हिंदी साहित्य में एक से एक लेखक हुए हैं। उनमें से एक प्रचलित लेखक तुलसीदास हैं। तुलसीदास ने रामायण और महाभारत की एक बेहतरीन प्रतिलिपि लोगों के समक्ष प्रस्तुत की है। तुलसीदास को महर्षि वाल्मीकि का अवतार माना जाता है। तुलसीदास को रामचरित्र मानस की वजह से अत्यधिक प्रचलिता हासिल हुई। अगर आप तुलसीदास के गुरु कौन थे? के बारे में जानकारी ढूंढ रहे हैं, तो आप बिलकुल सही जगह पर है।

आज हिंदी साहित्य के अलग-अलग पुस्तक और हिंदू धर्म के देवता भगवान श्री राम की पुस्तक को दुनिया के सामने लाने का श्रेय तुलसीदास को दिया गया है। आज के इस लेख में हम तुलसीदास के गुरु कौन थे और उनके बारे में विस्तार पूर्वक बात करेंगे। अगर आप तुलसीदास या उनके गुरु के बारे में जानकारी एकत्रित करना चाहते हैं तो हमारे लेख के साथ अंत तक बने रहे।
तुलसीदास के गुरु कौन थे और उनका जीवन परिचय
तुलसीदास कौन थे?
तुलसीदास हिंदी साहित्य का इतना प्रचलित और विराट नाम है, जिसे किसी भी तरह के परिचय की आवश्यकता नहीं है। जन्म के समय तुलसीदास का नाम रामबोला रखा गया था। बचपन से ही रामबोला पढ़ने लिखने में बहुत अच्छे थे। नरहरी दास बाबा उन्हें शिक्षा देने के लिए अयोध्या लेकर गए, वहां माघ माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को उन्हें अपना शिष्य बनाया और एक अनुष्ठान किया। इस अनुष्ठान में रामबोला गायत्री मंत्र का उच्चारण करने लगे जिससे लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ।
अयोध्या में हर शिक्षक ज्ञान देना चाहता था। उनके साथ वक्त बिताना चाहता था। इस प्रक्रिया में रामबोला का नाम बदलकर तुलसीदास किया गया। उन्हें यह नाम उनके गुरु नरहरीदास बाबा के तरफ से दिया गया था। आगे चलकर वे हिंदी साहित्य के एक महान कवि बने। इनके द्वारा लिखी गई राम चरित्र मानस बहुत प्रचलितता मिली, जो इनका सर्वप्रिय गौरव ग्रंथ रहा। इस रचना के बाद एक तुलसीदास को महर्षि वाल्मीकि का अवतार माना जाने लगा।
भारत के लगभग सभी जगहों पर रामचरितमानस बड़े सम्मान से पढ़ा जाता है। इसके बाद विनय पत्रिका इनके द्वारा लिखी गई दूसरी सबसे प्रचलित रचना रही। तुलसीदास के राम चरित्र मानस को विश्व के सबसे प्रचलित काव्य खंड इस सूची में 46 वां स्थान दिया गया है। तुलसीदास भगवान राम इस चरण में इस कदर समर्पित हो गए थे कि उन्होंने अपना सारा जीवन एक बैरागी साधु के रूप में काट दिया। उन्होंने हिंदी साहित्य में अन्य रचनाएं की, जिससे विश्व भर में उनकी प्रचलिता फैली।
तुलसीदास के गुरु कौन थे?
तुलसीदास के गुरु नरहरी बाबा थे। तुलसीदास के गुरु रामसील में रहते थे। वे उस जमाने के प्रचलित साधु श्री अनंतानंद जी के प्रिय शिष्य श्री नरहरी दास बाबा थे। तुलसीदास को बचपन में रामबोला का नाम दिया गया था। आगे चलकर उनके गुरु नरहरि दास ने उन्हें तुलसीदास का नाम दिया, जो उनकी प्रतिभा को देखकर दिया गया था। जिस नाम का इस्तेमाल उन्होंने हिंदी साहित्य में काव्य खंड लिखने के दौरान किया।
15वीं सदी में नरहरी दास बाबा ना केवल एक शिक्षक थे बल्कि भक्ति परंपरा में बृज भाषा के कवि थे। उन्हें संस्कृत और फारसी का भी अच्छा ज्ञान था। उनके गुरु ने भी अनेकों काव्य खंड लिखे थे। मगर उनके गुरु के द्वारा लिखे गए काव्य खंड को उतनी प्रचलिता नहीं मिली, जितना तुलसीदास के काव्य खंडों को मिली।
तुलसीदास के गुरु नरहरी दास बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली नाम के जिले के पाखरौली नामक जगह पर हुआ था। उनकी गुरु के द्वारा विभिन्न प्रकार के किताब की रचना की गई थी, जिसमें रुकमणी मंगल सबसे ज्यादा प्रचलित हुई थी।
तुलसीदास से जुड़े इतिहास
तुलसीदास का जन्म श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। इनके जन्म उत्तर प्रदेश के राजापुर में यमुना नदी के तट पर हुआ था, जो चित्रकूट के पास है। ऐसा माना जाता है कि बचपन में रोने की जगह उन्होंने राम का नाम लिया था इसलिए उनका नाम रामबोला रखा गया था। आगे चलकर उनके गुरु नरहरी दास ने उनकी प्रतिभा को देखते हुए तुलसीदास का नाम उन्हें इनाम में दिया था।
तुलसीदास की मां बचपन में ही उन्हें छोड़कर चली गई थी। तुलसीदास ने अपना जीवन एक अनाथ और गरीब बच्चे की तरह पूरा किया। बचपन में भीख मांग कर अपना गुजारा करते थे। मगर पढ़ने लिखने में बहुत तेज और समझदार होने के कारण नरहरीदास का ध्यान इन्होंने अपनी तरफ खींचा। इन्होंने अलग-अलग तरह की रचनाओं को लिखना बहुत छोटी उम्र में शुरू कर दिया था। आगे चलकर विश्व भर में इनके द्वारा रची रामचरित्र मानस की वजह से इन्हें देवता की तरह पूजा जाने लगा।
FAQ
तुलसीदास हिंदी साहित्य के एक महान रचनाकार थे, जिन्हें अपनी रचना राम चरित्र मानस के वजह से विश्व भर में ख्याति प्राप्त हुई।
हिंदी साहित्य में तुलसीदास के काव्य खंड और उपन्यासों की रचना की है। इनकी सर्वोत्तम रचनाओं में राम चरित्र मानस और विनय पत्रिका आता है।
तुलसीदास का जन्म 1511 ईस्वी में चित्रकूट के पास हुआ और 1623 में वाराणसी में इनकी मृत्यु हुई।
तुलसीदास के गुरु रामसील में रहने वाले नरहरी दास बाबा को माना जाता है।
निष्कर्ष
आज के इस आर्टिकल में हमने आपको यह बताने का प्रयास किया कि तुलसीदास कौन थे?, तुलसीदास के गुरु कौन थे? और इस महापुरुष से जुड़े कुछ अन्य आवश्यक इतिहास के पहलुओं को आपके समक्ष उजागर किया। हिंदी साहित्य के इतिहास में तुलसीदास का योगदान बहुत ही अतुल्य है।
तुलसीदास किस प्रकार इतना महान बने? उसकी जानकारी सरल शब्दों में हमने इस लेख के जरिए आपके समक्ष रखने का प्रयास किया है। इसे अपने मित्रों के साथ साझा करें। इसके अलावा अपने सुझाव भी जारी है। किसी भी प्रकार के प्रश्न को कमेंट में बताना ना भूलें। आपके द्वारा पूछे गए किसी भी सवाल का तुरंत निराकरण करने का प्रयास किया जाएगा।
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