कहते हैं कि देश आजाद हुआ था, लेकिन लोग अपनी जान बचाकर भाग रहे थे। कोई घर छोड़ कर भाग रहा था तो कोई जमीन, कोई गांव छोड़ कर भाग रहा था तो कोई शहर और कुछ लोग ऐसे भी थे, जो अपनी जान बचाने के लिए अपने बच्चे, अपने परिवार तक को छोड़कर भाग रहे थे। क्योंकि देश को आजादी मिली थी।
एक ऐसी आजादी, जिसने मानव इतिहास के सबसे बड़े विस्थापन को देखा। जब एक झटके में करोड़ों लोग इधर से उधर हो गए, जब एक डिसीजन ने करोड़ों लोगों को एक दूसरे के जान का दुश्मन बना दिया। जिन लोगों ने एक साथ भारत की आजादी का सपना देखा था, वही लोग अब एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे।
किसी का घर जल रहा था तो किसी का गांव, कोई लहूलुहान पड़ा था तो किसी की सांसे थम रही थी, किसी का जमीन छूट रही थी तो किसी का परिवार। स्टेशन पर रुकने वाली रेलगाड़ी यात्रियों से भरी हुई थी, लेकिन किसी का सिर धड़ से गायब था तो किसी का टांग।
यह कहानी है 14 अगस्त साल 1947 के रात की जब भारत देश के इतिहास में एक ऐसी घटना हुई, जिसने इस देश का भूगोल ही बदल दिया। एक तरफ जहां लाखों करोड़ों लोग पटाखे फोड़ कर आजादी का जश्न मना रहे थे, ठीक उसी वक्त उसी रात हजारों लोगों के सर धड़ से अलग कर दिए गए। किसी का घर जलाया गया तो किसी की मां बहन बेटियों के साथ हैवानियत की गई।
आज हमारे देश को आजाद हुए 77 साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी बहुत से लोगों को नहीं मालूम कि 15 अगस्त साल 1947 से पिछली रात को क्या हुआ था?, कैसे हुआ था और क्यों हुआ था और सबसे बड़ा सवाल कि आजादी के लिए 15 अगस्त का ही दिन क्यों तय किया गया?
भारत के इस खौफनाक आजादी की जो कहानी है, वो शुरू हुई साल 1945 के दौरान जब द्वितीय विश्व युद्ध का अंत हुआ था। विश्व युद्ध के अंत होने के तुरंत बाद ब्रिटेन में चुनाव हुआ था। उस दौरान ब्रिटेन की लेबर पार्टी ने चुनावी वादा किया कि अगर चुनाव में उसकी जीत हो जाती है तब वह भारत सहित बहुत से गुलाम देशों को आजाद कर देगी।
ब्रिटेन में लेबर पार्टी की जीत हो जाती है और वादे के मुताबिक फरवरी साल 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन को इस काम के लिए भारत भेजा जाता है। लॉर्ड माउंटबेटन ने हिंदुस्तान को आजाद करने के लिए 3 जून 1948 का दिन निश्चित कर दिया।
लेकिन इसी बीच अखंड भारत के लिए एक नया और सबसे खतरनाक समस्या जन्म चुकी थी और यह थी जिन्ना की जिद।
एक तरफ लॉर्ड माउंटबेटन 3 जून 1948 का दिन निश्चित किया तो वहीं दूसरी अखंड भारत में मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने भारत में रहने वाले मुसलमानों के लिए एक नए देश की मांग करने लगे।
जी हां, मोहम्मद अली जिन्ना को भारत के भूगोल का टुकड़ा करके एक नया देश चाहिए था और वह भी खास मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए।
सामने मोहम्मद अली जिन्ना अपनी मांग को लेकर अड़े हुए थे और वही देश के हर कोने में मोहम्मद अली जिन्ना के समर्थक उत्पात मचा रखे थे। जगह-जगह पर दंगे जैसा माहौल बन गया था, जिनमें बंगाल और हैदराबाद का इलाका सबसे मुख्य था। भारत में मोहम्मद अली जिन्ना ने जो हंगामा खड़ा किया था, वह अंग्रेजों को बहुत पसंद आया।
अंग्रेजों ने सोचा कि यही सबसे बेहतरीन मौका है जब भारत को आजाद करने के साथ-साथ इसे दो टुकड़ों में भी तोड़ा जा सकता है। फिर क्या था, जो आजादी 3 जून 1948 को मिलने वाली थी, लॉर्ड माउंटबेटन ने उसके लिए 15 अगस्त 1947 का दिन तय कर दिया।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लॉर्ड माउंटबेटन ने 15 अगस्त का दिन ही इसलिए चुना क्योंकि अंग्रेजों के मुताबिक यह दिन बहुत शुभ था। इसी दिन यानी कि 15 अगस्त 1945 को जापान ने आत्मसमर्पण किया था। लेकिन वहीं दूसरी तरफ भारत में रहने वाले ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक यह दिन बहुत ही अशुभ था।
भारत में 15 अगस्त के दिन में बदलाव करने की मांग को लेकर जमकर हंगामा हुआ, लेकिन लॉर्ड माउंटबेटन किसी भी सूरत में इस दिन में बदलाव नहीं करना चाहते थे। जिसके बाद भारत में रहने वाले ज्योतिषाचार्यों ने बातचीत कर के बीच का एक रास्ता निकाला। ज्योतिषियों के मुताबिक आजादी के ऐलान को लेकर 14 और 15 तारीख की आधी रात का समय निश्चित किया गया।
ज्योतिषियों के मुताबिक 14 अगस्त की रात 11 बजकर 51 मिनट से 12 बजकर 39 मिनट के बीच का वक्त बहुत ही शुभ है। क्योंकि अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक रात के 12 बजे के बाद अगला दिन लग जाता है लेकिन हिंदी कैलेंडर के मुताबिक सूर्योदय के बाद ही दूसरा दिन शुरू होता है। इस हिसाब से अगर 14 और 15 तारीख के बीच की आधी रात को आजादी का ऐलान किया जाए तो दोनों की इच्छाएं पूरी हो जाएगी।
एक तरफ भारत को जल्द से जल्द आजाद करना था, दूसरी तरफ मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना को मुस्लिमों के लिए एक अलग देश चाहिए था और वहीं अंग्रेजों को जल्द से जल्द भारत को दो टुकड़ों में बांटना था। इसके लिए अंग्रेजों ने सीरिल रेडक्लिफ नाम के एक कसाई को भारत भेजा, जिसका काम था भारत में एक लकीर खींच कर उसे दो टुकड़ों में काट देना।
आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस इंसान को अंग्रेजों ने इस काम के लिए चुना था, वह कभी भारत आया ही नहीं था, उसे ना तो भारत के भूगोल का पता था और ना ही भारत की सांस्कृतिक बनावट का और उस आदमी ने बिना कुछ सोचे समझे ही भारत के बीच लकीर खींच डाली।
14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान नाम का एक नया देश बन गया और रात के 12 बजे के बाद यानी कि 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया। लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि दोनों ही देशों के बीच जो लकीर खींची गई थी, उसे खींचने में 17 अगस्त तक का वक्त लग गया और आजादी की घोषणा के बाद शुरू हुआ हिंदुस्तान का सबसे बड़ा कत्लेआम।
भारत की धरती पर लकीर खींच कर जैसे ही एक नये देश का ऐलान किया गया, लोग इधर से उधर भागने लगे। भारत में रहने वाले बहुत से मुसलमानों को पाकिस्तान भागने की जल्दी थी तो वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं और सिखों को भगाने का सिलसिला शुरू हो गया। ये वही लोग थे, जो एक साथ बैठकर भारत को आजाद करने का सपना देखते थे।
लेकिन ऐसी आजादी मिली कि वही लोग अब एक दूसरे की जान के दुश्मन बन चुके थे। एक तरफ भारत आजाद हुआ था तो वहीं दूसरी तरफ मानव इतिहास का सबसे बड़ा विस्थापन हुआ। विस्थापन उस मंजर को कहते हैं जब इंसान एक जगह से हटकर दूसरी जगह बसने चले जाते हैं। हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त सबसे बड़ी कीमत हिंदुस्तान की महिलाओं ने चुकाई।
जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच बंटवारे की लकीर खींची गई और उसके बाद देशभर में जो टकराव उत्पन्न हुआ। उस टकराव में लाखों महिलाओं के साथ बदसलूकी की गई। बदसलूकी की सीमा क्या होगी, इस बात का अंदाजा आप खुद हीं लगा सकते हैं।
पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों की बस्तियों पर मुसलमानों ने अपना कब्जा जमा लिया था। इतना ही नहीं कब्जा जमाने के बाद मुसलमानों ने उन्हें वहां से भाग जाने की धमकियां दी थी।
अगले दिन की सुबह जब पाकिस्तान से चलकर एक रेल गाड़ी अमृतसर के रेलवे स्टेशन पर रुकी बताया जाता है कि उस ट्रेन में बैठे यात्रियों में से किसी का सिर धड़ से गायब था तो किसी की आंते बाहर आ गई थी, पूरी ट्रेन लहूलुहान थी। यहां तक कि रेलवे ट्रैक पर भी सिर्फ खून नजर आ रहा था।
उस दौरान पाकिस्तान से हिंदुस्तान की तरफ भागने वाले लोगों के मुताबिक जब वे लोग पाकिस्तान छोड़कर भाग रहे थे तो रास्ते में उन्होंने बहुत सारे बच्चों को देखा, जिनके साथ कोई भी नहीं था, लोग अपनी जान बचाकर सिर्फ और सिर्फ भाग रहे थे।
जो भी छूट रहा था, वह सब कुछ छोड़ कर भाग रहे थे। चाहे वो उनका खुद का बच्चा ही क्यों ना हो। पुरुष तो जैसे तैसे अपनी जान बचाकर भाग भी निकले लेकिन बेचारी महिलाएं और बच्चियां उन हैवानों का सबसे आसान शिकार बन कर रह गई।
14 अगस्त 1947 की रात को 12 बजे दिल्ली में जहां पंडित जवाहरलाल नेहरू आजादी की घोषणा कर रहे थे तो वहीं देश के एक हिस्से में कत्लेआम हो रहा था। भारत में जगह-जगह पर पटाखे फोड़कर आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, मंदिरों में पूजा-पाठ किया जा रहा था, हर गली चौराहे पर अंग्रेजों के पुतले फुके जा रहे थे।
ऐसा लग रहा था जैसे दशहरा और दीपावली एक साथ आ गई हो। लेकिन भारत की राजधानी दिल्ली में जब आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, उस वक्त गांधीजी वहां से नदारद थे। देश में जब 15 अगस्त को पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा था तब भी महात्मा गांधी वहां से सैकड़ों किलोमीटर दूर बंगाल में थे।
बताया जाता है कि महात्मा गांधी ने नेहरू और सरदार पटेल को पत्र लिखकर कहा था कि मैं कैसे खुशी मना सकता हूं जब देश में अपने ही लोगों को मार काट के आजादी का जश्न मनाया जा रहा है।
आज आजादी के 75 साल बीत चुके हैं और हर साल 15 अगस्त को लाल किले पर झंडा फहराया जाता है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि 15 अगस्त साल 1947 को लाल किले पर झंडा नहीं फहराया गया था। आजादी के आपाधापी में पूरा दिन निकल चुका था, जिसके बाद 16 अगस्त साल 1947 के दिन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किला पर झंडा फहराया।
हैरानी की बात तो यह है कि 15 अगस्त को आजादी की घोषणा की गई, 16 अगस्त को झंडा फहराया गया लेकिन तब तक भी भारत और पाकिस्तान के बीच खींची जा रही लकीर पूरी नहीं हुई थी।
यह लाइन 17 अगस्त साल 1947 को पूरी हुई कि कितना हिस्सा पाकिस्तान को मिलेगा और कितना हिस्सा हिंदुस्तान को। आज भारत पाकिस्तान के बीच खींची गई इस लकीर को रेडक्लिफ लाइन के नाम से जानी जाती है।
कहने को तो भारत आजाद हुआ था लेकिन यह आजादी अपने साथ बंटवारे के नाम की एक नासूर दर्द को लेकर आई थी। एक बंटवारा भारत के गौरवशाली इतिहास का, एक बंटवारा हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सभ्यता का, एक बंटवारा उस जन्नत जैसी कश्मीर का, उत्तर में खड़े महान हिमालय का, नदियों का, हवाओं का, एक बंटवारा दिलों का, समाज का, परिवार का।
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