तीसरे फ़कीर की कहानी (अलिफ लैला की कहानी) | Tisre Fakeer Ki Kahani Alif Laila Ki Kahani
हे देवी, मेरी कहानी बहुत ही अनोखी है, जिसे सुनकर आपको भी बहुत दुख होगा। इन दोनों फकीरों की कहानी तो इनकी गलती पर नहीं थी, परंतु मेरी आंखें जो फूटी हैं यह मेरी गलती से ही फूटी है। अपनी आंखें अर्थात अपने पैर पर कुल्हाड़ी मैंने अपने हाथों से हीमारी है। मैं अपनी कहानी बताना चाहूंगा है। मुझे आज्ञा दे।
अपनी कहानी बताने के लिए जुबैदा ने आज्ञा दी। तीसरा फकीर बोला कि मैं एक बड़े राज्य के राजा का बेटा हूँ, जो शक्तिशाली और हर चीज में श्रेष्ठ थे। परंतु मेरे पिता का देहांत होने के उपरांत मुझे उस राज्य का उत्तराधिकारी चुना गया। मैंने अपने पिता के रास्ते पर चलकर ही अपने राज्य की सेवा की और उसका और अपना दायित्व निभाया।
मेरे राज में 50 हाथी घोड़े थे और हमेशा राज्य की रक्षा के लिए जहाज उपलब्ध रहते थे। हजारों की सेना थी। मेरे राज्य पर आक्रमण करने वालों को भी 10 बार सोचना पड़ता था ऐसा मेरा राज्य था। मेरा राज्य कई नगरों तथा दीपों से मिलकर बना हुआ था इसलिए सुंदर और शक्तिशाली तथा घूमने में अच्छी जगह वाला राज्य माना जाता है।
एक बार मेरी इच्छा हुई कि पूरे नगर में भ्रमण करू। अपने राज्य के लोगों के बारे में जानना चाहता हूं, जो मेरे पिता के लिए इतना शौक करते हैं तथा उनके दुखों के बारे में जानना चाहता हूं। मैं निकला और राज्य में घूम रहा था। मेरी इच्छा जागृत हुई कि मैं जहाज में सफर करू। मैं जहाज पर चढ़ा और मेरे साथ दस जहाज और थे और वे समुद्र में निकल पड़े। कुछ दूर चलने के उपरांत बड़ा अच्छा और आनंद लगा।
परंतु कुछ घंटों के उपरांत एक तूफान सा आया और हम लोगों ने अपनी जीने की आशा छोड़ दी। लेकिन अगली सुबह हम लोग एक द्वीप से टकराकर रुके थे लेकिन हम लोगों को पता नहीं था कि वह कौन सा स्थान है। हमने वहां से कुछ सामान रखकर जो खाने-पीने का था, उस द्वीप से इकट्ठा करके रखा और निकल पड़े।
हम लोग सोच रहे थे कि हमारा देश कुछ दूर पर है लेकिन हम लोग काफी दूर चलते रहें और मुझे कुछ नहीं दिखा। उसमें से मैंने कप्तान को पत्थर चढ़ाया और जिससे कि वहां से दूर-दूर तक स्थान पर कोई स्थल तक सके। उसने सर हिला कर मना कर दिया और जोर जोर से रोने पीटने लगा। मैंने उसका रोने का कारण पूछा उसने कहा हे राजा सब कुछ खत्म हो गया अब कुछ नहीं बचेगा। हम लोग मारे जाएंगे।
मैंने उससे नीचे उतरने के लिए कहा। उसने नीचे उतर कर कहा हे राजा दूर एक काला चुंबक का पहाड़ है। यह जहाज हवा से उसी दिशा में जा रहा है। इस जहाज से सारा लोहा, सरिया और पत्तियों सब निकलकर पहाड़ में जाएगा। ऐसे कई जहाजों के उस पहाड़ में लोहा निकलकर जमा हुआ है। इसलिए यह पहाड़ काला दिखाई देता है और काफी बड़ा भी है।
उसमें एक मूर्ति रखी हुई थी। उसमें कुछ लिखा हुआ था। परंतु मेरी समझ में नहीं आया। कहीं ऐसा ना हो कि यह जहाज फट जाएँ और हम लोग जहाज से फिर समुद्र में ही रह जाएं।
उसमें कुछ जादू के अक्षर लिखे हुए थे, जो हम लोग पढ़ नहीं पा रहे थे। कहते हुए उस मूर्ति तथा उस जादू के अक्षरों से ही उस पहाड़ की आकर्षण शक्ति का कारण है जो अत्यधिक आकर्षित लोहे को करती है।
यह कहकर कप्तान रोने पीटने लगा और जहाज के सभी लोग रोने पीटने लगे। मैं भी घबराए चुका था। मैं भी अपने प्राणों की अंतिम सांसे गिनने की सोच रहा था क्योंकि अब कोई उपाय सोच नहीं रहा था। हम लोग किसी पर आश्रित नहीं हो सकते थे। सब रोने लगे थे।
कप्तान के अनुसार जब सुबह हुआ अर्थात वह जहाज उस काले पहाड़ के सामने सुबह पहुंच गया। कुछ देर बाद उस जहाज से सभी लोहे की वस्तु कीले निकलकर पहाड़ में चिपकने लगी, जिससे सब 11 के 11 जहाज उस समुद्र में समा गए।
जहां से एक टुकड़ा मेरे हाथ लग गया और मैं उस पानी में तैरता रहा। तैरता तैरता मैं पहाड़ के बगल में पहुंचा। उस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश की परंतु चल नहीं चढ़ पा रहा था। वह सीधी और ऊंचा पहाड़ था। उसकी ढलान एकदम सीधी थी, जिससे मैं चढ़ने की कोशिश कर रहा था लेकिन चढ़ नहीं पा रहा था।
किसी तरीके से मैं धीरे-धीरे उस पहाड़ पर चढ़ता रहा और अंत में उस पहाड़ पर चढ़ गया। हवा तेज चल रहे थे और धीरे-धीरे रात भी होने लगी थी। हमारे पास कुछ खाने को बचा इसलिए मैं प्यास भूख भूल कर उसी पहाड़ के ऊपर अंत में सो गया।
सपने में मुझे एक बूढ़ा दिखाई दिया और मुझसे कहने लगा कि तू जब जगना, तो अपने नीचे खुदाई करना तुझे तीन बाण और धनुष मिलेगा। उस धनुष से तो उस मूर्ति पर निशाना लगाना जिससे कि वह मूर्ति समुद्र में जाकर गिरेगी और उसके हाथ में जो घोड़े की मूर्ति है वह तुम्हारे पास आएगी, तो उसे गाड़ देना।
समुद्र में तेज तूफान आएगा। तुम्हारे पास एक नाव आएगी। उस नाव में बैठकर उस तूफान के जरिए तुम दूसरे जगह में चले जाओगे और अपने नगर और अपने राज्य को वापस पहुंच जाओगे। परंतु याद रहे इस पूरे वृतांत में इस पूरी क्रिया में तुम कभी भी ईश्वर का नाम मत लेना। वरना सब अस्त-व्यस्त हो जाएगा।
इसके बाद मेरी आंखें खुली तो मैंने वैसा ही किया जैसा और बूढ़े व्यक्ति ने बताया और समुद्र चढ़ने लगा तेज तूफान आया और एक नाव इतना वो मेरे पास आकर लग गई। मैं उस नाव में बैठ गया और तेज तूफान के जरिए मैं उससे दूसरी जगह में पहुंच गया। उस नाव में बैठे पीतल के व्यक्ति ने मुझे एक ऐसे स्थान पर पहुंचाया जहां एक द्वीप दिखाई दे रहे थे और मैं उत्साहित होकर भगवान को धन्यवाद देने लगा।
तभी वह मांझी और नाव उसे समुद्र में डूबता है और मैं उस समुद्र में तैरने लगा। कई घंटे तक करने के बाद मैं एक द्वीप के समीप पहुंचा लेकिन मैं थक चुका था तभी एक तेज लहर ने मुझे द्वीप पर पहुंचाया मैं झट से उस द्वीप पर चढ़ गया और थोड़ी देर आराम किया मैं बहुत थका हुआ था और भूख भी लग रही थी। मैंने वहाँ का कुछ फल के पेड़ देखे और फल तोड़कर खा कर पानी पिया और आराम किया।
तभी मैंने देखा कि एक जहाज आ रहा है मैंने सोचा कि क्यो न आवाज दे? लेकिन सावधान शत्रु न हो। मैं चुप कर लोगों को देख रहा था वो लोग क्या करते हैं? यह सारी निगरानी कर रहा था।
कुछ देर के बाद तो वह जहाज तट पर आकर रुका और उसमें से कुछ लोग उतरे। एक बालक और एक वृद्ध व्यक्ति भी आया। वह लोग कुछ खोदने का सामान साथ में लाये थे। वह स्थान पर आकर खोदने लगे तथा एक दरवाजा मिला। जिसे खोल कर दे अंदर गए और कुछ देर बाद भी वापस आकर अपने जहाज पर चले गए लेकिन इस बार वापस आने पर उनके साथ वह बालक नहीं था जो जाते समय दिखाई दिया।
मुझे कुछ आश्चर्य लगा। जहाज के जाने के उपरांत कुछ देर बाद उस पर से उठा और उस जगह गया। जहां पर लोगों ने खुदाई की थी। मैंने खुद ही आकर उस स्थान को देखा तो, वहां पर दरवाजा था। उस दरवाजे को खोला तो नीचे सीढ़ियां लगी हुई थी। सीड़ियों के सहारे मैं नीचे गया तो मैंने देखा कि बहुत बड़ा सा मकान बना हुआ था। उसमें सोफा कालीन तथा गड्ढे बिछड़े हुए थे।
मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया मैंने देखा कि ऊपर बैठा बालक अतिसुंदर था और उसके बगल में चारों तरफ और चमकदार रोशनी थे बैठकर कुछ खा रहा था। वह बालक मुझे देख कर डर गया। मैंने उसे तस्ली देते हुए कहा है मैं एक राजकुमार हूं लेकिन तुम भी किसी राजकुमार से कम नहीं लगते। तुम किस राज्य के राजकुमार हो क्या?
तुम यह बताओ की वह लोग तुम्हे यहाँ गाड़ गए ऐसा क्यों? क्या तुम लोग उनसे दुश्मनी है या तुम्हारे पास है ऐसा किस क्यों किया? मैं तुम्हें यहाँ से निकला दूंगा वह लडका को मुझ प्रति विश्वास उसे मुझे अपने पास बुलाया और बैठाया उसे कहा मैं एक ऐसे पिता का बेटा हूँ।
मेरे पिता एक जौहरी है। उनके देश विदेश से उनके कई मकान बने हैं तथा बहुत सारा धन उनके पास है। विदेश में अपने व्यापार का क्रय विक्रय करते हैं। उनके पास काफी धन होने के कारण भी वो गरीब थे क्योंकि वह पुत्र वीहींन थे उनकी कोई संतान नहीं थी। कई वर्षों तक उनकी कोई संतान नहीं हुई लेकिन उन्हें एक रात ऐसा सपना आया कि वह घबरा गया था।
उनसे रात में बूढ़े व्यक्ति ने कहा कि तुम्हारे यहां कुछ वर्षों बाद एक पुत्र जन्म लेगा लेकिन उसकी उम्र बहुत कम होगी अर्थात वह 14 वर्ष की आयु में मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। कुछ वर्षों बाद तथा कुछ दिन बाद मेरी माता के गर्भ में मैंने जन्म लिया और नाते रिश्तेदार तथा सभी सखी संबंधियों की खुशी का कारण बना।
मेरे पिता के चेहरे पर खुशी झलक नहीं रही थी। मेरे पिता को बस सपना याद था इसलिए वह डरते हैं। उन्होंने कई ज्योतिषियों तथा महान ज्योतिषियों का सहारा लिया ज्योतिषियों सपना तो बताने के अनुसार कुछ बातें मेल खाएं इसलिए उनके डर ये हमेशा से बना ही रहता था क्योंकि ज्योतिषी ने बताया कि उसकी उम्र बहुत कम है। यह 14 वर्ष के बाद मर जाएगा।
इसीलिए मेरे पिताजी बहुत चिंतित रहते हैं और वह हमेशा मेरे बारे में सोचते हैं। इसलिए मुझे यहां पर तहखाने में बंद किया जिससे की मौत मुझे छू न सके अर्थात यमराज भी आए तो मुझे पाए ना। इसी कारण से मैं इसी स्थान पर 40 दिन के लिए बंद हूँ।
मैं जोर जोर से हंसने लगा और उस बालक को समझाते हुए कहा कि तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारे रक्षक के रूप में यहां पर उपस्थित हूं। तुम्हें मौत छू ही नहीं सकती। तुम्हे यहाँ से कोई नहीं ले जा सकता। यह एक संयोग ही तो है जो मैं तुम्हारे रक्षक के रूप में यहां पर उपस्थित हूं। मेरे पास में जहाज था, जो डूब गया।
भगवान का शुक्र करो कि मैं यह सब देख कर तुम्हारा मेरे बारे में जानने की इच्छा जताई और यहां पर आ गया 40 दिन बाद जब तुम्हारे पिता तुम्हें लेने आएंगे तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा और वहां से अपने राज चला जाऊंगा।
अब मैं उसके साथ रहने लगा। उसके साथ हंसने कूदने गाने लिखने पढ़ने लगा और कई ऐसे खेल खेलने लगा। उसके पिता ने कई ऐसी सामग्रियां दी थी जिससे खाने-पीने मैं कोई कमी नहीं थी। दिन बीतते गए। वह और मैं उसके प्रति आकर्षित हो गया। अब मुझे नहीं लगता था कि जब मैं रक्षक हूँ तो मैं उसकी मृत्यु का कारण बनूंगा।
धीरे-धीरे दिन बीतते गए और 39 दिन बीत गए थे। अगली सुबह जब भी तो 40 दिन की शुरुआती में उसने मुझसे कहा महोदय देखीये आज 40व दिन है और हम सही सलामत हैं। कृपया मेरे मुंह धोने और नहाने के इन्तजाम कर दीजिए। मैंने उसके नहाने का इंतजाम किया। वह नहा धोकर बैठ गया और कहने लगा मुझे बहुत भूख लगी है एक तरबूज मुझे दीजिए।
थोड़ी सी मिश्री के साथ में तरबूज और मिश्री लेकर आया। मैंने उससे तरबूज को काटने के लिए साधन पूछा। उसने कहा कि ऊपर रखी हुई है। उस छूरी को उतार ही रहा था कि मैं पहुंच नहीं पाया। इसलिए मैंने चढ़कर उस दूरी को उतारा और धीरे से उतरने की कोशिश करते करते मेरा पैर फिसल गया और मैं उस जौहरी के बेटे के ऊपर ही जा गिरा। मेरे हाथ में छुरी थी उस छोरी से उस बच्चे के पेट में जा घुसे और वह बेचारा नन्हा सा बालक वहीं पर मर गया मुझे बड़ा अफसोस हुआ।
मैं उसी स्थान पर उसके बेटे के पास बहुत देर तक रोता भी रहा और कल्पित होता रहा। अपने आप को कोसता रहा क्योंकि यह सब अचानक हुआ था। मैं भगवान से प्रार्थना करता रहा और भगवान को कोसता रहा कि तू यह सब देख रहा है। तू ही इसका कारण है। तू सब जानता है। मैंने कुछ नहीं किया। यह सब अनजाने में हुआ है। यदि तू ऐसे सब जानता है तो अभी इसी वक्त मेरे प्राण ले ले और इस बच्चे के प्राण दे दे।
कुछ देर बाद मैंने सोचा किसका बाप इसका पता उसे लेने आता होगा। मुझे यहां से चलना चाहिए। मैं तुरंत बाहर निकला और गेट पर मिट्टी डालकर एक पेड़ पर चढ़ गया मैंने देखा कि इस का बाप वह नाव लेकर आया।
नाव में से जौहरी निकला और कुछ सैनिक भी आएं। वे सैनिक ने पत्थर हटाकर दरवाजा को खोला और अंदर अपने बेटे को पुकारा। अंदर से कोई आवाज नहीं है वह बड़ा और चिंतित हुवा अंदर गया तो उसकी बेटी की लाश पड़ी थी और जोर से रोने लगे चिल्लाने लगा उसने अपने बेटे की लाश को बहार निकला और उसे पेट के बल लिटा दिया जिस पर मैं सवार बैठा हुआ था, उसके नीचे ही मिट्टी में दबा दिया और मिट्टी से बराबर कर दिया।
अब मैं उसी पेड़ पर ही बैठा रहा। वे जाते जाते खाद्य सामग्री भी लेकर चले गया इसलिए मुझे जल्दी पेड़ों के फल खाने पड़ते थे। दिन में मैं अपने राज्य के लिए रास्ता ढूंढ था और रात में उसी पेड़ पर ही आकर बैठ जाता। लगभग धीरे-धीरे एक 2 महीने बीत चुके थे।
कुछ दिन धीरे-धीरे समुद्र का पानी घटता रहा और कुछ दिनों में समुद्र का पानी इतना घट गया कि चारों तरफ बालू ही बालू हो गया था। अब मैंने सोचा कि मुझे इस समुद्र को पार करके दूसरे द्वीप पर जाना चाहिए। मैं चल दिया। मुझे कुछ दूर चलने के बाद मुझे द्वीप जैसे प्रतीत हुआ मैं पास जाकर देखा तो वहां पर पीतल का घर बना हुआ था, जिससे सूर्य के प्रकाश के कारण रोशनी निकल रही थी। उनमें एक वृद्ध और काना व्यक्ति निकला, जिनके साथ 10 जवान थे। काने ने मुझसे पूछा कि आप कौन हैं और यहां कैसे आए हैं?
उसके बाद वो मुझे उस घर के अंदर लेकर गए, जिसके अंदर 10 नीले कमरे बने हुए थे जिनके बीच दलानी बिछी हुई थी। वह 10 सैनिक उसी 10 कमरे में चले गए और दलानी में वृद्ध व्यक्ति बैठ गया। उनमें से एक सैनिक ने कहा कि तुम भी यहीं पर लेट जाओ, लेकिन हम लोग यहां पर किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया करें उसका कारण, उसकी वजह मत पूछना, वरना उसका तुम्हें मूल्य चुकाना होगा।
हम लोगों ने वहां पर खाना खाया और उसके बाद मदिरा पीकर बहुत सारी बातें की। उनके बारे में जाना और अपने बारे में बताया। उसके बाद सैनिकों ने राख को अपने चेहरे पर लगाया और रोने लगे और भगवान को कोसने लगे। उसके बाद बूढ़ा व्यक्ति ने सभी को जल दिया, जिससे कि उन्होंने अपना मुंह धोया और फिर से सुंदर दिखने लगे थे।
अगली सुबह हम लोगों ने सैर करने के लिए बाहर निकले तो, मैंने उन लोगों से पूछ लिया कि तुम लोगों ने कल रात इस प्रकार का व्यवहार कैसे किया? उन्होंने मुझे स्पष्ट मना कर दिया कि इन सवालों का जवाब नहीं दे सकता। उसी रात हम लोग फिर से खाना खाने के लिए बैठे।
उन्होंने कहा तो बहुत चिंतित दिखते हो। इसलिए मैं तुम्हें अपने इस कारण का राज बताता हूं। लेकिन इसमें तुम्हें खतरा है। तुम्हारी दाहिनी आंख भी फुट सकती है। तुम जिद छोड़ दो। मैंने कहा मुझे यह स्वीकार है तुम मुझे बताओ।
उसने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो तुम्हें यहां रहने के लिए नहीं मिलेगा। यहां पर 11 लोगों के रहने की गुंजाइश नहीं है। मैंने कहा कि आप भी मुझे मंजूर है। तुम इसका कारण मुझे बताओ। मैं यह जानना चाहता हूं कि यह सब कैसे हुआ?
उन जवान सैनिकों में से एक सैनिक ने कहा मैं तुम्हें एक भेड़ की खाल में सिल दूंगा। यहां पर एक पक्षी आता है, जो तुम्हें भैंड़ समझकर उठा ले जाएगा और ऊंचे पहाड़ पर रखकर तुम्हें खाने के लिए के लिए इस पर वार करेगा। तुम पहले से ही चौकाने होना। जैसे तुम जमीन पर खुद को रखा महसूस करना वैसे ही तुम उस खाल को छोड़कर बाहर निकल जाना और जोर से चिल्लाना जिससे कि वह डर कर भाग जाएगा।
वहां पर तुम्हें एक महल मिलेगा और उसमें बहुत सारा सोना चांदी होगा। यहां तक हम लोग जानते है उसके आगे यदि तुम आगे बढ़े तो तुम इस पुस्तक को पूरा करना। इसके आगे हम लोग कुछ नहीं कह सकते हैं। जब वह लोग ने अपनी बात समाप्त की तो मैंने भेड़ की खाल से अपने आप को उड़ा लिया और लोगों ने सिल दिया और पक्षी आया मुझे एक पहाड़ पर लेकर गया।
तीसरे पहाड़ में जब मैं पहुंचा तो मैंने देखा कि जो लोगों ने बताया था यह उसी से भी अधिक है। दरवाजा खोलते ही कुछ मुझे कुछ स्त्रियां दिखीं। उन स्त्रियों से पूछा कि तुम लोग कौन हो? उन्होंने जवाब दिया कि मैं तुम्हारी पत्नी हूं और यह जो है तुम्हारी दासिया हैं। हम सब तुम्हारे प्रेम के लिए जहां पर उपस्थित हैं।
वे बाहर निकल कर आई और कोई मेरे पैर दबाने लगी। कोई मेरे पैर को गर्म पानी से धोने लगी। कोई स्वादिष्ट व्यंजन भोजन पकाने लगी। कोई बीस्तर को साफ करने लगी और कोई मेरे सिर को दबाने लगी। ऐसा सुख देखकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई और मैंने उनके साथ भोजन किया और बहुत सारी बातें की। धीरे-धीरे रात हो गई रात के समय में वहां पर बहुत ही अच्छी और आकर्षक लाइट जल रही थी। मैं और भी अत्यंत प्रसन्न हो रहा था।
धीरे-धीरे भोजन के उपरांत वे सभी स्त्रियां गाना बजाने लगी और कोई नृत्य करने लगा। उसके पश्चात इनमें से एक ने कहा कि महाराज आप बहुत दूर से आए हैं। आप आराम करें। आपका शयनकक्ष पूरी तरह से तैयार है। आप हम में से किसी एक को चुनाव करके ले जा सकते हैं और आप आनंद उठा सकते हैं।
मैंने चुनाव करने में झिझक कि मैंने उनसे कहा कि यदि मैं एक को ले जाता हूं तो आप लोगों को बुरा लगा। उन्होंने कहा ऐसी कोई बात नहीं आज नहीं तो कल हम सबको आपके साथ ही सोना है। आपके साथ ही बातें करनी है। इसलिए मुझे कोई आपत्ति नहीं है।
अगली सुबह होते ही सभी स्त्रियां मेरे शयन में आ गई। मैं उठ भी नहीं पाया था कि वह सब मुझसे पूछने लगी कि आप की रात कैसे गुजरी? आप सही से आनंद ले तो आए? मैंने जवाब दिया औरमुझे स्नान ग्रह में लेकर गई और सब ने मुझे अच्छी तरह से स्न्नान करवाया और फिर उसी प्रकार भोजन में जल पकवान बनाकर मुझे खिलाया और मदिरा पिलाया।
मैं अच्छे से खाना पीना खाकर मस्त हो गया और फिर उसी तरह आधी रात बीत गई फिर मैं किसी दूसरी स्त्री का हाथ पकड़ कर अपने साथ ले गया और शयनकक्ष में आराम करने लगा।
फकीर ने जुबैदा से बताते हुए कहा है मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मैं स्वर्ग में था लेकिन जब एक वर्ष पूरा होने को हुआ तो आखिरी दिन जो सभी स्त्रिया मुझे सुबह उठाने और मेरा हाल पूछने आयी और मुझसे जाने की आज्ञा करने लगी और आंख में भरे आंसु से कहने लगी ऐ शहजादे अब तुम्हारी भगवान रक्षा करेंगे।
मैं आश्चर्य जनक से पूछने लगा कि तुम लोग कहां जा रहे हो और क्यों जा रहे हो? भगवान रक्षा क्यों करेगा? कोई आफत आन पड़ी है तो मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा। मैं तुम्हारी मदद करूंगा। यदि कोई ऐसा कार्य है तो मुझे बताओ। मैं वह सब करूंगा जैसे बन सकेगा। उन्होंने कहा नहीं भगवान की इच्छा है कि हम लोग हमसे जुदा हो जाए।
यहां पर कई ऐसे पुरुष आये हैं जो हम लोगों के साथ रहे और उसके बाद विदा ले लिए। आज तक उन लोगों का हाल खबर हम लोगों को नहीं पता हुआ भगवान की इच्छा है हम लोगों को जुदा होना ही होगा।
मैंने उनको खुद की सौगंध दिलाते हुए कहा कि कृपया साफ-साफ बताएं कि क्या माजरा है? आप लोग क्यों विलाप कर रहे हैं? ऐसा क्यों हो रहा है? और क्यों विदा लेने की बात कह रही हैं? उनमें से एक ने बोली जो उस दिन सबसे पहले मेरे साथ गई थी। उसने कहा शहजादे हम सब शहजादियाँ है, जो अपने अपने राज्य से यहां पर प्रमोद के लिए उपस्थित होते हैं और 40 दिन के उपरांत हम सब ने राज्य में फिर से अपने कार्य को करने चली जाती है और उसके बाद 40 दिन के बाद फिर यहां पर आ जाती हैं।
अब तक जो हुआ यहां पर जितने भी पुरुष हैं उनमें से 40 दिन के उपरांत कोई मुझे नहीं मिला लेकिन हम आपको खोना नहीं चाहते इसलिए आपको बताते हैं कि यह 40 कमरों की चाबी है जिसमें आप अपना घूम फिर सकते हैं।
लेकिन आपको मेरी सौगंध ईश्वर की सौगंध और हम सब की सौगंध 40 वें कमरे को न खोलेगा क्योंकि यदि आपने उसे खोला तो कष्ट ही होगा जिससे हम लोगों में कष्ट होगा और हम लोग सहन नहीं कर पाएंगे।
मैं उन स्त्रियों द्वारा कही गई बातों को मान गया। मैंने उनसे कहा कि मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूं कि मैं इस दरवाजे को नहीं खोलूंगा परंतु मैं तुम्हारे बिछड़ने इंतजार करूंगा। मैं इस 40 दिन को किसी भी तरीके से अपना मन बहला कर काट लूंगा लेकिन तुम लोगों का इंतजार जरूर करूंगा। तुम लोगों ने जो मुझे या नसीहत दी है मैं इसे कभी नहीं भूलूंगा। यह मेरे लिए तथा आपके लिए और हम दोनों के प्रेम के लिए जो तुमने किया है मैं कभी नहीं भूल सकता।
मैं उन सभी 40 स्त्रियों को विदा करने लगा और गले लगा कर रोने लगा। वह सब विदा हो गई। मैं अगले दिन इधर उधर घूमने लगा। मैंने सोचा कि मैं सभी कमरों से सभी दरवाजे को खोलकर क्यों ना अपने दिल बहलाऊंगा। सिर्फ एक ही दरवाजे को तो नहीं खोलना है।
मैं जब पहले दिन घूमने निकला तो मैंने देखा कि बहुत बड़ा बाग है, ऐसा बाग पूरे संसार में नहीं होगा। वहां पर अनेक अनेक प्रकार के फल लगे हुए। अलग-अलग प्रकार के पेड़ पर जो पूरे संसार में विख्यात थे और उनको सींचने के लिए एक नहर थी, जो पक्की नहर से छोटे शहरों में बटी हुई थी।
मैं कुछ देर रात तक चलता रहा। तीन दरवाजे को खोलकर मुझे देखते देखते शाम हो गई। मैं अपने आराम ग्रह आकर सो गया। अगले दिन जब मैंने चौथे दरवाजे को खोला मैंने देखा कि वहां पर बड़ी-बड़ी मूर्तियां हीरे जेवरात रखे हुए थे। मैं तो देख कर खुश हुआ। पांचवें में देखा तो अशरफिया। छठ्ठे कमरे में देखा तो मोतियों की माला सोना चांदी रखा हुआ था। ऐसे ही अन्य दरवाजे को खोलकर देखा और देखता रहा। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मैं 40 शहजादियों का राजा हूं।
फकीर कहता है कि हे रानी मैं तुम्हें कैसे बताऊं कि मैं 39 दिनों में उन सभी दरवाजों को खोल खोल कर देखता रहा और नई-नई प्रकार की आकर्षक चीजों को देखता रहा जब 40 बार दिन हुआ तो शैतान ने मेरे मन को बदलकर रख दिया। 40 दरवाजे को खोलने के लिए गया। मैंने उस दरवाजे को जैसे ही खोला मुझे अजीब सा महसूस हुआ और मैं बेहोश हो गया।
कुछ समय के बाद जब मैं उठा तो अंदर गया था। अनेक अनेक प्रकार के इतर सुगंध जैसी कई सुगंधी उपस्थित थी। मैं आगे बढ़ता गया। कुछ दूर जाने के बाद मुझे एक घोड़े दिखाई दिया,जो सोने का बना हुआ था। उसकी लगाम सोने की थी। उसका पूरा शरीर सोने का ही लग रहा था।
मैं उस घोड़े को निकालना चाहता था। मैंने उस घोड़े की लगाम पकड़ी और से बाहर निकाल कर उस पर सवार हो गया। मैंने उसे चलने का इशारा किया लेकिन वह नहीं चला। मैंने उसे चलने लगा, उसके पंख निकले वह उड़ा और पृथ्वी से बहुत दूर हुआ। फिर उसके बाद उसने पीतल कि छत पर जाकर पर आया जहाँ पहले था और उसने मुझे उतारा। मैं उसके के नीचे गिरा। पैरों के पीछे उसने अपनी पूछ मारी और मेरी दाहिनी आंख फूट गई और वह फिर घोड़ा चला गया।
उस पीतल की छत से किसी तरह नीचे आया। मैं उन सभी जवानों का और उस बूढ़े आदमी का इंतजार कर रहा था। बस जब सब आए तो उन्होंने कहा कि देखो मैंने तुमसे कहा था, तुमने ऐसा नहीं किया।
जैसा की आपको पहले ही पता था यहाँ पर 11 आदमी की रहने के लिए जगह नहीं है इसलिए तुम बगदाद जाओ। वहां से मेरा एक दोस्त तुम्हें आगे छोड़ देगा। मैं बगदाद के लिए निकाला और वहां पर अपने सर, मुछे सब मुड़वा दिया और फकीरो जैसा वेस बना लिया।
तीसरे फकीर की कहानी खत्म होते जुबैदा ने उन सब को माफ कर दिया और लोगों को जाने के लिए कहा। उनमें से एक फकीर जो पहले जिसने पहले ही सुनाया था। उसने कहा कि यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं 3 आदमियों की और कहानी सुनना चाहता हूं कि आखिर इन लोग कैसे इस प्रकार बने।
उन तीन व्यक्तियों ने अपनी अपनी कहानी सुनाई और कहा कि हम यहां पर व्यापार करने के लिए आए थे और कुछ ऐसी घटनाएं हुई, जिंदगी हम लोग इस प्रकार बन गए। जुबैदा ने उन तीनों को माफ कर दिया और कहा कि तुम लोग जाओ अपने अपने घर जाओ और यह कहकर इस कहानी का अंत यही पर होता है।
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