यहाँ पर हम छत्रपति शिवाजी का जीवन परिचय और इतिहास (Shivaji Maharaj History in Hindi) के बारे में विस्तार से जानेंगे। साथ ही शिवाजी महाराज के इतिहास से जुड़ी सभी जानकारी के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।
भारत के वीर सपूतों की सूची में छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम भी शामिल है। वह एक बहादुर और निडर शासक थे, जिन्होंने अपने जीवन में अनेक सारे युद्ध लड़े। शिवाजी ने हमेशा मुगलों का सामना किया। छत्रपति शिवाजी महाराज महाराष्ट्र के मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे।
शिवाजी महाराज एक कुशल योद्धा थे, जिन्होंने औरंगजेब की नाक में दम कर के रखा था। शिवाजी महाराज ने सत्ता हासिल करने के बाद हमेशा मुगलों की खिलाफत की तथा अनेकों लड़ाइयां लड़ी। जब भी बात मराठों की आती है तो सबसे पहले छत्रपति शिवाजी का नाम भी आता है क्योंकि उन्होंने ही मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी।
भारत के वीर योद्धाओं की सूची में सबसे पहले पृथ्वीराज चौहान एवं महाराणा प्रताप के बाद मराठा शासक छत्रपति शिवाजी का नाम ही आता है क्योंकि शिवाजी महाराज भी पृथ्वीराज चौहान और महाराणा प्रताप की तरह अपने आखिरी समय तक विदेशी आक्रमणकारियों से लड़ते रहे।
वे एक राष्ट्रवादी और हिंदूवादी सम्राट थे, जिन्होंने हमेशा स्वतंत्र शासन किया। इन हिंदू शासकों ने अपने जीवन में कभी भी मुगलों तथा और किसी विदेशी आक्रमणकारियों की अधीनता स्वीकार नहीं की।
शिवाजी महाराज का जीवन परिचय और इतिहास (Shivaji Maharaj History in Hindi)
नाम | छत्रपति शिवाजी महाराज |
पूरा नाम | छत्रपति शिवाजी भोसले |
जन्म और जन्मस्थान | 19 फरवरी 1630, शिवनेरी दुर्ग (महाराष्ट्र) |
पिता का नाम | शाहजी भोंसले |
माता का नाम | जीजाबाई |
पत्नी | सहीबाई निंबालकर |
संतान | संभाजी, रानुबाई, कमलाबाई, राजाराम, अंबिकाबाई, राजकुंवरबाई, सखुबाई, दिपाबाई |
राज्याभिषेक | 1674 (रायगढ़) |
गोत्र | कश्यप |
मृत्यु | 3 अप्रैल 1680, रायगढ़ |
शिवाजी महाराज कौन थे?
छत्रपति शिवाजी महाराज का पूरा नाम शिवाजी भोसले था, जिनका जन्म मराठा परिवार ने सन 19 जनवरी 1630 को हुआ था। शिवाजी के पिता का नाम शाहजी भोंसले तथा माता का नाम जीजाबाई था।
शिवाजी महाराज का जन्म शिवनेरी के दुर्ग में हुआ था। शिवनेरी दुर्ग महाराष्ट्र के पुणे के पास स्थित है। शिवाजी की पत्नी का नाम सहीबाई निंबालकर था तथा उनके पुत्र का नाम संभाजी राजे भोसले था।
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शिवाजी महाराज का बचपन
शिवाजी महाराज के पिता शाहजी भोंसले बीजापुर के सुल्तान की सेना के सेनापति थे लेकिन शिवाजी को बचपन से ही यह बात कांटे की तरह चुभ गई थी। वह हमेशा स्वतंत्र नीति की बात किया करते थे। बचपन में शिवाजी महाराज कुशल बालक थे।
कहा जाता है कि शिवाजी महाराज को बचपन से ही रामायण और महाभारत पढ़ने का काफी ज्यादा शौख था। शिवाजी महाराज एक योद्धा के साथ-साथ ज्ञानी भी थे। उन्हें अनेक प्रकार की धार्मिक और प्राचीन पुस्तकें पढ़ने का शौक था।
शिवाजी की माता जीजाबाई ने शिवाजी को धार्मिक ग्रंथों का ज्ञान दिया था। मात्र 15 साल की आयु में ही शिवाजी ने युद्ध के नियम और युद्ध की प्रणालियों को समझ लिया था। शिवाजी महाराज के दादा मालोजी भोसले ने उन्हें युद्ध और राजनीति से संबंधित ज्ञान दिया था, जो शिवाजी के काफी काम आया।
छत्रपति शिवाजी महाराज की युवावस्था
छत्रपति शिवाजी महाराज को युवा होते देख जल्द ही उनका विवाह करवाने का निर्णय लिया गया। छत्रपति शिवाजी का विवाह पुणे के लाल महल में सन 14 मई 1640 को सही बाई निंबालकर के साथ करवा दिया गया।
सहीबाई निंबालकर से शिवाजी महाराज को एक पुत्र प्राप्त हुआ, जिनका नाम संभाजी राजे भोसले रखा गया था। शिवाजी के पुत्र संभाजी भी बचपन से काफी निडर और कुशल बालक थे। संभाजी ने 1680 से 1689 इसवी तक मराठा साम्राज्य पर शासन किया था। संभाजी की पत्नी का नाम येसूबाई था।
युवावस्था में बढ़ती उम्र के साथ शिवाजी महाराज के मराठा साम्राज्य को लेकर विचार विमर्श और जिम्मेदारियां भी बढ़ती गई। शिवाजी महाराज ने अपनी शक्ति और बुद्धिमत्ता से कम उम्र में ही युद्ध में भाग लेना शुरू कर दिया। इतिहास के अनुसार पहली बार शिवाजी महाराज ने 17 साल की उम्र में 1646 में युद्ध में भाग लिया था।
शिवाजी ने अपने युद्ध के दौरान चाकन, कोंडाना, तोरण, कल्याण, ठाणे, भिवंडी जैसे अनेक सारे प्राचीन किलों को मुला अफजल खान से छीन कर मराठा साम्राज्य में शामिल कर दिया था। शिवाजी द्वारा कम उम्र में ही इनके किलों को मुगलों से छीन कर अपने साम्राज्य में शामिल करना मुगलों के लिए चिंता का विषय बन चुका था।
खासतौर पर मध्य भारत महाराष्ट्र में हलचल बढ़ने लगी थी और स्वतंत्रता व विद्रोह की गूंज सुनाई देने लगी थी। इससे मुगल शासन की नींव हिलनी शुरू हो गई।
बीजापुर के शासक आदिलशाह ने अपनी सेना के सेनापति शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले को बंदी बना लिया था क्योंकि शिवाजी के बढ़ती शक्तियों से वह डरने लगा था। इसीलिए शिवाजी के डर से आदिलशाह ने उनके पिता को बंदी बना लिया। उसके बाद कुछ समय तक शिवाजी महाराज ने कोई सैन्य कार्यवाही नहीं की।
कुछ वर्षों तक शिवाजी ने मुगलों के खिलाफ कोई युद्ध तो नहीं किया लेकिन इस दौरान उन्होंने अपनी सेना को पहले से अधिक मजबूत बना दिया था। उन्होंने अपनी सेना के लिए अनेक सारे घुड़सवार, हाथी सवार, थल सेना का नेतृत्व करने वाले सेनापति तीर कमान के सेनापति तथा अनेक प्रकार की नई-नई युद्ध प्रणालियां भी तैयार की, जो आगे चलकर शिवाजी के काफी ज्यादा काम आई।
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छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक
मराठा सेना का मजबूती के साथ विस्तार करने के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज सन 1674 ईस्वी में मराठा साम्राज्य की सत्ता संभाली। मराठा शासक बनने के बाद छत्रपति शिवाजी ने यहां की हिंदू जनता को भय मुक्त किया तथा यहां पर रह रहे सभी जाति धर्म के लोगों की रक्षा और सुरक्षा का जिम्मा उठाया।
इससे पहले यहां के मुस्लिम शासकों ने हिंदू धर्म के लोगों पर अत्यधिक कर लगाया। उनके ऊपर दबाव बनाकर जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाया तथा उनके साथ कई प्रकार के अन्याय किए गए थे। परंतु शिवाजी महाराज ने सत्ता संभालते ही इन सभी कार्यों को बंद करवा दिया तथा स्वतंत्र राज्य की नींव रखी।
मराठा शासक बनने के बाद भी छत्रपति शिवाजी महाराज ने हमेशा अपने धर्म को आगे रखा, वह ज्ञानी थे। उन्होंने संपूर्ण प्रजा को ज्ञान देने के लिए अनेक सारे शिक्षण संस्थान तथा ज्ञान के क्षेत्र में कई तरह के कार्य किए। उन्होंने हिंदू धर्म तथा खासतौर पर मराठा धर्म का विस्तार किया और मराठा साम्राज्य को भी स्वतंत्र करवाया।
छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास
शिवाजी महाराज ने आदिलशाह की कैद से अपने पिता को छुड़ाने के बाद फिर से युद्ध करना शुरू कर दिया। अफजल खान को छत्रपति शिवाजी के साथ हमेशा युद्ध में हार का सामना करना पड़ा। इस बार बीजापुर के शासक आदिल शाह ने शिवाजी को जीवित या मृत किसी भी हालत में पकड़कर लाने के लिए सेनापति अफजल खान को भेजा।
अफजल खान का शरीर काफी विशाल था, जो आसानी से किसी को भी अपनी पकड़ में जकड़ कर मार सकता था। अफजल खान ने भाईचारा व संधि का प्रस्ताव रखकर झूठे नाटक का बहाना बनाकर शिवाजी से मिलकर उन्हें मारने की योजना बनाई।
परंतु जब शिवाजी उससे मिलने गए, तब उन्होंने लोहे का मजबूत कवच पहना हुआ था। जैसे ही अफजल खान शिवाजी से गले मिला, उसने हथियार निकालकर शिवाजी को मारना चाहा। लेकिन लोहे के कवच होने की वजह से हो शिवाजी को नहीं मार सका। खतरे को भांपते हुए शिवाजी ने अपना खंजर निकाला और विशालकाय अफजल खान का पेट चीर दिया, जिससे उसकी मौत हो गई।
अफजल खान के मौत की सूचना मिलते ही, उसकी सेना वहां से भाग खड़ी हुई। अफजल खान की मौत की खबर पहुंचने पर मुगल सल्तनत को जोर का झटका लगा। क्योंकि अफजल खान एक खूंखार और मक्कार सेनापति हुआ करता था, जिसका शरीर अत्यंत विशाल था। वह अपनी पकड़ में किसी को भी मार सकता था।
शिवाजी का शासन क्षेत्र
शिवाजी ने अपने शासनकाल के दौरान महाराष्ट्र के मराठा साम्राज्य का विकास और विस्तार किया। इस दौरान उन्होंने बहुत सारे किलो को मुगलों से आजाद करवा कर मराठा साम्राज्य में शामिल किया, जिसके बाद मराठा राज्य अत्यंत फैला और विकसित राज्य हुआ करता था।
छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल में मराठा साम्राज्य की सीमा उत्तर में बदलना से दक्षिण में नासिक से होती हुई कोल्हापुर सतारा को मिलती थी, पश्चिम में कर्नाटक से मराठा साम्राज्य की सीमा मिलती थी। छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगलों से किले और राज्यों को छुड़ाकर आजाद करवाया तथा उन्हें मराठा साम्राज्य में शामिल किया था।
शिवाजी महाराज के दुर्ग एवं किले
ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल में उनके पास लगभग 250 किले थे। शिवाजी महाराज नियमित रूप से अपने सभी किलो पर बड़ी रकम खर्च करते थे और किलो को हमेशा सशक्त रखा करते थे। शिवाजी महाराज हमेशा अपने एक दूसरे किले पर आया जाया करते थे।
खास तौर पुणे और रायगढ़ के बीच आते जाते थे। बता दें कि पुणे शुरुआत से ही मराठा साम्राज्य की राजधानी रहा है और वही उसके पास शिवाजी महाराज और राज परिवार के लिए लाल महल भी था।
मराठा साम्राज्य की सत्ता अपने हाथ में लेने के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने अनेक सारे किले मुगलों से छीने, जिन्हें उन्होंने मराठा साम्राज्य में शामिल कर दिया था। अनेक सारे किले मुगलों ने फिर से शिवाजी से भी छीन कर अलग कर दिया था परंतु ज्यादातर किले शिवाजी के ही अधिकार में रहे।
छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना
शिवाजी महाराज की एक स्थाई सेना थी, जिसे शिवाजी महाराज ने तैयार किया था। शिवाजी महाराज की सेना में 40 से 50 हजार घुड़सवार सैनिक थे, जो स्थाई और नियमित रूप से कार्यरत थे। शिवाजी की सेना में लगभग 12 से भी ज्यादा हाथी थे तथा 100000 पैदल सैनिक थे। इसके अलावा शिवाजी की सेना में अनेक सारे तोपखाने भी शामिल थे।
शिवाजी की सेना में हर तरह के सिपाही हुआ करते थे। जिससे समुद्र, पहाड़, पठार इत्यादि सभी जगह से दुश्मनों का सामना किया जा सके। शिवाजी महाराज की सेना में क्रमानुसार पद होते थे, जो एक सशक्त और नियमित सेना के लिए जरूरी होते हैं।
शिवाजी महाराज ने अपनी बुद्धि और कुशलता से अपनी सेना में गोरिल्ला युद्ध प्रणाली को भी शामिल किया। बता दें कि यह गोरिल्ला युद्ध प्रणाली वही है, जिससे महाराणा प्रताप ने अपने शासनकाल में मुगलों के खिलाफ इस्तेमाल किया करते थे। यह एक तरह से छापामार युद्ध प्रणाली होती है। इस युद्ध प्रणाली के अंतर्गत सैनिक तथा वहां के स्थानीय लोग, अर्धसैनिक जंगलों और पहाड़ों में छुपकर दुश्मन सेना पर वार करते हैं।
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शिवाजी महाराज कि धर्म और उपासना
हिंदू पद साहिब के संस्थापक गुरु रामदास जी भारत के प्रमुख साधु-संतों में आते हैं। रामदास जी छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु थे। इन्होंने दासबोध नाम का एक ग्रंथ लिखा था। यह ग्रंथ मराठी भाषा में उपलब्ध है।
गुरु रामदास ने संपूर्ण भारत में 1000 से भी ज्यादा मत और अखाड़े स्थापित किए थे, जिनमें शिवाजी महाराज ने पूरा योगदान दिया तथा शिवाजी महाराज ने धर्म के क्षेत्र में भी अनेक काम किये, जिनसे वे महान कहलाए थे।
छत्रपति शिवाजी महाराज हमेशा कोई भी बड़ा और शुभ कार्य करने से पहले अपने गुरु रामदास जी से राय जरूर लिया करते थे। अपने गुरु से राय और विचार-विमर्श करने के बाद ही वे कोई शुभ कार्य या बड़ा कार्य किया करते थे।
शिवाजी महाराज ने धर्म के क्षेत्र में एक मंदिर का निर्माण करवाया, जो उस्मानाबाद जिले के तुलजापुर में स्थित है। यह मंदिर तुलजा भवानी का है। बता दें कि शिवाजी महाराज तुलजा भवानी के उपासक थे।
यहां के लोग तुलजा भवानी को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं। कहा जाता है कि तुलजा भवानी ने शिवाजी महाराज की तपस्या से प्रकट होकर उन्हें एक तलवार प्रदान की थी। यह तलवार अभी लंदन के संग्रहालय में स्थित है।
शिवाजी महाराज का मुगलों से युद्ध
शिवाजी महाराज की बढ़ती हुई ताकत से मुगलों में खौफ बढ़ने लगा था क्योंकि शिवाजी ने एक-एक करके सारे किले मुगलों से छीन लिए तथा कई बार मुगलों के छोटे-बड़े सेनापतियों को युद्ध में हराया। शिवाजी की बढ़ती ताकत को देखते हुए तत्कालीन दिल्ली के मुगल बादशाह औरंगजेब ने दक्कन में नियुक्त किए।
औरंगजेब ने विशाल सेना के साथ शिवाजी से युद्ध शुरू कर दिया लेकिन उन्हें इस युद्ध में हार का सामना करना पड़ा। इस युद्ध में मिली करारी हार के बाद औरंगजेब ने अपने सबसे खास और प्रभावशाली सेनापति मिर्जा राजा जयसिंह को एक लाख सैनिकों की फौज के साथ शिवाजी पर हमला करने हेतु भेजा।
इस दौरान मिर्जा राजा जयसिंह ने बीजापुर के सुल्तान से संधि करके पुरंदर के किले पर अपना अधिकार जमाया तथा वहां से शिवाजी को हराने की योजना बनाने लगा। परंतु शिवाजी द्वारा मिले संधि प्रस्ताव पर मिर्जा राजा जयसिंह ने सहमति जताई और 22 जून 1665 को पुरंदर की संधि शिवाजी महाराज और मिर्जा राजा जयसिंह के बीच पूर्ण हुई।
पुरंदर संधि के अंतर्गत शिवाजी को आगरा औरंगजेब से मिलने के लिए जाना था, जहां पर मुख्य संधि होनी थी। शिवाजी को उनकी सुरक्षा का पूर्ण आश्वासन दिया गया। औरंगजेब के आगरा दरबार में शिवाजी मिलने के लिए तैयार हो गए।
9 मई 1966 को शिवाजी महाराज अपने पुत्र संभाजी एवं 400 मराठा सैनिकों के साथ मुगल दरबार आगरा में उपस्थित हुए। वहां पर उन्हें उचित सम्मान नहीं मिलने पर शिवाजी ने औरंगजेब को विश्वासघाती और भला बुरा कहना शुरू कर दिया। परिणाम स्वरुप औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को बंदी बनाकर काल कोठरी में बंद करने का आदेश दे दिया।
इसके बाद औरंगजेब ने शिवाजी के पुत्र संभाजी को जयपुर पैलेस में कैद करवा दिया गया। परंतु कुछ ही दिनों बाद 13 अगस्त 1666 को शिवाजी महाराज ने बहुत ही चालाकी के साथ सब्जियों की टोकरी में छिपकर महल से भाग निकलने में कामयाब हुए तथा 22 सितंबर 1666 को वे अपने रायगढ़ किले पहुंच गए।
शिवाजी महाराज का अफजल खान के साथ युद्ध
बीजापुर की बेगम साहिबा ने सन 1659 में अफजल खान को 10000 सैनिकों के साथ शिवाजी महाराज पर आक्रमण करने के लिए भेजा। बता दें कि अफजल खान का शिवाजी महाराज की तुलना में कई गुना विशाल शरीर का था। उसके शरीर की ऊंचाई शिवाजी महाराज से दोगुनी थी तथा कद काठी भी काफी विशाल थी। अफजल खान किसी भी व्यक्ति को पकड़कर आसानी से मार सकता था।
अफजल खान और शिवाजी के बीच युद्ध हुआ, जिसमें अफजल खान की हार दिखाई दे रही थी। अपनी हार को देखते हुए अफजल खान ने युद्ध विराम की घोषणा करवाई और शिवाजी के साथ संधि वार्ता का प्रस्ताव रखा। शिवाजी अफजल खान से भलीभांति परिचित थे, इसलिए वे पहले से ही तैयार रहते थे।
अफजल खान संधि वार्ता के जरिए शिवाजी महाराज को अपने पास बुला कर धोखे से मारना चाहता था। संधि वार्ता के समय जब अफजल खान शिवाजी महाराज को गले लगा कर हथियार से मारने लगा। लेकिन शिवाजी ने लोहे का कवच पहना हुआ था, जिस वजह से उनका बचाव हो गया।
परंतु शिवाजी ने अपने खंजर से उस विशालकाय अफजल खान का पेट चीर दिया। इस बात की सूचना मिलते ही अफजल खान की सेना भाग खड़ी हुई। बता दें कि अफजल खान ने प्रतापगढ़ के लिए तथा उसके आसपास के कई क्षेत्रों में अनेक सारी हिंदू देवी देवताओं के मंदिर तोड़े तथा मूर्तियों का अपमान किया था।
जब यह बात शिवाजी को पता चली, तब वह बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने अफजल खां को बेरहमी से मारने का प्रण लिया। शिवाजी ने यह प्रण अफजल खान को मारकर जल्द ही पूरा भी कर लिया।
शिवाजी द्वारा अफजल खान को इस तरह से मारने का यह किस्सा और अफजल खान के साथ हुआ युद्ध मराठा साम्राज्य और महाराष्ट्र इतिहास में काफी चर्चित है। क्योंकि शिवाजी महाराज से दुगुने कद काठी वाले अफजल खान को इस तरह से शिवाजी महाराज द्वारा मारना काफी आश्चर्यचकित करने वाली घटना थी।
शिवाजी महाराज का शाइस्ता खान के साथ युद्ध
बीजापुर द्वारा हर बार मिल रही हार के बाद बिजापुर की बेगम ने औरंगजेब से मदद मांगी। औरंगजेब ने मदद स्वीकार करते हुए अपने मामा शाइस्ता खान को 150000 सैनिकों के साथ छत्रपति शिवाजी महाराज को मारने पुणे पर हमला करवाया।
शाइस्ता खान ने पुणे स्थित शिवाजी महाराज के लाल किले को अपने अधीन कर लिया। लेकिन रात के समय शिवाजी महाराज की सेना ने लाल किले पर फिर से हमला करके अपने अधीन कर लिया। इसमें शाइस्ता खान को हार कर भागना पड़ा।
इस हार के बाद औरंगजेब ने अपने खास योद्धा जय सिंह को शिवाजी से युद्ध करने के लिए भेजा। इस युद्ध में शिवाजी की हार हुई। परिणाम स्वरूप 23 किले मुगलों को देने पड़े लेकिन कुछ ही समय बाद शिवाजी ने फिर सभी 23 किले जीत कर मराठा साम्राज्य में शामिल कर दिए थे।
शिवाजी ने अपने शासनकाल के दौरान अनेक सारी लड़ाइयां लड़ी और अनेकों मुगलों से जीतकर मराठा साम्राज्य के अधीन कर लिया। छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक रायगढ़ किले में हुआ था और वह वहीं पर रहा करते थे। छत्रपति शिवाजी महाराज को उनके अच्छे कार्य हेतु छत्रपति की उपाधि दी गई थी।
शिवाजी महाराज की मृत्यु कैसे हुई?
शिवाजी महाराज लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनका स्वास्थ्य सुधारने के बजाय बिगड़ता जा रहा था। आखिरकार सन 1680 में वीर छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी राजधानी रायगढ़ में 3 अप्रैल के दिन इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। 3 अप्रैल 1680 के दिन उनकी मृत्यु हो गई थी। उसके बाद उनके पुत्र संभाजी ने मराठा साम्राज्य संभाला और कई वर्षों तक राज किया।
आज के समय में छत्रपति शिवाजी महाराज को भारत के वीर योद्धाओं की सूची में प्रमुख स्थान दिया गया है। भारत के वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप जैसे वीरों के साथ छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम आता है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने जीवन काल में अनेक लड़ाइयां लड़ी तथा हमेशा स्वतंत्र राष्ट्र की नीति अपनाई।
FAQ
शिवाजी महाराज मराठा जाति से संबंध रखते थे।
छत्रपति शिवाजी महाराज को धार्मिक ग्रंथों का ज्ञान उनकी माता जीजाबाई ने दिया था।
छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र का नाम संभाजी राजे भोसले है।
छत्रपति शिवाजी महाराज तथा मराठा साम्राज्य की राजधानी रायगढ़ का किला है।
छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु लंबे समय से चली आ रही बीमारी की वजह से 3 अप्रैल 1680 में हुई थी।
ऐसा कहा जाता है कि शिवाजी महाराज को उनके ही कुछ मंत्रियों द्वारा विश दिया गया था।
शिवाजी की पहली पत्नी का नाम सईबाई निंबालकर था।
निष्कर्ष
छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के महान और निडर योद्धा थे, जिन्होंने अपनी बुद्धि और कुशलता से मराठा साम्राज्य का विकास और विस्तार किया।
आज के आर्टिकल में हमने छत्रपति शिवाजी का इतिहास (Shivaji Maharaj History in Hindi) और शिवाजी महाराज से जुड़ी हर एक छोटी बड़ी जानकारी प्रदान की है, जो आपके जरूर काम आएगी।
उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल जरूर पसंद आया होगा। यदि आपका इस आर्टिकल के संदर्भ में कोई प्रश्न है तो आप कमेंट करके पूछ सकते हैं। इस लेख को सोशल मीडिया पर शेयर जरुर करें।
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