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संस्कृत सूक्ति हिंदी अर्थ सहित

सूक्तियां वचन ज्ञान का सार होते हैं, Sanskrit Suktiyan के द्वारा हमें कम शब्दों में बेहतर ज्ञान प्राप्त होता है। हमारे विद्वानों, महापुरुषों और नीतिज्ञों के अनुभव और परिपक्व विचारों का समावेश आपको सूक्तियां में देखने को मिलता है। इससे हमारा जीवनपथ प्रशस्त होता है।

Sanskrit Suktiyan Arth Sahit
Sanskrit Suktiyan Arth Sahit

सूक्तियाँ हमारी मानसिकता व हमारे शुद्ध विचारों का निर्माण करती हैं, जिनके अनुसरण से जीवन को सरलता से जिया जा सकता है। यह जीवन में सुहृद् मित्र की भाँति हमारा पथ-प्रदर्शन करती हैं।

इस पोस्ट में हम आपको 150 से भी अधिक संस्कृत सूक्ति हिंदी अर्थ सहित को बतायेंगे, इन्हें आप अपने जीवन में जरूर अपनाये।

संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित (Sanskrit Suktiyan Arth Sahit)

संस्कृत सूक्तियाँ

अतिथि देवो भव।
अर्थ– अतिथि हमारे लिए भगवान के स्वरूप होता है।

असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय।
अर्थ– जो ज्ञान असत्य से सत्य की ओर ले जायें और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जायें।

तमसो मा ज्योतिर्गमय।
अर्थ– अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाये।

वसुधैव कुटुंबकम।
अर्थ– पृथ्वी के सभी वासी एक परिवार है।

अति तृष्णा विनाशाय।
अर्थ– लालच अधिक करने से नाश होता है।

हम 5 सूक्तियां संस्कृत में अर्थ सहित पढ़ चुके है, चलिए आगे पढ़ते है।

अन्तो नास्ति पिपासायाः।
अर्थ– तृष्णा का कभी अंत नहीं होता है।

परोपकाराय सतां विभूतय:।
अर्थ– सज्जनों की विभूति हमेशा परोपकार के लिए होती है।

विद्या विहीन पशु।
अर्थ– विद्याविहीन (विद्या को ग्रहण ना करने वाला) मनुष्य पशु के समान होता है।

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महानरिपु:।
अर्थ– आलस्य घोर शत्रु है।

न ज्ञानेन विना मोक्षं।
अर्थ– ज्ञान के बिना मोक्ष नहीं मिलता।

न हि सत्यात् परो धर्मः।
अर्थ– सत्य ही सबसे बड़ा धर्म है। इससे बढ़कर कोई धर्म नहीं होता।

Sanskrit Suktiyan

अहिंसा परमो धर्म:।
अर्थ– अहिंसा ही सबसे बड़ा (परम) धर्म होता है।

मा कश्चिद् दुख भागभवेत।
अर्थ– कोई दु:खी न हो अर्थात सभी सुखी रहे।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
अर्थ– हमारी जन्मस्थली स्वर्ग से भी बड़ी होती है।

नास्तिको वेदनिन्दकः।
अर्थ– वेदों की निन्दा करने वाला इंसान नास्तिक होता है।

हम 10 सूक्तियां संस्कृत में अर्थ सहित पढ़ चुके है, चलिए आगे पढ़ते है।

मा गृधः कस्यस्विद्धनम्।
अर्थ– किसी दूसरे के धन का लोभ नहीं करना चाहिए।

मृजया रक्ष्यते रूपम्।
अर्थ– स्वच्छता से रूप की रक्षा होती है।

संघे शक्तिः कलौ युगे।
अर्थ– कलियुग के समय में संघ में ही शक्ति है।

योग: कर्मसु कौशलम्।
अर्थ– समत्वरूप योग ही कर्मबंधन से छूटने का उपाय है।

संस्कृत सूक्ति (Sanskrit Sukti)

सहसा विदधीत न क्रियाम्।
अर्थ– कार्य को बिना विचारे नहीं करना चाहिए।

अशांतस्य कुत: सुखम्।
अर्थ– अशांत यक्ति को कभी सुख नहीं मिल सकता है?

अनार्य: परदारव्यवहार:।
अर्थ– परस्त्री के विषय में बात करना अपराध है।

अनुलड़्घनीय: सदाचार:।
अर्थ– सदाचार का कभी उल्लड़्घन नहीं करना।

अनतिक्रमणीया नियतिरिति।
अर्थ– नियति को कोई नहीं टाल सकता।

अत्यादर: शंकनीय:।
अर्थ– अत्यधिक आदर करना शंका पैदा करता है।

Sanskrit Suktiyan

परोपकारार्थमिदं शरीरम।
अर्थ– शरीर दूसरों के उपकार के लिए बना है।

फलं भाग्यानुसारतः।
अर्थ– फल हमेशा भाग्य के अनुसार ही मिलता है।

ओदकान्तं स्निग्धो जनोsनुगन्तव्य:।
अर्थ– शार्ड़्गरव कहता है– भगवन् प्रिय व्यक्ति का हमेशा साथ देना चाहिए।

गरीयषी गुरो: आज्ञा।
अर्थ– गुरुजनों की आज्ञा महान् होती है, उनका पालन करना चाहिए।

दु:खशीले तपस्विजने कोsभ्यर्थ्यताम्?
अर्थ– तपस्वियों से प्रर्थना नहीं करना वह पहले से कष्ट सहन करते है।

सूक्तियां (Suktiyan)

भोगीव मन्त्रोषधिरुद्धवीर्य:।
अर्थ– अपराधी भी अपने किये हुए से भीतर से जलने लगे।

अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ:।
अर्थ– अप्रिय किंतु परिणाम में हितकर हो ऐसी बात कहने वाले दुर्लभ होते हैं।

न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्य।
अर्थ– मनुष्य धन की इच्छा से कभी तृत्प नहीं होता, उसका लालच बढ़ता जाता है।

विभूषणं मौनमपण्डितानाम्।
अर्थ– मूर्खों के लिए मौन रहना ही सबसे बेहतर होता है।

सर्वे गुणा कांचनम् आश्रयन्ते।
अर्थ– सोने में सब गुण निहित होते हैं।

छायेव तां भूपतिरन्वगच्छत्।
अर्थ– राजा दिलीप ने रानी नन्दिनी को छाया की भांति अनुसरण किया है।

अतिस्नेह: पापशंकी।
अर्थ– अत्यधिक प्रेम होना भी पाप की आशंका को जन्म देता है।

अवेहि मां कामुधां प्रसन्नाम्।
अर्थ– कामधेनु गाय – मैं प्रसन्न हूं वरदान मांगो!

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गुर्वपि विरह दु:खमाशाबन्ध: साहयति।
अर्थ– अनसूया शकुन्तला से कहती है– आशा का बन्धन विरह (बिछडावे) के कठोर दु:ख को सहन करने की शक्ति देता है।

अभ्याससारिणी विद्या।
अर्थ– अभ्यास करने से ही विद्या आती है।

अविद्याजीवनं शून्यम्।
अर्थ– बिना विद्या के जीवन कुछ नहीं है यानी जीवन शून्य है।

धूमाकुलितदृष्टेरपि यजमानस्य पावके एवाहुति: पपिता।
अर्थ–धुएं से व्याकुल दृष्टि वाले मेहमान की आहुति ठीक अग्नि में ही पड़ी।

प्रसादचिह्नानि पुर:फलानि।
अर्थ– पहले प्रसन्नतासूचक चिन्ह दिखाई देते है, उसके बाद फल की प्राप्ति होती है।

बहुभाषिण: न श्रद्दधाति लोक:।
अर्थ– अधिक बोलने वाले पर लोग विश्वास नहीं करते।

अर्थो हि कन्या परकीय एव।
अर्थ– कन्या हमारे लिए पराई वस्तु के सामान होती है।

महत्वपूर्ण सूक्तियाँ (Sukti in Sanskrit)

क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः।
अर्थ– जो व्यक्ति हर समय नवीनता को धारण करता है वही रमणीयता का स्वरूप कहलाता है।

नास्ति विद्या समं चक्षु।
अर्थ्– संसार में ब्रह्मविद्या अर्थ महापुरुष के समान कोई दूसरा नेत्र नहीं है।

शठे शाठ्यं समाचरेत्।
अर्थ– मुर्ख इंसान के साथ शठता नहीं करनी चाहिये।

क: कं शक्तो रक्षितुं मृत्युकाले।
अर्थ– मृत्यु समीप आने पर कोई किसी की रक्षा नहीं कर सकता है।

आपदि मित्र परीक्षा।
अर्थ– मित्र की परीक्षा हमेशा आपति में ही होती है।

कुभोज्येन दिनं नष्टम्।
अर्थ– बुरा भोजन करने से पूरा दिन ख़राब होता है।

Sanskrit Suktiyan

अनतिक्रमणीयो हि विधि:।
अर्थ– भाग्य निश्चित होता है, हमारे द्वारा कभी नहीं बदला जा सकता है।

काले खलु समारब्धा: फलं बध्नन्ति नीतय:।
अर्थ– समय पर सही नीतियां हमेशा सफल होती हैं।

दिनक्षपामध्यगतेव संध्या।
अर्थ– वह दिन और रात्रि के मध्य संध्या के समान शोभायमान है।

गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति।
अर्थ– गुण गुण उसी के लिए होते हैं, जो गुण को जानते हैं।

चौराणामनृतं बलम।
अर्थ– एक चोर के लिए झूठ ही उसका बल होता है।

संस्कृत सूक्ति (Sanskrit Suktiyan)

बलवान् जननीस्नेह:।
अर्थ– माता का स्नेह सभी के लिए बलवान् (शक्ति प्रदान करने वाला) होता है।

अहो दुरंता बलवद्विरोधिता।
अर्थ– बलवान् के साथ बेर (विरोध) नहीं करना चाहिए।

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।
अर्थ– हे मनुष्य! उठो, जागो और श्रेष्ठ महापुरुषों की संगति से परमेश्वर (भगवन) को जान लो को जान लो।

नास्ति मातृसमो गुरु।
अर्थ– हमारी माता के समान कोई दूसरा गुरु नहीं (माता प्रथम गुरु होती है)।

लोभः पापस्य कारणम्।
अर्थ– लोभ ही पाप का कारण होता है।

Sanskrit Suktiyan

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संस्कृत में सूक्तियां (Suktiyan in Sanskrit)

न हि प्रियं प्रवक्तुमिच्छन्ति मृषा हितैषिण:।
अर्थ– जो कल्याण चाहते है, वह किसी से उम्मीद (इच्छा) नहीं करते हैं।

सरस्वती श्रुति महती महीयताम्।
अर्थ– ज्ञान सज्जन पुरुष की वाणी का पूर्ण सत्कार होता है।

अप्रार्थितानुकूल: मन्मथ: प्रकटीकरिष्यति।
अर्थ–बिना प्रार्थना किये कुछ नहीं मिलता है, कामदेव (वासना) शीघ्र ही उसे प्रकट कर देगा।

अनुपयुक्तभूषणोsयं जन:।
अर्थ– आभूषणों के उपयोग से अनभिज्ञ हैं।

आर्जवं हि कुटिलेषु न नीति:।
अर्थ– कुटिल जनों के लिए सरलता नीति नहीं अपनाना चाइये।

जातस्य हि धुर्वो मृत्युः।
अर्थ– जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु तय है।

त्यजेत क्रोधमुखी भार्याम।
अर्थ– क्रोध पूर्ण पत्नी का त्याग करना चाहिए।

परित्यक्त: कुलकन्यकानां क्रम:।
अर्थ– कुल कन्याये गुरुजनों की सहमति से ही वे योग्य वर का चुनाव करती हैं।

एको रस: करुण एव निमित्तभेदात्।
अर्थ– एक करुण रस से अलग-अलग परिणामों को प्राप्त किया जा सकता है।

संस्कृत सूक्तियां

गुणवते कन्यका प्रतिपादनीया।
अर्थ– हमे अपनी कन्या गुणवान् पुरुष को देनी चाहिए।

Sanskrit Suktiyan

दु:खं न्यासस्य रक्षणम्।
अर्थ– दूसरे के धन की रक्षा करना दु:खपूर्ण हो सकता है।

Sanskrit Suktiyan

जीवेम शरद: शतम्।
अर्थ– हम सभी सौ वर्ष की उम्र प्राप्त करे और 100 वर्ष तक जीवित रहे।

प्राणैरुपक्रोशमलीमसैर्वा।
अर्थ– राज्य से या निन्दा युक्त मलिन प्राणों से क्या लाभ होता है।

भार्या मित्रं गृहेषु च।
अर्थ– एक गृहस्थी के लिए उसकी पत्नी सबसे अच्छी मित्र है।

बलवती हि भवितव्यता।
अर्थ– होनहार बलवान् होते है।

सत्सड़्गति: कथन किं न करोति पुंसाम्।
अर्थ– सत्संगति मनुष्यों की भलाई नहीं करती।

अपुत्राणां न सन्ति लोकाशुभा:।
अर्थ– दंपतियों को पुत्र की प्राप्ति होती है, शुभ मानी जाती है।

आचार परमो धर्मः।
अर्थ– हमारा बेहतर आचरण ही परम (बड़ा) धर्म है।

तेजसां हि न वयः समीक्ष्यते।
अर्थ– तेजस्वी पुरुषों की उम्र का आकलन नहीं किया जाता है।

मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्।
अर्थ– माता पिता की अच्छे तरिके से सेवा करनी चाहिये।

न धर्मवृद्धेषु वयः समीक्ष्यते।
अर्थ– कम उम्र वाले व्यक्ति भी तप (आचरण) के कारण आदरणीय होते हैं।

शीलं परं भूषणम्।
अर्थ– सहनशीलता सबसे बड़ा आभूषण है।

अस्यामहं त्वयि च सम्प्रति वीतचिन्त:।
अर्थ– मैं इस वनज्योत्स्ना और तुम्हारे लिए निश्चिंत हूं।

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सूक्तियां संस्कृत में (sanskrit sukti with hindi meaning)

आचारपूतं पवन: सिषेवे।
अर्थ– आचारों से झरनों के कणों से सिञ्चित हवायें संलग्न होती है।

तीर्थोदकंक च वह्निश्च नान्यत: शुद्धिमर्हत:।
अर्थ– तीर्थ जल और अग्नि से शुद्धि की जाती है, अन्य पदार्थ से नहीं होते हैं।

उत्सवप्रिया: खलु: मनुष्या:।
अर्थ– मनुष्य को खुसी हमेशा पसंद होती है।

Sanskrit Suktiyan

Sanskrit Suktiyan

छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्।
अर्थ– दुर्जनों और सज्जनों की मित्रता छाया के समान होती है।

न खलु धीमतां कश्चिद्विषयों नाम।
अर्थ– शार्ड़्गरव कहता है– विद्वानों के लिए कोई वस्तु अज्ञात नहीं होती है।

वाग्भूषणं भूषणम्।
अर्थ– वाणी रूपी आभूषण सदा बना रहता है, यह कभी नष्ट नहीं होता।

पराभवोsप्युत्सव एव मानिनाम्।
अर्थ– तेजस्वी पुरुष दुसरो की खुशी में उत्सव मानते है।

किमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम्।
अर्थ– सज्जन मनुष्य के लिए वस्तु अलंकार नहीं होती है?

सूक्तियां संस्कृत में अर्थ सहित (Sanskrit Mein Suktiyan)

स्वभावो दुरतिक्रमः।
अर्थ– स्वभाव हमारे लिए भी दुर्लड़्घ्य होता है।

अकारणपक्षपातिनं भवन्तं द्रष्ट्म् इच्छति में हृदयम्।
अर्थ– आपके प्रति मेरा स्नेह स्वार्थ रहित है, मुझे आपसे मिलने की इच्छा हो रही है।

क्षत्रस्य शब्दो भुवनेषु रूढ:।
अर्थ– महर्षि वशिष्ठ के प्रभाव से यमराज भी मेरे ऊपर आक्रमण नहीं कर सकता है।

को नामोष्णोदकेन नवमालिकां सिञ्चति।
अर्थ– प्रियंवदा कहती है – नवमालिका को गर्म जल से नहीं सींचना चाहिए।

संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित

दैवमविद्वांस: प्रमाणयन्ति।
अर्थ– मूर्ख व्यक्ति भाग्य को ही सब कुछ समझता है।

प्रतिबदध्नाति हि श्रेय: पूज्यपूजाव्यतिक्रम:।
अर्थ– पूजनीय की पूजा करना कल्याण करता है।

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमंते तत्र देवताः।
अर्थ– जिस कुल में स्त्रियों का सम्मान किया जाता है, उस घर से देवगण प्रसन्न होते हैं।

आलाने गृह्यते हस्ती वाजी वल्गासु गृह्यते। हृदये गृह्यते नारी यदीदं नास्ति गम्यताम्।।
अर्थ– हाथी को खंभे से रोका जाता है। घोडे पर लगाम से काबू पाया जाता है और स्त्री हृदय से प्रेम करने से ही वश में हो जाती है।

दीर्घसूत्री विनश्यति।
अर्थ– प्रत्येक कार्य में अनावश्यक विलंब करने वाला कभी सफल नहीं होता है।

साहसे श्री प्रतिवसति।
अर्थ– साहस में लक्ष्मी निवास करती हैं।

पिण्डेष्वनास्था खलु भौतिकेषु।
अर्थ– विवेकी लोगों की आस्था भौतिक शरीरों से नहीं होती है, यह यश रूपी शरीर की रक्षा करने से होश है।

Sanskrit Suktiyan

अपसृतपाण्डुपत्रा मुञ्चन्त्यश्रूणीव लता:।
अर्थ– शकुन्तला के पतिगृह गमन के बाद पशु-पक्षी औभी पीड़ित है। लताओं से पीले पते टूट कर जमीन पर गिर रहे हैं।

चित्रार्पितारम्भ इवावतस्थे।
अर्थ– चित्र में लिखे हुए बाण उद्योग में लगे हुए की भांति लगते है।

धैर्यधना हि साधव:।
अर्थ– सज्जन लोगों का धैर्य ही उनका सबसे बड़ा धन होता है।

न हि सर्व: सर्वं जानाति।
अर्थ– सभी लोग सब कुछ नहीं जान सकते हैं।

प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः।
अर्थ– मुर्ख लोग विघ्नों के डर से कार्य प्रारंभ नहीं करते।

बलवता सह को विरोध:।
अर्थ– बलशाली के साथ विरोध नहीं करना चाहिए।

ईशावास्यमिदं सर्वं।
अर्थ– ईश्वर जगत में सभी जगह व्याप्त है।

शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।
अर्थ– शरीर धर्म का मुख्य साधन है।

अहो मानुषीषु पक्षपात: प्रजापते:।
अर्थ– ब्रह्मा ने पत्रलेखा के प्रति पक्षपात किया है. उसका सौन्दर्य गन्धर्वों से भी अधिक सूंदर है।

Sanskrit Suktiyan

चक्रारपंक्तिरिव गच्छति भाग्यपंक्ति:।
अर्थ– समय के साथ क्रम बदलता रहता है, संसार में भाग्य पंक्ति पहिए के अरो की तरह चलती है।

योधरीभूत चतु:समुद्रां, जुगोप गोरूपधरामिवोर्वीम्।
अर्थ– चार थनों वाली नन्दिनी गाय की रक्षा इस प्रकार की जैसे चार समुद्रों वाली पृथ्वी ही गाय हो।

आज्ञा गुरुणामविचारणीया।
अर्थ– बड़ों की आज्ञा का विचार (पालन) करना चाहिए।

चारित्र्येण विहीन आढ्योपि च दुगर्तो भवति।
अर्थ– चरित्रहीन इंसान धनवान् होने के बाद भी दुर्दशा को प्राप्त होता है।

पदं हि सर्वत्र गुणैर्निधीयते।
अर्थ– हमारे गुण ही शत्रुऔर मित्र बनाते हैं।

ऋद्धं हि राज्यं पदमैन्द्रमाहु:।
अर्थ– समृद्धशाली राज्य इंद्र के शासन समान होता है।

संस्कृत सूक्ति संग्रह PDF (Sanskrit Sukti PDF)

हमने यहाँ पर इस पोस्ट में लिखी सभी महत्वपूर्ण सूक्तियाँ संस्कृत pdf के रूप में उपलब्ध की है, जिसे आप आसानी से डाउनलोड कर सकते है और अपने प्रोजेक्ट आदि के लिए प्रयोग में ले सकते हैं।

निष्कर्ष

यदि आप अपने जीवन को बेहतर तरीके से जीना चाहते हैं और आप चाहते हैं कि आपका जीवन सक्सेजफुली बना रहे और कभी दुःख, परेशानी आदि का सामना नहीं करना पड़े तो आपको यह संस्कृत सूक्तियां जरुर पढ़नी चाहिए।

हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह संस्कृत सूक्ति हिंदी अर्थ सहित जानकारी पसंद आई होगी, इन्हें आगे शेयर जरूर करें। आपको यह जानकारी कैसी लगी, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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