Aryabhatta Biography in Hindi: आर्यभट्ट प्राचीन भारत के सबसे महान गणितज्ञ तथा खगोलशास्त्रियों में से एक थे। आज के समय में भी दुनियाभर के वैज्ञानिकों के लिए आर्यभट्ट प्रेरणा के स्रोत हैं। आर्यभट्ट खगोलशास्त्र तथा गणित के अलावा वे ज्योतिषविद भी थे। आर्यभट्ट की गिनती भास्कराचार्य, कमलाकर, वराहमिहिर तथा ब्रह्मगुप्त जैसे भारत के महान ज्ञानी व्यक्तियों की सूची में होती है।
सबसे पहले आर्यभट्ट ने ही बीजगणित का प्रयोग किया था तथा उन्होंने अपनी प्रसिद्ध रचना “आर्यभट्टीका” (जो कि एक गणित की पुस्तक है) को कविता के रूप में लिखा था। आर्यभट्ट द्वारा लिखी हुई गणित की पुस्तक “आर्यभटीका” भारत के प्राचीन पुस्तकों में सबसे चर्चित पुस्तक है।
आर्यभट्ट का जीवन परिचय | Aryabhatta Biography in Hindi
आर्यभट्ट का जन्म
आर्यभट्ट का जन्म महाराष्ट्र के अशवमा क्षेत्र में सन् 456 ईसवी को हुआ था। आर्यभट्ट नालंदा विश्वविद्यालय में कार्य किया करते थे, उन्होंने अपने जीवन काल में खगोल, ज्योतिष तथा गणित की अनेक सारी रचनाएं लिखी और इस विषय में अपना एक विशेष योगदान दिया।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत के आर्यभट्ट ने विश्व में सबसे पहले “पाई” एवं शून्य की खोज की थी। आर्यभट्ट की प्रमुख रचनाएं “आर्यभटीय व आर्यभट्ट सिद्धांत” है। आर्यभट्ट ने सन 550 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।
आर्यभट्ट का प्रारंभिक जीवन
आर्यभट्ट के जन्म स्थान को लेकर कई बातें होती है, जिसमें कुछ लोग महाराष्ट्र तथा कुछ लोग बिहार को उनका जन्म स्थान बताते हैं। परंतु आर्यभट्ट ने अपने द्वारा लिखित ग्रंथ आर्यभट्टीका में अपना जन्म स्थान “कुसुमपुरा” बताया है।
आर्यभट्ट के जन्म के समय कुसुमपुरा जो आज “पाटलिपुत्र” के नाम से जाना जाता है। यहां पर हिंदू और बौद्ध धर्म के लोग निवास करते थे। यहां पर विश्वविख्यात नालंदा विश्वविद्यालय स्थापित था। कहा जाता है कि आर्यभट्ट यहां पर रहा करते थे और यहीं पर उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की थी, उसके बाद वे स्वयं शिक्षित बन गए।
आर्यभट्ट के कार्य
विश्व में सबसे पहले आर्यभट्ट ने ही खोज की थी कि पृथ्वी गोल है व अपनी धुरी पर घूमती है। इसीलिए रात और दिन होते हैं। आर्यभट्ट के अनुसार पृथ्वी की परिधि 24835 मील है। इतिहास में आज हमें “कॉपरनिकस” द्वारा इस बात की खोज की जानकारी बताई जाती है, परंतु कॉपरनिकस से लगभग 1000 वर्ष पूर्व ही भारत के आर्यभट्ट ने इसकी खोज कर ली थी। लेकिन यह जानकारी हमें नहीं पढ़ायी जाती।
आर्यभट्ट द्वारा की गई यह खोज आज भी लोगों को आश्चर्यचकित करती है कि आखिरकार इतने हजारों वर्ष पूर्व कैसे उन्होंने बिना किसी उपकरणों के इतनी बड़ी खोज कर ली। फिर भी आज के समय में हमें आर्यभट्ट के 1000 वर्ष बाद की गई “कॉपरनिकस” द्वारा खोज को ही पढ़ाया जाता है। जबकि आर्यभट्ट का कहीं पर नामोनिशान नहीं है।
आर्यभट्ट द्वारा रचित ग्रंथों से हमें आर्यभट्ट के कार्यों के बारे में जानकारी मिलती है। आर्यभट्ट एक महान गणितज्ञ, विशेषज्ञ, खगोल शास्त्री तथा बहुत बड़े ज्ञानी थे। जिन्होंने प्रसिद्ध आर्यभटीय, दशगीतिका, तंत्र और आर्यभट्ट सिद्धांत जैसे ग्रंथों की रचना की थी। बता दें कि आर्यभट्ट ने अनेक सारे ग्रंथ तथा रचनाएं लिखी थी, जिसमें से ज्यादातर अभी लुप्त हो चुकी है।
जानकारी मिलती है कि आर्यभट्ट द्वारा लिखित ग्रंथ “आर्यभट्ट सिद्धांत” का भारत के 7वीं सदी में व्यापक रूप से उपयोग होता था। “आर्यभट्टीका” भी वर्तमान समय में कार्यरत हैं। इसके अलावा बाकी सभी ग्रन्थों का इतिहास सिमट चुका है। उनके बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिलती है।
आर्यभट्ट के जीवन से अब तक कई सदियां बीत चुकी है। इस दौरान कई शासक आए, कई सत्ता परिवर्तित हुई, कितनी भी बार जलवायु परिवर्तन हुई व इस दौरान भारत ने बहुत कुछ बदलते हुए देखा है।
आर्यभट्ट की रचना – “आर्यभटीय”
“आर्यभटिय” यह आर्यभट्ट द्वारा रचित एक रचना है, जिसमें अंकगणित, बीजगणित तथा त्रिकोणमिति का विस्तार से उल्लेख देखने को मिलता है। कहा जाता है कि इस रचना का नाम “आर्यभटिय” स्वयं आर्यभट्ट ने ही रखा था।
आर्यभट्ट द्वारा रचित रचना आर्यभटिय में मुख्य रूप से एक घनमूल, वर्गमूल, समांतर श्रेणी तथा अलग-अलग प्रकार के समीकरणों का वर्णन किया गया है। इसमें खगोल विज्ञान तथा ग्रंथ गणित का मिश्रण देखने को मिलता है।
आर्यभट्ट की रचना – “आर्य सिद्धांत”
आर्यभट्ट की रचना पूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं है। जैसा कि हमने आपको बताया आर्यभट्ट द्वारा रचित सभी रचनाओं में ज्यादातर लुप्त हो चुकी है। बहुत ही कम रचनाएं और उनकी जानकारी वर्तमान समय में बची है।
“आर्य सिद्धांत” रचना के अनुसार पुराने कार्य सूर्य के सिद्धांत पर आधारित है। आर्यभट्ट ने सूर्योदय की अपेक्षा मध्य-रात्रि गणना का उपयोग किया है। इसमें अनेक सारे खगोलीय उपकरणों का भी वर्णन देखने को मिलता है, जिसमें छाया-यंत्र, शंकु-यंत्र, चक्र-यंत्र, यस्ती-यंत्र, छत्र-यंत्र, जल-घड़िया, बेलनाकार छड़ी इत्यादि मुख्य रूप से शामिल है।
आर्यभट्ट का योगदान
आर्यभट्ट ने मुख्य रूप से गणित, ज्योतिष तथा खगोल शास्त्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जो आज भी वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणादायक है तो आइए विस्तार से जानते हैं।
आर्यभट्ट ने गणित के विषय में विश्व भर में अपना प्रभाव डाला है। आर्यभट्ट ने विश्व में सबसे पहले “शून्य” की खोज की थी तथा सबसे ज्यादा सटीक रूप से “पाई” के मान को स्थापित किया था।
विश्व के गणित में अपना महत्वपूर्ण योगदान छोड़ते हुए आर्यभट्ट ने “त्रिभुज” की रचना की तथा विश्व में सबसे पहले “बीजगणित” को परिभाषित किया था। आर्यभट्ट द्वारा की गई गणित की विषय में यह रचनाएं विश्व प्रसिद्ध है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस दुनिया में सबसे पहले आर्यभट्ट ने ही पृथ्वी के परिक्रमा की बात कही थी। आर्यभट्ट ने कहा था कि पथ्वी अपने परिधी पर घूमती है, जिसकी वजह से दिन और रात होते हैं।
आर्यभट्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि सौरमंडल में होने वाले बदलाव पृथ्वी के निरंतर अपनी परिधि पर घूमने की वजह से होते हैं। पृथ्वी नियमित रूप से अपनी परिधि पर घूमती रहती है। इस वजह से दिन-रात होते हैं और समय अनुसार हमें सौरमंडल में परिवर्तन देखने को मिलता है।
आर्यभट्ट ने चंद्र ग्रहण तथा सूर्य ग्रहण को लेकर लोगों की भ्रांतियां दूर कर दी थी। उन्होंने कहा है कि जो भी लोग सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण को आस्था से जोड़कर देखते हैं, उन्हें यह नहीं करना चाहिए। क्योंकि सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण आस्था से कोई संबंध नहीं है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आर्यभट्ट द्वारा रचित रचना “आर्यभटिय” का उपयोग आज भी हमारे हिंदू धर्म के पंचांग हेतु किया जाता है। इसके अलावा आर्यभट्ट के खगोल शास्त्र तथा गणित व ज्योतिष विद्या का अतुल्य और अद्भुत योगदान देखते हुए भारत के पहले उपग्रह का नाम “आर्यभट्ट” रखा गया था ताकि लोग उस महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्रीय को याद रख सके।
निष्कर्ष
आज के इस आर्टिकल में हमने आर्यभट्ट का जीवन परिचय (Aryabhatta History in Hindi) विस्तार से जाना है और गणित में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में भी जाना है।
हम उम्मीद करते हैं कि हमारे द्वारा बताई हुई यह जानकारी आपको काफी पसंद आई होगी। यदि आपका इस आर्टिकल से संबंधित कोई सवाल है या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। यह जानकारी आगे शेयर जरूर करें।
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