पहले के समय में एक बहुत अमीर व्यापारी अनेकों कारोबार किया करता था। वो पैसों से मजबूत था, उसकी बहुत सी कोठियां, नौकर चाकर आदि थे। बहुत बड़ा व्यापार होने के कारण उसे देश विदेश की यात्रा करनी पड़ती थी। एक बार उसे अपने कारोबार के काम से एक यात्रा में जाना पड़ा।
वह राजा बिना किसी के साथ निडर भावना से अपने घोड़े के साथ निकल पड़ा, उस समय सफर बहुत लंबा होता था और खाने पीने को कुछ मिलता नही था। जिस वजह से उसने अपने थैले में खजूर और कुलचे रख लिए, काम पूरा होने के चौथे दिन वह वापस लौटा।
चौथे दिन जब वह लौट रहा था तो वहीं वृक्ष के पास अपने घोड़े से उतर कर वो बैठ गया और वहीं तालाब के निकट वो खजूर खाने लगा। जब उसका पेट भर गया तो जिस जगह वो बैठा था, उसे साफ करने के लिए उसने खजूर की गुठली इधर-उधर फेक दी और वह विश्राम करने लगा।
थोड़े ही समय के पश्चात वहां से एक दैत्य प्रकट हुए और वह बहुत ही ज्यादा क्रोधित था और उसने क्रोध प्रकट होते ही बोला “ए दुष्ट मानव इधर आ, मैं तुझे मार दूंगा।” दैत्य का क्रोध देख व्यापारी बहुत ज्यादा डर गया और बोला “स्वामी मेरा क्या दोष है और आप मुझे क्यों मारना चाहते हैं।”
उसी समय दैत्य ने जवाब देते हुए कहा “तूने मेरे पुत्र की हत्या की है और मैं तेरी हत्या करूँगा। व्यापारी ने कहा मैंने तो आपके पुत्र को देखा तक नही है, मारना तो बहुत दूर की बात है।” यह सुन वह दैत्य बोला क्या तुम इधर विश्राम करने के लिए नहीं आये हो?, क्या तुमने इस तालाब के पास बैठकर खजूर नहीं खाये और खजूर की गुठलियां तुमने इधर उधर नहीं फेकी?
तभी व्यापारी बोलता है “हां स्वामी” और दैत्य कहता है तुमने गुठली इतनी जोर से मारी कि मेरे बेटे के आंख में लग गयी और उसी समय उसका प्राणान्त हो गया और अब मैं तुझे भी मारूंगा।
दैत्य के पुत्र की मृत्यु की कहानी सुन व्यापारी दैत्य से बोला “स्वामी मैंने आपके पुत्र को जानबूझकर तो मारा नहीं है और अनजाने में जो मुझसे यह भूल हो गयी है, उसके लिए मैं आपसे हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं। यह सुनकर दैत्य ने कहा क्या तुम्हारे शरीयत में नारवध के बदले नारवध की आज्ञा नहीं दी गयी है और वैसे भी मैं दैत्य हूं मैं माफ करना नहीं जानता और मै तुझे मारकर ही दम लूंगा।
इतना कहते हुए दैत्य ने व्यापारी पर हमला कर दिया और उसको जमीन पर गिरा दिया। उसे मारने के लिए जब दैत्य ने तलवार उठाई तो व्यापारी जोर जोर से विलाप करने लगा। अपने परिवार को याद करने लगा और दैत्य को भगवान की राक्षस आदि की कसमें देकर अपने प्राणों की भिक्षा मांगने लगा।
दैत्य ने अपनी तलवार रोक दी और वह सोचने लगा यह रोना पीटना बंद कर दें, उसके बाद इसे मारूंगा। पर व्यापारी ने विलाप करना बंद नहीं किया। तत्पश्चात दैत्य ने उससे कहा “तू जितना भी रो ले, कुछ भी कर ले, मुझे और अपने आप को परेशान कर रहा है तू। अगर आंशू की जगह खून भी बहायेगा तो भी मै तेरे प्राण लूंगा।”
व्यापारी यह सब होता देख दैत्य से बोला कितने दुख की बात है आपको तनिक भी दया नहीं आती। आप एक बेसहारे जिसका कोई दोष न हो, उसे मार दे रहे हो। मेरे इतने विलाप करने का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा। अब तो हमें यह विश्वास ही नहीं हो रहा कि आप हमें मार डालेंगे। इस प्रश्न का जवाब देते हुए दैत्य ने कहा “मैं तुमको अवश्य मारूंगा।”
प्रातः काल का समय होने के कारण शहरजाद इतनी कहानी सुनाकर रुकी वह यह सोचने लगी यह समय तो अब बादशाह के नमाज़ पढ़ने का हो गया है और नमाज़ अदा करने के बाद वह दरबार जाएगा। कहानी सुन रही दुनियाजाद ने कहा बहन तुम्हारी यह कहानी बहुत पसंद आई।
तभी शहरजाद ने दुनियाजाद से पूछा तुम्हे यह कहानी पसन्द आयी वो बोली। हां बहन, वाकई यह कहानी बहुत मज़ेदार है। इतने में शहरजाद बोलती है अगर बादशाह ने मुझे जीवित रखा तो मै तुम्हे इसके आगे की पूरी कहानी सुनाऊँगी और वह सुनोगी तो तुम्हे और मजा आएगा, नहीं तो मैं भगवान के पास चली जाऊंगी।
कहानी शहरयार को बहुत पसंद आई थी, उसने यह सोचा जब तक यह कहानी पूरी न हो जाये, शहरजाद को नहीं मरवाना चाहिए और उसने प्राणदंड देने का इरादा छोड़ दिया और अपने पलंग से उठकर नमाज़ पढ़ने चला गया। उसके बाद दरबार मे जा बैठा, जहां सभी लोग उपस्थित थे। मंत्री भी अपनी बेटी की रक्षा के विषय मे सोच कर रात भर नही सोया था।
उसके मन में यह ख्याल आया रहे थे कि बादशाह कब उसकी बेटी को प्राणदंड दे दे, किंतु मंत्री को यह देखकर बहुत अचंभा हुआ कि उसने ऐसी कोई सजा आज नहीं सुनाई शहरयार दिनभर अपने राजकाज में व्यस्त रहा और रात को शहरजाद के साथ सो गया। उसके कुछ पल बाद दुनियाजाद जाग गई और और उसने अपनी बहन से आग्रह किया। यदि बहन तुम सोई न हो तो कहानी को आगे बढ़ाओ, शहरयार भी जागा हुआ था।
व्यापारी और दैत्य की कहानी को आगे बढ़ाते हुए शहरजाद ने कहा
व्यापारी यह समझ गया था कि दैत्य उसको मारे बिना दम नहीं लेगा, क्योंकि व्यापारी ने सारे फंदे अपना लिए थे। तो व्यापारी ने दैत्य से कहा “स्वामी यदि आपने मुझे अपना गुनहगार समझ ही लिया है और आप मेरे प्राण दान में नहीं देंगे तो मेरी एक आखिरी इच्छा स्वीकार कर लीजिए।
मुझे बस अपने घर हो आने दीजिए। आखिरी बार मुझे मेरी पत्नी पुत्रों आदि से मिल लेने दीजिए और इसके साथ ही साथ मैं अपनी सारी संपत्ति अपने बच्चों आदि में बांट आना चाहता हूं ताकि मेरे चले जाने के बाद कुछ अनहोनी न हो और मैं आपको विश्वास दिलाता हूं, इतना करके मै पुनः यहां आ जाऊंगा।
यह सुनकर दैत्य बोलता है “अगर मैं तुम्हे घर जाने दूं और तुम वापस न आये तो” व्यापारी कहता है कि स्वामी मैं अपनी जुबान का पक्का हूँ। यदि आपको अभी भी विश्वास न हो तो मै इस संसार की रचना करने वाले ईश्वर की शपथ खा कर कहता हूं, मैं इस जगह वापस जरूर आऊंगा।
दैत्य व्यापारी से पूछता है कितना वर्ष चाहिए। तो वह बोलता है एक वर्ष स्वामी मैं इन एक वर्ष में अपनी जायदाद का प्रबंध कर आऊंगा। मुझे मरने के समय कोई चिंता नहीं रहेगी और एक वर्ष बाद आप मुझे यही पाओगे।
दैत्य व्यापारी की बात मानते हुए बोलता है कि मैं तुम्हे एक अवसर देता हूँ, पर तुम्हे ईश्वर को साक्षी मानकर यह बोलना होगा। व्यापारी दैत्य की बात मान लेता है और ईश्वर के सामने शपथ लेता है इसके पश्चात वो दैत्य उसी तालाब में अंतर्धान हो जाता है और व्यापारी अपने घोड़े से घर की ओर चल देता है।
व्यापारी घर पहुँचने वाला ही होता है, वो कभी यह सोचकर खुश हो उठता है कि दैत्य ने उसे नहीं मारा और कभी इस बात से बहुत दुखी हो जाता है कि एक वर्ष बाद उसकी मृत्यु निश्चित है। कुछ समय बाद वह अपने घर पहुँचता है तो उसकी पत्नी, पुत्र उसे देख खुश होते हैं और व्यापारी अपने परिवार को देख कर बहुत रोने लगता है।
सभी यह सोचते हैं शायद कारोबार में नुकसान हुआ है, इस वजह से यह चिंतित है। जब व्यापारी थोड़ा होश में आता है तो अपने परिवार को देखकर बोलता है मुझे समझ नहीं आ रहा, मैं तुम लोग के देख कर रोऊं या हंसू।
परिवार वालों के बार-बार पूछने पर व्यापारी अपना हाल बताता है। कैसे उस दैत्य ने उसे छोड़ा, उसके साथ क्या-क्या घटना हुई, वह विस्तार से अपने परिवार को बताता है। यह सुन परिवार वाले भी विलाप करने लगे। पत्नी बहुत जोर-जोर से रोने लगी और अपने बाल नोचने लगी, उसके बच्चे ऊंचे-ऊंचे स्वर में विलाप करने लगे, वह पूरा दिन ऐसे ही हाल में गुजरा।
व्यापारी ने दूसरे दिन से अपना सांसारिक जीवन शुरू कर दिया। उसे दिया गया समय कम लग रहा था, जो कि उसकी नज़रों में कम ही था। सबसे पहले उसने अपने कर्जदारों का ऋण अदा किया, गरीबों साधुओं को जी भर कर बहुमुल्य भेंट दी, इसके साथ ही साथ बहुत धन दिया। अपनी संपत्ति के हिस्से कराकर सबको बांट दिया। अपने बच्चों के लिए अभिभावक नियुक्त कर दिए और इन्ही सब क्रियाओं में एक वर्ष बीत गया।
वह अपने घर से निकल गया, उसके पास मात्र कुछ रुपये जो कफन के थे और खाने का थोड़ा समान था। सभी उससे लिपट-लिपट कर रोने लगे। व्यापारी की पत्नि अपने साथ ले चलने को कहने लगी। व्यापारी ने सबको धैर्य दिलाते हुए कहा मैं भगवान की इच्छा के आगे मजबूर हूँ, मृत्यु आज नहीं तो कल आएगी, इसलिए मृत्यु से घबरा कर कहाँ जाएंगे, मृत्यु से कोई नहीं बच सकता। इसलिये प्रकति के नियम को अपनाओ और जीवन जीने की प्रथा को स्वीकार करो।
व्यापारी अपने परिवार को समझा कर चल पड़ा और कुछ दिन की यात्रा करने के पश्चात वो उस स्थान पर पहूंच गया, जहां दैत्य ने आने को कहा था। वह घोड़े से उतर कर तालाब के किनारे बैठ गया और उस हैवान दैत्य की राह देखने लगा।
इसी पल में एक बुड्ढा आया, जो एक हिरनी लिये था और बोला तुम इस स्थान पर कैसे आ गए, क्या तुम्हें पता नही यह स्थान विश्राम करने के लिए उचित नहीं है, यहां बैठना ठीक नहीं है, जाओ यहां से। व्यापारी उससे बोलता है “आप ठीक कहते हैं मैं भी यहां एक दैत्य का शिकार होने आया हूँ, इतना कहते उसने अपना सारा दर्द बूढ़े से बताया।”
उस बूढ़े ने बहुत आश्चर्य से कहा तुमने ऐसी बात बताई है कि जिसे सुन तुम्हारी प्रशंशा हर कोई करेगा, तुमने ईश्वर की सौगंध खायी और उसे पूरा करने के लिए तुमने अपने प्राणों की भी चिंता नहीं की, उसे पूरा करने तुम वापस उस स्थान में आ गए। अब तो मैं भी यही रहूँगा और देखूंगा कि वो दैत्य तुम्हारे साथ क्या करता है।
व्यापारी और बूढा व्यक्ति आपस मे बात करने लगते हैं। इतने में ही एक और एक बूढा व्यक्ति आ जाता है, जिसके हाथ मे एक रस्सी होती है और उसमें दो कुत्ते बंधे होते हैं। वह दोनों का हालचाल पूछता है। तभी वो व्यापारी अपना दुख बताता है, वो भी वहीँ बैठ जाता है और कहता है दैत्य क्या करता है तुम्हारे साथ।
थोड़ी ही देर हुई थी, वहां एक बूढ़ा खच्चर के साथ आता हुआ दिखाई देता है और वो भी व्यापारी के पास आकर रुक जाता है और वहीं पर बैठे दो बूढ़ों से पूछने लगता है कि यह व्यापारी इतना दुखी क्यों बैठा है। तो वह दोनों बूढ़े उसको सारी सच्चाई से रूबरू कराते हैं। वो भी इस इच्छा के साथ वहां पर बैठ जाता है कि वह दैत्य इस व्यपारी के साथ क्या करेगा।
जैसे ही वो तीसरा बूढा जमीन पर बैठता है, उसके बाद यह चारों लोग यह देखते है कि सामने आसमान नीचे आते हुए प्रतीत होता है। मानो हर तरफ धुंध ही धुंध हो जाती है और एक पल में वो धुआं गायब हो जाता है। जैसे ही सभी अपनी अपनी आंखें खोलते हैं तो वह पाते हैं कि वह दैत्य वही प्रकट हो जाता है।
व्यापारी को क्रोध के साथ पुकारता है “मानव तेरा समय आ गया है। इधर आ तू, मैं तुझे मार डालूंगा, तूने मेरे पुत्र को मारा था।” इतना सुन वह व्यापारी जोर-जोर से रोने लगता है और साथ मे खड़े अन्य तीन व्यक्ति भी रोने लगते हैं।
उसके उपरांत ही सबसे पहले नंबर वाला बूढा व्यक्ति जो हिरनी के साथ आया था, वो दैत्य के पास जाता है और बोलता है महाराज आपसे एक निवेदन है कि आप इसे मारने से पहले मेरी और मेरी इस हिरनी की कहानी सुन ले। वो दैत्य कहानी सुनने के लिए तैयार हो जाता है।
तभी वो बूढा व्यक्ति उस दैत्य के सामने एक शर्त रख देता है और शर्त यह होती है कि महाराज अगर आपको मेरी यह कहानी रोचक लगे तो आप इस व्यापारी व्यक्ति का एक तिहाई दंड माफ कर देंगे। बहुत देर सोचने के बाद दैत्य उसकी यह शर्त स्वीकार कर लेते हैं। इसके बाद की कहानी आपको नीचे दी हुई लिंक पर प्राप्त हो जाएगी।
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