नमस्कार दोस्तों, यहां पर कुछ सर्वश्रेष्ठ दिवाली पर कवितायें (Poem on Diwali in Hindi) शेयर कर रहे हैं। उम्मीद करते हैं आपको यह पसंद आयेंगी।
दिवाली भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन को रौशनी का त्यौहार भी कहा जाता है। क्योंकि इस दिन भगवान श्री राम अपने 14 वर्ष के वनवास को पूर्ण कर अयोध्या लौट आये थे। इस ख़ुशी में अयोध्यावासियों पूरे अयोध्या नगरी को मिट्टी के दीयों से सज़ा दिया था और पूरी नगरी को प्रकाशमान कर दिया था।
दीपावली पर प्रेरणादायक कविता में कम शब्दों में अधिक वर्णन किया गया है। आपको यह हिंदी कविताएं कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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दिवाली पर कविता | Poem on Diwali in Hindi
साथी, घर-घर आज दिवाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
फैल गयी दीपों की माला
मंदिर-मंदिर में उजियाला,
किंतु हमारे घर का, देखो, दर काला, दीवारें काली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
हास उमंग हृदय में भर-भर
घूम रहा गृह-गृह पथ-पथ पर,
किंतु हमारे घर के अंदर डरा हुआ सूनापन खाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
आँख हमारी नभ-मंडल पर,
वही हमारा नीलम का घर,
दीप मालिका मना रही है रात हमारी तारोंवाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
– हरिवंशराय बच्चन
दिवाली पर कविता हिंदी में (diwali par kavita)
रात अमावस की तो क्या,
घर घर हुआ उजाला, सजे कोना कोना दिपशिखा से!
मन मुटाव मत रखना भाई, आयी दिवाली आयी !
झिलमिल झिलमिल बिजली की, रंगबी रंगी लड़िया
दिल से हटा दो फरेब की फुलझड़िया!
दिवाली पर्व हैं मिलन का, नजर पड़े जिस और देखो
भरे हैं खुशियों से चेहरे !
चौदह बरस बाद लौटे हैं, सिया लखन रघुराई
दिवाली का दिन हैं जैसे, घर में हो कोई शादी!
दिवाली पर कविता छोटी कविता (diwali par poem in hindi)
हैं रोशनी का यह त्यौहार,
लाये हर चेहरा पर मुस्कान
सुख और समृध्दि की बहार,
समेट लो सारी खुशियां
अपनों का प्यार और साथ,
इस पवन अवसर पर
आप सब को दिवाली की शुभकामनाएं!
आओ फिर से दिया जलाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
-अटल बिहारी वाजपेयी
दीपावली पर कविता हिंदी में (Short Poem On Diwali in Hindi)
आई रे आई जगमगाती रात है आई
दीपों से सजी टिमटिमाती बारात हैं आई
हर तरफ है हंसी ठिठोले
रंग-बिरंगे, जग-मग शोले
परिवार को बांधे हर त्यौहार
खुशियों की छाए जीवन में बहार
सबके लिए हैं मनचाहे उपहार
मीठे मीठे स्वादिष्ट पकवान
कराता सबका मिलन हर साल
दीपावली का पर्व सबसे महान
आई रे आई जगमगाती रात है आई
प्रदुषण मुक्त दिवाली पर कविता
हर घर दीप जग मगाए तो दिवाली आयी हैं,
लक्ष्मी माता जब घर पर आये तो दिवाली आयी हैं!
दो पल के ही शोर से क्या हमें ख़ुशी मिलेंगी,
दिल के दिए जो मिल जाये तो दिवाली आयी हैं!
घर की साफ सफ़ाई से घर चमकाएँ तो दिवाली आयी हैं,
पकवान – मिठाई सब मिल कर खाएं तो दिवाली आयी हैं!
फटाकों से रोशनी तो होंगी लेकिन धुँआ भी होंगा,
दिए नफ़रत के बुज जाएँ तो दिवाली आयी हैं!
इस दिवाली सबके लिए यही सन्देश हैं की
इस दिवाली हम लक्ष्मी का स्वागत दियों के करे,
फटाकों के शोर और धुएं से नहीं
इस बार दिवाली प्रदुषण मुक्त मनायेंगे!
दीप से दीप जले (दीप पर कविता)
सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें
कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें।
लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में
लक्ष्मी बँट-बँट बढ़ती आने-जाने में
लक्ष्मी का आगमन अँधेरी रातों में
लक्ष्मी श्रम के साथ घात-प्रतिघातों में
लक्ष्मी सर्जन हुआ
कमल के फूलों में
लक्ष्मी-पूजन सजे नवीन दुकूलों में।।
गिरि, वन, नद-सागर, भू-नर्तन तेरा नित्य विहार
सतत मानवी की अँगुलियों तेरा हो शृंगार
मानव की गति, मानव की धृति, मानव की कृति ढाल
सदा स्वेद-कण के मोती से चमके मेरा भाल
शकट चले जलयान चले
गतिमान गगन के गान
तू मिहनत से झर-झर पड़ती, गढ़ती नित्य विहान।।
उषा महावर तुझे लगाती, संध्या शोभा वारे
रानी रजनी पल-पल दीपक से आरती उतारे,
सिर बोकर, सिर ऊँचा कर-कर, सिर हथेलियों लेकर
गान और बलिदान किए मानव-अर्चना सँजोकर
भवन-भवन तेरा मंदिर है
स्वर है श्रम की वाणी
राज रही है कालरात्रि को उज्ज्वल कर कल्याणी।।
वह नवांत आ गए खेत से सूख गया है पानी
खेतों की बरसन कि गगन की बरसन किए पुरानी
सजा रहे हैं फुलझड़ियों से जादू करके खेल
आज हुआ श्रम-सीकर के घर हमसे उनसे मेल।
तू ही जगत की जय है,
तू है बुद्धिमयी वरदात्री
तू धात्री, तू भू-नव गात्री, सूझ-बूझ निर्मात्री।।
युग के दीप नए मानव, मानवी ढलें
सुलग-सुलग री जोत! दीप से दीप जलें।
-माखनलाल चतुर्वेदी
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दिवाली पर कविता
साथी घर-घर आज दिवाली,
फैल गई दीपों की माला,
मंदिर मंदिर में उजाला,
परंतु हमारे घर को देखो,
दर काला दीवारें काली,
हास उमंग हृदय में भर भर,
घूम रहा ग्रह ग्रह पथ पर,
किंतु हमारे घर के अंदर,
डरा हुआ सूनापन खाली,
आंख हमारी नभ मंडल पर,
वही हमारा नीलम का घर,
दीप मालिका मना रही है,
रात हमारी तारों वाली,
साथी घर-घर आज दिवाली।
दीपदान
जल, रे दीपक, जल तू
जिनके आगे अँधियारा है,
उनके लिए उजल तू।
जोता, बोया, लुना जिन्होंने
श्रम कर ओटा, धुना जिन्होंने
बत्ती बँटकर तुझे संजोया,
उनके तप का फल तू
जल, रे दीपक, जल तू।
अपना तिल-तिल पिरवाया है
तुझे स्नेह देकर पाया है
उच्च स्थान दिया है घर में
रह अविचल झलमल तू
जल, रे दीपक, जल तू।
चूल्हा छोड़ जलाया तुझको
क्या न दिया, जो पाया, तुझका
भूल न जाना कभी ओट का
वह पुनीत अँचल तू
जल, रे दीपक, जल तू।
कुछ न रहेगा, बात रहेगी
होगा प्रात, न रात रहेगी
सब जागें तब सोना सुख से
तात, न हो चंचल तू
जल, रे दीपक, जल तू!
-मैथिलीशरण गुप्त
दिवाली पर कविता
जलाई जो तुमने-
है ज्योति अंतस्तल में,
जीवन भर उसको
जलाए रखूँगा।
तन में तिमिर कोई
आये न फिर से,
ज्योतिगर्मय मन को
बनाए रखूँगा।
आंधी इसे उडाये नहीं
घर कोइ जलाए नहीं
सबसे सुरक्षित
छिपाए रखूँगा।
चाहे झंझावात हो,
या झमकती बरसात हो
छप्पर अटूट एक
छवाए रखूँगा।
दिल-दीया टूटे नहीं,
प्रेम घी घटे नहीं,
स्नेह सिक्त बत्ती
बनाए रखूँगा।
मैं पूजता नो उसको,
पूजे दुनिया जिसको,
पर, घर में इष्ट देवी बिठाए।
Poem on Diwali in Hindi
मनानी है ईश कृपा से इस बार दीपावली,
वहीं उन्हीं के साथ जिनके कारण
यह भव्य त्योहार आरम्भ हुआ
और वह भी उन्हीं के धाम अयोध्या जी में,
अपने घर तो हर व्यक्ति मना लेता है दीपावली
परन्तु इस बार यह विचित्र इच्छा मन में आई है
हाँ छोटी दीवाली तो अपने घर में ही होगी,
पर बड़ी रघुनन्दन राम सियावर राम जी के साथ।
कितना आनन्द आएगा जब जन्म भूमि में
रघुवर जी के साथ मैं छोड़ूँगा पटाखे और फुलझड़ियाँ
जब मैं उनकी आरती करूँगा
जब मैं दीए उनके घर में जलाऊंगा
उस आनन्द का कैसे वर्णन करूँ जो
इस जीवन को सफल बनाएगा।
मैं गर्व से कहूँगा कि हाँ मैने इस जीवन का
सच्चा आनन्द आज ही प्राप्त किया है
अपलक जब मैं रघुवर को जब उन्हीं के भवन में
निहारूँगी वह क्षण परमानन्द सुखदायी होंगें।
हे रघुनन्दऩ कृपया जल्द ही मुझे वह दिन दिखलाओ
इन अतृप्त आँखों को तृप्त कर दो
चलो इस बार की दीपावली मेरे साथ मनाओ
इच्छा जीने की इसके बाद समाप्त हो जाएगी
क्योंकि सबसे प्रबल इच्छा जो मेरी तब पूरी हो जाएगी।
Deepawali Poem in Hindi
दीपो से महके संसार
फुलझड़ियो की हो झलकार
रंग-बिरंगा है आकाश
दीपों की जगमग से आज
हँसते चेहरे हर कहीं
दिखते है प्यारे-प्यारे से
दीवाली के इस शुभ दिन पर
दीपक लगते है प्यारे से।
मुन्ना- मुन्नी गुड्डू-गुड्डी,
सबके मन में है हसी-ख़ुशी
बर्फी पेठे गुलाब जामुन पर
देखो सबकी नज़र गड़ी
बजते बम रोकेट अनार पटाखे।
दिखते है प्यारे-प्यारे से
दीवाली के इस शुभ-दिन पर
दीपक लगते है प्यारे से।
मन में ख़ुशी दमकती है
होठो से दुआ निकलती है
इस प्यारे से त्यौहार में
आखें ख़ुशी से झलकती है
आओ मिलकर अब हम बाटें
हँसी-ख़ुशी हर चेहरे में
दीवाली के इस शुभ-दिन पर
दीपक लगते है प्यारे से।
दीपावली (Poem on Diwali in Hindi)
आती है दीपावली, लेकर यह सन्देश।
दीप जलें जब प्यार के, सुख देता परिवेश।।
सुख देता परिवेश,प्रगति के पथ खुल जाते।
करते सभी विकास, सहज ही सब सुख आते।
‘ठकुरेला’ कविराय, सुमति ही सम्पति पाती।
जीवन हो आसान, एकता जब भी आती।।
दीप जलाकर आज तक, मिटा न तम का राज।
मानव ही दीपक बने, यही माँग है आज।।
यही माँग है आज,जगत में हो उजियारा।
मिटे आपसी भेद, बढ़ाएं भाईचारा।
‘ठकुरेला’ कविराय ,भले हो नृप या चाकर।
चलें सभी मिल साथ,प्रेम के दीप जलाकर।।
जब आशा की लौ जले, हो प्रयास की धूम।
आती ही है लक्ष्मी, द्वार तुम्हारा चूम।।
द्वार तुम्हारा चूम, वास घर में कर लेती।
करे विविध कल्याण, अपरमित धन दे देती।
‘ठकुरेला’ कविराय, पलट जाता है पासा।
कुछ भी नहीं अगम्य, बलबती हो जब आशा।।
दीवाली के पर्व की, बड़ी अनोखी बात।
जगमग जगमग हो रही, मित्र, अमा की रात।।
मित्र, अमा की रात, अनगिनत दीपक जलते।
हुआ प्रकाशित विश्व, स्वप्न आँखों में पलते।
‘ठकुरेला’ कविराय,बजी खुशियों की ताली।
ले सुख के भण्डार, आ गई फिर दीवाली।।
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
दिवाली पर कविता (diwali poem)
जब मन में हो मौज बहारों की
चमकाएं चमक सितारों की,
जब ख़ुशियों के शुभ घेरे हों
तन्हाई में भी मेले हों,
आनंद की आभा होती है
उस रोज़ ‘दिवाली’ होती है,
जब प्रेम के दीपक जलते हों
सपने जब सच में बदलते हों,
मन में हो मधुरता भावों की
जब लहके फ़सलें चावों की,
उत्साह की आभा होती है
उस रोज दिवाली होती है,
जब प्रेम से मीत बुलाते हों
दुश्मन भी गले लगाते हों,
जब कहीं किसी से वैर न हो
सब अपने हों, कोई ग़ैर न हो,
अपनत्व की आभा होती है
उस रोज़ दिवाली होती है,
जब तन-मन-जीवन सज जायें
सद्-भाव के बाजे बज जायें,
महकाए ख़ुशबू ख़ुशियों की
मुस्काएं चंदनिया सुधियों की,
तृप्ति की आभा होती है
उस रोज़ ‘दिवाली’ होती है।
दीप जलाओ कविता (दीप पर कविता)
दीप जलाओ दीप जलाओ
आज दिवाली रे
खुशी-खुशी सब हँसते आओ
आज दिवाली रे।
मैं तो लूँगा खील-खिलौने
तुम भी लेना भाई
नाचो गाओ खुशी मनाओ
आज दिवाली आई।
आज पटाखे खूब चलाओ
आज दिवाली रे
दीप जलाओ दीप जलाओ
आज दिवाली रे।
नए-नए मैं कपड़े पहनूँ
खाऊँ खूब मिठाई
हाथ जोड़कर पूजा कर लूँ
आज दिवाली आई।
Best Poem on Diwali in Hindi
मन से मन का दीप जलाओ
जगमग-जगमग दिवाली मनाओ।
धनियों के घर बंदनवार सजती
निर्धन के घर लक्ष्मी न ठहरती
मन से मन का दीप जलाओ
घृणा-द्वेष को मिल दूर भगाओ।।
घर-घर जगमग दीप जलते
नफरत के तम फिर भी न छंटते
जगमग-जगमग मनती दिवाली
गरीबों की दिखती है चौखट खाली।।
खूब धूम धड़काके पटाखे चटखते
आकाश में जा ऊपर राकेट फूटते
काहे की कैसी मन पाए दिवाली
अंटी हो जिसकी पैसे से खाली
गरीब की कैसे मनेगी दीवाली
खाने को जब हो कवल रोटी खाली
दीप अपनी बोली खुद लगाते
गरीबी से हमेशा दूर भाग जाते।।
अमीरों की दहलीज सजाते
फिर कैसे मना पाए गरीब दिवाली
दीपक भी जा बैठे हैं बहुमंजिलों पर
वहीं झिलमिलाती हैं रोशनियां।।
पटाखे पहचानने लगे हैं धनवानों को
वही फूटा करती आतिशबाजियां
यदि एक निर्धन का भर दे जो पेट
सबसे अच्छी मनती उसकी दिवाली।।
हजारों दीप जगमगा जाएंगे जग में
भूखे नंगों को यदि रोटी वस्त्र मिलेंगे
दुआओं से सारे जहां को महकाएंगे
आत्मा को नव आलोक से भर देगें।।
फुटपाथों पर पड़े रोज ही सड़ते हैं
सजाते जिंदगी की वलियां रोज है
कौन-सा दीप हो जाए गुम न पता
दिन होने पर सोच विवश हो जाते।।
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Hindi Poem on Deepawali
इस दिवाली मैं नहीं आ पाऊँगा,
तेरी मिठाई मैं नहीं खा पाऊँगा,
दिवाली है तुझे खुश दिखना होगा,
शुभ लाभ तुझे खुद लिखना होगा |
तू जानती है यह पूरे देश का त्योहार है
और यह भी मां कि तेरा बेटा पत्रकार है।
मैं जानता हूँ,
पड़ोसी के बच्चे पटाखे जलाते होंगे,
तोरन से अपना घर सजाते होंगे,
तु मुझे बेतहाशा याद करती होगी,
मेरे आने की फरियाद करती होगी।
मैं जहाँ रहूँ मेरे साथ तेरा प्यार है,
तू जानती है न माँ तेरा बेटा पत्रकार है।
भोली माँ मैं जानता हूँ,
तुझे मिठाईयों में फर्क नहीं आता है,
मोलभाव करने का तर्क नहीं आता है,
बाजार भी तुम्हें लेकर कौन जाता होगा,
पूजा में दरवाजा तकने कौन आता होगा।
तेरी सीख से हर घर मेरा परिवार है
तू समझती है न माँ तेरा बेटा पत्रकार है|
मैं समझता हूँ,
माँ बुआ दीदी के घर प्रसाद कौन छोड़ेगा,
अब कठोर नारियल घर में कौन तोड़ेगा,
तू गर्व कर माँ
कि लोगों की दिवाली अपनी अबकी होगी,
तेरे बेटे के कलम की दिवाली सबकी होगी।
लोगों की खुशी में खुशी मेरा व्यवहार है
तू जानती है न माँ तेरा बेटा पत्रकार है।
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हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह Diwali Kavita in Hindi पसंद आई होगी। इसे आगे शेयर जरूर करें। आपको यह Hindi Kavita कैसी लगी, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। आप दिवाली की शुभकामनाएं कविता के माध्यम से अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को जरूर भेजे। हमारे फेसबुक पेज को लाइक जरूर कर दें।
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