हिंदू धर्म के भगवान में श्रीराम प्रमुख भगवान में से एक है। इन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम भी कहा जाता है। भगवान श्री राम अयोध्या के राजा थे। श्री रामचरितमानस में भगवान श्रीराम के जीवन के बारे में उल्लेख है। साथ ही जीवन से जुड़ी कथाएं भी शामिल है।
मर्यादा पुरुषोत्तम, भक्ति के प्रतीक, धर्मपुरुष, महानतम पुरुष आदि के रूप में भगवान श्रीराम को जाना जाता है। श्री राम विष्णु के अवतार माने जाते हैं। इनके पिता का नाम राजा दशरथ था, जो अयोध्या के राजा थे।
यहां पर हम राम पर कविताएं (poem on shri ram in hindi) शेयर कर रहे हैं, जिनमें भगवान श्रीराम के जीवन के बारे में बहुत ही सुंदर वर्णन किया गया है। चलिए पढ़ते है सुंदर सी मर्यादा पुरुषोत्तम राम पर कविता।
भगवान श्री राम पर कविताएं | Poem on Ram in Hindi | मर्यादा पुरुषोत्तम राम पर कविता
चर्चा है अख़बारों में (Poem on Ram in Hindi) – 1
चर्चा है अख़बारों में
टी. वी. में बाजारों में
डोली, दुल्हन, कहारों में
सूरज, चंदा, तारों में
आँगन, द्वार, दिवारों में
घाटी और पठारों में
लहरों और किनारों में
भाषण-कविता-नारों में
गाँव-गली-गलियारों में
दिल्ली के दरबारों में।
धीरे-धीरे भोली जनता है बलिहारी मजहब की
ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की।।
-हरिओम पंवार
राम हुआ है नाम लोकहितकारी का – 2
राम दवा हैं रोग नहीं हैं सुन लेना
राम त्याग हैं भोग नहीं हैं सुन लेना
राम दया हैं क्रोध नहीं हैं जग वालों
राम सत्य हैं शोध नहीं हैं जग वालों
राम हुआ है नाम लोकहितकारी का
रावण से लड़ने वाली खुद्दारी का
दर्पण के आगे आओ
अपने मन को समझाओ
खुद को खुदा नहीं आँको
अपने दामन में झाँको
याद करो इतिहासों को
सैंतालिस की लाशों को
जब भारत को बाँट गई थी वो लाचारी मजहब की।
ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की।।
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राम भक्ति की बहती धार (Poem on Ram in Hindi) – 3
राम भक्ति की बहती धार
है राम नाम मोक्ष का द्वार
सो जपते जाना जपते जाना
तेरे जीवन का होगा उद्धार।
क्या होती मर्यादा जान ले
अपना अस्तित्व पहचान ले
तुझ में पायेगा राम को
बस राम का ही ध्यान ले।
कौन कहता है राम भगवान
राम तो है तेरी पहचान
राम है ही तेरा अभिमान
अतः करो राम का गुणगान।
भगवान राम पर कविता (LORD RAM KAVITA) – 4
राम रमापति जय जय जय,
वन वन भटके वह,
मर्यादा की सीख सिखाने,
त्याग भावना हमें सिखाने,
यहीं पे पूरे करने काम,
आए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम।
अयोध्या में आए श्री राम,
नहीं वहां पर अब कोई वाम,
सब वहां हर्षित हैं इस पल,
दशरथ के मन में है हलचल,
आए फिर भरत शत्रुघ्न भी,
लक्ष्मण ने भी आँखें खोली,
तीन रानियां सखियों जैसी,
साथ साथ ममता में डोली,
मानव का उत्थान है करना,
इसीलिए आए श्री राम।
अयोध्या में उत्सव का शोर,
शंखनाद है चारों ओर,
शांताकारम राम के दर्शन,
करने आए सभी चहु और,
यह हो सकता है कि रावण,
भी आया हो दर्शन करने,
यह भी सच है सभी देवता,
सोच रहे अब कष्ट मिटेंगे,
यद्यपि यह मेरा विचार है,
कि रावण भी विष्णु भक्त था,
किंतु नहीं यह वर्णन कहीं भी,
कि रावण आया अयोध्या कभी भी,
सभी यहां सुख सागर में है,
आज यहां आए हैं राम।
यह है श्री राघव की माया,
कि यह कोई समझ न पाया,
एक मास का एक दिवस था,
हर कोई मोह में विवश था,
यहां रवि भी रुका हुआ है,
यहां कवि भी झुका हुआ है,
यहां सभी नतमस्तक होंगे,
यह है अयोध्या नगरी शुभ धाम,
यहां पे जग के पालक राम।
यदि यह हमने ना समझा,
यदि यह हमने ना जाना,
कि यह परम सत्य ही था,
की रमापति ही सियापति था,
प्रत्यक्ष को प्रमाण नहीं है,
स्वयं सिखाएंगे श्री राम।
वहां चले अब जहां सरस्वती,
गुरु ने शास्त्रों की शिक्षा दी,
गुरु आश्रम में ऐसे रहते,
सेवा भाव से कार्य हैं करते,
आए जब राम गुरुकुल में,
पुनः ज्ञान अर्जित करने,
वहां सभी सुख में डूबे,
चारों भाई थे चार अजूबे,
यह प्रभु की ही अद्भुत लीला,
वेदों के ज्ञाता हैं राम।
गुरु आश्रम से आ साकेत,
विश्वामित्र का पा आदेश,
सबको करने अभय प्रदान,
लखन को ले चलें कृपानिधान,
चले ताड़का वन की ओर,
दुष्ट राक्षसी रहती जिस छोर,
बाण एक ताड़का को मारा,
मारीच सुबाहु को संघारा,
मारीच को दिया क्यों जीवनदान,
यह भेद जाने बस कृपा निधान,
चले हैं हरने मही की त्रास,
इसीलिए आए श्रीराम।
चले वहां अब जहां महालक्ष्मी,
जनक सुता रमा कल्याणी,
वहीं होगा अब मिलन हरि से,
जहां जनक राज्य हैं करते,
चले संग मुनिवर लक्ष्मण के,
गंगा तट पर पूजन करके,
वहीं एक निर्जीव आश्रम में,
तारा अहिल्या को चरण रज से,
गंगा जिनकी उत्पत्ति है,
वो हैं पतित पावन श्री राम।
समय ने ऐसा खेल रचाया,
समय ने ऐसा मेल बनाया,
वहीं पे पहुंचे कृपानिधान,
जहां पे थी खुद गुण की खान,
वही पहुंची अब जनक सुता,
उपवन में राघव को देखा,
अद्भुत सौंदर्य और अतुल पराक्रम का,
है यह अति पुरातन रिश्ता,
तीनों लोकों में दोनों की,
कोई कर सकता ना समता,
गई मांगने उनसे रघुवर,
जिसने तप से शिव को जीता,
जनकपुरी में शुभ समय है आया,
जनक राज ने प्रण सुनाया,
सब का अभिनंदन करके,
सीता को सखियों संग बुलाया,
किंतु शिव के महा धनुष को,
कोई राजा हिला न पाया,
विश्वामित्र ने देखा अवसर,
तब उन्होंने राम को पठाया,
राम ने जाना शुभ समय है आया,
सभी बड़ों को शीश नवाया,
धनुष के दो टुकड़े कर डाले,
हमें मिले फिर सीताराम।
केकई ने षड्यंत्र रचाया,
नियति ने फिर खेल रचाया,
राजतिलक का समय जब आया,
माता का फिर मन भरमाया,
दशरथ से मांगे वर दो,
भरत को राज्य, वन राम को दो,
माता की आज्ञा सिर धरके,
पिता वचनों की गरिमा रखने,
साथ सिया और लक्ष्मण को ले,
चले गए फिर वन को राम।
वन में उनको मिले सभी,
ऋषि तपस्वी और ज्ञानी,
वन में था ज्ञान अथाह,
वन में था आनंद समस्त,
वन में थे राक्षस कई,
वन को कलुषित करते सभी,
रावण के यह बंधु सभी,
करते थे दुष्कर्म कई,
लिया राम ने फिर प्रण एक,
निश्चर हीन धरा को यह,
रक्षा इस धरती की करने,
आए दोनों लक्ष्मण राम।
वन में जा पहुंचा अभिमानी,
मारीच उसका मामा अति ज्ञानी,
अभिमानी के हाथों उसकी,
मृत्यु हो जाती निष्फल,
चुना मृत्यु का मार्ग सफल,
बन सुंदर एक मृग सुनहरी,
चला भरमाने मायापति राम।
सीता को पाकर अकेली,
चल दिया वह रावण पाखंडी
छद्मवेश साधू का धर के,
ले गया वह सीता को हर के,
यहां वहां सीता ने पुकारा,
हार गया जटायु बेचारा,
वन वन भटके दोनों भाई,
पर सीता की सुध ना पाई,
यह सब तो है प्रभु का खेल,
दीन बने खुद दीनानाथ राम।
मिलना था अब हनुमान से,
बुद्धि ज्ञान और बलवान से,
वन में उनको भक्त मिला,
वानर एक अनूप मिला,
रुद्र अवतार राम के साथी,
वानर राज सुग्रीव के मंत्री,
वानर जाति का किया कल्याण,
सब के रक्षक हैं श्रीराम।
वानर राज ने किया संकल्प,
माता की खोज हो तुरंत,
चारों दिशाओं में जाओ,
सीता मां की सुध लाओ,
चले पवनसुत दक्षिण की ओर,
मन में राम नाम की डोर,
विघ्न हरण करते हनुमान,
उनके मन में हैं श्रीराम।
चले वहां अब जहां थी लंका,
वहां पर अद्भुत दृश्य यह देखा,
एक महल में शंख और तुलसी,
देख उठी यह मन में शंका,
वर्णन कर आने का कारण,
विभीषण से जाना सब भेदन,
सीता मां से चले फिर मिलने,
राम प्रभु के कष्ट मिटाने,
माता को दी मुद्रिका निशानी,
प्रभु की सुनाकर अमर कहानी,
यह तब जाना सीता माॅ ने,
रामदूत आया संकट हरने,
चले लांघ समुद्र महाकाय,
सीता मां की सुध ले आए,
रावण की लंका नगरी को,
अग्नि को समर्पित कर आए,
रावण का अहंकार जलाकर,
बोले क्षमा करेंगे राम।
उत्साह और उमंग ले कर
हनुमत पहुंचे राम के पास,
सीता मां का हाल सुनाकर,
बोले ना टूटे मां की आस,
दक्षिण तट पर पहुंच के बोले,
अब जाना है सागर पार,
राम नाम की महिमा गहरी,
वो करते हैं भव से पार,
राम नाम लिखकर जो पत्थर,
सागर में तर जाते हैं,
उसी राम के आगे देखो,
शिव भी शीश झुकाते हैं,
करके पूजा महादेव की,
लिंग पे जल चढ़ाते हैं,
राम भी उनकी सेवा करते,
जो रामेश्वरम कहलाते हैं,
सेतु बांध समुद्र के ऊपर,
लंका ध्वस्त करेंगे राम।
रावण एक महा अभिमानी,
विभीषण की एक न मानी,
मंदोदरी उसकी महारानी,
उसकी कोई बात न मानी,
सीता ने उसको समझाया,
क्यों मरने की तूने ठानी,
विभीषण को दे देश निकाला,
लंका का विनाश लिख डाला,
चले विभीषण राम के पास,
मिटाने कई जन्मों की त्रास,
लंकेश्वर कहकर पुकारा,
शरणागत के रक्षक राम।
शांताकारम राम ने सोचा,
युद्ध नहीं है प्रथम विकल्प
जो विनाश युद्ध से होता,
सृजन में लगते लाखों कल्प,
राम ने चाहा अंगद अब जाए,
रावण को यह कहकर आए,
माता को आदर् से लेकर,
राम प्रभु की शरण में जाए,
अंगद ने जा राजमहल में,
अपना शांति संदेश सुनाया
पर उस अभिमानी रावण की,
राज्य सभा को समझ ना आया,
तब राम नाम लेकर अंगद ने,
वहीं पर अपना पैर जमाया,
राम ने उस अभिमानी रावण को,
राम नाम का खेल दिखाया,
हिला ना पाए कोई उसको,
जिसके तन मन में हो राम।
अब निश्चित है युद्ध का होना,
रावण के अपनों का खोना,
युद्ध की इच्छा से जो आए
सब ने अपने प्राण गवाएं,
रावण अब इस बात को समझा,
कि संकट में प्राण फसाए,
युद्ध भूमि में किसको भेजें,
जाकर कुंभकरण को जगाएं,
राम लखन के सन्मुख भेजें,
वानर सेना को मरवायें,
कुंभकरण ना समझ सका की,
नारायण को कैसे हराऐं,
यह था कुंभकरण का भाग्य,
मुक्ति के दाता हैं श्री राम।
वानर सेना में उत्साह का शोर,
राक्षस सेना चिंतित सब ओर,
युद्ध हुआ हर दिन घनघोर,
पर बचा न कोई रावण की ओर,
एक से एक महा भट्ट आते,
आकर अपने प्राण गवाते,
मेघनाथ रावण की आस,
कई शक्तियां उसके पास
लक्ष्मण लक्ष्य लंका के सुत का,
गड़ शक्ति पराक्रम बल कौशल का,
यह क्या विधि ने खेल रचाया,
लक्ष्मण को युद्ध में हराया,
शक्ति मेघनाथ ने छोड़ी,
राम लखन की जोड़ी तोड़ी,
मेघनाथ के शंखनाद का कैसे उत्तर देंगे राम।
अब वानर सेना है भयभीत,
वानर दल की टूटी पीठ,
लक्ष्मण राम प्रभु की प्रीत,
लूट के ले गया इंद्रजीत,
वानर दल श्री राम को चाहे,
उनकी चिंता देखी न जाए,
अब उनको संजीवनी बचाए,
तब हनुमंत सामने आए,
वानर सब उनको समझाएं,
की सूर्य उदय से पहले ले आएं,
वरना लक्ष्मण को जीवित ना पाएं,
शांत समुद्र में जैसे तूफान,
ऐसे विचलित हैं श्री राम।
चले पवनसुत उत्तर की ओर,
लक्ष्मण के प्राणों की टूटे ना डोर,
संग ले राम नाम की आस,
हनुमत पहुंचे पर्वत के पास,
लक्ष्मण के प्राणों को लेकर,
हनुमत पहुंचे जहां थे राम।
यह तो है राम नाम की चाहत,
जो लक्ष्मण हो सके न आहत,
फिर गरज कर लक्ष्मण ने कहा,
तेरी मृत्यु अब निश्चित है अहा,
कहां है वह पाखंडी राक्षस,
युद्ध के सभी नियमों का भक्षक,
यहां पर तो रघुकुल का चिन्ह है,
जिसके आगे अब यह प्रश्न है
कि अब मेघनाद का मस्तक,
उसके धड़ से कब होता भिन्न है,
लक्ष्मण ने अब प्रण है ठाना,
विजयी हो कर आऊंगा राम।
युद्ध वहां है जहां है माता,
इंद्रजीत को समझ न आता,
की युद्ध वही जीत है पाता
जो सत्य का साथ है देता,
वहीं पे लक्ष्मण ने ललकारा,
युद्ध करने को उसे पुकारा,
सभी शास्त्र विफल कर डाले,
मेघनाद ने देखे तारे,
यह समझा रावण का सुत अब,
विष्णु आए मनु रूप धर कर
यह कैसे पितु को समझाए,
राक्षस जाति को कैसे बचाए,
सुबह का सूरज यह लेकर आया,
अब युद्ध करेंगे रावण राम।
वहां से शंखनाद यह बोला,
रावण का सिंहासन डोला,
यह अब अंतिम युद्ध है करना,
वानर सेना करें यह गणना,
यह है अब राम की इच्छा,
रावण को वानर दें शिक्षा,
युद्ध हुआ वह बहुत भयंकर,
देख रहे ब्रह्मा और शंकर,
यह अब युद्ध में निर्णय होगा,
की अंत में विजयी कौन बनेगा,
यहां पर सब हैं आस लगाए,
कि जल्दी सीता अब आए,
राम मारेंगे अब रावण को,
सीता मां के दर्शन हो सबको,
चलेंगे तीखे तीर रघुवर के,
काटने को शीश रावण के,
जों जों शीश दशानन के कटते,
वर के कारण वापस आ जाते,
तब रघुवर विस्मय में आए,
अब तो कोई उपाय बताए,
तब विभीषण सामने आए,
अमृत का रहस्य बतालाए,
अग्निबाण नाभि में मारो,
दशानन को ब्रह्मास्त्र से संघारो,
यही वो पल है जिसके कारण,
धरती पर आए श्री राम।
यह तो सब ने देखा उस क्षण,
कि रावण का हो रहा है मर्दन,
यह तो बस रघुवर में जाना,
कि रावण था बड़ा सयाना,
बिना राम के मुक्ति पाना,
असंभव था उसने यह जाना,
शुभम अथवा सत्यम का मिलना,
नहीं था संभव बिना सियाराम।
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मुझको मंदिर-मस्जिद बहुत डराते हैं (Poem on Ram in Hindi) – 5
मैं होता हूँ बेटा एक किसानी का
झोंपड़ियों में पाला दादी-नानी का
मेरी ताकत केवल मेरी जुबान है
मेरी कविता घायल हिंदुस्तान है।
मुझको मंदिर-मस्जिद बहुत डराते हैं
ईद-दिवाली भी डर-डर कर आते हैं
पर मेरे कर में है प्याला हाला का
मैं वंशज हूँ दिनकर और निराला का।
मैं बोलूँगा चाकू और त्रिशूलों पर
बोलूँगा मंदिर-मस्जिद की भूलों पर
मंदिर-मस्जिद में झगड़ा हो अच्छा है
जितना है उससे तगड़ा हो अच्छा है।
राम का नहीं वो किसी काम का नहीं (Poem on Ram in Hindi) – 6
राम सांस सांस में समाए हुए है
भारत की आत्मा में छाए हुए है
संकटों में खूब आजमाए हुए है
राम जी देश को बचाए हुए है
सुबह का नहीं है जो वो शाम का नहीं
राम का नहीं वो किसी काम का नहीं।
राम प्रतिमा नहीं है प्रतिमान है
नभ में चमकते हुए दिनमान है
वाल्मीकि तुलसी का वरदान है
एक आदर्श है वो भगवान है
राम आस्था है, कोई नारा नहीं है
राम गंगाजल है अंगारा नहीं है
चलते फिरते रोज यही काम कीजिए
जो भी मिले उसको राम राम कीजिए
बेशकीमती भी किसी दाम का नहीं
राम का नहीं वो किसी काम का नहीं।
पथराई अहिल्या को तारा राम ने
अत्याचारी असुरों को मारा राम ने
सुग्रीव की राह में भी राम मिलेगे
राम जी तिजोरी में कुबेरों में नही
शबरी के बेरों में भी राम मिलेगे
राम दशरथ की पुकार में मिले
केवट के संग मझधार में मिले
राम भक्ति भाव से ही जीने में मिले
राम हनुमान जी के सीने में मिले
राजा का है किस्सा गुलाम का नहीं
राम का नहीं वो किसी काम का नहीं।
एक पत्नी का व्रत धारा राम ने
रावण से दुष्ट को भी तारा राम ने
वचन पिता का निभाया राम ने
जो भी मिला गले से लगाया राम ने।
राम कोल भीलों में किरात में मिले
राम सुग्रीव वाले साथ में मिले
राम पाने के लिए धन न चाहिए
राम को समझ ले वो मन चाहिए
पूण्य गंगा स्नान चार धाम का नहीं
राम का नहीं वो किसी काम का नहीं।
पुण्य जिन्हें करना था पाप कर रहे
जीवन का वरदान शाप कर रहे
साँस का भी अपनी पता नहीं जिन्हें
देखों राम का हिसाब कर रहे है
राम को न जाने ऐसा नर ना मिला
उन्ही राम जी को यहाँ घर न मिला।
राम सिया दूजी कोई युक्ति नहीं है
राम नाम सत्य बिना मुक्ति नहीं है
जागता प्रमाण है ये नाम का नहीं
राम का नहीं तो किसी काम का नहीं।
मैं भी इक सौंगंध राम की खाता हूँ – 7
Ram Bhagwan ki Kavita
राम मिलेंगे मर्यादा से जीने में
राम मिलेंगे बजरंगी के सीने में
राम मिले हैं वचनबद्ध वनवासों में
राम मिले हैं केवट के विश्वासों में
राम मिले अनुसुइया की मानवता को
राम मिले सीता जैसी पावनता को।
राम मिले ममता की माँ कौशल्या को
राम मिले हैं पत्थर बनी आहिल्या को
राम नहीं मिलते मंदिर के फेरों में
राम मिले शबरी के झूठे बेरों में।
मैं भी इक सौंगंध राम की खाता हूँ
मैं भी गंगाजल की कसम उठाता हूँ
मेरी भारत माँ मुझको वरदान है
मेरी पूजा है मेरा अरमान है
मेरा पूरा भारत धर्म-स्थान है
मेरा राम तो मेरा हिंदुस्तान है।
Hindi Poem Lord Ram Kavita – 8
सीता आग में न जली राम जल में जल गए
सारा जग है प्रेरणा
प्रभाव सिर्फ राम है
भाव सूचियाँ बहुत हैं
भाव सिर्फ राम हैं।
कामनाएं त्याग
पूण्य काम की तलाश में
राजपाठ त्याग
पूण्य काम की तलाश में
तीर्थ खुद भटक रहे थे
धाम की तलाश में
कि ना तो दाम
ना किसी ही नाम की तलाश में
राम वन गये थे
अपने राम की तलाश में
आप में ही आपका
आप से ही आपका
चुनाव सिर्फ राम हैं
भाव सूचिया बहुत हैं
भाव सिर्फ राम हैं।
ढाल में ढले समय की
शस्त्र में ढले सदा
सूर्य थे मगर वो सरल
दीप से जले सदा
ताप में तपे स्वयं ही
स्वर्ण से गले सदा
राम ऐसा पथ है
जिसपे राम ही चले सदा।
दुःख में भी अभाव का
अभाव सिर्फ राम हैं
भाव सूचिया बहुत है
भाव सिर्फ राम हैं।
ऋण थे जो मनुष्यता के
वो उतारते रहे
जन को तारते रहे
तो मन को मारते रहे
इक भरी सदी का दोष
खुद पर धारते रहे
जानकी तो जीत गई
राम तो हारते रहे।
सारे दुःख कहानियाँ है
दुःख की सब कहानियाँ हैं
घाव सिर्फ राम हैं
भाव सूचिया बहुत है
भाव सिर्फ राम है।
सब के अपने दुःख थे
सबके सारे दुःख छले गये
वो जो आस दे गये थे
वही सांस ले गये
कि रामराज की ही
आस में दिए जले गये
रामराज आ गया
तो राम ही चले गये।
हर घड़ी नया-नया
स्वभाव सिर्फ राम हैं
भाव सूचिया बहुत हैं
भाव सिर्फ राम है।
जग की सब पहेलियों का
देके कैसा हल गये
लोग के जो प्रश्न थे
वो शोक में बदल गये
सिद्ध कुछ हुए ना दोष
दोष सारे टल गये
सीता आग में ना जली
राम जल में जल गये।।
-अमन अक्षर
Bhagwan Shri Ram Ki Kavita Ka Video
राम मिलें निर्धन की आँसू-धारा में (Poem on Ram in Hindi) – 9
Hindi Poem on Ram
जिनके माथे पर मजहब का लेखा है
हमने उनको शहर जलाते देखा है
जब पूजा के घर में दंगा होता है
गीत-गजल छंदों का मौसम रोता है
मीर, निराला, दिनकर, मीरा रोते हैं
ग़ालिब, तुलसी, जिगर, कबीरा रोते हैं।
भारत माँ के दिल में छाले पड़ते हैं
लिखते-लिखते कागज काले पड़ते हैं
राम नहीं है नारा, बस विश्वाश है
भौतिकता की नहीं, दिलों की प्यास है
राम नहीं मोहताज किसी के झंडों का
सन्यासी, साधू, संतों या पंडों का।
राम नहीं मिलते ईंटों में गारा में
राम मिलें निर्धन की आँसू-धारा में
राम मिलें हैं वचन निभाती आयु को
राम मिले हैं घायल पड़े जटायु को
राम मिलेंगे अंगद वाले पाँव में
राम मिले हैं पंचवटी की छाँव में।
कहना है दिनमानों का – 10
ताकि भोली जनता इनको जान ले
धर्म के ठेकेदारों को पहचान ले
कहना है दिनमानों का
बड़े-बड़े इंसानों का
मजहब के फरमानों का
धर्मों के अरमानों का
स्वयं सवारों को खाती है ग़लत सवारी मजहब की
ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की।।
बाबर हमलावर था मन में गढ़ लेना
इतिहासों में लिखा है पढ़ लेना
जो तुलना करते हैं बाबर-राम की
उनकी बुद्धि है निश्चित किसी गुलाम की।।
राम हमारे गौरव के प्रतिमान हैं
राम हमारे भारत की पहचान हैं
राम हमारे घट-घट के भगवान हैं
राम हमारी पूजा हैं अरमान हैं
राम हमारे अंतरमन के प्राण हैं
मंदिर-मस्जिद पूजा के सामान हैं।।
राजा हो श्रीराम के जैसा (Lord Ram Poetry in Hindi) – 11
धर्म सत्य पर आधारित हों, ज्ञान हो निर्मल गंगा जैसा,
भूख प्यास की पीड़ा न हो, हर मानव हो मानव जैसा।
नवराते में शक्ति पूजें, हर तन बने बज्र के जैसा,
राज करे चाहे कोई भी, राजा हो श्रीराम के जैसा।
हर शबरी के द्वार चलें हम, जहां अहिल्या दीप जलाएं,
राम तत्व है सबके अंदर, आओ फिर से उसे जगाएं।
शुभ-अवसर है राम-जन्म का, आओ सब मिल शीश झुकाएं,
अंदर बैठे तम को मारें, आओ मिलजुल खुशी मनाएं।
होने को बहुतेरी नवमी, इस नवमी की छटा निराली,
नवराते जग शक्ति पूजे, शीतल, ज्वाला, गौरी, काली।
राम जन्म जिस नवमी होता, उस नवमी की महिमा अद्भुत,
सृष्टि भी होती मतवाली, दिन में होली रात दिवाली।
नंगे हुए सभी वोटों की मंडी में – 12
आग कहाँ लगती है ये किसको गम है
आँखों में कुर्सी हाथों में परचम है
मर्यादा आ गयी चिता के कंडों पर
कूंचे-कूंचे राम टंगे हैं झंडों पर
संत हुए नीलाम चुनावी हट्टी में
पीर-फ़कीर जले मजहब की भट्टी में।
कोई भेद नहीं साधू-पाखण्डी में
नंगे हुए सभी वोटों की मंडी में
अब निर्वाचन निर्भर है हथकंडों पर
है फतवों का भर इमामों-पंडों पर
जो सबको भा जाये अबीर नहीं मिलता
ऐसा कोई संत कबीर नहीं मिलता।
मेरे राम की चिंता (Poem on Ram in Hindi) – 13
राम मेरे आज दु:खियारे हुए
क्योंकि जनता के मन में अंधियारे हुए
भाई, भाई का दुश्मन बना बैठा है
असत्य का दानव सजा बैठा है।
वह त्रेता था जिसमें था लक्ष्मण-सा भाई
इस कलयुग में भाई भी दुश्मन बना बैठा है
लुटेरे, दुराचारी रखवाले बने बैठे हैं
जो कल तक थे जिलाबदर वे आज
न्याय देने वाले बने हैं।
मन-मंदिर में रावण की प्रतिमा सजी है
सीता वर्षों से रोती, शबरी प्यासी खड़ी है
इस कलयुग की ये काली गाथा सुनो
राम के नयन आंसुओं से भीगे हुए हैं
राम मेरे आज दु:खियारे हुए हैं।
ये चिंता है आज राम को सताती
नरगिस भी अपनी बेनूरी पर रोती
जैसे वो धीरे से है कह जाती
हे राम! तुम फिर इस धरा पे आओ
जनता को कष्टों से मुक्त कराओ।
POEM ON RAM IN HINDI – 14
Poems on Shri Ram
कथा है इक संन्यासी की।
सन्यासी अविनाशी की।
जो मर्यादा मन में पाले।
वस्त्र धारी वल्कल वाले।।
जनकनन्दिनी का संगी।
सेवक जिसका बजरंगी।।
हो पितृ वचन बद्ध प्रवासी।
भाई -भार्या सही इक वनवासी।।
जो वनवासी विजय नाम है।
वो राम है, वो राम है
वो राम है, वो राम है।
था व्यभिचारी, वामाचारी।
वो रावण बड़ा अहंकारी।।
कपटी स्वर्णिम मृग रचा।
मृगनयनी सीता को छला।।
लाकर उसको पंचवटी।
मन में हर्षाया कपटी।।
मिथ्यावादी फैलाकर जाल।
बुला बैठा लंका में काल।।
वो काल जिसे करे प्रणाम है।
वो राम है, वो राम है
वो राम है, वो राम है।
परीक्षा थी रघुनन्दन की।
सात जन्म के बंधन की।।
कमल नयन फूटी ज्वाला।
महापाप रावण ने कर डाला।।
लंका थर-थर कांप उठी।
काल निकट है भांप उठी।।
वीरता देख इक मानव की।
ढह गई नगरी दानव की।
दानव बोला अंत में
जो विजय पताका नाम है।
वो राम है, वो राम है।
वो राम है, वो राम है।
इंसा में बसा भगवान है
शत्रु को क्षमादान है
सर्वाधिक दयावान है
मर्यादा की पहचान है
नर नारी का सम्मान है
हिंदुत्व का अभिमान है
राज मुकुट की शान है
राम राज्य का प्रमाण है।
वो राम नहीं दुनिया वालों
वो राम तो हिन्दुस्तान है
वो राम तो हिन्दुस्तान है
पुरुषोत्तम श्री राम है।
वो राम है, वो राम है।
वो राम है, वो राम है।
प्रभु श्री राम पर कविता (Shri Ram Kavita in Hindi) – 15
धनुर्धर राम
सुभग सरासन सायक जोरे।।
खेलत राम फिरत मृगया बन, बसति सो मृदु मूरति मन मोरे।।
पीत बसन कटि, चारू चारि सर, चलत कोटि नट सो तृन तोरे।
स्यामल तनु स्रम-कन राजत ज्यौं, नव घन सुधा सरोवर खोरे।।
ललित कंठ, बर भुज, बिसाल उर, लेहि कंठ रेखैं चित चोरे।।
अवलोकत मुख देत परम सुख, लेत सरद-ससि की छबि छोरे।।
जटा मुकुट सिर सारस-नयनि, गौहैं तकत सुभोह सकोरे।।
सोभा अमित समाति न कानन, उमगि चली चहुँ दिसि मिति फोरे।।
चितवन चकित कुरंग कुरंगिनी, सब भए मगन मदन के भोरे।।
तुलसीदास प्रभु बान न मोचत, सहज सुभाय प्रेमबस थोरे।।
-तुलसीदास
निष्कर्ष
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