Story of Dhruv Tara in Hindi: मित्रों आज आपके सामने एक ऐसी कहानी को प्रस्तुत करने जा रहे हैं, जो अत्यंत भावपूर्ण है। जैसा कि हम हर रात जब अपनी छत या खाट पर लेटते हैं तो हमें आसमान पर असंख्य तारे दिखाई देते हैं। उनसे कुछ तारे ज्यादा चमकदार होते हैं। लेकिन उन चमकदार तारों में एक सबसे अधिक चमकीला और चमकदार होता है। यह उत्तर दिशा में दिखाई देता है जो अत्यधिक आकर्षक होता है, उसका नाम ध्रुव तारा (Dhruv Tara) है।
तो आज आपके सामने एक पौराणिक कथाओं से जुड़ी कथा प्रस्तुत कर रहे है, जिसका जिक्र आपने बचपन की किताबों में कहानी के रूप में पढ़ा होगा या बड़े-बुजुर्ग लोगों से सुना होगा। तो चलिए जानते है ध्रुव की कहानी (Dhruv ki Kahani) के बारे में विस्तार से।
ध्रुव तारा की पौराणिक कहानी | Story of Dhruv Tara in Hindi
सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के पुत्र स्वयंभू मनु के दो पुत्र थे, प्रियवद और उत्तानपाद। राजा उत्तानपाद ने दो विवाह किये थे। उनकी पहली पत्नी का नाम सुनिती था तथा दूसरी पत्नी का नाम सुरुचि था।
दोनों रानियों ने राजा का वंश बढ़ाने के लिए पुत्र रत्न जन्मा था। सुनिती के पुत्र का नाम ध्रुव और सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम था। राजा उत्तानपाद अपने दोनों राजकुमारों को सामान प्रेम करते थे। कोई भेदभाव नहीं करते थे और रानी सुनिती भी अपने पुत्र ध्रुव के समान सुरुचि के पुत्र उत्तम को बराबर प्रेम करती थी। लेकिन सुरुचि के मन में छल था, इर्ष्या करती थी। वह सुनिती और ध्रुव के प्रति नफरत करती थी और उनको ईर्ष्या भाव से देती थी।
एक दिन जब राजा अपने पुत्र उत्तम को अपनी गोद में बैठा कर खिला रहे थे, प्रेम भाव दिखा रहे थे, दुलार कर रहे थे। तभी सुनीति का पुत्र ‘ध्रुव’ वहां आ जाता है, वह भी अपने पिता की गोदी में बैठने के लिए आतुर हो उठता है।
तभी राजा उत्तानपाद ने उसे भी अपनी गोद में उठा लिया और प्यार दुलार करने लगे। तभी वहां सुरुचि भी आ जाती है, वह उत्तानपाद की गोदी में सुनीति के पुत्र ध्रुव को देखती है, वह चिढ़ जाती है और ध्रुव को उत्तानपाद की गोद से खींचकर उतार देती है। बाद में अपने कटु वचनों से उसे आहत करती है।
उसके कटु वचन कुछ इस प्रकार थे “इसके पिता की गोद और राज्य सिंगासन पर सिर्फ इसका ही अधिकार है।” अर्थात उसके कहने का तात्पर्य यह था कि राज्य का सिंहासन सिर्फ उसके पुत्र उत्तम के लिए है।
बालक ध्रुव सुरुचि के कटु वचनों से निराश और दु:खी हो गया और वह भागते हुए अपनी मां सुनिती के पास गया और रोते हुए उसने सारी बात बतायी। सुनीति ने उसे समझाया औऱ कहा “पुत्र दु:खी मत हो, न ही उस इंसान के बारे में अमंगल होने को सोचों, जिसने तुम्हारे को अपमानित किया है, लज्जित किया।
कोई अजर नहीं है, कोई अमर नहीं है। सबको अपना दु:ख इसी पृथ्वी पर भोगना पड़ता है और आवश्य भोगना पड़ता है। तुम निराश ना हो तुम ईश्वर का ध्यान करो। भगवान विष्णु की आराधना करो।
सृष्टि के रचयिता है, जगज्ञाता है, उनकी आराधना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। वह तुम्हारे दु:ख को दूर कर देंगे। इसलिए उनकी आराधना करो, उन पर विश्वास रखो।
माता की बात सुनकर बालक ध्रुव में भगवान विष्णु के लिए भक्ति का भाव जागृत हो उठा। उसी समय ही ध्रुव अपना ग्रह का त्याग करके वन की ओर चल दिए। वन की ओर चलते समय बीच रास्ते में उनका मिलन देवर्षि नारद से हुआ। देवर्षि नारद जी ने ध्रुव को विष्णु भगवान की आराधना करने की विधि के बारे में विस्तार से अवगत करवाया।
उस विधि का पालन करते हुऐ ध्रुव ने यमुना नदी में स्नान किया और विधि के अनुसार अन्न-जल त्यागकर पैर के अंगूठे के बल पर खड़े होकर भगवान विष्णु की आराधना में लीन हो गया। उसके मंत्रों की आवाज तीनों लोकों में गूंज उठी, उसके पैर के अंगूठे से धरती दबने लगी।
इतनी कठोर तपस्या देखकर भगवान विष्णु उसके समक्ष प्रकट हुए। ध्रुव की तपस्या को देख कर भगवान विष्णु ने कहा “वत्स मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं, बोलो क्या वरदान चाहिए?”
ध्रुव बालक कहने लगा “भगवन! माता सुरुचि ने मुझे अपमानित करके पिता की गोद से उतार दिया, उन्होंने ने कहा कि मैं अपने पिता की गोद में बैठने का अधिकार नहीं रखता हूँ। माता सुरुचि की इस बात ने मेरे अंतर्मन को बहुत गहरा दुःख हुआ। मैं भागकर माता सुनीति के पास गया और उनको अपनी व्यथा सुनाई तो उन्होंने आपकी शरण में आने का परामर्श दिया।”
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मैंने आपकी आराधना स्नेह प्रेम पाने के लिए किया है। प्रभु आप जगतज्ञाता हैं, तारणहार है, आप तो सब जानते हैं। आपकी दृष्टि में जगत के सभी प्राणी समान हैं। पिता की गोद से उतारे जाने के बाद, माता सुरुचि के द्वारा अपमानित व लज्जित होने के बाद मैंने यह निर्णय लिया है कि मैं सिर्फ आपकी गोद में ही बैठूंगा।
बालक ध्रुव भावपूर्ण होकर बोला,”प्रभु आप अपनी गोद में मुझे ऐसा स्थान दे, जहाँ से मुझे कोई कभी ना उतार सके।”
ध्रुव की कामना जानकर भगवान विष्णु ने कहा, “हे वत्स! तुम्हारी नि:स्वार्थ कामना व भक्ति से मैं खुश हूं। इसलिए मैं तुम्हे अपनी गोद मे स्थान देता हूँ।
यह ब्रह्माण्ड मेरा अंश है और आकाश मेरी गोद। तुम मेरी गोद आकाश में ध्रुव तारे के रूप में स्थापित होगे। तुम्हारे प्रकाश से पूरा ब्रह्माण्ड जगमगायेगा। तुम्हारा स्थान सप्तऋषियों से भी ऊपर होगा, तुम्हारी परिक्रमा करेंगे। जब तक ब्रह्माण्ड है, तुम्हारा स्थान निश्चित है। तुम्हारे स्थान से तुम्हें कोई गिरा नहीं पायेगा।
किंतु अभी तुम्हारी जरूरत तुम्हारे राज्य को है तो तुम अभी अपना राज्य संभालो जाके। इसलिए अभी तुम घर जाओ, छत्तीस हजार वर्ष तक पृथ्वी पर राजकर तुम मेरी गोद में आओगे।”
इसके पश्चात भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए और ध्रुव घर वापस आ गया, कुछ वर्षों के बाद राजा उत्तानपाद अपना सारा राज पाठ अपने पुत्र ध्रुव को दे कर वन चले गए।
भगवान विष्णु के वरदान के अनुसार छत्तीस हजार वर्षों बाद ध्रुव आकाश में एक चमकदार “ध्रुव तारे” के रूप में हमेशा के लिए अमर हो गया।
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