Jat Jati History in Hindi: भारत में कई प्रकार के जाति के लोग रहते हैं। उन्हीं में एक जाट जाति भी है, जो बड़ी संख्या में भारत के विभिन्न राज्यों में निवास करते हैं। इन जाति का विस्तार उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात आदि भारतीय पठारी इलाकों तक है।
पंजाब में इन्हें जट्ट और अन्य राज्य में जाट के नाम से जाना जाता है। इन समाज के लोग आधुनिक युग में रहने के बावजूद भी अपनी पूरी परंपराओं से काफी जुड़े रहते हैं। यहां तक कि इनकी सामाजिक संरचना भी काफी पेज बेजोड़ है। इनका मुख्य व्यवसाय खेती और पशुपालन है।
जाट जाति के लोग प्राचीन काल से युद्ध कला में निपुण रहे हैं और यह काफी वीर और बहादुर माने जाते हैं। इसलिए भारत के सेना में भी इनकी खुद की जाट रेजीमेंट है। जाट जाति के लोग हिंदू, मुस्लिम, सिख सभी धर्मों में देखे जाते हैं। पाकिस्तान में भी बड़ी संख्या में जाट मुस्लिम रहते हैं।
इन्हें वर्तमान समय की सबसे प्रतिष्ठित जातियों में से एक माना जाता है। जाट समाज की गोत्र और खाफ व्यवस्था प्राचीन समय की मानी जाती है। वैसे यदि आप जाट जाति की उत्पत्ति, इनके इतिहास के बारे में जानना चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें क्योंकि आज के इस लेख में हम आपको जाट जाति के इतिहास के बारे में बताएंगे।
जाट जाति की उत्पत्ति एवं इतिहास | Jat Jati History in Hindi
जाट जाति की उत्पत्ति
जाट जाति की उत्पत्ति के विषय में अलग-अलग इतिहासकारों की कई सारी मान्यता है। कुछ लोगों के अनुसार जाट समाज की उत्पत्ति युधिष्ठिर से मानी जाती है। प्राचीन कथा के अनुसार कहा जाता है कि राजसूय यज्ञ के बाद युधिष्ठिर को ‘जेष्ट’ कहा जाने लगा और उसके बाद से उनकी वंशज जेठर नाम से जानी जाने लगी।
जैसे जैसे समय बीतता गया जेठर, जाट नाम से संबोधित होने लगा। इस तरीके से जाट को जेष्ट शब्द से उत्पन्न हुआ बताया जाता है और युधिष्ठिर को जाट जाति के पूर्वज माना जाता हैं।
भगवान शिव से जाट समुदाय की उत्पत्ति मानी जाती है
कुछ इतिहासकार भगवान शिव से भी जाट समुदाय की उत्पत्ति को जोड़ते हैं। यह कहानी देवसंहिता नामक पुस्तक से मिलती हैं, जिसके अनुसार भगवान शिव के ससुर राज दक्ष एक बार हरिद्वार में के पास ‘कनखल’ में एक यज्ञ का आयोजन करते हैं।
उस यज्ञ में राज दक्ष सभी देवी देवताओं को बुलाते हैं लेकिन वे अपनी बेटी सती और भगवान शिव को निमंत्रित नहीं करते हैं। जब माता सती को पता चलता है कि उनके पिता यज्ञ आयोजित किए हैं तो बिना निमंत्रण के ही भगवान शिव से यज्ञ में जाने की आज्ञा भगवान शिव से लेती है।
तब भगवान शिव यह कह कर उन्हें याज्ञा दे देते हैं कि वह तुम्हारे पिता है और अपने पिता के घर जाने का तुम्हारा पूरा अधिकार है। तुम बिना निमंत्रण के भी जा सकती हो। भगवान शिव से अनुमति लेने के बाद मां सती अज्ञ आयोजित स्थान पर जाती है। लेकिन वहां पर जाने के बाद माता सती का काफी अपमान होता है साथ ही भगवान शिव के बारे में भी काफी बुरा भला कहा जाता है, जिसे वह सहन नहीं कर पाती और हवन कुंड में कूद कर आत्महत्या कर लेती है।
यह घटना होने के बाद भगवान शिव काफी क्रोधित हो जाते हैं और वह क्रोध में आकर अपने जटा को खोलकर वीरभद्र नामक गण को उत्पन्न करते हैं, जो यज्ञ आयोजित स्थान पर जाकर नरसंहार कर देते हैं। वह राजा दक्ष के सर को भी काट देते हैं। इस नरसंहार को रोकने के लिए भगवान विष्णु, ब्रह्मा और सभी देवी देवता भगवान शिव के पास जाते हैं और उन्हें राजा दक्ष को माफ करने की याचना करते हैं।
तब भगवान शिव सभी देवी देवताओं के अनुरोध पर शांत हो जाते हैं और वे राजा दक्ष को दोबारा जीवित कर देते हैं। इस तरह इस पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने जिस वीरभद्र नामक गण को बनाया था, उसे ही जाट समाज का पूर्वज माना जाता है।
कुछ इतिहासकार जाटों को विदेशी मूल्य के आर्य बताते हैं तो कुछ इतिहासकार भारतीय आर्य इन्हें ठहराते हैं। कुछ इतिहासकार गुर्जरों और अनेक क्षत्रिय कुलों की भांति ही जाटों को विदेशी मूल का माना है। जिस तरीके से उन्होंने गुर्जरों को खिजरों की, राजपूतों को हूणों की संतान बताया है वैसे ही वो जाटों को सीथियनों की संतान मानते हैं।
अलग-अलग इतिहासकारों के द्वारा जाट जाति की उत्पत्ति पर किए जाने वाले दावे में कितनी सच्चाई है। उसका पुख्ता प्रमाण तो अभी तक नहीं मिला है। इतिहासकार सुखवंत सींह तो जाट जाति को क्षत्रिय समुदाय से बताते हैं और उनके अनुसार एक असली जाट स्वाभिमानी, परोपकारी होता है, जो कमजोर और असहाय लोगों की मदद करता है।
उनके अनुसार जाट ने कभी ब्राह्मणवाद को स्वीकार नहीं किया। वे कहते हैं कि जाट समाज के लोग अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं। वे भगवान कृष्ण को भी अपना पूर्वज मानते हैं। हालांकि इस बात का जिक्र किसी भी ग्रंथ में नहीं किया गया है। हालांकि अलग-अलग इतिहासकार जाट जाति की उत्पत्ति के बारे में कुछ भी कहे लेकिन जाट मुख्य रूप से भारतीय हैं।
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जाट जाति की प्रवृत्ति
जाट जाति के लोग ज्यादातर गोरे, पतले, लंबे होते हैं हालांकि कुछ काले भी देखने को मिलते हैं। रूपरंग के अलावा ये काफी पारिश्रमिक होते हैं जो मुख्य रूप से खेती से जुड़े होते हैं और ग्रामीण इलाकों में ज्यादातर रहना पसंद करते हैं। हालांकि आजकल भारतीय खेल जगत में और राजनीतिक क्षेत्र में जाटों का काफी स्थान रहा है।
आने वाले समय में जाट खेल जगत में काफी शानदार प्रदर्शन कर सकते हैं। राजस्थान सरकार के शिक्षा विभाग, पुलिस विभाग एवं राजस्व विभाग में जाट जाति के लोग काफी मात्रा में नौकरी करते हैं। ऐसे में भारत में जाटों के अतिरिक्त ऐसी कोई अन्य जाति नहीं हुई जो कृषि, पशुपालन, व्यापार और युद्ध सभी क्षेत्रों में सामान प्रतिभा रखते हो।
FAQ
जाट की उत्पत्ति पर यूनानी इतिहासकार प्लिनी और टॉलेमी का कहना है कि जाट मूल रूप से ऑक्सस नदी के तट पर रहते थे, जो ईसा से लगभग एक सदी पहले भारत में आकर बसे। कुछ इतिहासकारों जाटों को इंडो आर्यन भी बताते हैं। हालांकि जाट की उत्पत्ति पर सभी इतिहासकारों की मान्यता लगा अलग अलग है।
जाट जाति के गुरु नानक को बताया जाता है। जाटों की कुछ संख्या ने गुरु नानक के शिक्षा को ग्रहण किया। सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद के समय जाटों की अत्यधिक संख्या सिख धर्म में शामिल हो गई।
जाटों का इतिहास काफी पुराना बताया जाता है। जाट मुख्यतः खेती करने वाली जाति शुरुआत में थी। लेकिन औरंगजेब के अत्याचार और जाट जाति को दमन करने की उसकी प्रवृत्ति के बाद इन्होंने एक बड़ी सैन्य शक्ति का गठन किया।
यदुवंशी कृष्ण एवं रघुवंशी राम को जाट जाति का पूर्वज बताया जाता है।
बदनसिंह को जाट वंश का संस्थापक बताया जाता है। इन्होंने ही भरतपुर नामक नवीन रियासत का गठन किया था।
जाट वंश के संस्थापक बदन सिंह द्वारा स्थापित सिनसिनी जाटों की पहली राजधानी थी। लेकिन बाद में भरतपुर के गठन के बाद राजधानी भरतपुर स्थानांतरित कर दिया गया।
निष्कर्ष
इस आर्टिकल के जरिये हमने आपको जाट जाति का इतिहास (Jat Jati History in Hindi) के बारे में विस्तृत जानकरी दी है। आशा करते है कि आपको हमारा यह आर्टिकल पसंद आया होगा। आर्टिकल को आगे शेयर करना न भूले और इस आर्टिकल के सम्बंधित अगर कोई भी जानकारी हो तो हम से कमेंट में जरुर बताएं।
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