काले द्वीपों के बादशाह की कहानी (अलिफ लैला की कहानी) | Kale dweepon ke badshah ki kahani alif laila ki kahani
कई वर्ष पहले की अनसुनी और अनसुलझी कहानी आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहे हैं। एक जवान युवा जिसने अपनी कहानी सुनाना आरंभ किया। उसने कहा मेरे पिता महबूब काले द्वीपों की यात्रा करने के लिए जाते थे। काले द्वीपों पर मेरे पिताजी का अधिकार था। मेरे पिताजी एक प्रख्यात व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध थे। मेरे गांव का नगर एक ऐसे तालाब के किनारे स्थिति था जहां पर रंगीन मछलियां रहते थे, जिसे रंगीन राजधानी के नाम से ही जाना जाता था।
मेरे पिता की मृत्यु 70 वर्ष की आयु में हो गई थी। उसके बाद मैंने राज्य का कार्यभार संभाला। जैसे मेरे पिताजी अपने राज्य के प्रति आत्मा समर्पित रहते थे वैसे ही मैं खुद को इस राज्य के प्रति आत्मसमर्पण तथा निष्ठा से कार्य करने पर राज्य को चलाने का संकल्प लिया था। मैंने अपने पिता के भाई अर्थात अपने चाचा की पुत्री जिसे मैं पसंद करता था। उससे मैंने विवाह किया और अपने राज्य को एक नई दिशा की ओर लेकर चला।
कुछ समय व्यतीत होने के पश्चात राजा को आभास हुआ कि रानी हमसे प्रेम नहीं करती। अर्थात उनका प्रेम राजा के प्रति कम हो गया है। यह जानकर राजा बहुत चिंतित होने लगे। एक दिन की बात है। रानी भोजन के उपरांत स्नान करने के लिए गई तभी राजा आराम करने के लिए अपने शयनकक्ष में गए और लेट गए।
रानी की दासियाँ राजा को पंखा करने लगी। राजा को नींद आ गई और राजा हल्की नींद में सोने लगे। तभी रानी की दासियाँ को लगा कि राजा सो गए और वह आपस में बातचीत करने लगी। तभी राजा की नींद खुली। परंतु वे आंखें बंद किए हुए थे और सोने का बहाना कर रहे थे।
दासी बोली की कितने सुशील और सुंदर और मीठे स्वभाव वाले पति को रानी कैसे धोखा देती है। दूसरी रानी बोली रानी बहुत दुष्ट हैं ऐसा नहीं करना चाहिए। फिर से पहली रानी बोली पता नहीं रानी रोज रात को कहां चली जाती हैं? दूसरी रानी बोली हां मैंने भी देखा सोने के पहले महाराज की शरबत में कुछ मिला देती हैं, जिससे उनको नींद आ जाती है।
यह सारी बातें राजा सुन रहे थे लेकिन वह सोने का बहाना करते हुए ऐसा माना कि वह सो रहे थे। कुछ समय के बाद रानी स्नान करके वापस आती। कुछ समय के पश्चात जब वह स्नान करके रानी वापस आए, तो मैं उठा। ऐसा लग रहा था की मैं सच में सो रहा हूं और मैंने दसियों को जाने के लिए कहा। रानी आकर मेरे बाजु में बैठ गई और मेरा सिर दबाने लगी।
उसके पश्चात उसी रात भोजन के उपरांत जब रानी मेरे लिए शरबत लेकर आई तो, मैंने उसकी आंखों से बचकर उस शरबत को खिड़की के उस पार फेंक दिया और उसका प्याला रानी को दे दिया रानी लेकर चली गई और रात में जब सब सो गए तो रानी उठ कर मेरे चेहरे पर एक मंत्र पढ़कर चली गई।
कुछ समय पश्चात महारानी बहुत ही भयंकर कपड़े पहन के निकले तथा उधर से महाराज अर्थात मैं भी जग गया था और महाराजने अलमारी से अपनी तलवार निकाली और रानी के पीछे चल दिए। चलते चलते रानी एक जंगल में पहुंचे, जिनके रास्ते में कई दरवाजे आएं, जिनमें ताले लगे हुए थे लेकिन रानी के आते ही वे ताले अपने आप खुल जाते हैं और रानी आगे बढ़ जाती है।
महाराज और रानी के बीच बहुत कम फासला था परंतु महाराज धीरे-धीरे और चुपचाप रानी का पीछा करते रहें और उनके पीछे पीछे चलते चलते छुपकर उनको देखते रहे।महाराज ने देखा की रानी एक बगीचे से होकर एक छोटे और घने बगीचे में पहुंची, जहां पर एक व्यक्ति महारानी का इंतजार कर रहा था। रानी जाते ही उसके गले लिपट गई और जोर-जोर से एक दूसरे से बात करने लगी।
उस व्यक्ति ने रानी से कहा तुमने इतनी देर क्यों लगा दी? रानी ने जवाब दिया की मेरा शरीर भले ही वहां हो परंतु मेरा तन मन और हृदय सब तुम्हारा है और यहीं पर रहता है। रानी ने कहा तुम जानते हो मेरी शक्तियों को। मैं कितनी शक्तिशाली हूं मैं ।चाहूं तो कुछ ही क्षणों में इस पूरे नगर को, इस पूरे राज्य, इस पूरे महल को एक वीरान तथा खंडार बना सकती हूं। यहां सिर्फ पक्षियों के अलावा जंगली जानवर भी घूमेंगे। यहां पर तुम्हें कोई मनुष्य नहीं दिखाई देगा।
यहां पर झाड़ियों के अलावा तुम्हे ओर कुछ नही दिखाई देगा लेकिन तुम्हे मेरी परवाह ही नही है कि मैं तूमसे कितना प्रेम करती हूं। रानी तथा प्रेमी दोनों टहलते हुए झाड़ी के पास आएं जहां पर मैं छिपकर दोनों को देख रहा था जैसे ही रानी और वह प्रेमी झाड़ी के पास आये मैंने अपनी तेज धार तलवार से प्रेमी के ऊपर वार किया जिससे वह गिर गया लेकिन उसकी सांसे अभी चल रही थी मुझे लगा कि वह मर गया और मैं डर कर वहां से निकल गया लेकिन रानी वहां पर रो रही थी।
रानी को राजा ने कुछ नहीं किया था कि वह उस से अत्यधिक प्रेम करता था और उसे दुख नहीं पहुंचाना चाहता था लेकिन वह उस पर बहुत क्रोधित हुआ और वह वहां से वापस अपने महल में शयनकक्ष में आकर लेट गया। प्रातकाल जब राज ने रानी को अपने कक्ष में सोता हुआ पाया वह समझ गया। वह तुरंत खड़ा हुआ और अपने राज्य दरबार में जाने के लिए तैयारी करने लगा।
अपना राज वस्त्र पहन कर राज दरबार में गया और सारा दिन का कार्य निपटाने के उपरांत जब वह वापस आया तो, उसने देखा कि महारानी काले वस्त्र पहनकर संताप कर रही थी। बाल बिखरे हुए थे। आंखों पर काजल माथे पे बड़ी सी बिंदी लगी हुई थी। ऐसा लग रहा था कि वह कोई काला जादू जैसा कुछ कर रहे हैं मैंने पूछा की रानी या कैसा व्यवहार कर रही हो तुम तो रानी ने जवाब दिया कि आज मुझे तीन बुरे संदेश मिले हैं। इसलिए मैं तीन शोक संदेशों का मातम मना रही हूं।
मेरे वे तीन शोक संदेश पूछने पर उसने जवाब दिया कि मेरी माता का देहांत हो गया है और मेरे पिताजी का युद्ध में वध हो गया है और मेरा भाई ऊंचाई से गिरकर उसकी मृत्यु हो गई। मैंने जवाब दिया कि संदेश तो दुखद है। परंतु इस तरह शोक मनाने से वह वापस तो नहीं आ जाएंगे लेकिन कारण भी है शोक मनाना अति आवश्यक है।
कुछ समय के उपरांत रानी अपने शयनकक्ष में चली गई लेकिन वह बहुत रोती पिटती व्याकुल होती थी। राजा ने उसे मनाने की चेष्टा नहीं की अर्थात मैंने उसे मनाने की चेष्टा नहीं की क्योंकि मैं जानता था उसके इस रोने का कारण इसलिए मैंने उस विषय पर ध्यान नहीं दिया। उसने मुझसे लेकिन कहा कि यह शौक मुझसे बर्दाश्त नहीं होता। मैं एक मकबरा बनवाना चाहती हूं और उस में रहकर अपने शौक को कम करना चाहती हूं।
मैंने इसकी भी अनुमति दे दी और उसने एक मकबरे को बनवा लिया और उसने प्रेमी को लाकर वहां पर रख लिया और वहां पर खुद रहने लगी और उसकी सेवा करने लगी उसका प्रेम इतना घायल हो गया था कि बात नही कर सकता और न ही चल पाता था न किसी प्रकार से कोई आवाज निकाल पाता। सिर्फ वह रात और दिन पुरानी को देखता रहता। यह सब मैं देख रहा था और समझ भी रहा था लेकिन मैं चुप था।
दिन प्रतिदिन ऐसा ही चलता रहा। काफी समय बीतने के बाद मुझे कुछ अजीब सा लगा। इसलिए मैंने उन दोनों की बातें तथा उसमें मकबरे में क्या होता है? यह जानना चाहा और एक दिन मैं उस मकबरे में जाकर छुप गया जहां पर रानी और वह प्रेमी मुझे देख सके बल्कि मैं उन्हें देख भी सकूं और उनकी सारी बातें भी सुन सकूं।
जब रानी वहां आई तो वापस प्रेमी के पास बैठ कर कहने लगी है। मेरे प्राण धीर मैं तुम्हें देखती रहती हूं तुमसे घंटों बातें किया करती हूं लेकिन तुम भी प्रश्न का उत्तर मुझे नहीं देते हो। ऐसा क्यों यह कैसे हो गया? यह दुर्भाग्यवश क्या मेरी वजह से हुआ है। यदि ऐसा हुआ है तो मुझे क्षमा करें। लेकिन मुझसे बातें अवश्य करें। आप एक बार भी मुझसे बोलेंगे, तो मेरे दिल को ठंडक पहुंचेगी।
मैं तुम्हारे इस शरीर तथा अपने प्रेम के प्रति जितना गहरा शोक नहीं रह सकती। जितना तुम्हें दुख नहीं होता उतना मुझे दुख होता है। तुम्हारी यह दशा देखकर मेरे अंदर का एक-एक अंग दर्द तथा विलाप से रो उठता है। रानी की याद दशा मुझसे देखी नहीं गई। मैं उसी दिन वापस महल में आकर अपने कार्यों में व्यस्त हुआ जब रानी वापस आई तो मैंने रानी से कहा कि अब यह शोक छोड़कर तुम सामान्य रानी जीवन व्यतीत करो।
लेकिन वह मुझसे कहने लगी नहीं महाराज मुझे ऐसा करने के लिए न कहे कृपया मुझे शोक करने दें। जिससे मुझसे शांति मिलती है। मैं जितना उससे समझाता और इसको करने के लिए मना करता हूं ,उतना ही वह मुझसे व्याकुल होती रहती थी। इसलिए मैं चुप रहता और मैंने उसको उसके हाल पर छोड़ दी।
2 वर्ष व्यतीत हो चुके थे। मैं रानी तथा उसके प्रेमी का हाल-चाल जानने के लिए फिर से उसी कक्ष में गया लेकिन मैं वहां पर छुप कर बैठ गया और जैसे ही रानी आई वह अपने प्रेमी के पास बैठकर कहने लगी है, प्राण धीर तुम मुझसे बात नहीं करते हो 2 वर्ष पूरे हो गए हैं। क्या तुम मेरे प्रेम को नहीं समझते हो। यदि ऐसा है तो क्या तुम कभी मुझसे बात नहीं करोगे?
अब तुम मुझे देख कर अपनी आंखें भी बंद कर लेते हो। ऐसा लगता है कि तुम मुझसे प्रेम नहीं करते हो लेकिन मैं तो तुम्हारे प्रेम के लिए ही जी रही हूं। मैं अपना सब कुछ तुम्हें देने के लिए तैयार हूं। तुम एक बार मुझसे बात करो। एक बार अपनी आंखें खोल कर मेरी तरफ देखो। मुझसे बातें करो मेरा हृदय धन्य हो जाएगा। यदि तुमने ऐसा किया।
मैं सुन रहा था। मुझसे रहा न गया। मैं इस स्त्री तथा इस राक्षस जैसे हब्शी को मृत्युदंड प्रदान करना चाहा। यह सुनकर मेरी रानी क्रोधित होकर कहने लगी है मेरे दुख का कारण है तू ही है। ऐसे कुकर्म किया है जैसे कि मैं वर्षों से सूखा जीवन व्यतीत कर रही हूँ। मैंने कहा हां मैं इस कुकर्मी को मारा है। इसका कारण मैं ही हूं। ऐसे राक्षसों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए और तुम्हें भी मृत्यु दंड देना चाहिए। तुमने मेरी बहुत बदनामी करवाई है। मेरी सारी इज्जत एक राजा की इज्जत को मिट्टी में मिला कर रख दिया।
मैंने अपनी तलवार निकाली। मुझे मारने के लिए उसने काला जादू किया और ऐसा मंत्र बढ़ा कि मैं तलवार उठाने में निस्मर्थ हो गया और कुछ मंत्र पढ़ा कि तू कमर के नीचे से पत्थर का हो जाए और उसने मन्त्र पढ़ा वैसा ही हुआ और उसके उपरांत मैंने जीवित रहा और उसने मुझे उठवा कर मुझे ऐसे स्थान पर रखवा दिया, जहां पर मुझे सब कुछ दिखता था। उसने मेरे राज्य को मेरे नगर को एक तालाब में बदल दिया और वहां के लोगों को मछलियों में और उसने राज्य के किसी भी व्यक्ति कोई व्यक्ति के रूप में नहीं रखा।
मेरे चारों कीलो को जिनका मै मालिक था, उन चारों कि लोग उसने पत्थर का बना कर उस तालाब के चारों तरफ स्थापित कर दिया। और वह रोज आती और मुझे कोड़ो से मारती जिससे मुझे खून भी निकल आता। उसके बाद वह मुझे एक औषधि मेरे जख्मों पर लगाती है, जिससे कि मुझे अत्यधिक दर्द हो और मैं परेशान हूं ऐसा कई दिनों तक चलता रहा।
शहजाद कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि राजा ने अपने दोनों हाथ उठाकर कहा हे भगवान हे परमात्मा ईश्वर यदि तेरी इच्छा यही है कि मैं इसी प्रकार अन्याय तथा दर्द चाहता रहूं, तो ठीक है। मुझे पूर्ण आशा और उम्मीद है कि एक न एक दिन तु न्याय अवश्य करेगा। मुझे इस कष्ट से अवश्य बहार निकालेगा।
वहां पर उसने जवान बादशाह को देखा और उसका वृत्तांत सुनकर बहुत दुख हुआ उसने पूछा कि तुम्हारी दुष्ट रानी कहां रहती है? उसका प्रेमी कहां रहता है? उसने बताया कि मैंने बताया कि वह सोका घर में रहती है। उसने पूछा उसका रास्ता कहां से है? महाराज व जवान बादशाह ने बताया कि उसका रास्ता इसी कमरे से होकर एक रास्ता जाता है जिसको आगे प्रेमी को दवा देती है। मुझे रोज मारने के उपरांत व प्रेमी को दवा देती है तथा उसे बैठ कर बातें किया करती है।
कल फिर ऐसा ही होगा आप कल उसका रास्ता देख सकते हैं ऐसा कहकर बादशाह चुप हो गया। इसके बाद वे आगमन तक राजा से कहा इतनी चिंता मत करो। तुम्हारे दुख का निवारण मैं करूंगा। वाकई में तुम बहुत दयावान हो। तुम्हारे जैसे राजा बहुत कम देखने को मिलता है। परंतु तुम्हारे साथ जो घटना घटी है मैं उसका निवारण अवश्य करूंगा।
यह कहकर राजा वही पर सो गया और उसके बाद जब रानी वहां पर आई और वह अपने प्रेमी हप्सी के पास बैठकर कहने लगी हे, प्राणनाथ हे प्राण धीर तुम कुछ बोलते क्यों नहीं? उठो मुझसे बातें करो। मैं उस तुझे पापी को कठोर से कठोर सजा देना चाहती हूं लेकिन तुम हो कि कुछ बोलते ही नहीं। यह सब राजा जो आधा पत्थर तथा आधा इंसान का था, वह सुन रहा था।
रानी बोली है प्राण धीर तुम मुझसे लगता है। प्रेम नहीं करते। मैंने तुम्हारे लिए अपने पति को कितना कष्ट दिया है। कितना दंड दिया है। लेकिन तुम हो कि कुछ बोलते ही नहीं है। मैं तुम्हारी एक शब्द सुनने को बेचैन हूं। तुम्हें उठ कर चलने को देख कर मेरा जी तरस रहा है। मेरा चैन हराम है। खाना पीना ठीक से नहीं खाती हूं। सिर्फ रात दिन तुम जल्दी से ठीक हो जाओ। मैं ईश्वर से यही कामना करती हूं कि मेरे प्राण ले ले लेकिन तुम्हारे प्राणों कुछ स्वस्थ कर दें।
उधर से बादशाह तेज आवाज में बोला लाहौल बला कुव्वत इला बिल्ला वहेल वि अली वल अजीम ( परमात्मा से बड़ा कोई नहीं है ईश्वर जो चाहेगा वही होगा वह जिसे दंड देना चाहेगा उसे दंड मिलेगा जिसे स्वस्थ और समृद्धि बनाना चाहेगा उसे स्वस्थ और समृद्धि बनाएगा। ईश्वर के इस सारे व संकेत के बिना इस संसार में कुछ भी नहीं होता)
बादशाह जो छिपा हुआ बैठा था, उसने हब्सी के स्वर में कहा हे महारानी तू इस काबिल नहीं है कि मुझसे बात करें। मैं तुझे इस योग्य नहीं समझता हूं कि मैं तुमसे बात करूं रानी ने कहा ऐसा क्यों कह रहे हो? प्राण फिर मुझसे क्या अपराध हुआ है? क्या गलती हुई है? बादशाह ने कहा कि मेरी नींद हराम है। तुम तुम्हारा पति सारा दिन चिल्लाया करता है जिससे कि मैं सो नहीं पाता हूं।
तुम उसे इतना मारती हो कि वह रात दिन कहारा करता है, जिससे मेरी नींद टूट जाती है। इसलिए मुझे बोलना अच्छा नहीं लगता। इसलिए मैं तुमसे बात नहीं करता। यह सुनकर रानी अत्यधिक दुखी हुई लेकिन उसे संदेह था उसने कहा कि प्राण धीर क्या तुम बोल रहे हो? क्या तुम ही हो जो यह बोल रहे हो? उसके हाथ की पत्ती के रूप में बने बादशाह ने कहा हां मैं तुम्हारा ही हब्सी प्रेमी हूं। मैं ही बोल रहा हूं यदि मेरी नींद पूरा हो जाएगी तो मैं तुमसे बहुत बात करूंगा।
रानी वहां से एक कक्ष में आई और एक प्याले में गर्म पानी लिया। उसमें कुछ मंत्र मारा और पानी तेजी से उबलने लगा उसके बाद वह प्याला लेकर उस कक्ष में गई, जहां पर उसका पति बंदी के रूप में पुतले मैं बेजान तथा जीवित खड़ा था। उसने कुछ मंत्र पढ़ा और उस पानी को उसके पत्थर वाले शरीर पर मार कर बोली है परमेश्वर यदि तू इसी रूप में है और तेरा वास्तविक जो रूप है।
उस पर मेरा कोई जादू यह कोई मंत्र कार्य न करें। तो तू वास्तविक रूप में आ जाए। इतना कहते ही वह वास्तविक अपने रूप में आ गया। रानी ने कहा कि तुझे अपनी जान प्यारी है, तो तू यहां से निकल जा और यहां पर दोबारा कभी दिखा तो तेरी जान ले लूंगी। बादशाह वहां से निकल कर एक कक्ष में जाकर छुप गया बस देखना चाहता था कि आगे क्या होगा?
रानी अपने प्रेमी हप्सी के कक्ष में आती है। उसे कहती है कि अब मैंने उसको ठीक कर दिया। अब तुम उठो मुझसे बातें करो। बादसाह हब्सी के स्वर में कहता है कि अभी मैं कुछ ठीक हूं। परंतु पूरा आराम नहीं मिला है क्योंकि तुमने पूरे नगर को उजाड़ा है। पूरे नगर को तहस-नहस किया है। यहां के आदमियों को तुमने मछली के रूप में जो तालाब में बनाकर डाला है। वह रात में हम दोनों को बहुत बुरा भला कहते हैं, जिससे कि मैं निरोग से मुक्त नहीं हो पाता हूं। तुम्हें वह भी ठीक करना होगा।
रानी इस बात से भी राजी हो गई। वह तुरंत तालाब के किनारे थोड़ा सा जल लेकर गई और इस मंत्र को पढ़कर जल को उसी तालाब में डाल दिया। मछलियां मनुष्य और स्त्रियों के रूप में वास्तविक रूप में आ गए और वह एक नगर में जहां सड़कें, दुकाने तथा महल था वैसा ही वापस हो गया।
यह करके रानी तुरंत अपने हब्सी के कक्ष में गए और खुशी से झूमते हुए गए की प्राण धीर तुम उठो और मुझसे बातें करो। मैंने सब कुछ वैसा कर दिया जैसा तुम चाहते थे। हब्सी के स्वर में बादशाह ने कहा है रानी तो मेरे पास आओ और बैठो। वह आकर बैठ गए उसने कहा और थोड़ा पास आओ। थोड़ा पास गई उससे और थोड़ा पास आने के लिए कहा।
रानी और थोड़ा पास गई। जैसे ही रानी उसके और समीप गई वैसे ही उन तक बादशाह ने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया और अपनी तेज तलवार से इतने तेज वार किया कि उसके टुकड़े टुकड़े हो गए और उसे और उसके प्रेमी को एक कुएं में डाल दिया और उस कुएं को ऊपर से मिट्टी से ढक दिया।
उधर बादशाह भी उस आगंतुक बादशाह का इंतजार कर रहा था। जैसे ही आगुन्तक बादशाह आता है, वह राजा उसका सविनय धन्यवाद करते हैं और उसे अपने महल में जाने के लिए आमंत्रित करते हैं। लेकिन बादशाह कहता है कि पहले तुम मेरे महल में चलो कुछ दिन आराम करो, भोजन करो उसके बाद, तो अपने काले द्वीपों में चले जाना।
वह उसके महल में जाने के लिए तैयार हो गया वहां पर भोजन और आराम करने के उपरांत जब वह अपने महल के लिए प्रस्थान करने की सोची, तो आगुन्तक बादशाह ने कहा कि, तुम्हारा महल यहां तो 1 वर्ष की दूरी पर है। तुम वहां कैसे जाओगे?
उस जादूगरनी ने तुम्हारे महल को इतनी दूर स्थित कर दिया तो, आपने काले जादू से बहुत कुछ कर सकती थी। अच्छा हुआ उसकी मृत्यु हो गई लेकिन सौभाग्य हो इसका की बात तुम्हारे राज्य को हमारे राज्य के निकटतम स्थित किया जिससे कि मैं इस समस्या का हल समझ सका।
यह मेरा सौभाग्य है कि मैं तुम्हें बचा सका। बादशाह ने कहा मैं आपका ऋण कभी नहीं भूलूंगा। यह उपकार जो आपने मुझ पर किया है, मैं इसका उपकार कभी नहीं भूलूंगा यह मुझ पर हमेशा रहेगा। मैं आपकी सेवा व सहायता में सदा तत्पर रहूंगा।
जब बादशाह अपने अपने राज्य पहुंचे तो, वहां पर अपने सैनिकों तथा दरबारियों को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए तथा वहां पर दरबारी और सैनिक भी राजा को देखकर प्रसन्न हुए और ईश्वर तथा आगुन्तक महाराज को धन्यवाद दिया। राजा पूरे नगर का हाल जानने के लिए पूरे राज्य में भ्रमण कि कुछ दिनों के बाद युवराज तथा राजा दोनों मिलकर राज्य को चलाने लगे।
युवराज को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया गया तथा सारा कार्यभार युवराज को सौंप दिया गया। युवराज तथा महाराज उस तालाब पर रहने वाले मछुआरे को बुलाकर ढेर सारा धन दिया क्योंकि उसी मछुआरे की वजह से यह सब हुआ, जिससे महाराज की जान भी बची और पूरे राज्य को हंसी खुशी से चलाने लगे तथा राज्य फिर से हरा-भरा और हंसमुख हो गया।
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