एक नगर का नाम रूमा था। रूमा नगर में एक राजा गिरीश है, जिनका नगर में बहुत ही सम्मान होता था। उन्हें उनके कार्य के लिए जाना जाता था। कुछ दिनों के बाद वहां के राजा गिरीश को कुष्ठ रोग हो गया, जिसके कारण बहुत परेशान थे। उस नगर के तथा उस राज्य के सभी चिकित्सक व हकीम विभिन्न विभिन्न प्रकार के उपायों से राजा को ठीक करने के लिए प्रयत्न किए लेकिन रोग ठीक न कर सके।
वहीं के एक प्रसिद्ध हकीम थे, जिनका नाम दूबा था। जिनको दवाइयों तथा जड़ी बूटियों के विषय में बहुत ही अत्यधिक जानकारी थी। वह जड़ी बूटी के बारे में जानकारी रखते थे, पूरे नगर में उनके जैसा हकीम कोई नहीं था। दवाइयों, जड़ी-बूटियों के साथ-साथ उनको विभिन्न भाषाओं का भी ज्ञान था, जो यह अच्छे से बोल और लिख सकते थे।
हकीम दूबा को वहां के राजा की बीमारी के बारे में पता चला। उसने तुरंत ही यह सूचना राज्य में भिजवा दी तथा महाराज से मिलने की प्रार्थना की। महाराज के सामने आते ही उसने महाराज को प्रणाम किया और कहा कि महाराज सुना है कि आप अपनी बीमारी से बहुत परेशान है और इस नगर की सभी चिकित्सक व हकीम उसका इलाज कर चुके हैं। परंतु ठीक न कर सके। महाराज एक मौका मुझे दीजिए हकीम डूबा ने कहा।
महाराज ने कहा यदि तुम मुझे ठीक करने की अपेक्षा रखते हो और तुम्हें अपने आप पर विश्वास है तो मैं तुम्हें एक मौका देता हूं। परंतु मैं दवाइयों और लेपन से उब चुका हूं, हकीम डूबा ने कहा महाराज मैं आपको बिना दवाई तथा लेपन के ठीक कर दूं तो। महाराज ने कहा यदि ऐसा हुआ तो मैं तुम्हें बहुत सा उपहार दूंगा, यह सुनकर हकीम डूबा से कहा महाराज मैं चिकित्सक का आरंभ कल से प्रारंभ करता हूं।
अगले दिन चिकित्सक ने औषधियों से बना एक बल्ला तथा एक गेंद को निर्मित किया, जो विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियों और औषधियों से निर्मित था। उसने यह बल्ला और गेंद महाराज को देते हुए कहा कि महाराज आप घुड़सवारी वक्त यह गेंद और बल्ला से खेले, जो औषधियों से बना हुआ सामान है, जिसे आप का रोग दूर हो सकता है।
जब भी आप इसको खेलेंगे तो आप को पसीना आएगा, पसीना आते ही हमारे शरीर के छोटे-छोटे छित्रों का मुंह खुल जाता है, उसके द्वारा हमारी औषधि के गुण आपके शरीर में प्रवेश करेंगे और खेलने के बाद आपको गर्म पानी से नहाना होगा और उसके बाद हमारे द्वारा दी गई बल्ला और गेंद को अपने पास रख कर सो जाना होगा।
मैं यकीन से कह सकता हूं कि आप सुबह उठते ही अपने आप को स्वस्थ और इस बीमारी से युक्त पाएंगे। कृपया यह उपाय आप अवश्य करें तभी आप इस बीमारी से निवारण पा सकते हैं।
यह सुनते ही राजा ने अपने सैनिकों के साथ घुड़सवारी करके पोलो खेलना शुरू कर दिया। कई घंटों तक वह पोलो को खेलते रहे हैं। एक तरफ से वो गेंद को मारते तथा दूसरी तरफ से भी गेंद फेंकते थे। ऐसे ही कई घंटों तक यह कार्यक्रम चला और महाराज के शरीर से पसीना टपकने लगा।
पसीने से डूबने के बाद महाराज के शरीर में उस औषधि जो बल्ले और गेंद के रूप में थी, उसके अंश शरीर में प्रविष्ट करने लगे। खेल के उपरांत महाराज ने गर्म पानी से खुद को अच्छी तरह से नहलाया और उसके बाद तेल से मालिश करवाएं, उन्हें बड़ा आराम लगा।
कुछ समय के बाद वो गहरी नींद में सो गए। दूसरे दिन जब प्रातः समय आया, महाराज ने खुद को रोग युक्त पाया। ऐसा लगा कि उन्हें कभी भी किसी भी प्रकार का कोई रोग या कुष्ठ रोग जैसी कोई बीमारी ही नहीं थी। महाराज बहुत ही प्रसन्न हुए और बहुत ही खुश हुए।
इसके उपरांत महाराज अत्यंत खुशी से वे राजा के वेशभूषा को फिर से धारण करते हैं और चमकदार चेहरे और विभिन्न अंगों से चमक रही रोशनी के साथ सभा में उपस्थित होते हैं। सभी दरबारी व वहां पर बैठे सेनापति देखकर आश्चर्य हो जाते हैं। कुछ समय बाद वहां चिकित्सक डूबा भी आता है।
महाराज को देखकर वह भी खुश हो जाता है और अपने चमत्कारी इलाज के लिए ईश्वर को धन्यवाद देता है और महाराज को प्रणाम करता है। महाराज ने चिकित्सक डूबा को अपने बगल में बैठाया और उनकी चिकित्सक की वाहवाही पूरे दरबार में की। पूरे दरबार को बताया उनके चिकित्सक तथा उनके इलाज करने का तरीका सबको बड़ा अच्छा लगा और सबने उनकी प्रशंसा की।
बादशाह बहुत खुश थे, उस चिकित्सक को अत्यधिक पसंद करने लगे और उपकार करते हुए अपने साथ भोजनालय में भोजन करने के लिए भी लेकर गए। जब दरबार खत्म हुआ तो चिकित्सक के लिए रुकने की व्यवस्था और अच्छी सुख सुविधाएं उपलब्ध कराई और दिन-रात यही सोचा करते थे कि इस चिकित्सक ने मेरे ऊपर कितना उपकार किया है, वह सुबह होते ही उसे ₹8000 और कुछ नए वस्त्र दिए।
फिर भी वह सोच रहे थे कि इसने जो मेरे लिए किया है, वह किसी चमत्कार या किसी आश्चर्य से कम नहीं है। इसके बदले में मैंने इसे बहुत ही कम उपहार के रूप में दिया है, जो प्रतिदिन कुछ न कुछ चिकित्सक डूबा को देते रहे, जिससे कि चिकित्सक डूबा भी खुश होता रहा।
बादशाह का चिकित्सक डूबा के ऊपर इतना मेहरबान देखकर वहां के मंत्री को जलन होने लगी। वह चिकित्सक डूबा से जलन करने लगा। एक दिन मंत्री ने आकर महाराज से कुछ शब्द कहने की अनुमति मांगी। महाराज ने अनुमति दी।
मंत्री ने कहा कि महाराज इतनी अनुकंपा उस विदेशी तथा अनजान चिकित्सक पर ठीक नहीं है। यह बात पूरे दरबार में सभी को खटक रही है। शायद यह हमारे दुश्मनों की चाल ही हो, जो उस बैहरूपिया तथा चिकित्सक के रूप में आप को मारने के लिए भेजा हो। यह भी तो हो सकता है कि वह आपको इस रोग से निवारण होने के उपरांत कोई नया मार्ग ढूंढ रहा हो या सारी बात मंत्री ने महाराज से कही।
महाराज ने कहा कि मंत्री यह तुम कैसी बातें कर रहे हो, चिकित्सक डूबा के खिलाफ ऐसी बातें कैसे कर सकते हो, मंत्री ने कहा महाराज मैं जो कह रहा हूं यह सही है। मैंने पता लगाया कि वह दूसरे देश से आया हुआ एक बिहारुपिया है, जो आप को मारने के लिए आप के दरबार में चिकित्सक बनकर आया है तथा आप को मारने के लिए वह सर्जन रख रहा है। महाराज आपकी अनुमति हो तो मैं कुछ करूं। महाराज सोच में पड़ गए और कुछ समय के बाद उन्होंने उत्तर दिया।
बादशाह ने कहा यह तुम कैसे भूल सकते हो कि चिकित्सक डूबा ने मेरे ऊपर इतना उपकार किया है। अर्थात यदि छल करना होता तो वह मेरे इस रोग को कैसे ठीक कर सकता था। आपने देखा न कि इस कुष्ठ रोग को किसी भी हकीम द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन उसने एक दिन में इस रोग से मुझे मुक्ति दिलाई।
मैं उसे जितना ही मान-सम्मान दु, उतना ही कम है। लेकिन तुम्हें क्यों जलन हो रही है। मैंने कुछ मान सम्मान और उपकार उसे दिए तो तुम्हें जलन होने लगी। याद रखिए मंत्री उसने मेरे सालों से वह रोग से मुक्ति दिलाई है। मैं उसका वेतन 3 गुना बड़ा कर दे रहा हूं।
यदि इस राज्य में या देश में किसी ने भी आवाज उठाई तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। मुझे तुम्हारी बातों से जलने की बू आ रही। मंत्री जी मुझे इस समय ऐसी कहानी का आभास हो रहा है, इसमें एक राजा ने अपने बेटे को मृत्युदंड दिया था।
मंत्री ने यह कहानी सुनने की इच्छा जताई बादशाह ने कहा सिकंदर की माँ ने अपने पुत्र के बेटे को मारने के लिए षड्यंत्र रचा और अपने पुत्र महाराज से उस को दंड देने के लिए दरबार में पेश किया।
दंड देने के लिए महाराज ने आदेश दिया, लेकिन सिकंदर के दूसरे वजीर ने महाराज से आग्रह किया कि महाराज कृपया इस विषय पर जांच कर ले अन्यथा आपके हाथ से किसी बेगुनाह की जान चली जाएगी।
कहीं ऐसा न हो उस निर्दोष तोते की तरह यह जान भी बेहगुना हो जाए। ऐसा करते ही उस तोते की कहानी को सिकंदर के दूसरे वजीर ने सिकंदर को सुनाएं और कहानी का अंत होता है।
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