प्राचीन समय में एक हिंदबाद नामक गरीब व्यक्ति रहा करता था, जो बहुत ही मुश्किल से अपने घर का गुजारा करता था। हिंदबाद एक शहर से दूसरे शहर में समान को ले जाने का काम किया करता था। एक दिन जब हिंदबाद अपने काम के कारण एक शहर से दूसरे शहर जा रहा था तभी रास्ते में अत्यधिक गर्मी पड़ने के कारण वह बहुत थक चुका था।
बहुत देर चलने के बाद उसने एक महल को देखा, जिसके चारों ओर के रास्ते पर फूलों से सजा रखे थे। महल के अंदर से बहुत सारे पकवानों के बनने की खुशबू आ रही थी और बहुत सारे सेवक अपने काम पर लगे हुए थे, जिसको देखकर सिंदबाद ने सोचा कि यह किसी बहुत अमीर व्यक्ति का महल लगता है।
जिसके बाद हिंदबाद को यह जानने की अत्यधिक जिज्ञासा हुई कि यह बड़ा सा महल किस अमीर व्यक्ति का है। तभी हिंदबाद ने महल के चारों ओर का काम कर रहे सेवकों में से एक सेवक से पूछा कि भैया इस महल का मालिक कौन है। हिंदबाद की बात सुनकर सेवक जोर-जोर से हंसने लगा और कहने लगा कि लगता है तुम इस शहर के नहीं हो नहीं तो तुम जानते होते कि यह महल किसका है।
तभी हिंदबाद ने सेवक कहा “जी हां, मैं दूसरे शहर से आया हूं। मैं तो अपने काम से जा रहा था। अचानक से अत्यधिक गर्मी पड़ने के कारण मुझे बहुत थकान महसूस हो रही थी, जिसके बाद आराम करने का सोचा। तभी कुछ दूर चलने के बाद रास्ते में मैंने इस महल को देखा।” तभी सेवक ने हिंदबाद को बताया कि यह महल सिंदबाद जहाजी का है, जो बहुत ही अमीर व्यक्ति हैं।
सेवक की यह बात सुनकर हिंदबाद ने भगवान की तरफ सिर करके कहा भगवान यह तेरी कैसी माया है, एक तरफ मैं हूं, जो दिन रात मेहनत करके अपने बीवी बच्चों का पेट नहीं पाल पा रहा हूं और एक तरफ इस महल का राजा सिंदबाद जहाजी है, जो महल के अंदर अपने जीवन के मज़े ले रहा है। थोड़ी देर बाद महल के अंदर से एक सेवक हिंदबाद को महल के अंदर ले जाने के लिए आया और कहने लगा चलो महाराज ने तुमको बुलाया है।
सेवक की यह बात सुनकर हिंदबाद बहुत डर गया और सोचने लगा कि कहीं मेरी कही हुई यह बात महाराज ने तो नहीं सुन ली, जो मुझे अंदर दंड देने के लिए बुला रहे हो। जिसके बाद हिंदबाद ने महल के अंदर जाने से मना कर दिया और बहाने बनाने लगा। लेकिन सेवकों ने उसकी एक बात नहीं मानी और उसको जबरदस्ती महल के अंदर ले गए।
सेवक हिंदबाद को पूरा महल घुमाते हुए सिंदबाद के पास ले गया। सिंदबाद को देखरकर हिंदबाद बहुत डर गया और झुक कर सलाम करने लगा। जिसके बाद सिंदबाद जहाजी ने हिंदबाद को अपने बगल में बैठाया और सेवकों से बहुत सारा व्यंजन हिंदबाद को परोसने लिए कहा।
जिसके बाद महाराज सिंदबाद ने हिंदबाद से भोजन को ग्रहण करने के लिए कहा। महाराज की आज्ञा का पालन करते हुए हिंदबाद ने भोजन को ग्रहण किया। भोजन को ग्रहण करने के बाद महाराज सिंदबाद ने हिंदबाद से कहा कि क्या तुम मुझे वह बात फिर से सुना सकते हो, जो तुमने बाहर कही थी।
महाराज की यह बात सुनकर हिंदबाद बहुत डर गया और कहने लगा “जी महाराज वह तो मैंने अत्यधिक थकावट होने कारण बोली थी। आप मेरी गलती को क्षमा करें और मुझे दंड मत दें।” हिंदबाद की यह बात सुनकर महाराज सिंदबाद हंसने लगे और कहने लगे “मैं बिना गलती के तुम को सजा कैसे दे दूंगा, मुझे तुम्हारी बातों से कोई तकलीफ नहीं हुई है बल्कि तुमने मुझे मेरे पुराने दिनों की याद दिला दी। मैंने भी बहुत परिश्रम करने के बाद इस मुकाम को हासिल किया है। मैंने भी बहुत बड़ी-बड़ी मुसीबतों का सामना किया है, जिसके बाद आज मैं इस मुकाम तक पहुंचा हूं।
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