Tenali Ramakrishna Stories in Hindi: नमस्कार दोस्तों, आपने अपने बचपन में छोटी कक्षाओं में तेनालीराम की कहानियां (Tenali Raman ki Kahani) तो पढ़ी होगी। हमें छोटी कक्षाओं की किताबों में तेनाली रमा की कहानियां देखने को मिलती हैं। आज हम यहां पर तेनाली रामा की कहानियां (Story of Tenali Ramakrishna in Hindi) शेयर करने जा रहे हैं जो हैं तो बहुत छोटी है लेकिन ये हमें बहुत कुछ सीखने की प्रेरणा देती है।
तेनालीरामा की कहानियां (Tenali Ramakrishna Stories in Hindi) कहानी के पीछे एक बड़ी सीख होती है, जो हमें अपने जीवन में उतारनी चाहिए। इससे पहले हम कुछ शब्दों में तेनाली रमा के बारे में जान लेते हैं।
तेनाली रामा कौन थे?
तेनाली रामा एक कवि थे और उन्होंने अपने जीवन कई सारी कविताएं लिखी हैं। तेनाली रामा कवि होने के साथ साथ एक चतुर और हास्य व्यक्ति थे। वो अपनी बुध्दि के कारण बहुत ही प्रसिद्ध थे। तेनाली रामा आंध्रप्रदेश में एक ब्राम्हण परिवार में जन्मे थे और बचपन में उनके पिता का निधन हो गया था। उसके बाद उसकी माता Tenali Raman के साथ अपने गांव चली गयी थी।
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आज हम यहां तेनाली रामा की चतुराई की कुछ तेनालीराम की कहानी इन हिंदी (Tenali Raman Story in Hindi) शेयर करने जा रहे हैं। आपको ये तेनाली रामकृष्ण की कहानियां (Tenali Raman Stories in Hindi) पसंद आये तो इसे आगे शेयर जरूर करें।
तेनाली रामा की कहानियां | Tenali Ramakrishna Stories in Hindi
चोर और तेनाली रामा (Tenali Rama ki Kahani)
एक समय की बात हैं। जब विजयनगर के राजा कृष्णदेव थे। उन दिनों में विजयनगर में चोरी होने के मामले बढ़ते ही जा रहे थे। चोर चोरी दहाड़े करने लगे थे। वहां पर कई महंगी से महंगी वस्तुएं चोरी होने लगी और लोगों के घरों का समान भी गायब होने लगा। सभी लोग इससे काफी परेशान हो गए थे। इस समस्या का हल निकालने के लिए वहां के लोग राजा कृष्णदेव के दरबार में पहुंचे।
जब राजा कृष्णदेव को इस बात का पता चला तो राजा बहुत गुस्सा हुए और अपनी सेना की एक टुकड़ी को विजयनगर में भेज दिया। चोरों का पता लगाने को कहा। सेना की टुकड़ी विजयनगर में सभी जगहों पर तैनात हो गई और सभी पर नजर रखने लगी। तब भी चोर चोरी करने से पीछे नहीं हुए। सेना की टुकड़ी उस चोरों को पकड़ने में सफल नहीं हो पाई और वापस दरबार में पहुंची।
जब सेना से भी यह काम नहीं हुआ तो चतुर तेनाली रामा को दरबार में बुलाया गया और राजा कृष्णदेव ने तेनाली रामा को चोरों के बारे में बताया। उसे 7 दिन के अन्दर अन्दर पकड़ने के लिए कहा और राजा ने आदेश दिया कि सेना की एक टुकड़ी तेनाली रामा के इस काम में साथ देगी। तो तेनाली रामा ने मना कर दिया कि मुझे इस काम के लिए किसी सेना की जरूरत नहीं है। मैं इस काम के लिए अकेला ही काफी हूं।
ये सुनकर वहां के लोग तेनाली रामा पर हंसने लगे और कहने लगे कि ये काम तो राज्य की सेना भी नहीं कर पाई और ये अकेला इस काम को कर देगा। तेनाली रामा ने इन सबको अनदेखा कर दिया और इस काम में लग गये।
उसके अगले दिन राज्य में एक बात चली कि सेठ धनदेव को एक मन्त्र मिला है। जिससे कोई चोरी होगी ही नहीं। रात में घर की तिजोरी भी खोल के सोयेंगे तो चोर चोरी नहीं कर पायेंगे। जब ये बात चोरों को पता लगी तो चोर बहुत खुश हुए। उनको लगा कि हमें इससे चोरी करने में कोई समस्या नहीं होगी। हम आसानी से अपना काम कर सकेंगे। हमें खुली तिजोरी मिल रही है और क्या चाहिए हमें।
चोरों ने सेठ धनदेव की हवेली में चोरी करने का निर्णय लिया और वहां पर चोरी करने के लिए पहुंच गये। वहां पर सेठ धनदेव अपनी तिजोरी खुली रखकर सो रहा था। ये देख चोर खुश हुए और अपना काम करने लगे। चोरों ने पूरी तिजोरी को खाली कर दिया और सभी वहां रखा किस्मती सामान चोरी कर अपने साथ ले गए।
जब इस बात का पता सेठ धनदेव को लगा तो वह तुरंत राजा कृष्णदेव के दरबार में पहुंचा। यह बात सुनकर राजा सेठ पर बहुत गुस्सा हुआ और कहा कि तुमको पता था कि विजयनगर में चोरियां हो रही है तो रात में अपनी तिजोरी खोल कर सोने की क्या जरूरत थी? इतना कहने के बाद दरबार में तेनाली रामा दो लोगों को पकड़कर हाजिर हुए और राजा को बताया कि ये वो चोर हैं जो विजयनगर में चोरियां करते हैं।
सेठ धनदेव को मैंने ही अपनी तिजोरी को खुला रखकर सोने के लिए कहा था। ये बात मेरे ही लोगों द्वारा विजयनगर में फैलाई गई थी कि इस मन्त्र से तिजोरी खुली रखकर भी सोने से चोरी नहीं होगी। मैंने सेठ धनदेव के कमरे में काला रंग बिछा दिया।
जब चोर वहां चोरी कर रहे थे तो उनके पैरों में ये काला रंग लग गया और वो वहां से निकले तो उनके पैरों के चिन्ह बनते गये। मैंने इन पैरों के चिन्हों का पीछा किया तो पाया कि चोरी राज्य के पूर्व मंत्री ही करवा रहे थे। फिर चोरों और पूर्व मंत्रियों को पकड़ लिया गया।
तेनाली रामा की इस चतुराई से राजा बहुत खुश हुआ। तेनाली रामा को धन्यवाद दिया और इनाम भी दिया।
इस कहानी में तेनाली रामा ने चोरों को पकड़ने में अपनी बुद्धि और चतुराई का बहुत ही अच्छे तरीके से प्रयोग किया है।
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तेनाली राम और मटका (Tenali Rama ki Kahaniyan)
एक बार किसी बात को लेकर राजा कृष्णदेव तेनाली रामा से बहुत गुस्सा हो गये और उनको ये आदेश तक दे दिया कि वो दरबार में नहीं आयेंगे और अपना चेहरा राजा को कभी नहीं दिखायेंगे। यदि तेनाली रामा इस आदेश का पालन नहीं करते हैं तो उन्हें सजा के तौर कोड़े लगाये जायेंगे। जब राजा ने ये आदेश दिया तो तेनाली रामा के विरोधी बहुत खुश हुए।
राजा के गुस्से को देखकर तेनाली रामा ने उस समय वहां से निकलना ही बेहतर समझा और दरबार से निकल गये। फिर अगले दिन जब राजा अपने दरबार की और जा रहे थे। तो उस समय तेनाली रामा का विरोधी राजा को भड़काने लगा और कहा कि आपके आदेश को तेनाली रामा ने नहीं माना। आपके आदेश को वो मजाक में ले रहा है। तेनाली रामा दरबार में सभी को अपनी बातों से हंसा रहा है। ये सुनकर राजा का गुस्सा और भी बढ़ गया और वो तेजी से दरबार की और बढ़ें।
वहां पर जाकर देखते हैं कि तेनाली रामा अपने मुंह को एक मटके में डालकर खड़े हुए और आंखों की जगह पर मटके में दो छेद किये हुए हैं। ये देखकर राजा गुस्से में बोले कि तेनाली रामा तूने मेरा आदेश नहीं माना। अब तुम कोड़े खाने के लिए तैयार हो जाओ।
तो इस पर तेनाली रामा ने जवाब दिया। महाराज आपने तो मुझे अपना चेहरा दिखाने को मना किया था। इसलिए मैंने अपना चेहरा इस मटके से ढक लिया है। यदि इसके बावजूद भी आपको मेरा चेहरा दिख रहा है तो इस कारण कुम्हार ने मुझे फुटा हुआ मटका दे दिया हैं। इस बात पर राजा खुश हुए और हंसने लगे। महाराज का गुस्सा शांत हो गया। तेनाली रामा को महाराज ने अपने आसन पर बैठने के लिए बोल दिया। इस पर तेनाली राम के विरोधयों में चूपी छा गई।
ईरानी शेख और तेनाली राम (Tenali Rama Story in Hindi)
मध्य पूर्वी देश से व्यापारी के रूप में एक ईरानी शेख राजा कृष्णदेव राय के राज्य में आता है। राजा कृष्णदेवराय उस व्यापारी का सम्मान सहित स्वागत सत्कार करते हैं और उस व्यापारी के लिए खाने-पीने और रहने की व्यवस्था करते हैं। इसके साथ ही उस ईरानी शेख को कई सारी सुविधाएं भी दी जाती हैं।
एक दिन जब राजा का रसोईया उस ईरानी शेख के लिए खाने में रसगुल्ले बनाकर लाता है तो वह शेख उन रसगुल्लों को खाने से मना कर देता है और उस रसोईये से कहता है कि इस रसगुल्ले की जड़ क्या है? ये उसे बताएं इतना सुनने के बाद रसोईया चिन्तित हो जाता है और मौका मिलने पर इसके बारे में राजा कृष्णदेवराय से कहता है। फिर कृष्णदेवराय इसका उतर खोजने के लिए तेनाली राम को बुलाते हैं।
जब तेनाली राम को रसगुल्ले जड़ का पता लगाने का राजा कृष्णदेवराय कहते हैं तो तेनाली राम उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं और एक धारदार छूरी और एक खाली कटोरे की मांग राजा के सामने रखते हैं। कहते हैं कि मुझे इसका उतर खोजने के लिए एक दिन का समय चाहिए। राजा तेनाली रामा की बात मान लेते हैं और उसे एक दिन का समय देते हैं।
फिर अगले दिन तेनाली राम उस कटोरे को रसगुल्लों की जड़ों से भरकर उस पर मलमल के कपड़े से ढककर दरबार में बैठे व्यापारी ईरानी शेख के सामने रखते हैं और शेख से रसगुल्ले की जड़ को देखने के लिए कहते हैं। जब शेख उस मलमल के कपड़े को हटाते है तो उस कटोरे में गन्ने के टुकड़े देखते हैं। इसे देखकर दरबार में बैठे दरबारी और ईरानी व्यापारी हैरान हो जाते हैं। फिर वहां पर उपस्थित राजा, दरबारी और ईरानी शेख तेनाली राम से इसका मतलब पूछते हैं।
वहां पर मौजूद सभी को चतुर तेनाली राम समझाते हैं कि रसगुल्ले शक्कर से बनाये जाते हैं और शक्कर की जड़ ये गन्ने है तो फिर रसगुल्ले की जड़ भी तो गन्ने ही हुए। तेनाली राम के इस उतर को सुनकर वहां पर सब लोग हंसने लग जाते हैं और इस उतर से सहमत भी हो जाते हैं।
स्वर्ग की खोज (Tenali Ramakrishna Stories in Hindi)
विजय नगर के राजा कृष्णदेवराय ने अपने बचपन में कई ऐसी कहानियां सुनी थी, जिसमें स्वर्ग का नाम आता था। बचपन से उनके मन में ये सवाल था कि स्वर्ग इस दुनिया में सबसे सुन्दर और मनमोहक स्थान है। उन्हें स्वर्ग देखने की इच्छा हुई। वहां पर उपस्थित सभी मंत्रियों से पूछते हैं कि स्वर्ग कहां हैं?
वहां पर मौजूद सभी मंत्री एक दूसरे के सामने देखते हैं। तभी उन मंत्रियों में उपस्थित तेनाली राम राजा की इच्छा पूरी करने की जिम्मेदारी ले लेते हैं और राजा से कहते हैं कि मैं आपकी इस इच्छा को पूरा कर सकता हूं। राजा ये बात सुनकर बहुत प्रशन होते हैं। तेनाली राम इसके लिए राजा से दस हजार सोने के सिक्के और दो महीने का समय मांगते हैं।
राजा इनकी इजाजत दे देते हैं और इसके साथ राजा ये भी कहते हैं कि यदि तेनाली राम इनकी इच्छा पूरी नहीं कर पाएं तो उनको कड़ी सजा दी जाएगी। दरबार में मौजूद सभी मंत्री तेनाली से जलते थे और उनको ख़ुशी होने लगी कि तेनाली राम स्वर्ग नहीं खोज पायेगा और राजा इसे सजा देंगे।
जैसे-जैसे समय बिता और दो महीने निकल गये। तभी दरबार में राजा तेनाली राम को बुलाते है और उन्हें राजा स्वर्ग का पता पूछते हैं। तभी तेनाली राम राजा को उतर देते हैं कि उसने स्वर्ग का पता खोज लिया है और कल सुबह वे स्वर्ग के लिए प्रस्थान करेंगे। अगली सुबह तेनाली राम राजा और कुछ खास मंत्रियों के साथ स्वर्ग को देखने के लिए निकल जाते हैं।
तेनाली राम सभी के सुन्दर स्थान पर ले जाते हैं, जहां पर शुद्ध वातावरण, बहुत सारी हरियाली, चहचहाते पक्षी, बहुत सारे पेड़-पौधे और शुद्ध व स्वच्छ हवा ये देखकर राजा खुश हो जाते हैं। तभी उनके मंत्री स्वर्ग देखने की बात को वापस याद दिलाते है और राजा तेनाली राम को उनका वचन पूरा करने को कहते हैं।
फिर तेनाली राम जवाब देते हैं कि हमारी पृथ्वी पर इतने सुन्दर पेड़-पौधे, पक्षी, फल-फूल, हरियाली, शुद्ध वातावरण, इतना अच्छा सौन्दर्य है फिर भी आप स्वर्ग देखने की कामना क्यों कर रहे हैं? जबकि स्वर्ग के जैसी कोई जगह है या नहीं इसका अभी तक कोई प्रमाण भी नहीं है।
राजा कृष्णदेव को तेनाली राम की बात अच्छे से समझ आ जाती है और वो खुश हो जाते हैं। तभी वहां के मंत्री जो तेनाली राम जलते थे, वे राजा को दस हजार सिक्कों की याद दिलाते हैं। राजा कृष्णदेव तेनाली से उनके बारे में पूछते है तो तेनाली राम कहते हैं कि उनको तो खर्च कर दिया है।
उन दस हजार सिक्कों से मैंने यहां से बहुत सारे पौधे और बीज ख़रीदे है। जिससे हम अपने विजयनगर में भी इस तरह के फल-फूल, पेड़-पौधे, शुद्ध वातावरण, शुद्ध वायु का आनंद ले सकेंगे और इस सुन्दर जगह के समान हम अपने विजयनगर को भी सुंदर बना सकेंगे।
तेनाली राम के इस काम से राजा खुश होते हैं और तेनाली राम को कई सारे इनाम भी देते हैं। वहां मौजूद सभी मंत्री तेनाली रामा की चतुराई से जलने लग जाते हैं।
बुढ्ढे राजदरबारी का राज्य छोड़ना (Tenali Ramakrishna Stories in Hindi)
एक दिन सुबह के समय राजा कृष्णदेव अपने राजदरबार में मंत्रियों के साथ बैठे हुए थे। तभी एक बूढ़े मंत्री ने राजा से कहा कि वह अब बहुत बुढ्ढा हो चुका है और अपना अंतिम समय अपने गांव और अपने परिवार के साथ बिताना चाहता है। इसलिए राजा उसे राजदरबार से मुक्ति दें।
ये बात सुनकर कृष्णदेव उस मंत्री को जाने से मना कर देते हैं और कहते हैं कि हमें आपके सलाह की बहुत जरूरत है। आप हमारे विशेष सलाहकार में से एक है और हम आपको नहीं जाने दे सकते हैं।
किन्तु वह मंत्री बहुत बहुत बुढ्ढा हो चुका था। इस कारण राजा उन्हें रोक नहीं सकते थे। राजा ने उनके जाने की इजाजत दे दी और उन्हें राजकार्य से मुक्ति दे दी। उन्हें सम्मान के साथ उनके गांव छोड़ने का भी आदेश दे दिया।
इस बात से राजा बहुत दुखी हुए। क्योंकि वह व्यक्ति राजा के मुख्य सलाहकार में से एक था। राजा ने धीरे-धीरे अपने राज्य के काम में रूची लेना बंद कर दिया। तेनाली राम राजा के इस बदलाव को जान चुके थे। इसलिए तेनाली राम ने इस समस्या का हल निकालने की सोची और उन्होंने भी राज्य के दरबार में आना बंद कर दिया।
काफी दिन हो गये तेनाली राम दरबार में नहीं आये। तभी राजा ने एक सैनिक को तेनाली राम के घर भेजा और उनको बुलाकर लाने को कहा सैनिक उनके घर जाकर वापस दरबार में पहुंचता है और राजा से कहता है कि तेनाली राम के घर पर तो ताला लगा हुआ है। तभी दरबार में उपस्थित एक मंत्री राजा से कहता है कि राजन आप अपने मन को शांत करने के लिए एक बार राज्य का दौरा क्यों न कर लें?
राजा उस मंत्री की बात से सहमत हो जाते हैं और अगली सुबह राज्य का दौरा करने के लिए निकल जाते हैं। राजा चलते-चलते एक विशाल नदी के किनारे पहुंचते हैं और उस नदी की सुन्दरता को देखकर मुग्ध हो जाते हैं, वहां पर नदी के किनारे राजा एक साधू को देखते हैं।
राजा अपने दरबार में वापस आ जाते हैं और अगले दिन वही नदी के किनारे पर नदी की सुन्दरता को देखने जाते हैं और उस नदी की सुन्दरता का वर्णन करने लग जाते हैं। तभी वहां पर मौजूद साधू राजा पर हंसने लग जाता है।
महाराज उस साधू के पास जाते हैं और उस साधू से हंसने का कारण पूछते हैं। साधू राजा को उसका उतर देता है कि आपने जो पानी कल देखा था, वह तो बह चुका है और जिसकी आज व्याख्या कर रहे हैं वो आज ही आया है। इसी प्रकार हमारे जीवन में भी कई लोग आते हैं और जाते हैं। हमें उनके जाने पर दुखी नहीं होना चाहिए।
राजा कहते हैं कि तेनाली राम तो जवान था वो क्यों मुझे छोड़कर गया। मैं उसे बहुत पसंद करता था। आप अपनी शक्ति से ये बता सकते हैं कि अभी तेनाली राम कहा हैं?
वह साधू जवाब देता हैं कि इसी समय उसको अपके सामने ला सकता हूं। पर इसके लिए आपको मेरे को एक वचन देना होगा। राजा कहते हैं तुम्हें क्या वचन चाहिए साधू कहता है कि आप बिना किसी चिंता के राज्य का संचालन करें और हमेशा खुश रहें। राजा उसकी बात मान लेते हैं और तेनाली राम का पूछते हैं।
फिर साधू अपने असली रूप में आता है। वो साधू तेनाली राम ही था। राजा उसे देखकर ख़ुश हो जाते हैं और तेनाली राम को अपने गले लगा देते हैं।
तेनाली राम और अरबी घोड़ा (Tenali Ramakrishna Stories in Hindi)
एक बार विजयनगर में अरब प्रदेश से एक घोड़ा व्यापारी घोड़े बेचने के लिए आता है। वह व्यापारी राजा के दरबार में पहुंचता है और राजा से घोड़े खरीदने को कहता है। जैसे-तैसे करके उस व्यापारी ने राजा को घोड़े खरीदने के लिए मना लिया और वह घोड़े राजा को बेच देता है।
राजा की घुड़साल में अधिक घोड़े हो जाने के कारण वहां पर और घोड़े रखने की जगह नहीं बचती और तीन महीनों के लिए राजा घोड़ो को रखने के लिए विजयनगर के नागरिकों और कुछ मंत्रियों को आदेश दे देते है। घोड़े की देखभाल करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को घोड़े की देखरेख और प्रशिक्षण के लिए हर महीने एक सोने का सिक्का दिया जाता था।
घोड़ों की देखरेख करने के लिए एक घोड़ा तेनाली राम को भी दिया जाता है। तेनाली राम अपने घर के पिछवाड़े में एक छोटी-सी घुड़साल बनाते है और उसमें एक छोटी-सी खिड़की रखते हैं। उस घुड़साल में उस घोड़े को बांध देते हैं और हमेशा उस छोटी-सी खिड़की में से उस घोड़े को थोड़ी मात्रा में चारा देने लगे।
विजयनगर के बाकि लोग जिनको घोड़े की जिम्मेदारी सौपी गई थी, वह सभी घोड़े की देखरेख करने लगे। राजा कृष्णदेव नाराज और क्रोधित नहीं हो जाए, इस कारण सभी लोग अच्छे से घोड़ों की देखरेख करने लगे। सभी लोग राजा के क्रोध से बचने के लिए उतम से उतम चारा घोड़ों को देने लगे।
धीरे-धीरे तीन महीने का समय निकल जाता है और सभी मंत्रियों और नागरिकों को जिन्हें घोड़ों की जिम्मेदारी सौपी गई थी, उन्हें दरबार में बुलाया गया। लेकिन वहां पर तेनाली राम खाली हाथ आते हैं। राजगुरू इसकी वजह पूछते हैं और तेनाली राम इसका जवाब देते हैं कि घोड़े की स्थिति बिगड़ चुकी है और वह खतरनाक हो गया। इसलिए वह घोड़े के पास नहीं जाना चाहते। राजगुरू राजा कृष्णदेव से कहते हैं कि तेनाली राम झूठ बोल रहा है।
फिर राजा राजगुरू को तेनाली राम के साथ उसके घर घोड़े कि स्थिति को देखने के लिए भेजते हैं। जब घर पर पहुंच कर तेनाली राम की छोटी सी घुड़साल देखते हैं तो राजगुरू गुस्सा हो जाते हैं और कहते हैं मुर्ख तुम इस छोटी सी कुटिया को घुड़सार कहते हो? मुझे क्षमा करें लेकिन मैं आपके जितना विद्वान नहीं हूं तेनाली राम जवाब देते हैं। आप सबसे पहले इस छोटी सी खिड़की से घोड़े को देख लें। बाद में अन्दर प्रवेश करें।
जब उस खिड़की से राजगुरू घोड़े को देखते हैं तो घोड़ा भूख के कारण उनकी दाढ़ी को अपने मुंह में ले लेता है। बहुत प्रयास किये जाते हैं लेकिन घोड़े से उनको आजाद नहीं करवा पाये। फिर अंत में उस कुटिया को तोड़कर एक धारदार हथियार से उनकी दाढ़ी काटकर घोड़े से बचाया जाता है।
फिर राजगुरू और तेनाली राम बिगड़ी हालत के घोड़े के साथ राजा कृष्णदेव के पास पहुंचते है। राजा इसका कारण पूछते हैं तो तेनाली राम कहते हैं कि मैं इस घोड़े को थोड़ा सा ही चारा देता हूं, जिस तरह आपकी प्रजा थोड़ा भोजन करके गुजारा करती है। कम भोजन मिलने के कारण इस घोड़े की स्थिति बिगड़ गई है। ठीक इसी प्रकार आपकी प्रजा भी अपने परिवार पालन की जिम्मेदारी के साथ इस घोड़े की जिम्मेदारी से भी त्रस्त हो गई।
एक राजा का हमेशा यही दायित्व होता है कि वह प्रजा की रक्षा करें न कि उसे परेशानी में रखें। आपने घोड़ो की जिम्मेदारी प्रजा को दी, इससे घोड़े तो बलवान हो गये लेकिन प्रजा कमजोर हो गई। राजा को तेनाली राम की यह बात समझ आ जाती है और तेनाली राम की तारीफ करते हैं।
हमने यहां पर Tenali Ramakrishna Stories in Hindi शेयर की हैं। इसमें तेनाली रामा की चतुराई का वर्णन कहानी के माध्यम से किया गया है।
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