सप्ताह के अंतिम दिन शनिवार को शनि देव का दिन कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि जिस पर शनि की शुभ दृष्टि होती है तो वह चाहे कितना भी गरीब हो, उसे राजा बना देती है और यदि शनि की कुदृष्टि हो तो चाहे कैसा भी राजा हो, उसे गरीब बना देती है।
शनि को शांत रखने के लिए शनि की पूजा करना आवश्यक है। शनि देव का जाप करना लाभदायक माना गया है। शनि देव के मंत्र का जाप करने से सभी दुःख और दर्द दूर होने के साथ सभी कष्ट भी दूर हो जाते हैं।
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शनि मंत्र अर्थ सहित | Shani Dev Mantra in Hindi
शनि मंत्र का अर्थ
वैदूर्य कांति रमल:, प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत:।
अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद:।।
भावार्थ:-जब शनि ग्रह वैदुर्यरत्न या बनफूल या अलसी के फूल जैसे शुद्ध रंग से प्रकाशित होता है, तो यह विषयों के लिए शुभ फल देता है, यह अन्य पात्रों को प्रकाश देता है, फिर उच्च वर्णों को समाप्त करता है, ऋषि महात्मा कहते हैं।
श्री नीलान्जन समाभासं, रवि पुत्रं यमाग्रजम।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम।।
भावार्थ: शनिदेव सूर्यदेव के पुत्र हैं। शनि देव को नौ ग्रहों का राजा कहा जाता है। शनि देव ही व्यक्ति को अपने कर्मों का फल देते हैं। शनिवार के दिन शनिदेव को तेल चढ़ाना बहुत शुभ होता है।
ॐ शं शनैश्चरायै नम:
ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:
भावार्थ: शनिवार का दिन शनिदेव का होता है और इस दिन स्नान करके काले वस्त्र धारण करें। शनिदेव की मूर्ति के पास जाकर इस मंत्र का जाप करें। इस मंत्र का जाप घर या मंदिर में कहीं भी किया जा सकता है।
ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिया।
कंटकी कलही चाऽथ तुरंगी महिषी अजा।।
शनेर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन् पुमान्।
दुःखानि नाशयेन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखम।।
भावार्थ: ऐसी मान्यता है कि इस मंत्र का प्रतिदिन पाठ करने से व्यक्ति के कष्ट दूर हो जाते हैं।
ऊं कृष्णांगाय विद्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात।
भावार्थ: हर शनिवार शाम को पीपल के पेड़ पर सरसों के तेल का दीपक जलाएं। यही काम शमी के पेड़ के नीचे भी करें। इससे शनि दशा का प्रभाव कम होता है।
ॐ शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीपतये शनयो रविस्र वन्तुनः।
भावार्थ: इस मंत्र के जाप से व्यक्ति पर शनि की साढ़ेसाती का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाता है। इसे श्री शनि वैदिक मंत्र कहते हैं। कहा जाता है कि इस मंत्र का जाप करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही यह भी माना जाता है कि इस मंत्र का 23000 हजार बार जाप करने से साढ़ेसाती का प्रभाव कम हो जाता है।
शनि देव मंत्र हिंदी में
कोणोSन्तको रौद्रायमोSथ बभ्रु: कृष्ण: शनि: पिंगलमन्दसौरी:।
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नम: श्रीरविनन्दनाय।।
भावार्थ: दशरथ ने कहा – कोनः अंतक, रौद्रयम, बभ्रुः, कृष्ण शनि, पिंगला, मंडा, सौरी: इन नामों को लगातार याद करने से दर्द का नाश करने वाले शनि देव को नमस्कार।
सुराSसुरा: किं पुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्व विद्याधरपन्नगाश्च।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नम: श्रीरविनन्दनाय।।
भावार्थ: देवता, असुर, किन्नर, उर्जेंद्र (सर्प राजा), गंधर्व, विद्याधर, पन्नम – ये सभी शनि के विपरीत होने पर पीड़ित होते हैं, यही शनि को नमस्कार है।
नरानरेन्द्रा: पश्वो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतंगभृंगा:।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नम: श्रीरविनन्दनाय।।
भावार्थ: शनि देव को नमस्कार, राजा, मनुष्य, शेर, पशु और जो कुछ भी है, कीड़े, पतंगे, भौंरा के अलावा, शनि के विपरीत होने पर वे सभी पीड़ित होते हैं।
देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानीवेशा: पुरपत्तनानि।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नम: श्रीरविनन्दनाय।।
भावार्थ: शनि के विपरीत होने पर देश, किले, जंगल, सेना, शहर, महानगर भी पीड़ित होते हैं, इसलिए शनि देव को नमस्कार है।
तिलैर्यवैर्मार्षगुडान्नदानैलोर्हेन नीलाम्बरदानतो वा।
प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नम: श्रीरविनन्दनाय।।
अर्थ– शनिवार के दिन तिल, जौ, उड़द, गुड़, अनाज, लोहा, नीला कपड़ा और अपने स्तोत्र के पाठ से प्रसन्न होने वाले शनि को नमस्कार।
प्रयागकूले यमुना तटे च सरस्वती पुण्य जले गुहायाम्।
यो योगिनां ध्यानगतोSपि सूक्ष्मस्तस्मै नम: श्रीरविनन्दनाय।।
भावार्थ: प्रयाग में, यमुना के तट पर, सरस्वती के पवित्र जल में या गुफा में, जो योगियों के ध्यान में है, सूक्ष्म रूप शनि को नमस्कार है।
shani mantra in sanskrit
अन्य प्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नर: सुखी स्यात्।
गृहाद्गतो यो न पुन: प्रयाति तस्मै नम: श्रीरविनन्दनाय।।
भावार्थ: दूसरे स्थान से यात्रा करके शनिवार के दिन अपने घर में जो प्रवेश करता है, वह सुखी होता है और जो अपने घर से बाहर जाता है वह शनि के प्रभाव से पुन: लौटकर नहीं आता है, ऎसे शनिदेव को नमस्कार है
स्रष्टा स्वयं भूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी।
एकस्त्रिधा ऋग्यजु: साममूर्तिस्तस्मै नम: श्रीरविनन्दनाय।।
भावार्थ: यह शनि स्वयंभू हैं, तीनों लोकों के निर्माता और रक्षक, संहारक और धनुष धारक हैं। एक होते हुए भी ऋगु, यजुः और सममूर्ति हैं, ऐसा सूर्यपुत्र को प्रणाम है।
शन्यष्टकं य: प्रयत: प्रभाते नित्यं सुपुत्रै पशुबान्धवैश्च।
पठेत्तु सौख्यं भुवि भौगयुक्त: प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते।।
भावार्थ: जो व्यक्ति अपने पुत्र, पत्नी, पशु और भाइयों के साथ प्रतिदिन शनि के इन आठ श्लोकों का पाठ करता है, उसे इस लोक में सुख की प्राप्ति होती है और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
ॐ शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीपतये शनयो रविस्र वन्तुनः।
भावार्थ: इस मंत्र के जाप से व्यक्ति पर शनि की साढ़ेसाती का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाता है। इसे श्री शनि वैदिक मंत्र कहते हैं। कहा जाता है कि इस मंत्र का जाप करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही यह भी माना जाता है कि इस मंत्र का 23000 हजार बार जाप करने से साढ़ेसाती का प्रभाव कम हो जाता है।
कोणस्थ: पिंगलो बभ्रु: कृष्णो: रौद्रोSन्तको यम:।
सौरि: शनैश्चरो मन्द: पिप्पलादेन संस्तुत:।।
एतानि दश नामनि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।
श्नैश्चरकृता पीडा न कदाचि विष्यति।।
1)कोणस्थ:, 2) पिंगल:, 3)बभ्रु:, 4)कृष्ण:, 5) रौद्रान्तक:, 6)यम:, 7) सौरे:, 8) शनैश्चर:, 9) यम:, 10) पिप्पलादेन संस्तुत:।
शनि के उपरोक्त दस नामों का प्रातः पाठ करने से कभी भी शनि संबंधी कोई परेशानी नहीं होती है और निःसंदेह शनि देव की कृपा हमेशा बनी रहती है। जिन लोगों पर शनि की कृपा हो या न हो, उन्हें इसका पाठ करना चाहिए।
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शनि स्तुति अर्थ सहित
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
भावार्थ:
उपरोक्त श्लोक में राजा दशरथ जी ने भगवान शनि देव के रूप का वर्णन बहुत ही सरल पूर्वक किया है। उन्होंने कहा है कि हे श्यामवर्ण अर्थात सावले रंग वाले, भोलेनाथ के गर्दन के नीले रंग जैसे नीलकंठ, आप सृष्टि के विनाश कर सकने वाली अग्नि के रूप के समान है।
आप अच्छे कर्म के देव हैं, हल्के शरीर वाले हे। हे भगवान शनिदेव मैं आपको प्रणाम करता हूं। आप हमारे मन में विराजमान होइए। हे शनिदेव आप मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिए।
हे शनिदेव आप कंकाल के स्वरूप बिना मांस के शरीर वाले हैं। लंबी लंबी दाढ़ी, मूछ और जटा वाले भगवान शनिदेव आप मेरा नमन स्वीकार कीजिए। बड़े-बड़े नेत्र वाले शुष्कोदर अर्थात जिनका पेट उनके पीठ से सटा हुआ है।
आपका यह रूप बेहद ही डरावना है, जो पापियों को भय देता है और उनका अंत करता है। हे भगवान शनिदेव मैं आपके चरणों में नमन करता हूं।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
भावार्थ:
उपरोक्त श्लोक में सूर्यवंशी राजा दशरथ जी ने भगवान शनि देव के रूप रंग को वर्णित करने के लिए अलग-अलग शब्दों के द्वारा इसे अलंकृत किया है, जिसमें पुष्कलगात्राय अर्थात जिनका शरीर बहुत ही बड़ा और पुष्ट है। स्थूलरोम्णेऽथ अर्थात जिनके देह पर मोटे और घने रोयें हैं।
ऐसे रूप रंग वाले भगवान शनि देव को मैं शत-शत नमन करता हूं। आगे इनकी रूप रंग की विशेषता करते हुए कहते हैं कि हे लंबे चौड़े जर्जर देह वाले जिनकी दाढ़ी काल के समान और काल से जुड़ी हुई है। ऐसे भगवान शनि देव को मैं प्रणाम करता हूं।
आगे राजा दशरथ जी ने भगवान शनि देव की आंखों को बहुत ही काली और गहरी बताते हुए इसे कोटराक्षाय कहा है। इनके रूप को दुर्नरीक्ष्याय बताया गया है, जिसे देखना भी कठिन है।
दशरथ जी ने भगवान शनि देव के देह को ब्रज के सामान बताते हुए इन्हें सफलता, सुयश और सौभाग्य देने वाला बताया है। भगवान शनिदेव रूद्र रूप वाले हैं, भीषण और विकराल रूप वाले हैं। हे शनिदेव मैं आपको बार-बार प्रणाम करता हूं।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते।।
भावार्थ:
इस श्लोक में राजा दशरथ जी ने भगवान शनि देव के शक्ति का वर्णन करते हुए इन्हें सर्वभक्षाय बलीमुख कहा है, जिनके मुख में इतना बल है कि वे पूरे संसार का भक्षण कर सकते हैं।
हे शनिदेव भगवान सूर्यनारायण के पुत्र, अभय देने वाले भगवान भास्कर के पुत्र, मैं आपके चरणों में बारंबार प्रणाम करता हूं।
आगे राजा दशरथ जी ने भगवान शनि देव को अधोदृष्टे कहते हुए उन्हें अधोमुखी दृष्टि रखने वाला बताया है। शनिदेव को संवर्तक बताते हुए इन्हें विनाश करने वाला बताया गया है।
हे मंद गति से चलने वाले, तलवार जैसे प्रतीक को धारण करने वाले शनि देव मैं आपको नमन करता हूं।
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
भावार्थ:
उपरोक्त श्लोक में राजा दशरथ जी ने भगवान शनिदेव को बहुत ही तपस्वी बताते हुए कहा है कि भगवान शनिदेव सदैव तपस्या में लीन रहते हैं। इन्होंने योग करके अपने शरीर को गला लिया है।
तपस्या में आतुर और तत्पर रहने वाले शनि देव भूख से आतुर और अतृप्त रहते हैं। हे शनिदेव मैं आपको बार-बार नमन करता हूं।
आगे राजा दशरथ जी कहते हैं हे ऋषि कश्यप के नंदन भगवान सूर्यनारायण के पुत्र शनिदेव आपकी आंखें तो ज्ञान के स्वरूप है जिसे भक्तजन देख ले तो उसे जीवन का ज्ञान हो जाता है। आप तो पावन प्रकाश के जैसे हैं, जिस पर यह प्रकाश पड़े उसका जीवन सफल हो जाता है।
हे शनिदेव जब आप प्रसन्न होते हैं तो अपने भक्तों को मनचाहा वरदान दे देते हैं। अपने भक्तों को राज्य तक दान दे देते हैं। लेकिन अगर आप रूष्ट हो जाएं तो आप सब कुछ छीन लेते हैं। हे भगवान शनिदेव मैं आपको शत-शत नमन करता हूं मेरे भजन को आप स्वीकार करें।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे सौरे! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।।
भावार्थ:
उपरोक्त श्लोक में राजा दशरथ जी ने भगवान शनि देव के क्रोध का परिणाम बताते हुए कहा है कि हे शनिदेव जिसकी भी दुर्बुद्धि होती है ऐसे असुर, मानव, सिद्ध, विद्दाधर पर अगर आपकी दृष्टि पड़ जाए तो उसका विनाश हो जाता है।
इस तरह सच्चे श्रद्धा और सद्बुद्धि वाले मनुष्य का शनिदेव भला करते हैं। लेकिन कुटीर बुद्धि वाले मनुष्य पर शनिदेव हमेशा अपनी बूरी दृष्टि रखते हैं, जिसके प्रकाश में अगर इंसान पड़ जाए तो वह जलकर राख हो जाए।
आगे राजा दशरथ जी भगवान शनिदेव को अपने चरणों में जगह देने का निवेदन करते हुए कहते हैं कि हे शनिदेव आप इस भक्त से प्रसन्न हो जाइए और मुझे अपने चरणों में रख लीजिए। मैं आपसे वर पाने योग्य हूं और इसीलिए मैं आपके शरण में आया हूं।
हे सारे ग्रहों के स्वामी आप अपना यश और अपनी कृति बचा लें। आप वरदान दीजिए कि हर बजरंग भक्तों को आप अपनी शरण में ले लेंगे और उसे अभय प्रदान करेंगे।
निष्कर्ष
यहां पर शनिदेव मंत्र अर्थ सहित (shani mantra in hindi) और शनि स्तुति अर्थ सहित शेयर की है।
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