बहुत समय पहले की बात है। एक नगर में एक राजा राज करता था। उसका एक पुत्र था, जिससे वह बहुत प्रेम करता था। वह राजकुमार की हर एक मनोकामना को पूरा करता था। वह किसी भी प्रकार की इच्छा जताते हैं तो वह उन के लिए हाजिर करने में हमेशा तत्पर रहते थे।
एक दिन राजकुमार को शिकार करने का शौक जगा और शिकार पर जाना चाहते थे, वह जंगलों में घूमना चाहते थे। तभी महाराज ने अपने एक सैनिक को बुलाकर कहा सैनिक (जो उनका सबसे वफादार सैनिक था) कि तुम राजकुमार को शिकार पर ले जाओ।
तुम्हें जंगलों के सारे रास्ते मालूम है और राजकुमार का ख्याल अच्छे से रख सकते हो, इसलिए मैं तुम्हें भेज रहा हूं। राजकुमार का ध्यान रखना और शाम होने से पहले वापस आ जाना इतना कहकर सैनिक और राजकुमार घुड़सवारी से जंगल की ओर निकल गए।
राजकुमार और सैनिक मध्य जंगल में शिकार के लिए निकल पड़े। वह शिकार करने के लिए इधर-उधर देख रहे थे तभी राजकुमार एक बारहसिंघा दिखा, राजकुमार ने बारहसिंघा को मारने के लिए घोड़े से उसका पीछा किया। लेकिन बासिंगा भागता रहा। राजकुमार ने घोड़े से उसका पीछा करते रहे।
सैनिक अंत्या ने सोचा कि राजकुमार बारहसिंघा का शिकार कर लेंगे, इसलिए वह अपने स्थान पर रुक कर देख रहे थे। लेकिन बारहसिंघा कई कोस दूर भागता रहा और राजकुमार भी उसके पीछे भागते रहे। कई कोस दूर जाने के बाद राजकुमार अपने साथियों से बिछड़ गए और वह रास्ता भूल गए। वह अपने प्रथम स्थान तक आने के लिए मार्ग से भटक गए।
राजकुमार जंगल में भटकते रहे, वह एक रास्ते से गुजर रहे थे तभी उन्होंने रोने की आवाज सुनाई दी। उन्होंने एक पेड़ के पास जाकर देखा तो वहां पर एक स्त्री रो रही थी। राजकुमार ने उस स्त्री से रोने का कारण पूछा।
स्त्री ने जवाब दिया कि मैं पास की राज्य की राजा की पुत्री हूं। मैं शिकार करने के लिए यहां पर आई थी। लेकिन मुझे यहां पर आकर अच्छा लगा और मैं घोड़े पर ही सोने लगी। तभी मैं घोड़े से गिर गई और मुझे चोट आ गई तथा मेरा घोड़ा भी भाग गया।
मैं नहीं जानती कि मेरा घोड़ा किधर गया, लेकिन मुझे अपने घर जाना है। राजकुमार को दया आ गई। राजकुमार ने उसको न रोने के लिए कहा, उसको अपने घोड़े पर बैठा कर उसके द्वारा बताए गए रास्ते से उसकी राजधानी की ओर निकल पड़े।
कुछ दूर तक चलने के बाद स्त्री ने पैदल चलने की इच्छा जताई। राजकुमार उसे घोड़े से उतारकर साथ पैदल चलने लगे। कुछ दूर जाने के पश्चात राजकुमार को शंका हुई, क्योंकि वह स्त्री बहुत मुस्कुरा रही थी और कुछ दूर जाकर उसने तेज आवाज निकाली। बच्चों आज मैं तुम्हारे लिए एक अच्छा स्वादिष्ट और मधुरता वाला भोजन ला रही हूं।
उधर से आवाज सुनकर जो बच्चों की थी, यह सुनकर राजकुमार को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह कुछ देर तक समझ ना सका, परंतु कुछ समय के पश्चात उसे समझ में आया कि वह स्त्री राजकुमारी नहीं बल्कि नरभक्षी है, जिसने उसे इस जाल में फंसा कर मार कर खाने का विचार बनाया है।
राजकुमार को समझ मे आ गया, वह फटाक से अपने घोड़े पर बैठा और वापस मुड़ गया। स्त्री बोली तुम कहां जा रहे हो, यह तो मजाक था। यह तुम सही कैसे मान सकते हो, मुझे ऐसे जंगल में कैसे छोड़ सकते हो। राजकुमार ने कहा मेरे साथी मेरा इंतजार कर रहे होंगे।
स्त्री ने जवाब दिया कि आप कुछ देर बैठ के आराम कीजिये, फिर तुम चले जाना। राजकुमार ने जवाब दिया कि मैं रास्ता भटक गया हूं, मेरे साथी मुझे ढूंढ रहे होंगे, मुझे जाना चाहिए।
राजकुमार इतना भयभीत और डर गया था कि उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। वह वापस अपने आमद पर सैनिकों की ओर बढ़े। इसलिए उसने भगवान का सहारा लिया और भगवान से प्रार्थना की हे भगवान मुझे राह दिखाएं, यदि मैंने तुम्हारी सच्ची पूजा व श्रद्धा से अर्चना की है तो मुझे इस विपत्ति से बचा लो और कुछ देर तक आंख बंद करके भगवान को याद किया।
आंख खुलते ही नरभक्षी जंगल से गायब हो गए थे तथा राजकुमार के सामने सड़क जैसे राह प्रदर्शित हुई, वह राजकुमार को अपने महल की ओर ले गई और राजकुमार महल पर अपने पिता को यह सारा किस्सा सुनाते हैं। राजकुमार अत्यधिक क्रोधित होकर आमद परेशानी तथा उनके साथ सैनिकों का वध करवा डालते हैं।
शहरजाद यह कहानी सुना कर कहती है कि या कहानी सत्य है। परंतु चिकित्सक दूबा झूठा है, जो यहां पर एक जासूस बनकर आया है और महाराज की जान लेने के लिए धीरे-धीरे षड्यंत्र रच रहा है। महाराज आपको यह प्रतीत नहीं होता, क्योंकि आप इस रोग से मुक्त हो गए हैं। परंतु याद रखिए यह औषधि धीरे-धीरे आपकी मृत्यु का कारण बनेगी। तब आपको मुझ पर विश्वास होगा और यह बात सत्य है।
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