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नाटक के तत्व, उद्देश्य और अर्थ

नाटक को रूपक भी कहा जाता है, क्योंकि यह एक रूप होता है। किसी कहानी का रूप, किसी दृश्य का रूप या किसी व्यक्ति विशेष का जीवन रूप प्रदर्शित किया जाता है। किसी भी किस्से, कहानी, वाक्य या व्यक्ति का व्यक्तित्व अभिनय के जरिए प्रदर्शित करना नाटक कहलाता है। नाटक आधुनिक काल की ही एक विद्या है, जो काफी ज्यादा प्रचलित है।

नाटक का रंग रूप हमेशा अलग-अलग हो सकता है। नाटक अलग-अलग परिस्थितियों के अनुसार, अलग-अलग मौसम के अनुसार, अलग समय के अनुसार, अलग क्षेत्र के अनुसार प्रदर्शित किया जाता है। रंगमंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं।

natak ke tatva

वर्तमान समय में नाटक में अभिनय करना काफी आसान और अत्याधुनिक हो चुका है। इसलिए लोगों की रूचि नाटक में बढ़ने लगी है। किसी भी सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक मुद्दे पर अभिनय करके नाटक प्रस्तुत किया जाता है।

नाटक की रचना रंगमंच को ध्यान में रखकर की जाती है कि रंगमंच पर कितने किरदार होने वाले हैं?, कौन सा व्यक्ति किसका किरदार निभाने वाला है या अभिनय करने वाला है?, कौन सी कहानी है?, किस पर आधारित नाटक प्रस्तुत होने वाला है? इन सभी बातों को ध्यान में रखकर नाटक की रचना की जाती है, जिनमें नाटक के तत्व मुख्य भूमिका निभाते हैं। नाटक के तत्व कौन कौन से हैं?, इस आर्टिकल में हम आपको पूरी जानकारी विस्तार से बताएंगे।

नाटक के तत्व, उद्देश्य और अर्थ

नाटक के तत्व

नाटक के अनुसार दर्शक होना

नाटक के अनुसार दर्शकों का होना अत्यंत जरूरी है, क्योंकि रंगमंच पर आयोजित हो रहे नाटक में युद्ध का दृश्य प्रस्तुत किया जा रहा है। युद्ध के किरदार निभाए जा रहे हैं, लेकिन दर्शकों को युद्ध पसंद नहीं है। दर्शकों को हास्य पसंद है, मनोरंजन पसंद है।‌ उस तरह के नाटक पसंद है, तो उस नाटक में कोई मजा नहीं आएगा, वह नाटक असफल रहेगा।‌

दर्शकों की तरफ से कोई भी रिस्पांस नहीं आएगा। दर्शक ताली नहीं बजाएंगे और बीच में ही उठ उठ कर चले जाएंगे, जो नाटक को शोभा नहीं देता है। इसलिए नाटक प्रस्तुत करने से पहले उस तरह के दर्शकों का होना अत्यंत आवश्यक है।

पात्रों के अनुसार अनुकूलता होना

रंगमंच पर नाटक के दौरान अभीनय करने वाले लोगों के लिए पात्रों के अनुसार अनुकूलता होनी अत्यधिक आवश्यक है। जैसे उस पात्र से संबंधित वेशभूषा, उस पात्र की तरह देखने हेतु मुकुट, नकली मूछें, नकली आभूषण, इत्यादि होना।

बैकग्राउंड में उस तरह का चित्रण होना, समय-समय पर म्यूजिक सिस्टम द्वारा उस तरह की आवाजें उत्पन्न करना, सामने वाले किरदार को उस तरह से रिएक्ट करना इत्यादि अनुकूलता होना अत्यंत आवश्यक है। इन सभी अनुकूलता से ही एक सफल नाटक तैयार होता है।

अनुकूलित रंगमंच तैयार करना

रंगमंच पर जो भी नाटक फिल्माये जा रहा है, जिसे भी पत्र को दर्शाया जा रहा है, उस पत्र और कहानी के अनुसार रंगमंच को भी सजाना अत्यंत आवश्यक है। जैसे युद्ध चल रहा है तो युद्ध की तरह रंगमंच का बैकग्राउंड, वहां पर की गई सजावट, हथियार, घोड़े इत्यादि का चित्रण अति आवश्यक है।

इससे रंगमंच अनुकूलित लगता है। दर्शकों को ऐसा लगता है कि जैसे उनके सामने ही युद्ध हो रहा हो। जैसे उनके सामने ही वह घटना घटित हो रही हो।

कथावस्तु

कथावस्तु पूरे नाटक का सार होता है। इसे अभिनय करने से पहले तैयार किया जाता है। इसमें उन सभी लोगों को अभीनय दिया जाता है, जो नाटक करने वाले हैं। लोगों का मनोरंजन करने वाले हैं या पत्रों का किरदार निभाने वाले हैं।

कथावस्तु से ही कहानी का संकलन किया जाता है, कहानी की कल्पना की जाती है, कहानी को लेकर तैयार किया जाता है। उसके बाद पात्रों के अनुसार किरदार तैयार किए जाते हैं। इस तरह से कथावस्तु तैयार होती है। उसके बाद कथावस्तु के अनुसार ही पूरा नाटक रंगमंच पर आयोजित किया जाता है।

पात्र का चित्रण करना

बिना किसी पात्र के नाटक में अभिनय नहीं किया जा सकता है, क्योंकि नाटक में अभिनय करने वाला व्यक्ति जिस भी किरदार को निभाता है?, उसकी एक कहानी होती है। उसके आधार पर उस पत्र के चरित्र और गुण के आधार पर चित्रण किया जाता है।‌ अभिनय किया जाता है, जिससे लोग आकर्षित होते हैं और नाटक की शोभा बढ़ती है।

किसी भी पात्र का चित्रण करना अत्यंत आवश्यक है। अभिनय करने वाला व्यक्ति जिस भी पात्र का चरित्र चित्रण कर रहा है, वह उसे बखूबी निभाना होता है, जो पात्र जिस तरह से जीवन जिया था, जिस तरह से जीवन में कार्य कर रहा था, जिस तरह से बोलता था, जिस तरह से चलता था न, उसी तरह से उस पात्र का अभिनय करना होता है। किरदार निभाना होता है। चित्रण करना होता है। इससे नाटक का एक अभिनय तैयार होता है।

संवाद करना

नाटक में दो या दो से अधिक किरदारों द्वारा आपस में बोलना रंगमंच पर चित्रण करना संवाद कहलाता है। रंगमंच पर नाटक में आयोजित अभिनय द्वारा कहा गया वार्तालाप नाटक को विकसित करता है। किसी भी नाटक में कहानी के आधार पर दो या दो से अधिक पात्रों के बीच संवाद करवाए जाता है। इससे नाटक की दशा और दिशा निर्धारित होती है।

उदाहरण के तौर पर यदि कुछ लोगों के बीच युद्ध हो रहा है, इस तरह का चित्रण किया जा रहा है। नाटक किया जा रहा है तो उन्हें युद्ध करते हुए एक दूसरे से संवाद करना होता है, एक दूसरे से बहस करनी होती है, वह क्या बोलते हैं?, युद्ध करते रहते हैं तलवारे चलाते हैं? इस तरह का अभिनय नाटक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

अनुकूलित भाषा का उपयोग करना

रंगमंच पर चल रहे नाटक में कहानी और पात्रों के अनुसार अनुकूलित भाषा होनी अत्यंत जरूरी है। जिस तरह के किरदार निभाए जा रहे हैं, उस किरदार के अनुसार ही भाषा का संवाद करना, कहानी को नई दिशा प्रदान करता है, कहानी का रोमांच बढ़ा देता है।

जैसे युद्ध का दृश्य चल रहा है तो युद्ध में जिस तरह से भारी आवाज से और ललकारते हुए गुस्से में बात करते हैं, ठीक उसी तरह से और उस समय के अनुसार वाक्यों को बोलकर, उसे समय के अनुसार भाषा को बोलकर प्रदर्शन करना युद्ध का दृश्य प्रस्तुत करना अनुकूलित नाटक होता है।

पात्रों के अनुसार वेशभूषा होना

रंगमंच पर हो रहे नाटक में यदि किसी पात्र का अभिनय उसी की वेशभूषा में किया जाए, तो दर्शकों को काफी रोमांचक करता है, दर्शकों को काफी लुभाता है। इससे दर्शक आकर्षक होते हैं, क्योंकि उन्हें वही किरदार दिख रहा है, जो उन्होंने कहानियों में देखा था।

जैसे युद्ध में किसी युद्ध का किरदार निभाया जा रहा है तो उस तरह के वस्त्र होने चाहिए। युद्ध के वस्त्र होने चाहिए, मुकुट, तलवारें इत्यादि वेशभूषा हो तो युद्ध का माहौल लगता है। इस तरह की अंनुकुलित वेशभूषा नाटक के लिए अत्यंत जरूरी होती है।

नाटक का उद्देश्य

रंगमंच पर आयोजित होने वाले नाटक किसी पात्र, कहानी, किस्से, इतिहास या व्यक्तित्व पर आधारित होते हैं। इन सभी पर नाटक आयोजन करना मनुष्य जीवन को एक नई दिशा प्रदान करने का उद्देश्य होता है। इस उद्देश्य से ही रंगमंच पर तरह-तरह के नाटक आयोजित किए जाते हैं।

नाटक से लोगों को एक नई सीख मिलती है, नई शिक्षा मिलती हैं, एक उद्देश्य मिलता है, सामाजिकता, ऐतिहासिकता, तथा मानवता के तौर पर एक नई दिशा प्रदान होती हैं।

नाटक से लोगों को कुछ सीखने को मिलता है, समझने को मिलता है, जीवन में कुछ नया करने की राह मिलती है, मानवता के तौर पर कार्य करने का संकेत मिलता है इत्यादि उद्देश्य के लिए ही नाटक की रचना की जाती है।

निष्कर्ष

नाटक के तत्व की पूरी जानकारी आज के इस आर्टिकल में हमने आपको विस्तार से बताई है। हमें उम्मीद है कि हमारे द्वारा दी हुई यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित हुई होगी। यदि इससे जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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