जो अमावस्या सोमवार को आती है, उसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है। यह वर्ष में एक या दो बार ही आती है। इस दिन का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने से भी लाभ मिलता है।
सोमवती अमावस्या को विवाहित महिलाएं पीपल के पेड़ की पुष्प, दूध, जल, अक्षत, चन्दन आदि से पूजा करती है और पेड़ के चारों ओर 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा करती है।
परिक्रमा पूरी होने के बाद सोमवती अमावस्या की कथा (Somvati Amavasya ki Katha) सुनी जाती है। यहां पर हम सोमवती अमावस्या की कहानी (Somvati Amavasya ki Kahani) शेयर कर रहे हैं, इसे पूरी जरुर पढ़े।
सोमवती अमावस्या की कथा (Somvati Amavasya ki Kahani)
एक ब्राह्मण परिवार जिसमें एक व्यक्ति अपनी पत्नी और बेटी के साथ रहता था। तीन सदस्यों का यह ब्राह्मण परिवार बहुत ही गरीब था। जैसे-जैसे समय चल रहा था और समय के साथ उसकी बेटी में सभी स्त्रियोचित गुणों के विकास के साथ ही उम्र भी बढ़ती जा रही थी।
उसकी बेटी संस्कारी और गुणवान होने के साथ दिखने में भी बहुत सुंदर थी। अब समय आ गया था उसके विवाह का। लेकिन परिवार अपनी गरीबी के कारण उसका विवाह करने में समर्थ नहीं था।
फिर एक बार जब उस व्यक्ति के घर में एक साधु का आगमन हुआ। साधु उस कन्या के द्वारा किये गये सेवाभाव से बहुत आकर्षित होने के साथ ही बहुत प्रसन्न भी हुए। साधु ने उस कन्या को आशिर्वाद दिया कि उसकी आयु लम्बी हो और इसके साथ यह भी कहा कि इस कन्या के हाथ में विवाह होने की रेखा नहीं दिख रही है।
साधु के ऐसा कहने पर उस ब्राह्मण व्यक्ति की पत्नी ने साधु से इसके निवारण का उपाय पूछा कि वह ऐसा क्या करें, जिसके कारण उसके हाथ में विवाह के योग्य रेखा बन पाएं।
ऐसा कहने पर साधु ने कुछ समय के लिए विचार किया और बाद में अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान किया और बताया कि यहां से कुछ ही दूरी पर एक गांव स्थित है, जहां पर धोबिन जाति की सोना नाम की महिला अपने बेटे और बहू के साथ में रहती है। यह महिला संस्कार संपन्न, आचार-विचार के साथ ही पति परायण है।
यह कन्या यदि उस धोबिन की सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिंदूर लगा दें। उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है। साधु ने इतना कहने के साथ ही यह भी कहा कि यह धोबिन कहीं पर भी आती जाती नहीं है।
ब्राह्मण की पत्नी ने यह बात उसकी बेटी को बताई। अगले ही दिन प्रातःकाल में वह कन्या सोना धोबिन के घर में साफ-सफ़ाई और घर के सभी काम करके वापस घर आ जाती है और ऐसा हमेशा करना शुरू कर देती है।
एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से कहती है कि तुम तो घर के सभी काम सुबह जल्दी ही कर देती हो और इसका पता ही नहीं चलने देती हो।
सोना धोबिन का यह सवाल सुनकर वह जवाब देती है कि मैंने तो सोचा कि मां जी, आप ही सुबह जल्दी उठकर स्वयं ही सभी काम कर देती हो। मैं तो हमेशा देरी से ही उठती हूं।
दोनों ने इसका पता लगाने के लिए कि ऐसा कौन है, जो सभी काम करके चली जाती है। दोनों ही उस पर निगरानी रखने लगी।
एक दिन जब धोबिन ने देखा कि एक कन्या है, जो मुंह अंधेरे में आकर घर के सभी काम करके वहां से चली जाती है। जब वह कन्या जाने लगती है तो धोबिन उसके पैरों में गिरकर पूछती है कि आप कौन है और आप छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों कर रही है?
धोबिन के प्रश्न का उतर देने के लिए उस कन्या ने उस साधु की पूरी बात उस धोबिन को बताई। पति परायण होने के कारण उस धोबिन में बहुत तेज था। इसके लिए वह सहमत हो गई।
उस समय सोना धोबिन का पति स्वस्थ नहीं था। इसलिए उसने अपनी बहू से कहा कि वह उसके पति का ध्यान रखे जब तक वह वापस ना आ जाएँ।
धोबिन और वह कन्या वहाँ से ब्राह्मण के घर आ जाते हैं। वहां पर जैसे ही सोना धोबिन उस कन्या की मांग में अपना सिंदूर लगाती है, धोबिन का पति मर जाता है।
जब इस बात का पता धोबिन को लगता है तो वह जल लिये बिना ही वहां से यह सोचकर निकल जाती है कि रास्ते में कहीं पर भी जहां पर उसे पीपल का पेड़ मिलेगा तो वह पेड़ को भंवरी देकर और परिक्रमा देकर ही जल को ग्रहण करेगी।
वह सोमवती अमावस्या का दिन था। पुए-पकवान जो कि उसे उस ब्राह्मण के घर से मिले थे। उसकी जगह पर उसने ईंट के टुकड़ों से 108 बार भंवरी और 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा देकर जल को ग्रहण किया। ऐसा करने पर उसके पति में पुनः जान लौट आती है।
इसलिए सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन भंवरी देता है, उसके सुख और सौभग्य में वृद्धि होती है।
पीपल के पेड़ के अंदर सभी देवों का वास होता है। अतः जो व्यक्ति हर अमावस्या को नहीं कर सके, वह सोमवार को आने वाली अमावस्या के दिन 108 वस्तुओं की भंवरी देकर सोना धोबिन और गौरी-गणेश का पूजन करता है, उसे अखंड सौभग्य की प्राप्ति होती है।
ऐसी एक प्रचलित परम्परा है कि पहली सोमवती अमावस्या के दिन हल्दी, पान, सिंदूर, धान और सुपाड़ी की भंवरी दी जाती है।
उसके बाद आने वाली सोमवती अमावस्या को अपने सामर्थ्य के अनुसार सुहाग सामग्री, खाने की सामग्री, फल और मिठाई आदि की भंवरी दी जाती है और वह सामान किसी सुपात्र ब्राह्मण, भांजे या फिर ननन्द को दे दिया जाता है।
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