गुरू ही व्यक्ति को इन्सान का रूप देता है। गुरू ही ज्ञान का पर्याय है। एक सच्चा गुरू ही अपने शिष्यों को इस संसार से परिचित करवाता है।
हर कोई गुरु की महिमा से भलीभांति परिचित है। गुरु द्वारा हर वो ज्ञान दिया जाता है, जो व्यक्ति के जीवन में हर मोड़ पर काम आता है। गुरु ही अपने शिष्य को जीवन जीने की सही कला से परिचित करवाता है।
हम यहां पर कुछ गुरु के लिए कविता (Guru Poem in Hindi) शेयर की है, जो गुरु की महिमा का बखान करती हैं। यह गुरु की महिमा पर कविता जीवन में गुरु के महत्व को बताती है।
गुरु पर कविताएं – Guru Poem in Hindi
Hindi Poem on Guru
जन्म मां-बाप से मिला
ज्ञान गुरु से दिला दिया
ड्रेस, किताबे, बस्ता,
मां-बाप से मिला
पढ़ना गुरु ने सीखा दिया
मां ने जीवन का पहला पाठ पढ़ाया
दूसरा तीसरा चौथा गुरु ने पढ़ा दिया।
जब हम छोटे होते हैं “टीचर बच्चे” खेलते हैं
जब थोड़े बड़े हुए, सीधे-उलटे काम भी करते हैं
एक दिन हम जवान होकर,आएंगे काम देश के
ऐसा गुरु जी हमसे हरदम कहते रहते हैं।
गुरु ने हमको अपने ज्ञान से सींचा हैं
हमने उनसे ही जीवन का सार सीखा हैं
समझा देंगे हमें वो दुनिया दारी
उनकी इसी बात पर किया सदा भरोसा हैं।
Guru Par Kavita
मां पहली गुरु है और सभी बड़े बुजुर्गों ने
कितना कुछ हमे सिखाया हैं
गुरु पूजनीय हैं
बढ़कर है गोविंद से
कबीर जी ने भी हमे सिखाया हैं
पशु पक्षी फूल काटे नदियाँ
हर कोई हमे सिखा रहा हैं
भारतीय संस्कृति का कण कण
युगों युगों से गुरु पूर्णिमा की
महिमा गा रहा हैं।
गुरु चरणों में – गुरु पर कविता हिन्दी
चरन धूर निज सिर धरो, सरन गुरु की लेय,
तीन लोक की सम्पदा, सहज ही में गुरु देय।
सहज ही में गुरु देय चित्त में हर्ष घनेरा,
शिवदीन मिले फल मोक्ष, हटे अज्ञान अँधेरा।
ज्ञान भक्ति गुरु से मिले, मिले न दूजी ठौर,
याते गुरु गोविन्द भज, होकर प्रेम विभोर।
राम गुण गायरे।।
और न कोई दे सके, ज्ञान भक्ति गुरु देय,
शिवदीन धन्य दाता गुरु, बदले ना कछु लेय।
बदले ना कछु लेय कीजिये गुरु की सेवा,
जन्मा जन्म बहार, गुरु देवन के देवा।
गुरु समान तिहूँ लोक में,ना कोई दानी जान,
गुरु शरण शरणागति, राखिहैं गुरु भगवान।
राम गुण गायरे।।
समरथ गुरु गोविन्दजी, और ना समरथ कोय,
इक पल में, पल पलक में, ज्ञान दीप दें जोय।
ज्ञान दीप दें जोय भक्ति वर दायक गुरुवर,
गुरु समुद्र भगवन, सत्य गुरु मानसरोवर।
शिवदीन रटे गुरु नाम है, गुरुवर गुण की खानि,
गुरु चन्दा सम सीतल, तेज भानु सम जानि।
राम गुण गायरे।।
-शिवदीन राम जोशी
गुरु पर कविता हिंदी में
हर प्रकार से नादान थे तुम,
गीली मिट्टी के समान थे तुम।
आकार देकर तुम्हें घड़ा बना दिया,
अपने पैरों पर खड़ा कर दिया।
गुरु बिना ज्ञान कहां,
उसके ज्ञान का आदि न अंत यहां।
गुरु ने दी शिक्षा जहां,
उठी शिष्टाचार की मूरत वहां।
अपने संसार से तुम्हारा परिचय कराया,
उसने तुम्हें भले-बुरे का आभास कराया।
अथाह संसार में तुम्हें अस्तित्व दिलाया,
दोष निकालकर सुदृढ़ व्यक्तित्व बनाया।
अपनी शिक्षा के तेज से,
तुम्हें आभा मंडित कर दिया।
अपने ज्ञान के वेग से,
तुम्हारे उपवन को पुष्पित कर दिया।
जिसने बनाया तुम्हें ईश्वर,
गुरु का करो सदा आदर।
जिसमें स्वयं है परमेश्वर,
उस गुरु को मेरा प्रणाम सादर।
Guru Par Poem
जानवर इंसान में जो भेद बताये
वही सच्चा गुरु कहलाये।
जीवन-पथ पर जो चलाना सिखाये
वही सच्चा गुरु कहलाये।
जो धेर्यता का पाठ पढ़ाये
वही सच्चा गुरु कहलाये।
संकट में जो हँसना सिखाये
वही सच्चा गुरु कहलाये।
पग-पग पर परछाई सा साथ निभाये
वही सच्चा गुरु कहलाये।
जिसे देख आदर से सिर झुकजाये
वही सच्चा गुरु कहलाये।
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Poem on Guru in Hindi
कहते है शक्कर
हमेशा होती है गुड़ से बेहतर
इसीलिये, जब चेले लाखों कमाते है
और गुरुजी अब भी अपनी पुरानी,
स्कूटर पर कॉलेज जाते है
लोग कहते है अक्सर
गुरूजी गुड़ ही रहे,
और चेलेजी हो गए शक्कर
पर वो ये भूल जाते है कि गुड़,
सेहत के लिए बड़ा फायदेमंद होता है
और ज्यादा शकर खानेवाला,
डाइबिटीज का मरीज बन,
जीवन भर रोता है
इसलिए लोग जो कहते है, कहने दें
गुरु को लाभकारी, गुड़ ही रहने दें
क्योंकि वो हमें देतें है ज्ञान
कराते है भले बुरे की पहचान
बनाते है एक अच्छा इंसान
इसलिए ऐसे गुरु को,
हमारा कोटि कोटि प्रणाम।
Guru Par Kavita Hindi Mein
परम गुरु
दो तो ऐसी विनम्रता दो
कि अंतहीन सहानुभूति की वाणी बोल सकूँ
और यह अंतहीन सहानुभूति
पाखंड न लगे
दो तो ऐसा कलेजा दो
कि अपमान, महत्वाकांक्षा और भूख
की गाँठों में मरोड़े हुए
उन लोगों का माथा सहला सकूँ
और इसका डर न लगे
कि कोई हाथ ही काट खाएगा
दो तो ऐसी निरीहता दो
कि इसे दहाड़ते आतंक क बीच
फटकार कर सच बोल सकूँ
और इसकी चिन्ता न हो
कि इसे बहुमुखी युद्ध में
मेरे सच का इस्तेमाल
कौन अपने पक्ष में करेगा
यह भी न दो
तो इतना ही दो
कि बिना मरे चुप रह सकूँ।
-विजयदेव नारायण साही
एक गुरु के शिष्य
शिष्य एक गुरु के हैं हम सब,
एक पाठ पढ़ने वाले।
एक फ़ौज के वीर सिपाही,
एक साथ बढ़ने वाले।
धनी निर्धनी ऊँच नीच का,
हममे कोई भेद नहीं।
एक साथ हम सदा रहे,
तो हो सकता कुछ खेद नहीं।
हर सहपाठी के दुःख को,
हम अपना ही दुःख जानेंगे।
हर सहपाठी को अपने से,
सदा अधिक प्रिय मानेंगे।
अगर एक पर पड़ी मुसीबत,
दे देंगे सब मिल कर जान।
सदा एक स्वर से सब भाई,
गायेंगे स्वदेश का गान।
-श्रीनाथ सिंह
गुरु पर कविता हिन्दी
गुरु की उर्जा सूर्य-सी, अम्बर-सा विस्तार।
गुरु की गरिमा से बड़ा, नहीं कहीं आकार।।
गुरु का सद्सान्निध्य ही, जग में हैं उपहार।
प्रस्तर को क्षण-क्षण गढ़े, मूरत हो तैयार।।
गुरु वशिष्ठ होते नहीं, और न विश्वामित्र।
तुम्हीं बताओ राम का, होता प्रखर चरित्र?
गुरुवर पर श्रद्धा रखें, हृदय रखें विश्वास।
निर्मल होगी बुद्धि तब, जैसे रुई- कपास।।
गुरु की करके वंदना, बदल भाग्य के लेख।
बिना आँख के सूर ने, कृष्ण लिए थे देख।।
गुरु से गुरुता ग्रहणकर, लघुता रख भरपूर।
लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर।।
गुरु ब्रह्मा-गुरु विष्णु है, गुरु ही मान महेश।
गुरु से अन्तर-पट खुलें, गुरु ही हैं परमेश।।
गुरु की कर आराधना, अहंकार को त्याग।
गुरु ने बदले जगत में, कितने ही हतभाग।।
गुरु की पारस दृष्टि से, लोह बदलता रूप।
स्वर्ण कांति-सी बुद्धि हो, ऐसी शक्ति अनूप।।
गुरु ने ही लव-कुश गढ़े, बने प्रतापी वीर।
अश्व रोक कर राम का, चला दिए थे तीर।।
गुरु ने साधे जगत के, साधन सभी असाध्य।
गुरु-पूजन, गुरु-वंदना, गुरु ही है आराध्य।।
गुरु से नाता शिष्य का, श्रद्धा भाव अनन्य।
शिष्य सीखकर धन्य हो, गुरु भी होते धन्य।।
गुरु के अंदर ज्ञान का, कल-कल करे निनाद।
जिसने अवगाहन किया, उसे मिला मधु-स्वाद।।
गुरु के जीवन मूल्य ही, जग में दें संतोष।
अहम मिटा दें बुद्धि के, मिटें लोभ के दोष।।
गुरु चरणों की वंदना, दे आनन्द अपार।
गुरु की पदरज तार दे, खुलें मुक्ति के द्वार।।
गुरु की दैविक दृष्टि ने, हरे जगत के क्लेश।
पुण्य -कर्म- सद्कर्म से, बदल दिए परिवेश।।
गुरु से लेकर प्रेरणा, मन में रख विश्वास।
अविचल श्रद्धा भक्ति ने, बदले हैं इतिहास।।
गुरु में अन्तर ज्ञान का, धक-धक करे प्रकाश।
ज्ञान-ज्योति जाग्रत करे, करे पाप का नाश।।
गुरु ही सींचे बुद्धि को, उत्तम करे विचार।
जिससे जीवन शिष्य का, बने स्वयं उपहार।।
गुरु गुरुता को बाँटते, कर लघुता का नाश।
गुरु की भक्ति-युक्ति ही, काट रही भवपाश।।
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गुरु पूर्णिमा पर कविता
शिक्षक हैं शिक्षा का सागर,
शिक्षक बांटे ज्ञान बराबर,
शिक्षक मंदिर जैसी पूजा,
माता-पिता का नाम है दूजा,
प्यासे को जैसे मिलता पानी,
शिक्षक है वही जिंदगानी,
शिक्षक न देखे जात-पात,
शिक्षक न करता पक्ष-पात,
निर्धन हो या हो धनवान,
शिक्षक को सब एक समान।
गुरु पर कविता इन हिंदी
जीवन के घोर अंधेरो में,
प्रकाश जो बन कर आता है।
हर लेता है वो दुःख सारे,
खुशियों की फसल उगाता है।
न कोई लालच करता है,
सच्चाई का सबक सिखाता है।
सागर से ज्ञान सा भरा हुआ,
बस वही गुरु कहलाता है।
परेशानियाँ पस्त करे जब
हिम्मत हम हारते जाए,
धूमिल सी हो परीस्थितीया
हालात हमे जब भटकाए,
नई राह एक दिखा कर हमको
सभी संशय जो मिटाता है,
सागर से ज्ञान सा भरा हुआ
बस वही गुरु कहलाता है।
गुरु है सकल गुणों की खान
गुरु, पितु, मातु, सुजन, भगवान,
ये पाँचों हैं पूज्य महान।
गुरु का है सर्वोच्च स्थान,
गुरु है सकल गुणों की खान।
कर अज्ञान तिमिर का नाश,
दिखलाता यह ज्ञान-प्रकाश।
रखता गुरु को सदा प्रसन्न,
बनता वही देश सम्पन्न।
कबिरा, तुलसी, संत-गुसाईं,
सबने गुरु की महिमा गाई।
बड़ा चतुर है यह कारीगर,
गढ़ता गाँधी और जवाहर।
आया पावन पाँच-सितम्बर,
श्रद्धापूर्वक हम सब मिलकर।
गुरु की महिमा गावें आज,
शिक्षक-दिवस मनावें आज।
एकलव्य-आरुणि की नाईं,
गुरु के शिष्य बने हम भाई।
देता है गुरु विद्या-दान,
करें सदा इसका सम्मान।
अन्न-वस्त्र-धन दें भरपूर,
गुरु के कष्ट करें हम दूर।
मिल-जुलकर हम शिष्य-सुजान,
करें राष्ट्र का नवनिर्माण।
-कोदूराम दलित
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गुरु के उपर आपने बहुत अच्छी कविता लिखी है गुरु का स्थान कोई हमारे जीवन मैं नहीं ले सकता