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गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ हिंदी में

Ganpati Atharvashirsha in Hindi

Ganpati Atharvashirsha in Hindi: भगवान गणेश जी सभी विघ्न बाधाओं को समाप्त करने वाले देवता माने जाते हैं। बुधवार का दिन गणेश जी को ही समर्पित है। साथ ही बुधवार को गणेश जी की विशेष पूजा की जाती है।

इस दिन स्तोत्र पाठ, गणेश जी का पूजन और मंत्रोच्चारण करने से हर किसी का जीवन कल्याणमय हो जाता है। गणपति अथर्वशीर्ष गणेश को समर्पित वैदिक प्रार्थना है।

ऐसी मान्यता है कि गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करने से हर किसी के जीवन से अमंगल दूर हो जाते है। आइये जानते हैं गणेश अथर्वशीर्ष (Ganpati Atharvashirsha in Hindi) और गणपति अथर्वशीर्ष हिंदी अनुवाद क्या होता है:

गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ हिंदी में (Ganpati Atharvashirsha in Hindi)

ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि
त्वमेव केवलं कर्ताऽ सि
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि
त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।

अर्थ- हे! गणेश भगवान तुम्हें प्रणाम है। तुम ही प्रत्यक्ष रूप हो, तुम ही कर्म हो, कर्ता भी तुम ही हो। ‌ दुष्टो का हरण करने वाले तुम ही संहारि हो। तुम ही समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त साक्षात नित्य आत्मस्वरूप हो।

ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।

अर्थ- तुम न्याय युक्त बात करने वाले हो। हमेशा सत्य कहते हो।

अव त्व मां। अव वक्तारं।
अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।
अव पश्चातात। अव पुरस्तात।
अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्।
अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो माँ पाहि-पाहि समंतात्।।3।।

अर्थ- हे पार्वतीनंदन! गणेश भगवान तुम मुझ इस शिष्य की रक्षा करो, श्रोता की रक्षा करो। देने वाले की रक्षा करो, मुझे धारण करने वाले की रक्षा करो। व्याख्या करने वाले आचार्य की रक्षा करो। वेदो उपनिषदों के वाचक की रक्षा करो। उससे ज्ञान लेने वाले शिष्यों की रक्षा करो। पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण चारों दिशाओं से तुम मेरी रक्षा करो प्रभु।

त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽषि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्माषि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽषि।।4।।

अर्थ- हे! गणेश भगवान तुम ही तो वाम हो, तुम ही चिन्मय हो, तुमसे ही आनंद है। तुम ही परमपिता ब्रह्मा हो। तुम सच्चिदानंद आदित्य रूप, प्रत्यक्ष कर्ता हो, तुम ही ज्ञान विज्ञान हो।

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।
त्वं चत्वारिकाकूपदानि।।5।।

अर्थ- हे जगतपिता इस जगत के जन्मदाता तुम ही तो हो। यह सारा विश्व तुम में ही निहित है, तुमने हीं तो संपूर्ण सृष्टि को सुरक्षा प्रदान की है। जल, भूमि, अग्निवेश तुम ही तो हो। तुम तो इस सृष्टि के चारों दिशाओं में, कण-कण में व्याप्त हो।

त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।

अर्थ- हे सर्वज्ञाता गणेश भगवान तुम सत्व, रज, तम तीनों गुना से परे हो। तुम भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों से भिन्न हो। तुम जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति इन तीनों अवस्थाओं से भिन्न हो। तुम जीवन के मूल आधार में नित्य स्थित रहते हो। तुम स्थूल, सूक्ष्म और वर्तमान तीनों देहो से भिन्न हो। इच्छा, ज्ञान और क्रिया इन तीनो प्रकार की शक्तियां तुम ही हो। सभी योगी और महान गुरु तुम्हारा ही ध्यान करते हैं। तुम ही ब्रह्मा हो, तुम ही विष्णु हो। रुद्र हो, तुम ही इंद्र हो। तुम अग्नि हो, वायु हो। सूर्य तुम ही हो, चंद्रमा तुम ही हो। शगुन निर्गुण सभी गुना का समावेश तुम में ही है। तीनों लोक तुम में निहित है।

गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।
अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।
तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।
गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं।
नाद: संधानं। सँ हितासंधि:
सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:
निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।

अर्थ- गण के आदि अर्थात ग अक्षर का पहला उच्चारण किया जाता है। उसके बाद वर्ण का पहला अक्षर अ का उच्चारण होता है और अंत में अनुस्वार (उम्) उच्चरित होता है। इस प्रकार अर्धचंद्र से सुशोभित बीज मंत्र (गं) का रूप उत्पन्न होता है, जो कि चेतना का उच्चतम रूप माना जाता है। इस प्रकार इस बीज मंत्र में ग अक्षर पहला रूप होता है। अ अक्षर मध्य रूप होता है और अंतिम रूप अनुस्वार होता है। वहीं इसके ऊपर अर्धचंद्र बिंदु उच्चतम रूप होता है। नाद (ध्वनी) इसका मिलन बिंदु है। यह भगवान गणेश का ज्ञान है इसके बारे में ऋषि गणक ने खुलासा किया है। इस जप का छंद गायत्री है और इस मंत्र के जरिए महान भगवान गणेश देवता की पूजा की जा रही है। भगवान गणेश देवता का

आह्वान करने का मंत्र है-
ॐ गं गणपतये नमः
एकदंताय विद्‍महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।

अर्थ- यह मंत्र भगवान गणेश का गायत्री मंत्र है। हम जिस भगवान का ध्यान करते हैं वह एक दांत वाले और तेढी सूंड वाले वक्रतुंड है। हे गजानंद हमें प्रेरणा प्रदान करें, हमारे मन को प्रकाशित करें।

एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृ‍ते पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।

अर्थ- उपरोक्त मंत्र में भगवान गणेश के रूप रंग को वर्णित करते हुए कहा गया है कि भगवान गणेश चार हाथों वाले चतुर्भुजी हैं जो पाक्ष, अंकुश, अभय और वरदान की मुद्रा में बैठे हुए हैं। यह अपने प्रिय वाहन चूहे पर अरुढ है, जो कि लाल रंग का है। बड़े पेट वाले, हाथी के कान वाले और लाल वस्त्र धारण किए हुए गणेश जी विराजमान है। भगवान गणेश की लाल चंदन से लेप करके लाल पुष्पों उनपर चढाकर पूजा की जाती है। भक्तों पर अनुकंपा दिखाने वाले भगवान गणेश ब्रह्मांड के निर्माता और अविनाशी है। ये भक्तों के दयालु स्वामी है, सृष्टि के प्रारंभ में प्रकृति और मानवता से परे सर्वोच्च सत्ता के रूप में यही प्रकट हुए। जो भक्त नियमित रूप से इनका ध्यान करता है, वह सभी रोगियों में श्रेष्ठ बन जाता है।

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नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।
नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।
विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।

अर्थ- उपरोक्त मंत्र में प्रतिज्ञा के स्वामी व्रत पति को नमस्कार किया गया है। गणपति भगवान को नमस्कार किया गया है। गणो के स्वामी प्रथम-पति को नमस्कार किया गया है। लंबोदर (बड़े पेट वाले) और एक दांत वाले एकदंत को प्रणाम किया गया है। हर बधाओ के नाश करने वाले शिव के पुत्र और वरदान देने वाले को शत-शत नमन किया गया है।

एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।
स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते।
स सर्वत: सुखमेधते।
स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।।

अर्थ- गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने से भक्त ब्रह्मा को प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त कर लेता है। वह सभी तरह के विघ्न, बधाओ से मुक्त हो जाता है। उसे बुद्धि और खुशी का आशीर्वाद मिल जाता है। वह पांचो प्रकार के महा पाप से मुक्त हो जाता है।

सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।।

अर्थ- उपरोक्त श्लोक में भगवान गणेश के अथर्वशीर्ष का दिन के अलग-अलग समय में पाठ करने के से प्राप्त फल के बारे में बताया गया है। जो भक्त गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ संध्या काल में करता है, वह दिन में किए गए पाप से मुक्त हो जाता है। जो भक्त प्रातः काल अथर्वशीर्ष का जाप करता है, वह रात्रि में किए गए पाप से दूर हो जाता है। जो भक्त गणपति अथर्वशीर्ष मंत्र का जाप सुबह और शाम करता है, वह हर तरह के पाप से मुक्त हो जाता है उसे धन, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्‍दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।।

अर्थ- उपरोक्त मंत्र में कहा गया है कि गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ केवल योग्य व्यक्ति को ही करना चाहिए। अयोग्य शिष्य को यह मंत्र नहीं देना चाहिए। क्योंकि वह इसका दुरुपयोग करेगा, जिससे वह पापी बन जाएगा। इस मंत्र का 1000 बार जाप करने से भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है।

अनेन गणपतिमभिषिंचति
स वाग्मी भवति
चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति
स विद्यावान भवति।
इत्यथर्वणवाक्यं।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्
न बिभेति कदाचनेति।।14।।

अर्थ- उपयुक्त मंत्र में भगवान गणेश के गणपति अथर्व शीर्ष के पाठ करने से प्राप्त होने वाले फल के बारे में बताते हुए कहा गया है कि जो भक्त गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करते हुए इनका अभिषेक करता है, वह वाक्यपट्टू यानी वक्ता बन जाता है। जो भक्त चतुर्थी तिथि का व्रत रखते हुए इस मंत्र का जाप कर भगवान गणेश की पूजा करता है, वह विद्वान और बुद्धिमान बन जाता है। अथर्ववेद में भी लिखा गया है कि जो भक्त नियमित रूप से इस मंत्र का जाप करता है, वह ज्ञानी और भय मुक्त हो जाता है।

यो दूर्वांकुरैंर्यजति
स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति
स मेधावान भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति
स वाञ्छित फलमवाप्रोति।
य: साज्यसमिद्भिर्यजति
स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।

अर्थ- उपरोक्त मंत्र में भगवान गणेश जी के पूजा विधि और अलग-अलग पूजन विधि से प्राप्त होने वाले फल की बात कही गई है। भगवान गणेश जी की पूजा जो दुर्वा घास से करता है, वह धन के स्वामी कुबेर के समान हो जाता है। जो धानी- लाई के द्वारा गणेश जी की पूजा करता है, वह प्रसिद्ध बुद्धिमान और यशस्वी होता है। जो 1000 मोदक भगवान गणेश जी को भोग के रूप में अर्पित करता है, उसे मनवांछित फल प्राप्त होते हैं। जो भक्त घी सहित समिधा से इस मंत्र का जाप करते हुए भगवान गणेश की पूजा करता है, उसे सब कुछ प्राप्त हो जाता है।

अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा
सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ
वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।
महादोषात्प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते।
स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति।
य एवं वेद इत्युपनिषद्‍।।16।।

अर्थ- जो व्यक्ति आठ ब्राह्मणों के द्वारा विविध पूर्वक भगवान गणेश के इस मंत्र का जाप करता है, वह सूर्य के समान तेजवान होता है। सूर्य ग्रहण के दौरान किसी पवित्र नदी के तट पर या फिर गणेश भगवान की छवि के सामने मंत्र का पाठ करने से मंत्र सिद्धि होती है। इससे बड़े-बड़े विघ्न, पाप, दोष दूर हो जाते हैं। उस व्यक्ति को परम ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है।

गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ विडियो

निष्कर्ष

यहां पर गणेश अथर्वशीर्ष जानने के साथ ही गणेश अथर्वशीर्ष हिंदी में (ganesh atharvashirsha path in hindi) अनुवाद भी जाना है। उम्मीद करते हैं आपको यह पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर जरुर करें।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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