Rana Sanga History in Hindi: राणा सांगा का पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह है। इतिहास के शूरवीर और पराक्रमी शासकों में इनका नाम सम्म्मान से लिया जाता है। राजस्थान में कई महान शासकों ने जन्म लिया है, राणा सांगा का नाम उन्ही में से एक है। उन्हें त्याग, बलिदान और समर्पण के लिए जाना जाता है। यह भारत के एक शूरवीर योद्धा रहे हैं और इनके पीछे का इतिहास बहुत रोचक रहा है।
यहां पर हम राणा सांगा कौन थे, राणा सांगा के जीवन परिचय, महाराणा सांगा का इतिहास (maharana sanga history in hindi), राणा सांगा की मृत्यु कब हुई (rana sanga ki mrityu kab hui), राणा सांगा की मृत्यु कैसे हुई आदि के बारे में विस्तार से जानने वाले है, इसलिए आप इस लेख को अंत तक पूरा जरूर पढ़े।
राणा सांगा का जन्म और इतिहास (Rana Sanga History in Hindi)
महाराणा संग्राम सिंह का जन्म 12 अप्रैल, 1484 में चित्तौड़ राजस्थान के राजा राणा रायमल के यहां हुआ। इनके तीन पुत्र हुए, कुंवर पृथ्वीराज, जगमाल तथा राणा सांगा। उन्होंने सन 1509 से 1528 में उदयपुर में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा के रूप में राज किया।
राणा सांगा अपने भाइयो में सबसे छोटे थे। मेवाड़ के सिंहासन के लिए तीनों भाइयों में संघर्ष प्रारंभ हुआ, जिसके कारण राणा सांगा मेवाड़ छोड़कर अजमेर पलायन कर जाते हैं। वहां कर्मचन्द पंवार की सहायता से 1509 में मेवाड़ राज्य प्राप्त करते है।
राणा सांगा मध्यकालीन भारत के अंतिम एवं हिन्दूओं के सबसे शक्तिशाली शासक रहे। राणा सांगा ने 1527 में राजपूतों को एकजुट करने का कार्य किया और बाबर से युद्ध किया। बाबर के साथ खानवा के युद्ध में उन्होंने इसके साथ लड़ाई लड़ी।
उस युद्ध में राणा सांगा ने अपनी सेना के साथ जीत प्राप्त की थी। लेकिन उस युद्ध में राणा सांगा गंभीर रूप से घायल हो गए, उनके शरीर में 80 से भी अधिक घाव लगे और उनका एक पैर और हाथ बुरी तरह से जख्मी हुआ था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अंत तक लड़ाई करते रहे।
उत्तराधिकारी के लिए संघर्ष
राणा सांगा के पिता महाराणा रायमल के 13 पुत्र एवं दो पुत्रियां थी और उन 13 पुत्रों में पृथ्वीराज, जयमल और संग्राम सिंह के नाम विशेष थे। महाराणा रायमल इन्हीं तीन राजकुमारों में से एक को राज्य का उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे। दूसरी ओर महाराणा रायमल के चाचा सारंगदेव भी अपने आपको राज्य का अधिकारी मानते थे।
कहा जाता है कि जब यह तीनों राजकुमार अपनी जन्मपत्री लेकर ऐक ज्योतिषी के पास जाते हैं तो ज्योतिषी इन राजकुमारों में से संग्राम सिंह जिसे राणा सांगा के नाम से भी जाना जाता है, उनके राजयोग को बढ़ा बलिष्ट बताते हैं। इसे सुनकर पृथ्वीराज बहुत नाराज होते हैं और वे अपने तलवार को निकालते हैं और राणा सांगा पर वार कर देते हैं, जिस कारण राणा सांगा की एक आंख फूट जाती है।
इसी बीच सारंगदेव वहां पर पहुंचते हैं और वे सुझाव देते हैं कि क्यों ना जन्मपत्री को भीमल गांव के चारण जाति की पुजारिन को दिखाया जाए। वह बहुत ही चमत्कारी हैं, वह सही-सही ज्योतिषी करेगी। उसके बाद वे राजकुमार उस पुजारिन को अपना जन्मपत्री दिखाते हैं। वह पुजारिन भी पहले वाले ज्योतिषी की बात का समर्थन करती है और वह भी राणा सांगा के ही राजयोग को बलिष्ठ बताती है।
जिसके बाद उन राजकुमारों में आपस में युद्ध शुरू हो जाता है, जिसमें राणा सांगा वहां से भागकर सवंत्री गांव पहुंच जाते हैं। जहां पर राठौर बिंदा नाम के एक व्यक्ति राणा सांगा को शरण देते हैं। लेकिन राठौर बिंदा बाद में जयमल के साथ युद्ध में मारे जाते हैं, जिसके बाद राणा सांगा पर और भी खतरा आ जाता है।
जिससे वह अपनी जान बचाने के लिए अजमेर पहुंच जाते हैं और अजमेर में करमचंद पवार की पनाह लेते हैं। वहां पर वे कुछ समय तक अज्ञातवास में रहते हैं और इसी बीच अपनी शक्ति को भी संगठित करते हैं। इस दौरान पृथ्वीराज की भी मृत्यु हो जाती है और जयमल भी सोलंकिओं के साथ युद्ध में मारा जाता है।
इसके अतिरिक्त सारंगदेव की भी हत्या पृथ्वीराज के द्वारा हो गई होती है। इस प्रकार संग्राम सिंह के लिए रास्ता पूरी तरीके से साफ हो जाता है, जिससे वे वापस अजमेर से आते हैं और राणा सांगा का राजतिलक होता है। इस तरीके से वे 27 वर्ष की उम्र में मेवाड़ के राज्य के शासन का बागडोर अपने हाथों में लेते हैं।
महाराणा सांगा का शासनकाल
महाराणा सांगा ने सभी राजपूत राज्यों को एकत्र करने का कार्य किया और एक बेहतर संगठित संघ का निर्मणा किया। महाराणा संग्राम सिंह साल 1509 में मेवाड़ की राजगद्दी में उत्तराधिकारी के रुप में आसीन हुए। उन्होंने अपने प्रयास से सभी राजपूत राज्य के राजाओं को एक छत के नीचे लाने का कार्य किया।
सभी राजपूत राज्यों से संधि करके अपना साम्राज्य उत्तर में पंजाब से लेकर दक्षिण में मालवा तक अपना राज्य बढ़ाया। उस समय उनका राज्य मालवा, दिल्ली, गुजरात के मुगल सुल्तानों के कब्जे से घिरा था। लेकिन उन्होंने इन सभी का सामना किया।
इस तरह से पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर ग्वालियर (भरतपुर) तक अपना राज्य विस्तार किया। उस समय मुस्लिम साम्राज्य का ज्यादा विस्तार था, वह मुस्लिम सुल्तानों की डेढ़ सौ वर्ष की सत्ता को छीनने में लगे थे। यह सब करने के पश्चात इतने बड़े क्षेत्रफल हिंदू साम्राज्य को कायम किया।
राणा सांग ने दिल्ली सुल्तान रहे इब्राहिम लोदी को खातौली व बाड़ी के युद्ध में 2 बार युद्ध में परास्त किया और उन्हें हराया। उन्होंने अपने युद्ध के दौरान गुजरात के सुल्तान को हराया और मेवाड़ पर राज्य करने से रोक दिया।
खानवा के युद्ध में उन्होंने बाबर को हराया और दुर्ग जीत लिया। इस प्रकार राणा सांगा ने अपने जीवन के इतिहास में कई राज्य पर विजय प्राप्त की और कई शासकों को हराया है। 16वीं शताब्दी के सबसे शक्तिशाली शासक के रूप में राजा सांगा का नाम लिया जाता है। इतिहास में उनकी गिनती वीर राजाओ के रूप में की जाती हैं।
खतौली का युद्ध
महाराणा सांगा ने जीवन में कई युद्ध लड़े। लेकिन उनके द्वारा लड़ा गया खातोली का युद्ध आज भी इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। खातोली का युद्ध 1517 ईस्वी में महाराणा सांगा और इब्राहिम लोदी के बीच हुआ था, जिसमें इब्राहिम लोदी की हार हुई थी। खातोली पीपल्दा (कोटा) में स्थित हैं।
इस युद्ध की शुरुआत तब हुई थी जब महाराणा सांगा अपने साम्राज्य के विस्तार में लगे हुए थे। दरअसल 1517 में दिल्ली में सिकंदर लोदी की मौत के बाद इब्राहिम लोदी उत्तराधिकारी बना। इब्राहिम लोदी बहुत ही महत्वकांक्षी व्यक्ति था जब उसे पता चला कि महाराणा सांगा बहुत तेजी से अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे हैं तो उसे डर लगा कि कहीं महाराणा सांगा दिल्ली तक अपने साम्राज्य का विस्तार ना कर दें।
इसलिए उसने अपने मुख्य सेनापतियों को बुलाया और सेना को एकजुट किया ताकि मेवाड़ की सेना से लड़ने के लिए तैयार रहे। दिल्ली में हुई हलचल मेवाड़ के राजा राणा सांगा के कानों में भी पहुंची, जिसके बाद उन्होंने भी अपनी सेना को एकजुट किया और युद्ध के पूर्वाभास के चलते उन्होंने भी कमर कस ली।
उसके बाद इब्राहिम लोदी ने सबसे पहले अपनी सेना को मेवाड़ की तरफ बढ़ने को कहा, जिसके बाद महाराणा सांगा की सेना भी आगे बढ़ी। महाराणा सांगा के साथ छोटी छोटी रियासतों के अन्य कई राजाओं का भी सहयोग था। इन दोनों ही राजाओं की सेनाओ का राजस्थान के खातोली नामक स्थान पर आमा सामना हुआ।
खातोली के युद्ध में महाराणा सांगा ने बहुत वीरता से इब्राहिम लोदी के सेनाओं का सामना किया। इब्राहिम लोदी भी मेवाड़ी सेना और राणा सांगा की शक्ति को देख दांतो तले उंगली दबाने लगा। जब इब्राहिम लोदी को लगने लगा कि उसकी सेना मेवाड़ी सेना के सामने कमजोर पड़ रही है तब वह मैदान छोड़ भागना शुरू कर दिया।
जैसे तैसे इब्राहिम लोदी खुद की जान बचाकर भागने में कामयाब रह गया। लेकिन मेवाड़ी सेना ने उसके पुत्र शहजादा को पकड़ लिया। खातोली का यह युद्ध लगभग 5 घंटे तक चला था। इस युद्ध में महाराणा सांगा काफी ज्यादा घायल हो गए थे। उनका एक हाथ भी कट गया था और शरीर पर काफी ज्यादा घाव भी हो गए थे।
मेवाड़ी सेना ने इब्राहिम लोदी के पुत्र को पकड़कर मेवाड़ लाया लेकिन वहां पर राणा सांगा ने उसे एक छोटा सा ही दंड देकर छोड़ दिया। इब्राहिम लोदी अपने हार के पश्चात बदले की आग में तपने लगा और उसने दोबारा अपनी सेना को संगठित कर ढोलपुर में राणा सांगा के साथ युद्ध किया और उसे पराजित कर दिया।
खानवा का युद्ध
राणा सांगा के जीवन यात्रा में खानवा का युद्ध भी एक महत्वपूर्ण युद्ध था। यह युद्ध राणा सांगा और मुगल बादशाह बाबर के बीच खानवा के मैदान में 16 मार्च 1527 को हुआ थाहुआ था। यह युद्ध राणा सांगा के द्वारा राज्य के विस्तार को बढ़ाने के लिए छेड़ा गया था।
दरअसल उस समय राणा सांगा अपनी शक्ति बहुत बढ़ा ली थी और वे लगातार अपने राज्य का विस्तार किए जा रहे थे। वे अफगानों की सत्ता को भी समाप्त कर अपना राज्य स्थापित करना चाहते थे। उनके राज्य की सीमा आगरा के निकट तक पहुंच चुकी थी। उधर आगरा में बाबर का शासन था। अब बाबर को राणा सांगा से खतरा उत्पन्न हो सकता था।
हालांकि राणा सांगा यही सोच रहे थे कि बाबर भी तैमूर के भांती दिल्ली में लूटपाट करके वापस लौट जाएगा। लेकिन 1526 ईसवी में इब्राहिम लोदी को पानीपत के युद्ध में परास्त करने के बाद भी बाबर दिल्ली में शासन करता रहा।
इससे राणा सांगा को भी यकीन हो गया कि अब बाबर दिल्ली छोड़कर कहीं नहीं जाएगा और अब तो बाबर ने सिंधु गंगा घाटी में भी वर्चस्व स्थापित कर लिया था। ऐसे में राणा सांगा के लिए खतरा और भी बढ़ गया था। इसीलिए राणा सांगा ने बाबर को देश से भगाने का निर्णय लिया।
इसी बीच बाबर भी अफगान विद्रोहियों को कुचलने का निर्णय लिया था। ऐसे में बाबर से बचने के लिए कई अफगान सरदार ने राणा सांगा के शरण में जाना उचित समझा। अफगान सरदारों में इब्राहिम लोदी का भाई महमूद लोदी और मेवात का सूबेदार हसन खां मेवाती भी था।
इन अफगान सरदारों ने राणा सांगा को बाबर के साथ युद्ध करने के लिए उकसाया और अपनी सहायता देने का भी वचन दिया और बाबर के द्वारा बयाना, कालपी, आगरा और धौलपुर पर अधिकार किए जाने से राणा सांगा पहले से ही गुस्से में थे। ऐसे में अफगान सरदारो से वे बहुत जल्दी प्रोत्साहित हो गया और बाबर के विरुद्ध युद्ध करने का निर्णय ले लिया।
राणा सांगा को कुछ अफगान सरदारों के अतिरिक्त छोटे-छोटे रियासतों के राजपूत सरदारों का भी साथ मिला। सभी को एकजुट करके राणा सांगा ने एक विशाल सेना का निर्माण किया और उनके साथ आगरा पर अधिकार करने के लिए आगे बढ़े। राणा सांगा की सेना सबसे पहले बयाना पर अधिकार स्थापित की।
बयाना की रक्षा के लिए बाबर ने ख्वाजा मेहंदी को मदद के रूप में भेजा था लेकिन राणा सांगा ने उन्हें परास्त कर दिया। सीकरी के पास भी आरंभिक मुठभेद में मुगल सेना को राणा सांगा की सेना ने मुंह तोड़ जवाब दिया।
मुगल सेना का इस तरीके से लगातार पराजय होने के कारण उनका मनोबल गिरने लगा। ऐसे में अपनी सेना का मनोबल गिरते देख बाबर ने बहुत धैर्य से काम लिया। उसने शराब न पीने की कसम खाई, अपने मुसलमान भाइयों पर से तमगा (एक प्रकार का व्यापारिक कर) भी उठा लिया। उसने जिहाद की भी घोषणा कर दी।
इसके अतिरिक्त भी उसने सेना को कई तरह के प्रलोभन दिए ताकि सेनाओं में फिर से उमंग और जोश आ जाए। अंतः बाबर की सेना में फिर से उत्साह और उमंग का संचार हुआ। उसके बाद बाबर अपने उन सभी सेनाओं के साथ राणा सांगा का मुकाबला करने के लिए फतेहपुर सिकरी के निकट स्थित खानवा नामक जगह पर पहुंचा, जहां पर राणा सांगा की प्रतीक्षा में था।
बाबर ने राणा सांगा को हराने के लिए उसी चक्रव्यूह की रचना की, जिसका प्रयोग उसने इब्राहिम लोदी को हराने के लिए पानीपत के युद्ध में किया था। उसके बाद 16 मार्च 1527 को दोनों सेनाओं की मुठभेड़ हुई और इस युद्ध में बाबर के द्वारा गोला बारूद का जमकर प्रयोग किया गया।
हालांकि बाबर के पास इतिहासकारों के अनुसार उस समय दो लाख मुगल सैनिक थे और राणा सांगा के पास भी उसके जितनी सैनिक थी। लेकिन बाबर के पास गोला-बारूद का बड़ा जखीरा था। लेकिन राणा सांगा के पास साहस और वीरता थी। इस युद्ध में राणा सांगा बाबर की सेना के सामने कमजोर पड़ने लगी।
इस युद्ध में राणा सांगा के एक आंख पर तीर भी लग गई थी। उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। उनके शरीर पर कुल 80 घाव भी आए थे। भले ही इस युद्ध में राणा सांगा हार गए लेकिन एक पल के लिए बराणा सांगा के वीरता को देख बाबर का भी होश उड़ गया था।
खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा की पराजय का कारण
बाबर और राणा सांगा के बीच हुए खानवा के युद्ध में राणा सांगा के पराजय का मुख्य कारण बाबर के द्वारा युद्ध में प्रयोग किए गए गोला बारूद माना जाता है। लेकिन इसके अतिरिक्त भी कई कारण थे, जिससे राणा सांगा को हार का सामना करना पड़ा। दरअसल इस युद्ध में राणा सांगा को छोटे-छोटे रियासतों के कई राजाओं ने साथ दिया था।
हालांकि वे स्वार्थ वश महाराणा सांगा का साथ दे रहे थे। देश प्रेम की भावना उनके अंदर नहीं थी और उन सरदारों में से कई ऐसे लोग थे, जिनमें आपसी में मतभेद या शत्रुता थी। जिस कारण इस युद्ध में उनके अंदर जोश और जुनून खत्म हो गया।
दूसरा कारण यह भी माना जाता है कि युद्ध के बीच में ही महाराणा सांगा मूर्छित हो गए थे, जिन्हें पालकी में सुला कर युद्ध के मैदान से दूर ले जाया गया। जिससे सेना का मनोबल भी टूट गया था।
महाराणा सांगा के पराजय का मुख्य कारण यह भी माना जाता है कि इस युद्ध में बाबर की सेना एक व्यवस्थित सेनापति और राजा के नेतृत्व में युद्ध लड़ रही थी जबकि मेवाड़ की सेना में कई छोटे-छोटे रियासतों के राजा शामिल थे और अलग-अलग सेनाओं का नेतृत्व अलग-अलग लोगों के हाथ में था। ऐसे में उसमें एकता और तालमेल नहीं दिख पाया, जिस कारण महाराणा सांगा की हार हो गई।
राणा सांगा की मृत्यु
राणा सांगा बाबर को उखाड़ फेंकना चाहते थे, उन्होंने उनके खिलाफ युद्ध भी किया था और वह बुरी तरह से घायल हुए थे। क्योंकि वह उन्हें भारत में एक विदेशी शासक के रूप में देखते थे। दिल्ली और आगरा पर कब्जा करके अपने क्षेत्रों का विस्तार करने के लिए अफगान सरदारों ने समर्थन दिया था।
राणा सांग 21 फरवरी 1527 को मुगल पहरे पर हमला किया और इसे खत्म कर दिया। इस तरह से उन्होंने कई युद्ध को अंजाम दिया। इन सब जीत के बाद उनके दुश्मन लगातार बढ़ते चले गए। राणा सांग की मृत्यु 30 जनवरी 1528 को चित्तौड़ में हुई। यह किसी राजा से युद्ध के दौरान नहीं हुई, उन्हें साजिस के तहत अपने ही सरदारों द्वारा जहर देकर मारा गया। लेकिन उन्हें आज भी इतिहास अपने पराक्रम के लिए याद करता है।
राणा सांगा के बारे विशेष बातें
- राणा सांगा को महाराणा संग्राम सिंह के नाम से भी जाना जाता है।
- यह राणा कुंभा के पोते और राणा रायमल के पुत्र थे।
- अपने भाइयों के साथ उत्तराधिकार की लड़ाई लड़ी और 1508 में मेवाड़ के राजा बने।
- राणा सांगा ने ढोलपुर और खतौली के युद्ध में इब्राहिम लोदी को पराजित करके अपने सीमा का विस्तार उत्तर पूर्व राजस्थान तक किया था।
- राणा सांग मध्यकालीन भारत के अंतिम शासक थे।
- अपने जीवन में की युद्ध और राज्य जीते है।
- राणा सांगा की मृत्यु को लेकर आज भी इतिहासकारों में मतभेद है। कुछ लोगों का मानना है कि राणा सांगा की मृत्यु बीमारी से हुई थी। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि राणा सांगा को अपने ही लोगों के द्वारा जहर देकर मार डाला गया था।
- एक हाथ, एक पैर और एक आंख खोने के बावजूद आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
FAQ
राणा साँगा के पिता राजा राणा रायमल थे, यह चित्तौड़ राजस्थान के निवासी थे।
राणा सांग एक राजपूत शासक थे, जिन्होंने मेवाड़ पर शासन किया था। मृत्यु के पीछे का कारण जहर था। इन्हे अपने लोगों द्वारा जहर देकर धोखे से मारा गया था। राणा साँगा ने 1528 में मुगल सम्राट बाबर के खिलाफ युद्ध लड़ा और उसके बाद उनकी मृत्यु हो गयी थी।
बाबर से युद्ध जितने के पीछे कुछ अफगान सरदारों का समर्थन था। इनके साथ और भी राजपूत शासक थे, जिन्होंने इस युद्ध में इनका साथ दिया और यह बाबर से युद्ध जितने में सफल हुए।
युद्ध में राणा सांग की आँखों में चोट लगी थी। 1518 में मुगल बादशाह इब्राहिम लोधी के खिलाफ खतोली की लड़ाई लड़ी गई थी, जिसमें उन्हें यह चोट आयी थी। इस लड़ाई में लोधी की सेना ज्यादा समय तक नहीं टिक पायो और महज 5 घंटे की लड़ाई के बाद युद्ध छोड़कर भाग गई थी।
राणा सांगा की छतरी भीलवाड़ा राजस्थान में स्थित है। 8 खंभों के इस्तेमाल से भरतपुर के अशोक परमार ने इस छतरी का निर्माण किया था।
इतिहास में दर्ज है कि 1526 ईसवी में बाबर ने भारत में मुगल सल्तनत की स्थापना की थी और अगले 2 शताब्दियों तक भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों पर मुगलों का शासन रहा। हालांकि बहुत से लोगों की आम धारणा है कि बाबर को राणा सांगा ने हीं भारत आने के लिए निमंत्रण भेजा था। लेकिन यह केवल आम धारणा ही है क्योंकि इतिहास या बाबर की आत्मकथा बाबरनामा में इसके बारे में कोई जिक्र नहीं है। यहां तक कि बाबरनामा में बाबर ने जिक्र किया है कि भारत आने के लिए उसे दौलत खां लोधी ने निमंत्रण भेजा था।
राणा सांगा जीनका पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था। उनकी पत्नी का नाम कर्मवती या कर्णावती था। यह हाड़ा नरबदु की पुत्री थी। कर्णावती कुछ समय के लिए बूंदी की शासिका भी रह चुकी थी। वह भविष्य में राणा विक्रमादित्य और राणा उदय सिंह की मां बनी। महाराणा प्रताप इन्हीं के पोते थे।
राणा सांगा अपने समय के सबसे शक्तिशाली हिंदू राजा थे। वे अपनी वीरता और उदारता के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध सभी राजपूतों को एकजुट किया। उन्होंने मुगल बादशाहों के आक्रमणों से अपने राज्य की बहादुरी से रक्षा की और बहुत ही तेजी से अपने राज्य का विस्तार किया।
निष्कर्ष
हम उम्मीद करते हैं कि हमारे द्वारा शेयर की गई यह जानकारी शूरवीर योद्धा राणा सांगा का इतिहास (Rana Sanga History in Hindi) आपको पसंद आई होगी, इन्हें आगे शेयर जरूर करें। आपको यह जानकारी कैसी लगी, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
Read Also
- हिंदुआ सूरज महाराणा प्रताप का जीवन परिचय
- हल्दीघाटी युद्ध का इतिहास
- छत्रपति संभाजी महाराज का इतिहास और जीवन गाथा
- पराक्रमी राजा पोरस का इतिहास और जीवन गाथा