Jijabai History in Hindi: मराठा साम्राज्य के स्थापना में महान शिवाजी की महत्वपूर्ण भूमिका है। मराठा साम्राज्य के यह महान शासक हुए। लेकिन शिवाजी के महान व्यक्तित्व को बनाने के पीछे इनकी माता जीजाबाई की बहुत बड़ी भूमिका रही थी।
जीजाबाई के शब्दों में इतनी शक्ति थी कि उनके द्वारा कहे गए कथन कि “तुम मुझे अपना बेटा कहना छोड़ दे, घर में चूड़ियां पहन कर बैठ अब मैं फौज का नेतृत्व करूंगी और सिहागढ़ के दुर्ग पर आक्रमण कर विदेशी झंडे को उतार कर अपना झंडा फहराउंगी’। इस शब्द में इतनी शक्ति थी कि शिवाजी ने इसे सुनते ही अपनी सेनाओं को आदेश दिया कि वह फौज को तैयार करें, जल्द से जल्द सिहागढ़ पर आक्रमण करना है और किसी भी कीमत पर जीत प्राप्त करना है।
जीजाबाई के इन शब्दों ने एक साधारण से बालक को महान छत्रपति शिवाजी बना दिया, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों से लिख दिया गया है। जब जीजा बाई के कथनों में इतनी शक्ति थी तो उनका जीवन कितना प्रभावशाली रहा होगा।
जीजाबाई एक महान व्यक्तित्व थी और आज के इस लेख में हम इसी महान जीजाबाई के इतिहास के बारे में जानने वाले हैं। यदि आप जीजा बाई के जीवन (Jijabai Biography in Hindi) से संबंधित रोचक तथ्य के बारे में जानना चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
जीजाबाई का इतिहास और जीवन परिचय | Jijabai History in Hindi
जीजाबाई का जीवन परिचय एक नज़र में (Biography of Jijabai in Hindi)
नाम | जीजा बाई |
अन्य नाम | जिजाऊ |
जन्म और जन्मस्थान | 12 जनवरी 1598, बुलढाणा गांव (महाराष्ट्र) |
पिता का नाम | लखुजी जाधव |
संतान | 6 पुत्री और दो पुत्र |
पहचान | शिवाजी की मां |
निधन और स्थान | 17 जून 1674, महाराष्ट्र |
जीजाबाई का जन्म
जीजा बाई का जन्म महाराष्ट्र के बुलढाणा गांव में 12 जनवरी 1958 को हुआ था। बचपन में इन्हें जिजाऊ का कर बुलाया जाता था। उनके पिता का नाम लखुजी जाधव था, जो सिंदखेड नामक गांव के राजा हुआ करते थे।
जीजाबाई का विवाह
जीजा बाई का विवाह बहुत ही छोटी उम्र में हो गया था। दरअसल जब यह 6 वर्ष की थी तब एक दिन उनके घर पर होली का उत्सव मनाया जा रहा था, जिसमें मुलाजी अपने बच्चे के साथ आए थे। उसकी उम्र 7 से 8 वर्ष थी और उनका नाम शाहजी था।
शाहजी और जीजाबाई को एक साथ नृत्य करते हुए देख लखुजी बोले उठे कितनी अच्छी जोड़ी है। यह सुनकर मुलाजी ने कहा कि क्यों ना इन दोनों की मंगनी कर दी जाए। हालांकि मुलाजी उस वक्त सुल्तान के यहां एक सेनापति थे और लखुजी जाधव एक राजा होने के बावजूद भी अपनी पुत्री का विवाह उनके पुत्र शाहजी से करवा देते हैं।
विवाह के पश्चात जब वह दोनों बड़े हुए तब जीजाबाई ने 6 पुत्री और दो पुत्र को जन्म दिया। बड़े होने पर शाहजी बीजापुर के महाराज के यहां राजनायिक बन गए थे। इन्होंने बीजापुर के महाराज की अनेकों युद्ध में विजय प्राप्त करने में मदद की। इस खुशी में बीजापुर के महाराज ने शाहजी को अनेकों जागीर तोहफे में दिया था और उन जागीर में से एक शिवनेरी का दुर्ग भी था।
जीजा बाई के बच्चों का लालन-पालन यहीं पर हुआ। जीजाबाई ने अपने पुत्र शिवाजी को भी इसी शिवनेरी किले में जन्म दिया था और यहीं पर उनका लालन-पालन हुआ था। हालांकि शाहजी के पास अन्य कई जागीर थे फिर भी उन्हें इस किले में ही रहना पड़ता था। क्योंकि उस वक्त इन्हें कई शत्रुओं का भय था। इसीलिए अपने परिवार की रक्षा के लिए इन्हें इसी किले में छुपकर रहना पड़ता था।
हालांकि जब शिवाजी का जन्म हुआ था, उस वक्त शाहजी को मुस्तफाखा ने बंदी बना रखा था। जिस कारण शिवाजी बचपन में अपने पिता से मिल नहीं पाए थे लेकिन 12 वर्ष पश्चात इन्हें अपने पिताजी से भेंट हुई थी। इतने सालों के दौरान जीजाबाई ने हीं अपने बच्चों का लालन-पालन अपने बलबूते किया था।
अफजल खान के साथ युद्ध में शाहजी और उनके बड़े पुत्र संभाजी की मृत्यु हो गई थी। मृत्यु के बाद जीजाबाई सती होना चाहती थी परंतु शिवाजी ने उन्हें सती होने से रोक लिया। क्योंकि एकमात्र जीजाबाई ही थी, जो शिवाजी की मार्गदर्शिका और प्रेरणा स्त्रोत थी।
इनके बिना शिवाजी का कोई अस्तित्व नहीं था। जीवन में इतने दुख होने के बावजूद भी शिवाजी ने अपनी माता के संस्कारों के बलबूते बहुत ही छोटी उम्र में अपने कर्तव्य को समझना शुरू कर दिया था।
मराठा साम्राज्य के स्थापना में जीजाबाई की भूमिका
मराठा साम्राज्य की स्थापना में जीजाबाई का बहुत बड़ा योगदान रहा है। यह एक चतुर और बुद्धिमान महिला थी, इस कारण मराठा साम्राज्य के कई महत्वपूर्ण फैसलों में जीजाबाई की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी, जो मराठा साम्राज्य की स्थापना में उपयोगी साबित हुआ था।
एक बार राज्य में स्त्रियों के प्रति हो रहे दुर्दशा को दूर करने के लिए जीजाबाई मां भवानी के मंदिर जाकर मां से स्त्रियों की दुर्दशा को दूर करने का उपाय बताने की प्रार्थना करती है। तब मां भवानी उन्हें उनके पुत्र शिवाजी के माध्यम से स्त्रियों की दुर्दशा को दूर करने का आशीर्वाद देती है।
यही कारण है कि जीजाबाई ने हमेशा से ही शिवाजी को स्त्रियों के सम्मान और उनके मान सम्मान की रक्षा करना सिखाया था। अपने प्रभावित युद्ध नियुक्तियों के बलबूते जीजाबाई ने शिवाजी को इस लायक बना दिया था कि वे 17 वर्ष के उम्र में ही दुश्मनों के साथ युद्ध लड़ने के लिए तैयार थी। मुगल शासकों से सिंहगढ़ किले को दुबारा हासिल करने में जीजाबाई का महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। क्योंकि इन्होंने ही सिंहगढ़ किले पर दोबारा अधिकार प्राप्त करने के लिए शिवाजी को प्रेरित किया था।
इसी से जुड़ा एक प्रसंग है कि एक बार जीजाबाई ने शिवाजी को अपने पास बुलाया था और कहा था कि बेटा सिंहगढ़ किले पर तुम्हें विजय प्राप्त करना है। दुश्मनों की कैद से सिंहगढ़ किले को मुक्त करना है। किले के शिर्ष पर लगी विदेशी झंडे को उतार फेंकना है तभी तुम मेरा पुत्र कहलाने लायक होगे।
चूंकि उस समय शिवाजी बहुत छोटी उम्र के थे, इसीलिए उनमें परिपक्वता नहीं थी। इस कारण इन्होंने अपनी माता से कहा कि मां यह कैसे हो पाएगा। मुगलों की सेना बहुत ही विशाल और ताकतवर है, उनके सामने हमारी सेना बहुत ही छोटी और कमजोर है। हम उनके सेनाओं से किस तरह जंग लड़ पाएंगे।
पुत्र की ऐसी कायर पूर्ण बात सुनकर जीजाबाई आवेश में आ जाती है और क्रोध में ऐसा कथन कह उठती है, जिसने एक सामान्य से बालक शिवाजी को एक महान सम्राट बना दिया। उन्होंने कहा कि तुम्हें धिक्कार है अपना पुत्र कहने में। तुम्हें तो घर पर चूड़ियां पहन कर बैठे रहना चाहिए। अब मैं इस फौज का नेतृत्व करूंगी और मैं स्वयं सिंहगढ़ के किले से विदेशी झंडे को उतार फेकूंगी। मां की यह बात सुन शिवाजी बहुत लज्जित हो उठते हैं और उनके अंदर की वीरता जाग उठती है।
वे अपनी माता का चरण स्पर्श करके उनसे क्षमा याचना मांगते हैं और फिर तानाजी को बुलाकर जंग लड़ने के लिए सेनाओं को तैयार करने के लिए कहते हैं। इनकी आदेश पर योजनाबद्ध तरीके से तानाजी सेनाओं के साथ शेरगढ़ के किले के तरफ आगे बढ़ते हैं और किले को चारों तरफ से घेर लेते हैं।
किले की दीवार बहुत ऊंची और सीधी थी, जिस कारण किले की दीवार पर चढ़ाई करना काफी मुश्किल था। फिर भी तानाजी के सूझ-बूझ से सैनिकों के सहयोग से किले की दीवार पर चढ़े और और किले के नजदीक पहुंच कर रस्सी के माध्यम से अन्य सैनिकों को ऊपर की ओर लेकर आए। उसके बाद दुश्मनों की सेनाओं के साथ विरता से लड़े और शेरगढ़ पर अधिकार प्राप्त किया। हालांकि शिवाजी इस युद्ध में अपने महान सेनापति तानाजी को खो देते हैं।
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शिवाजी के जीवन पर जीजाबाई का प्रभाव
एक बालक का महान व्यक्तित्व बनाने में उसकी माता की बहुत बड़ी भूमिका होती है। वैसे भी कहते हैं ना कि अगर किसी जननी ने एक महान शूरवीर को जन्म दिया है तो वह जननी भी स्वयं महान रही होगी। जीजाबाई को मराठा साम्राज्य की राजमाता और जिजाऊ कहा जाता था।
छत्रपति शिवाजी के जीवन में जीजाबाई का महत्वपूर्ण प्रभाव रहा था। यही कारण है कि महान छत्रपति शिवाजी के साथ उनकी माता का भी नाम सम्मान से लिया जाता है। छत्रपति शिवाजी के जीवन से संबंधित जितनी भी फिल्म, धारावाहिक, किताबें लिखी गई हैं। उनमें जीजा बाई के जीवन पर भी पूर्ण रूप से प्रकाश डाला गया है।
जीजाबाई महान नारी थी। बल्कि वह काफी बुद्धिमान और दूरदर्शिता रखने वाली महिला थी। इनकी प्रभावित युध्द नीतियों ने शिवाजी को अनेकों जंग में जीत हासिल करने में मदद की। इन्होंने शिवाजी को ना केवल एक महान सम्राट बनाया बल्कि एक अच्छा व्यक्ति भी बनाया।
बचपन से शिवाजी को ये महाभारत, रामायण, गीता जैसे पवित्र ग्रंथों की प्रेरणादायक कहानी सुनाया करती थी। इन्होंने हमेशा से ही शिवाजी को स्त्रियों का सम्मान करना सिखाया। यही कारण है कि शिवाजी हमेशा ही अन्य महिलाओं को भी अपनी माता समझते थे और उनके मान-सम्मान की रक्षा करते थे।
जीजा बाई के संस्कारों के कारण ही शिवाजी ने हिंदू साम्राज्य को स्थापित करने में कामयाबी हासिल कर पाई। निश्चित ही इतिहास में जीजा बाई के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
जीजाबाई के जीवन पर बनाई गई फिल्म एवं सीरियल
भारत के इतिहास और संस्कृति को हमेशा ही जीवंत रखने के लिए सिनेमा ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिल्म और सीरियल के कारण ही आज के युवा भी भारत के इतिहास और महान शासकों के जीवन से अवगत हो पाते हैं।
भारतीय सिनेमा में महान सम्राट शिवाजी के जीवन पर कई फिल्म और सीरियल बन चुके हैं और उन प्रत्येक फिल्म सीरियल में उनकी माता जीजाबाई के जीवन पर भी प्रकाश डाला गया है। जीजा बाई के जीवन पर आधारित राजमाता जिजाऊ, छत्रपति शिवाजी महाराज, बाल शिवाजी, कल्याण खजाना, सिंहगढ़, भारतवर्ष (सिरियल) जैसी कुछ फिल्में और धारावाहिक बन चुकी है।
जीजाबाई के जीवन से जुड़ी अनसुनी बातें
- जीजाबाई का पूरा जीवन मराठा साम्राज्य को समर्पित था। मराठा साम्राज्य को एक अच्छे शासक देने के लिए इन्होंने बहुत कड़ी मेहनत की। शिवाजी को एक महान सम्राट बनाने के लिए इनकी भूमिका सराहनीय है। जीजा बाई के जीवन के हर एक प्रसंग बहुत ही प्रभावित है।
- जीजाबाई दूरदर्शिता और अपनी युद्ध नीति के लिए जानी जाती है।
- जीजाबाई शिवाजी को बचपन से ही रामायण, महाभारत जैसे भारत की पौराणिक ग्रंथों की कहानियां सुनाया करती थी, जिससे शिवाजी का एक अच्छा प्रभावित व्यक्तित्व तैयार किया जा सके।
- जीजाबाई शिवाजी को ना केवल भारत की पुरानी संस्कृति और धर्म की परिभाषा सिखाया करती थी बल्कि उन्हें महिलाओं का सम्मान करना भी सिखाती थी। यही कारण है कि शिवाजी ने हर एक स्त्री को अपनी मां समझे और उनके मान-सम्मान की रक्षा की।
- जीजा बाई के दूसरे पुत्र संभाजी की हत्या अफजल खान के द्वारा होने के बाद अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए इन्होंने शिवाजी को बहुत प्रेरित किया था।
- शिवाजी ने अनेकों शासक और मुगल शासकों पर जीत प्राप्त की, जिसका श्रेय जीजाबाई को जाता है क्योंकि जीजाबाई ने हीं शिवाजी को युद्ध नीतियां सिखाया करती थी, जिसके कारण वे अनेक जंग में जीत हासिल कर पाए थे।
जीजा बाई की मृत्यु
जीजाबाई की मृत्यु 17 जून 1674 ई. में हुई।
FAQ
जीजाबाई की कुल 8 बच्चे थे, जिनमें से 6 बेटियां थी और दो बेटे थे। उनमें से एक महान शिवाजी थे। कहा जाता है शिवाजी के जन्म के बाद उनके पति ने उन्हें त्याग दिया था। हालांकि वह काफी बुद्धिमान और सुंदर महिला थी। इसके बाद केवल जीजाबाई ने ही अपने पुत्र शिवाजी की देखभाल की।
जीजा बाई का जन्म महाराष्ट्र राज्य के बुलढाणा जिले के सिंदखेड राजा के लाखोजीराव के यहां 12 जनवरी 1598 में हुआ था।
बचपन में जीजाबाई को प्यार से ‘जीजाऊ’ बुलाया जाता था।
जीजा बाई की मृत्यु 17 जून 1674 हुई थी।
जीजा बाई के पति का नाम शाहजी भोंसले था, जो महाराष्ट्र के शासक थे।
जीजाबाई महाराष्ट्र के मराठा साम्राज्य के संस्थापक महान शिवाजी की माता थी। जिन्होंने मराठा साम्राज्य की स्थापना में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
जीजा बाई के दूसरे पुत्र का नाम संभाजी था।
निष्कर्ष
आज के लेख में हमने मराठा साम्राज्य के महान शासक छत्रपति शिवाजी की माता जीजाबाई के इतिहास के बारे में जाना। जीजाबाई एक महान व्यक्तित्व वाली नारी थी, जिन्होंने मराठा साम्राज्य की स्थापना में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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