Maharana Pratap Ki Mrityu Kab Hui: नमस्कार दोस्तों आज मैं आप सभी लोगों के सामने प्रस्तुत हुए हैं, भारत के महान राजा महाराणा प्रताप के विषय में कुछ रोचक जानकारियां लेकर। आप सभी लोगों को बता देना चाहते हैं, कि महाराणा प्रताप वैसे तो बहुत शांत स्वभाव के थे, परंतु जब बात दिन के राज्य पर आई तब इन्होंने बहुत से युद्ध लड़े और उन सभी में विजय भी हुए।
आज हम आप सभी लोगों को इस आर्टिकल के माध्यम से बताने वाले हैं कि महाराणा प्रताप की मृत्यु कब हुई थी और कैसे हुई थी? इस विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे द्वारा लिखे गए इसलिए को अंत तक जरूर पढ़ें, तो चलिए बिना देरी किए शुरू करते हैं।
महाराणा प्रताप की मृत्यु कब हुई? | Maharana Pratap Ki Mrityu Kab Hui
महाराणा प्रताप कौन थे?
महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में 9 मई सन 1540 ईस्वी में हुआ था। महाराणा प्रताप के पिता का नाम राणा उदय सिंह और उनकी माता का नाम जयवंता बाई था। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि महाराणा प्रताप का जन्म पाली जिले मे हुआ है। लोग इसका कारण बताते हैं कि महाराणा प्रताप का माइका पाली जिले में था।
महाराणा प्रताप बहुत ही पराक्रमी थे। महाराणा प्रताप किसी के भी सामने सिर नहीं झुका थे। महारा प्रताप के पास बहुत से घोड़े थे पर उसमें से एक घोड़ा उनको बहुत ही प्रिय था, जिसका नाम चेतक था। महाराणा प्रताप कहीं भी जाते थे, तो चेतक उनके साथ ही ज्यादा था।
चेतक कौन था?
महाराणा प्रताप का प्रिय तथा प्रसिद्ध ईरानी नीलवरर्ण घोड़ा था जिसका नाम चेतक था। महाराणा प्रताप ने चेतक को अश्व गुजरात के चारण नामक व्यापारी से 3 घोड़े लाया था। उन तीनों के नाम चेतक, अटक तथा त्राटक था। अटक महाराणा प्रताप के परीक्षण में काम आया, चेतक को उन्होंने स्वयं रख लिया तथा त्राटक को उन्होंने अपने छोटे भाई को दे दिया।
चेतक बहुत ही बुद्धिमान तथा वीर था। युद्धों में चेतक अपनी वीरता तथा बुद्धिमता का परिचय बहुत ही अच्छे प्रकार से देता था। हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप बहुत ही जख्मी थे। युद्ध के दौरान चेतक का पैर भी कट गया था। परंतु कठिन परिस्थिति में भी चेतक ने महाराणा प्रताप को 28 फीट का गहरा नाला लांग कर महाराणा प्रताप की जान बचाई तथा स्वयं वीरगति को प्राप्त हो गया।
चेतक पर श्याम नारायण पांडे जी ने एक कविता लिखी है, जिसमें चेतक के पराक्रम तथा बुद्धिमता का पूरा वर्णन है। चेतक की समाधि आज भी हल्दीघाटी के गांव में बनी हुई है, जहां पर स्वयं महाराणा प्रताप तथा उनके भाई शक्ति सिंह ने चेतक का दाह संस्कार किया है। चेतक ही एकमात्र ऐसा घोड़ा है जिस पर इतने सारे लोकगीत बने हुए हैं। चेतक पर बने हुए लोकगीत आज भी मेवाड़ में गाए जाते हैं।
महाराणा प्रताप को प्राप्त शिक्षा
महाराणा प्रताप बचपन से ही ढाल तलवार शिक्षा लेते थे। इनके पिता ने इनको तलवारबाजी में एकदम निपुण कर दिया था। उसके बाद इनके पिता राणा उदय सिंह ने बाकी की शिक्षा के लिए अपने कुलगुरू गुरु राघवेंद के पास भेज दिया।
गुरु राघवेंद्र ने महाराणा प्रताप को अस्त्र शास्त्र की शिक्षाएं दी। महाराणा प्रताप भाग एक कौशल योद्धा बन चुके थे। महाराणा प्रताप अस्त्र-शस्त्र को चलाने बहुत ही फुर्तीला थे। महाराणा प्रताप के केवल कवच तलवार के साथ साथ अस्त्र-शस्त्र का वजन 208 किलो था। उनके इस पर वीरता को देखकर अकबर भी इनके सामने आने से डरता था।
महाराणा प्रताप का वैवाहिक जीवन
महाराणा प्रताप का विवाह बचपन में ही हो गया था। इनकी पत्नी का नाम अजबदे पंवार था। महाराणा प्रताप ने कुल 11 शादियां की थी। उन्होंने ऐसा अकबर की नीति का अनुसरण करते हुए उन्होंने देखा कि अकबर अधिक से अधिक शादियां करके बच्चों को जन्म दिया था, जिससे कि वह भी अकबर का साथ देने लगते थे।
अकबर की इसी नीति का पालन करते हुए महाराणा प्रताप ने भी 11 शादियां की थी तथा महाराणा प्रताप के भी कुल 16 पुत्र थे। सबसे बड़े पुत्र का नाम अमर सिंह था। अमर सिंह अपने पिता की तरह ही साहसी तथा अत्यंत बलवान थे।
इन्होंने अपने पिता की मार्गो का अनुसरण करते हुए कभी भी अकबर के सामने सर नहीं झुकाया। ऐसा माना जाता है कि बाद में अमर सिंह अपने पिता से भी कई गुना शक्तिशाली बलवान राजा साबित हुए। परंतु प्रजा की भुखमरी तथा उनका बुरा हाल नहीं देखा जाता था जिससे अमर सिंह ने अकबर के सामने एक संधि की। जिसमें उन्होंने अकबर के सामने कुछ शर्ते रखें और इस संधि को पूरा किया ताकि उनकी पूजा भूख से ना मरे।
महाराणा प्रताप का राज्यभिषेक
महाराणा प्रताप के पिता की मृत्यु के बाद राणा उदय सिंह की छोटी रानी ने छल कपट से अपने पुत्र जगमाल को मेवाड़ का राजा घोषित कर दिया परंतु जनता ने इसका विरोध किया। परंतु महाराणा प्रताप अपने पिता के वचनों को याद रखते हुए शासन को त्याग दिया तथा वे जंगल चले गए।
जगमाल ने अकबर साथ मिल गया था। जगमाल ने मेवाड़ को अकबर के अधीन शिकार कर लिया था परंतु जब महाराणा प्रताप को इस बात का पता चला तो वे पुनः शासन को संभालने वापस आ गए और उन्होंने शासन को संभालने का निर्णय ले लिया।
महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक पहली बार गोगुंदा की पहाड़ी में 18 फरवरी सन 1572 ईस्वी में हुआ तथा इनका दूसरा राज तिलक कुंभलगढ़ के दुर्ग में 1 मार्च 1573 ईस्वी में हुआ।
महाराणा प्रताप के द्वारा लड़ा गया युद्ध
महाराणा प्रताप ने अपने राज्य तथा अपनी प्रजा को बचाने के लिए अनेक युद्ध जिनमें से कुछ युद्ध निम्नलिखित है
- चित्तौड़गढ़ का युद्ध
चित्तौड़गढ़ का युद्ध सन 1567 ईसवी में हुआ था। इस युद्ध में अकबर की जीत हुई थी।
- हल्दीघाटी का युद्ध
हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून सन 1576 ईसवी में हुआ था। यह युद्ध एक ऐतिहासिक युद्ध था। इस युद्ध से पूर्व अकबर ने महाराणा प्रताप सिंह चार बार समझौते की बात की थी, परंतु महाराणा प्रताप ने अधीनता को स्वीकार नहीं किया। इस युद्ध में महाराणा प्रताप का साथ आदिवासी जनजाति दे रही थी तथा उधर अकबर की सेना का नेतृत्व मानसिंह कर रहा था।
इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने अपने 16 साल से कम सैनिकों का बलिदान दे दिया तथा दूसरी तरफ अकबर ने भी अपने साथ हजार सैनिकों का बलिदान किया। अकबर ने सिर्फ गोगुंदा पहाड़ी के आसपास के इलाकों में ही कब्जा कर पाए, उधर दूसरी तरफ महाराणा प्रताप जंगल के मार्ग से सुरक्षित निकल गए थे।
महाराणा प्रताप की मृत्यु कब और कैसे हुई?
एक बार महाराणा प्रताप जंगल में शिकार करने के लिए निकले थे, तभी उनका सामना एक शेर से हो गया। शेर से लड़ते वक़्त शेर ने उनके सीने पर पंजा मार दिया जिससे महाराणा प्रताप को काफी क्षति पहुंची। यह घाव धीरे-धीरे बढ़ता गया, जिसके कारण महाराणा प्रताप का स्वास्थ्य प्रतिदिन बिगड़ता रहा। महाराणा प्रताप 19 जनवरी सन 1597 में वीरगति को प्राप्त हो गए हैं।
निष्कर्ष
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