बालगोबिन भगत पाठ का सार कक्षा 10 (Balgobin Bhagat Class 10 Summary in Hindi)
बालगोबिन भगत (Summary of Balgobin Bhagat Class 10): बाल गोबिन भगत, नाम में तो भगत था ही स्वभाव से भी एकदम भगत। उम्र का सांठवा दशक, गोरा रंग और मध्यम कद और उम्र के अनुसार स्वेत बाल कुछ ऐसा व्यक्तित्व था बालगोबिन जी का। लेकिन वस्त्र के नाम पर सिर्फ एक लंगोटी पहनते थे भगत जी और सर्दियों में एक कंबल से उनका काम चल जाता था और सिर पर कबीरपंथियों की कनफटी टोपी से वे अपने आदर्श कबीरदास से कम न दिखाई पड़ते थे।
भगत जी का माथा रामनंदी टीके से सुशोभित रहता था। वे गले में हमेशा तुलसी की जड़ों की माला धारण करते थे।
परिवार में सिर्फ बहु और बेटे थे। आजीविका के लिए खेती बाड़ी करते थे। कबीर दास की बाते उनके लिखे और गाए हुए पद तो जैसे उनके जीवन का हिस्सा थे, अपने “साहब” कबीर के गीत उनके होठों पर हमेशा ही रहते थे।
बाल गोबिन जी का आचार-विचार और व्यवहार उनकी विशेषता में चार चांद जोड़ते थे। वे सच बोलने से कभी नही चूके चाहे सामने कोई भी व्यक्ति हो, उनका मन सोने सा खरा था। इन सब के बाबजूद वे अशांति फैलाने के पक्ष में कभी ना रहे। वे झगड़ालू प्रवृति के बिलकुल ना थे।
हर साल 4 कोस दूर कबीरपंथी मठ में अपना कमाया हुआ सारा अनाज, धन स्वयं लाद कर ले जाते और दान कर आते, मठ में भेंट चढ़ा आते और फिर मठ से जो भी प्रसाद के रूप में प्राप्त किया उसे घर लाते उसी से अपना और अपने परिवार का जीवन बसर करते। उनके कंठ में स्वयं सरस्वती का वास था, जब वे कबीर के दोहों और पदो के अपने कंठ से गाते तो मानो स्वयं तानसेन उतर आए हो, इतना मधुर की प्रकृति ठहर जाए सुनने वाले तो मुग्ध हो जाया करते थे।
उस समय का दृश्य बड़ा ही मनमोहक होता है जब आषाढ़ मास धान रोपाई का समय होता हैं, रिमझिम वर्षा में सभी किसान खेत रोपाई में व्यस्त होते हैं कही हल चलाए जा रहे हैं तो कही धान के पौधो की रोपनी हो रही हैं, बच्चे बारिश का आनंद उठा रहे है और पानी से भरे खेतो में कूद रहे हैं और घर की औरते अपने किसान पतियों के लिए खाना लेकर मेड़ पर बैठी प्रतीक्षा कर रही होती हैं।
वही भगत जी भी अपने खेतों की रोपाई कर रहे होते जब आसमान में बादल इकट्ठा होते हैं, ठंडी पुरवइया चलती तब कीचड़ से सने भगत जी के कंठ से कबीर के जो मधुर पद निकलते उससे सभी झूम उठते। बच्चे उनके संगीत पर नाच उठते, औरतें भी धीरे धीरे गुनगुनाने लगती, हल चलाने वाला व्यक्ति जब पैर उठाता तो लगता मानो वह भगत जी का साथ देने के लिए ताल से ताल मिलाने के लिए ही पैर उठा रहा है।
ऐसा प्रतीत होता जो लोग रोपाई कर रहे हैं, वह वीणा बजाने लगे हैं। उनकी उंगलियां कुछ इस क्रम में चलने लगती। भादो में जब चारो ओर घना अंधेरा छाया होता, सब सारा संसार गहरे आगोश में सो रहा होता उस समय भी भगत जी का संगीत सजीव होता।
कार्तिक के महीने में उनकी प्रभातिया आरम्भ हो जाती जो फाल्गुन के अंत तक चलती।
अपने प्रभातिया के दिनों में वे तड़के उठते और गांव से दो मील की दूरी पर बह रही नदी में ब्रह्म मुहूर्त के स्नान का पुण्य प्राप्त करते। वापस आते समय पोखरे के ऊंचे भिंडे पर आसन जमा लेते और खंजड़ी के साथ ऐसा राग छेड़ते की सभी उनकी और खींचे चले आते और गर्मियों में अपनी पूरी मंडली के साथ अपने घर के आंगन में ही बैठकर गीत गाते।
अपने इकलौते बेटे को शादी उन्होने बड़े अरमानों के साथ की थी, परिवार में बहू के आगमन ने भगत जी का घर खुशियों से भर दिया और भगत जी भी सुंदर, सुशील बहू पाकर घर गृहस्थी के झंझटो से मुक्त हो लिए। लेकिन समय को कुछ और ही स्वीकार था जवान बेटे की असमय मृत्यु ने उन्हें शोक से घेर लिया और अंदर से मोतियों के जैसे टूटे-बिखरे बाल गोबिन भगत जी के संगीत साधना के सुर उस दिन कुछ अलग थे।
उस दिन उन्होंने बेटे के शव को घर के बीचों बीच आंगन में लिटा दिया और उसके ऊपर सफेद कपड़ा डाल कर ढंक दिया कुछ फूल और तुलासीदल बिखेर कर अपना आसन वही शव के पास जमा लिया और ऐसी तल्लीनता के साथ गीत गाया की सभी की आंखे नम हो गई। जिस भगत जी का संगीत सुनकर प्रकृति भी सजीव हो जाए वही भगत जी आज शोक ने भी गीत गाए जा रहे थे, बड़ा ही मार्मिक दृश्य था वह।
वहां उपस्थित सभी लोगों से वह उत्सव मनाने को कह रहे थे, कह रहे थे कि आज यह नश्वर शरीर प्रभु से जाकर मिलेगा, इसीलिए दुःख में रहने का कोई कारण नहीं है। बहू का रो-रो कर बुरा हाल था, सभी ढांढस बंधाते रहे।
भगत जी की इच्छा थी कि बेटे का अंतिम कर्म बहू करे और हुआ भी ऐसा ही, शव को आग भी उन्होंने बहू के हाथ से दिलाई और श्राद्ध की अवधि समाप्त होने के बाद बहू को मायके भेजने की तैयारी कर दी साथ ही उसके भाई को आदेश दिया कि वह उसकी दूसरी शादी करा दे। बहू भाई में साथ नही जाना चाहती थी वह जानती थी कि यदि वह चली गई तो भगत जी अकेले हो जायेंगे, वह वही रुक कर उनकी सेवा में अपना जीवन समर्पित करना चाहती थी
लेकिन भगत जी नही माने और अंत में वह हारकर भाई के साथ मायके लौट गई। ईश्वर की लीला भी विचित्र है, भगत जी को भी ऐसा बुलावा आया की उनके गीतों के साथ ही उनके सांसे बंद हुई। अब बुढ़ापा हावी हो चुका था, शरीर साथ नही देता किंतु मन के पक्के भगत जी अपनी दिनचर्या को लेकर उतने ही सजग थे।
हर साल पैदल ही 30 कोस दूर गंगा स्नान करने जाना सदैव उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। इस साल भी बिना कुछ खाए पिए उपवास रखकर गंगा स्नान करने पहुंचे वापस लौटते समय गाते बजाते हुए लौटे। थकान तो थी ही लेकिन उपवास का नियम नहीं तोड़ा, हां प्यास लगने पर पानी अवश्य पी लेते।
कई लोगों ने उन्हें सलाह दी कि उन्हें अब धर्म-कर्म छोड़कर आराम करना चाहिए लेकिन भगत जी टस से मस ना हुए। वे हंसकर सब की बातों को अनसुना कर देते थे। लौटने के बाद भी उनकी प्रतिदिन की दिनचर्या जारी रही। शाम के समय फिर से उन्होंने मधुर संगीत गाना शुरू किया। लेकिन सुबह उनका संगीत भी समाप्त हो चुका था। और वो भी।
आस पास के लोगो ने जब उनका गीत नही सुना तो पास गए। पास जाकर पता चला की बाल गोबिन भगत जी नही रहे, बचा है तो सिर्फ उनका बेजान शरीर।
बालगोबिन भगत पाठ के प्रश्न उत्तर (कक्षा 10)
Balgobin Bhagat Class 10 Summary in Hindi
रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन परिचय
“बाल गोबिन भगत” के लेखक श्री राम वृक्ष बेनीपुरी बिहार के मूल निवासी थे। उनका पूरा नाम रामवृक्ष शर्मा था।
मुजफ्फरपुर जिले बेनीपुर गांव में इनका जन्म सन 1899 में हुआ था। अपनी माटी से अधिक अनुराग होने के कारण उन्होंने अपने नाम के आगे बेनीपुरी लिखना शुरू कर दिया क्युकी वह बेनीपुर निवासी थे।
इनका पूरा बचपन संघर्षों में बीता, माता पिता की असमय मृत्यु ने उनका जीवन कठिनाइयों से भर दिया। पेशे से लेखक, पत्रकार और कवि श्री बेनीपुरी जी की शिक्षा दीक्षा की बात करें तो ननिहाल से सरंक्षण पाकर इन्होंने दसवी तक की पढ़ाई करने के बाद वे भारत की राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ गए। इन्ही सब में उन्हे कई बार जेल भी जाना पड़ा था।
वे महान विचारक, क्रांतिकारी, मनन कर्ता, पत्रकार और संपादक भी थे। हिंदी साहित्य के शुक्लोत्तर युग के प्रसिद्ध साहित्यकार रामबृक्ष बेनीपुरी जी ने गद्य लेखन, शैलीकार, पत्रकारिता, हिंदी के प्रेमी और समाज-सेवी के रूप में अपनी प्रतिभा की कभी ना मिटने वाली छाप छोड़ी।
1968 में 69 वर्ष की आयु में रामबृक्ष बेनीपुरी जी संसार से विदा हो गए।
बेनीपुरी जी की रचनाएं
15 वर्ष की तरुण अवस्था में ही बेनीपुरी जी की रचनाएं अनेक पत्र – पत्रिका में छपने लगी। प्रतिभाशाली रामबृक्ष जी की रचनाओं में मनुष्यता की चिंता, स्वाधीनता की चेतना और इतिहास का युग के अनुसार की वर्णन और व्याख्या है।
कुछ अलग और विशेष लिखने के कारण उन्हें उपनाम दिया गया “कलम का जादूगर”।
संपादन कार्य
कच्ची उम्र से ही वे पत्र-पत्रिका में लिखने लगे थे। दैनिक, साप्ताहिक और मासिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी श्री बेनीपुरी जी द्वारा किया गया। बालक, युवा, योगी, किसान मित्र, तरुण भारत, जनता, जनवाणी, तूफान, हिमालय और नई धारा के संपादन के लिए उन्हें प्रशंसा और सराहनाए मिली।
साहित्य
उनकी साहित्यिक रचनाएं संख्या में लगभग सौ से भी अधिक है। उनमें से ज्यादातर रचनाएं “बेनीपुरी ग्रंथावली” के नाम से प्रकाशित है।
उनकी कृतियों में:
- उपन्यास -पतितो के देश में
- ललित गद्य -वन्दे वाणी विनायकौ
- निबन्ध और रेखाचित्र – गेहूँ और गुलाब
- रेखाचित्र -माटी की मूरतें
- कहानी संग्रह -चिता के फूल
- नाटक – अंबपाली, सीता की माँ, संघमित्रा, अमर ज्योति, तथागत इत्यादि है।
ये सभी विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
सम्मान
बिहार सरकार हर साल उनके सम्मान में “वार्षिक अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार” का वितरण करती है। वर्ष 1999 में ‘भारतीय डाक सेवा’ ने रामवृक्ष बेनीपुरी के सम्मान में तथा भारत के भाषा में सौहार्द लाने हेतु “भारतीय संघ” द्वारा हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाने की अर्धशती वर्ष में डाक-टिकट का एक बड़ा संग्रह जारी किया, यह संघ बेनीपुरी जी के योगदान की भूरि भूरि प्रसंशा करता है।
Balgobin Bhagat Class 10 Summary in Hindi
Read Also
- कन्यादान कविता का सार और भावार्थ
- हिन्दी की प्रमुख गद्य रचनाएँ एवं रचयिता
- राम लक्ष्मण परशुराम संवाद
- ल्हासा की ओर पाठ का सार (कक्षा 9)
- “साना साना हाथ जोड़ि” पाठ का सार