चाहने वालों ने लॉर्ड इरविन की ट्रेन में बम विस्फोट कर दिया, यह मामला काफी पॉपुलर हुआ था।
काला पानी की सज़ा
देश के स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा दे दी गई थी। लेकिन बटुकेश्वर दत्त को काला पानी की सजा दी गई थी। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि काला पानी की सजा फांसी की सजा से भी भयंकर और खतरनाक होती है।
इस सजा के दौरान सजा पाने वाला खुद मौत मांगता है, लेकिन उन्हें मौत नहीं दी जाती है, तड़पाया जाता है। बता दें कि वीर सावरकर को भी अंग्रेजों ने काला पानी की सजा दी थी, लेकिन बटुकेश्वर दत्त के बारे में लोग ज्यादा नहीं जानते हैं।
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा देने के बाद बटुकेश्वर दत्त को अंडमान भेज दिया गया। जहां पर अंग्रेजों ने सेल्यूलर जेल बनाई थी। इस जेल में भारत के स्वतंत्रता सेनानी, विद्रोही और क्रांतिकारियों को काला पानी की सजा दी जाती थी।
यहां जेल अत्यंत खतरनाक और काल कोठरी से बनी हुई है। यहां पर केवल अंधेरा ही अंधेरा है, अंग्रेज इस जेल में क्रांतिकारियों को टॉर्चर करते थे, हर समय मारते थे।
काला पानी की सजा के बाद बटुकेश्वर दत्त अत्यंत कमजोर पड़ गए थे। टीबी की बीमारी हो गई थी, जिसके बाद उन्हें सन 1937 में उनकी पूर्व में बने केंद्रीय कारागार में डाल दिया गया था, यह पटना के अंतर्गत आता है।
1 वर्ष बाद उन्हें यहां से रिहा कर दिया गया, लेकिन जेल से छूटने के बाद उन्होंने “भारत छोड़ो अभियान” में भाग लिया, जिसके बाद उसे फिर से 4 वर्ष के लिए जेल में डाल दिया गया था। 4 वर्ष बाद छुटने के बाद फिर से उन्होंने विद्रोह और क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया।
आजादी के बाद बटुकेश्वर दत्त
अनेके सारे विद्रोह, क्रांतियां और स्वतंत्रता संग्राम के बाद आखिरकार देश को आजादी मिल ही गई। वर्ष 1947 में देश को मिली आजादी के बाद बटुकेश्वर दत्त अत्यंत खुश हुए।
देश को आजादी मिलने के बाद नवंबर 1947 में बटुकेश्वर दत्त ने अंजली से शादी कर ली थी। कुछ दिनों तक दोनों का जीवन हंसी खुशी से गुजरा, उसके बाद उनके जीवन में कष्ट-पीड़ा आने लगी और गरीबी ने बटुकेश्वर दत्त को अपनी पकड़ में पकड़ लिया है। बटुकेश्वर दत्त की पत्नी अंजली एक स्कूल में पढ़ाई करवा दी थी, जिससे उनका घर का खर्चा चलता था।
बटुकेश्वर दत्त ने अपने जीवन में अनेक सारे कष्ट सहे। देश के लिए अपना योगदान दिया, लेकिन देश ने उन्हें कोई खास सम्मान नहीं दिया था। भारत आजाद होने के बाद उन्होंने अपना जीवन गरीबी में गुजारा था। उन्हें किसी भी तरह का कोई भी सम्मान नहीं मिला और ना ही सरकार की तरफ से कोई सहायता मिली थी।
यहां तक की एक बार पटना में बसों के लिए परमिट मिल रहे थे, तब उन्होंने परमिट का आवेदन किया तो कमिश्नर ने उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र भी मांग लिया। हालांकि इस बात का जब राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को पता चला, तो उन्होंने कमिश्नर को फटकार लगाई।
बटुकेश्वर दत्त का आखिरी समय
बटुकेश्वर दत्त अपने जीवन में गरीबी से तो झुझ ही रहे थे कि वर्ष 1964 में वे बीमार पड़ गए, जिसके बाद उन्हें पटना के सरकारी अस्पताल में ले जाया गया। जहां उन्हें कोई नहीं जानता और उनके इलाज के लिए कोई भी चिंता नहीं कर रहा था।
इस बात का उन्हें बहुत दुःख हुआ। कुछ दिनों तक बटुकेश्वर दत्त पटना के सरकारी अस्पताल में ही पड़े रहे, लेकिन किसी ने परवाह नहीं कि आखिरकार एक पत्रकार द्वारा न्यूज़ छापने के बाद सरकारी गलियारों में इस बात की चर्चा होने लगी।
बटुकेश्वर दत्त को बीमार हुए काफी दिन बीत चुके थे और अब जाकर सरकार के कान खुले। लेकिन तब तक बटुकेश्वर दत्त का स्वास्थ्य अत्यंत बिगड़ गया था, इसके लिए उन्हें 22 नवंबर 1964 को दिल्ली लाया गया। दिल्ली में वे अपाहिज स्थिति में स्ट्रेचर पर रखे हुए थे।
यह स्थिति बटुकेश्वर दत्त को मन ही मन खाई जा रहे थे, उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि जिस दिल्ली में उन्होंने देश की आजादी के लिए बम फोड़ा था, उसी दिल्ली में उन्हें इस तरह से अपाहिज की तरह स्ट्रेचर पर लाया जाएगा। बटुकेश्वर दत्त ने ऐसा पत्रकारों से कहा था।
दिल्ली में इलाज के दौरान डॉक्टरों ने बताया कि बटुकेश्वर दत्त को कैंसर है। इसीलिए वे ज्यादा दिन तक जीवित नहीं रह सकते। अब उनके जीवन में कुछ ही दिन बचे हैं।
इस बात की सूचना मिलने पर पंजाब के मुख्यमंत्री रामकिशन उनसे मिलने पहुंचे तो बटुकेश्वर दत्त ने मुख्यमंत्री से कहा कि “मेरा दाह संस्कार मेरे मित्र भगत सिंह की समाधि के पास में ही किया जाए, यही मेरी अंतिम इच्छा है।” उसके बाद वे कोमा में चले गए और 20 जुलाई 1965 की रात को उनका देहांत हो गया।
उनकी अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए पंजाब सरकार ने भारत-पाकिस्तान सीमा के पास सट्टा हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की समाधि स्थल के पास में ही बटुकेश्वर दत्त का अंतिम संस्कार किया। बटुकेश्वर दत्त को अपने मित्र के पास में ही अंतिम विदाई दी गई।
बटुकेश्वर दत्त के जीवन पर एक किताब तो लिखी गई, लेकिन उनके जीवन में देश आजाद होने के बाद भी किसी ने कोई सहायता नहीं की और ना ही कोई सम्मान दिया।
इसी तरह अनेक सारे क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी हुए हैं, जिन्हें देश नहीं जानता और ना ही उन्हें कोई सम्मान दिया गया है। बटुकेश्वर दत्त को सम्मान के तौर पर एक पुस्तक लिखी गई है और दिल्ली में एक कॉलोनी का नाम रखा गया है।
FAQ
स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवंबर 1910 को हुआ था। बटुकेश्वर दत्त औरी ग्राम जिला नानी बेदवान (बंगाल) में जन्मे थे। यहां पर ही उन्होंने अपना बचपन गुजारा था।
बटुकेश्वर दत्त की पत्नी का नाम अंजली था, जिससे उन्होंने देश आजाद होने के बाद शादी की थी। अंजली स्कूल में बच्चों को पढ़ाती थी, जिससे उनका घर खर्च चलता था।
सन् 1925 में बटुकेश्वर दत्त के माता-पिता का निधन होने के बाद कानपुर में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए।
बटुकेश्वर दत्त भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद से पहली बार कानपुर में सन 1925 में मिले थे, जिसके बाद वह घनिष्ठ मित्र बन गए और आजादी के लिए साथ में काम करने लगे।
निष्कर्ष
बटुकेश्वर दत्त एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। अपना रक्त बहाया, काला पानी की सजा पाई, गरीबी का सामना किया, बीमारियों का सामना किया। उसके उपरांत भी उन्हें किसी भी तरह की कोई भी सहायता प्रदान नहीं की गई।
कोई भी रोजगार नहीं दिया गया और ना ही उन्हें कोई खास सम्मान दिया गया। देश आजाद होने के बाद भी उन्हें किसी तरह का सम्मान नहीं मिलना, बटुकेश्वर दत्त को चुप करा रहा था।
बटुकेश्वर दत्त ने देश के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया और अंग्रेजों की यातनाएं सही थी। लेकिन जीवन के अंतिम समय में उन्होंने गरीबी का सामना किया और जब वे बीमार हुए, तब भी उन्हें इलाज के लिए सहायता नहीं मिली।
ऐसे देश के अनेक सारे स्वतंत्रता सेनानी, विद्रोही एवं क्रांतिकारी हुए हैं, जिन्होंने देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। लेकिन देश ने उन्हें सम्मान नहीं दिया। लोगों ने उनका नाम तक नहीं जाना।
आज के इस आर्टिकल में हमने आपको पूरी जानकारी के साथ विस्तार से बटुकेश्वर दत्त का जीवन परिचय बताया है। हमें उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित हुई होगी, आप बटुकेश्वर दत्त के जीवन से जरूर प्रभावित हुए होंगे। यदि आपका इस लेख से जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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