दूसरे फ़कीर की कहानी (अलिफ लैला की कहानी) | Dusare Fakeer Ki Kahani Alif Laila Ki Kahani
पहले फकीर की कहानी सुनकर सभी दुखी हुए और उनकी आंखों में आंसू आ गए थे। तभी जुबैदा ने दूसरे फ़कीर की कहानी सुनाने के लिए कहा। दूसरे फकीर से कहा कि, “तुम अपनी कहानी सुनाओ। तुम कौन हो? और कहां से हो? तुम्हारी दशा कैसे हुई?”
दूसरे फकीर ने जुबेदा से आज्ञा लेकर कहा कि,”मैं बताना चाहूंगा कि मैं कौन हूं और कहां से आया हूं। मैं एक राजा का बेटा था और राजकुमार था। मेरे पिताजी एक राज्य के राजा थे, जो बहुत ही कुशल और शक्तिशाली राजा थे। मेरी रुचि पढ़ने लिखने तथा अत्यधिक कुछ नया सीखने की थी। इसलिए मैं बचपन से ही लिखने पढ़ने का शौकीन था और नई चीजों को जानने के लिए अत्यंत उत्तेजित होता था।
इसलिए मेरे पिता ने दूर-दूर से नए अध्यापकों तथा शिक्षकों को बुला कर रखे थे, जिनसे मैं ज्ञान की चीजें सीखता था। मैंने इतिहास, गणित, विज्ञान तथा कुरान जैसे पवित्र ग्रंथों को कंठस्थ कर लिया था। यह मेरी कुशलता थी या ईश्वर का वरदान। नए-नए कौशल में पारंगत हो गया था। मुझसे सवाल जवाब करने में कोई मुझसे जीतना नहीं था। इसलिए मेरी चर्चा मेरे राज्य के पड़ोसी राज्यों में तथा अन्य देशों में भी होने लगी।
यह जानकर मेरे पिता अत्यधिक प्रसन्न हुए। एक दिन एक राजा जो विदेश के थे, उन्होंने मेरे बारे में जाना और मुझसे मिलने का आग्रह किया और मेरे लिए कुछ सामान भेजा है। यह जानकर मेरे पिता प्रसन्न थे क्योंकि उनका संबंधित बड़े सम्राट और शक्तिशाली सम्राट से होने जा रहा था, जिसका कारण मैं था।
अपनी पिता की आज्ञा लेकर, कुछ सैनिकों और कुछ साथियों तथा हिंदुस्तान के सम्राट के लिए कुछ भेंट लेकर अपने घुड़सवार और अपने घोड़े के साथ निकल पड़ा। कुछ दूर चलने के उपरांत पचास डाकू ने हमें घेर लिया। पहले उन्होंने उन सैनिकों को तथा उन घोड़ों पर आक्रमण किया, जिन पर उस सम्राट के लिए भेंट जो हमारे पिता ने दी थी, वह रखी हुई थी।
उसके बाद मेरे साथियों और मेरे घोड़े पर आक्रमण किया। कुछ देर तक हम लोगों ने सामना किया परंतु मेरे सैनिक तथा मेरे साथी मारे गए और मेरा घोड़ा भी घायल हो गए जिसके कारण डर कर भागने लगा। भागते भागते वह काफी दूर हो गया, परंतु वह भी घायल था और थकान के कारण वह गिर गया और उसकी मृत्यु हो गई।
मैंने भगवान का धन्यवाद किया और उस घोड़े को धन्यवाद कहा क्योंकि उसने मेरी जान बचाई लेकिन मैं अभी भी डर रहा था क्योंकि डाकुओं ने मुझे देख लिया तो जिंदा नहीं छोड़ेंगे। मैंने अपने कपड़े उतारे और एक साधारण व्यक्ति के रूप में कपड़े पहन कर अपने घाव को बांधा और चलते-चलते दूर गया। थोड़ी दूर पर एक नदी थी, जहां पर स्वस्थ पानी था। पानी पीकर आगे बढ़ा। शाम हो गई थी।
इसलिए मैंने एक गुफा में अपनी रात गुजारी और सुबह जंगल में होने वाले पेड़ों पर फल खाकर अपनी भूख मिटाई और उसी नदी में पानी पीकर आगे बढ़ा। चलते चलते मुझे नगर दिखाई दिया। मैं सोच रहा था कि अगर मैं जाऊं और पता करूं कि मेरा देश यहां से कितनी दूर है?
इसलिए मैं उस नगर में पहुंचा। अपने फटे पुराने तथा बड़े बड़े बाल लेकर समय अधिक बीत गया था अर्थात कई दिन हो गए थे। इसलिए मैं बड़ा अजीब और गरीब दिख रहा था। मैं भीखरी के रूप में लग रहा था। मैं उस नगर में पहुंचा।
मैंने यह सोचकर उस नगर में कदम रखा कि शायद मेरी कोई सहायता हो जाए। मैंने एक व्यक्ति से पूछा कि यह कौन सा नगर है और अपने नगर की दूरी उससे पूछी। उसने मेरा परिचय पूछा। मैंने अपना सारा वृत्तांत उसे बताया। उसने मेरी और बड़े ही दया पूर्वक देखा और उसने कहा कि इस पूरे नगर में तुम किसी और को अपना वृत्तांत मत बताना क्योंकि यहां का राजा तुम्हारे पिता का बहुत बड़ा दुश्मन है।
इस नगर के लोगों को तुम्हारे बारे में पता चला तो, तुम्हें मृत्युदंड देंगे। मैं भयभीत हो गया है कि उसने कहा डरो मत। तुम अपनी सच्चाई कीसी को नही बताओ। यह मुझसे वादा करो। मैंने वादा किया। उसने अपने घर से खाना कि कुछ सामग्री लाई हुई थी, जो मुझे खाने के लिए दिया और आराम करने के लिए कहा।
मैं कुछ देर आराम करके उसके पास गया। उसने मुझसे पूछा कि तुम कुछ ऐसा कार्य जानते हो कि जिससे तुम्हारा जीवन यापन चल सके। मैंने अपनी पढ़ाई लिखाई ,साहित्य लेखन इत्यादि के बारे में चर्चा की। उसने कहा कि इन सब का यहां पर कोई मोल नहीं है। इन सब से तुम ₹1 भी नहीं कमा सकते। तुम्हें कोई ऐसा हुनर जानना चाहिए, जिससे कि तुम किसी चीज का निर्माण कर सकते हो। किसी के प्रति सहायता कर सकते हो। ऐसा कोई कार्य तुम जानते हो।
उस ने कहा कि तुम हष्ट पुष्ट और शरीर से स्वस्थ लगते हो। इसलिए तुम जंगलों में लकड़ियां काटकर शहर में बेच कर अपना जीवन यापन कर सकते हो। मैंने ऐसा कार्य कभी किया नहीं था लेकिन अपना जीवन यापन चलाने के लिए मैंने इस कार्य को स्वीकार कर लिया।
उसने कहा कि मैं तुम्हारे लिए एक कुल्हाड़ी और एक रससी का इंतजाम कर सकता हूं। मैंने उससे यह लेने के लिए आग्रह किया। अगले दिन उसने मुझे एक कुल्हाड़ी और एक बड़ी सी रस्सी ला कर दी। मैंने उसका धन्यवाद किया और उसने जंगल में जाने वाले कुछ लकड़हारों के साथ मुझे भेजा और जान पहचान करवा दी।
मैं वहां लकड़ियां काट कर उनका गड्ढा बनाकर उन लोगों के साथ शहर आता और लकड़ियों को बेचता। शहर में लकड़ियां महंगी होती थी क्योंकि यहां के लोग आलसी और काम छोड़ दें क्योंकि वह कार्य नहीं करना चाहते थे।
इसलिए यहां पर एक लकड़ियां स्वर्ण मुद्रा मिलती थी। कुछ समय के पश्चात ऐसी कई स्वर्ण मुद्राएं मेरे पास हो गई थी। कुछ मुद्राएं उस लिपिक जिसने मेरी सहायता की थी मैंने उसको दे दी और कुछ अपना जीवन यापन करने के लिए अपने पास रख लिया।
प्रतिदिन की तरह 1 दिन में फिर से लकड़ी काटने के लिए गया। यह कार्य मुझे करते-करते 1 वर्ष हो गया था लेकिन एक दिन जब मैं लकड़ी काटने गया अपने कार्य सीमा स्थल से कुछ आगे निकल गया क्योंकि मुझे वहां अच्छा लगने लगा था। मैंने एक पेड़ को काटने के लिए सोचा उसकी डालियां तथा पत्तियां काट दी।
जैसे ही जड़ काटने की सोची वैसे ही वहां पर मुझे एक कड़ा दिखाई दिया। मैंने मिट्टी हटाकर देखा तो वह कड़ा नहीं 1 दरवाजे का खोलने वाला कुंडी थी। मैंने बहुत ताकत से उस दरवाजे को खोला जिसके नीचे शिर्डी लगी हुई थी। शिर्डी के सहारे मैं नीचे गया और देखा कि वहां पर एक सुंदर और हल्का पीले रंग का प्रकाश प्रचलित हो रहा था।
ऐसा मानों की कोई स्वर्ग से हो कुछ दूर जाकर देखा तो सोने के खंभे लगे हुए थे तथा आगे जाकर देखा तो एक पलंग पर एक स्त्री बैठी हुई है। यह देखकर मैं देखता ही रह गया कुछ समय ऐसा ही चलता रहा।
स्त्री ने पूछा तुम कौन हो मनुष्य हो या जिन? मैं कुछ देर तक उसे देखता ही रहा उसी सुंदरता। मैंने कहा मैं मनुष्य हूं। उसने कहा तुम यहां मरने के लिए आये हो क्या? यह जिन का घर है। उसी मधुरता और मीठी वाणी को सुनकर कहा कि मैं तुम्हारी मधुर आवाज सुनकर प्रसन्न हूँ। तुम्हें देखने के पहले बहुत परेशान था, पर अब मेरा सारा दुख दर्द समाप्त हो गया है।
मैंने अपना सारा हाल उसे बताया। उसने कहा शहजादे मुझे ऐसा लगता है कि नहीं है। उसने अपना वृत्तांत बताते उसने कहा कि मैं एक देश की राजा की पुत्री अब देरमोनी की पुत्री। हूं मेरा विवाह मेरे शोहर के साथ हुआ लेकिन मैं विदा होकर अपने शहर के घर जा रही थी तभी रास्ते में जिन्न ने मुझे अगवा कर लिया।
मैं भय से अपनी घबरा रहे थे कि मैं बेहोश हो गई और जब आंखें खोली थी कालकोठरी कारागार इस घर में पाई। अब हर 10 दिन में जिन आता है और मेरे साथ रात गुजार कर चला जाता है। उसका विवाह उसकी जाति की किसी के साथ हुआ है। वह अपनी पत्नी से भी डरता है। इससे वहां नहीं रहता।
मैं यहां में 25 वर्ष से हूं। उसने कहा यदि तुम्हें कोई आपत्ति न हो तो तुम यहां 4 से 5 दिन तक रह सकते हो। परंतु छठ के दिन यहां पर जिन ले फिर आएगा। मैंने कहा मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी और चाहते इतनी खूबसूरत सुंदरी के साथ रहने पर मुझे क्या आपत्ति होगी?
मैं वहां पर रुक गया। उसने मुझे स्नान घर लेकर गया और मैंने वहां पर स्नान किया और मुझे पहनने के लिए कुछ कपड़े दिए। कपड़े पहनकर में बैठा था। उसने मेरे लिए खाने के लिए स्वादिष्ट पकवान लेकर आएगा और हम लोगों ने साथ बैठकर खाया और कुछ सारी बातें की रात का खाना खाकर हम लोग एक साथ एक ही बिस्तर पर सो गए।
सुबह उठते ही उसने मेरे लिए और भी अच्छे पकवान बनाएं और हम दोनों ने साथ मिलकर भोजन किया। मैंने उससे कहा कि तुम इस काल कोठरी में इस कारागार में 25 वर्ष से बंद हो। चलो मेरे साथ चलो और बाहर की दुनिया देखो। कारागार में कब तक रहोगी। मैंने उसी से आग्रह किया अपने साथ चलने को।
उसने कहा कि ऐसा मत कहो मैं बाहर की दुनिया को भूल चुकी हूं। सूर्य प्रकाश मैं अब मैं नहीं जा सकती। लेकिन तुम यहां आ सकते हो। जिस दिन जिंन आता है उस दिन नहीं बाकी के 9 दिन तुम यहां मेरे साथ गुजार सकते हो। मैं उसके प्रेम में इतना मस्त हो गया था कि मैंने कहा था कि तुम इतना जीन से डरो मत। मैं तुम्हारे साथ हूं।
मैं उसे मार कर तुम्हें आजाद करा दूंगा। मैं तुम्हें अपने साथ ले चलूंगा। मैं इस यंत्र को अभी तोड़फोड़ कर बराबर कर दूंगा। मैं दुनिया के सभी चीजों को एक साथ मार दूंगा और सबसे पहले इस जीन को। वह मुझे बार-बार समझाती रही यंत्र को मत छूना क्योंकि मैं उस जिन की शक्ति को जानती हूं। यदि तुम ने छुआ तो हमारी जान को खतरा होगा। तुम्हारे साथ साथ मैं भी मर जाऊंगी लेकिन मैं उसके प्रेम में मस्त था। मैंने उस यंत्र को छूने के लिए हाथ बढ़ाया।
जैसे ही मैंने उस यंत्र को छुआ, वैसे ही एक भयंकर आवाज उस मकान में होने लगी। मेरा सारा नशा प्रेम का उतर गया है। मैंने उस स्त्री से पूछा अब क्या करना चाहिए? मुझे वाकई में या नहीं पता था कि इतना सब होगा। उसने कहा कि तुम अपनी जान बचाओ तुम यहां से तुरंत भाग जाओ। मुझे मरने का कोई गम नहीं। मैं तो इतनी दूर से हर दिन मरकर ही जी रही हु, तो अपनी जान की परवाह करो और तुरंत यहां से भाग जाओ।
मैं जट पट वहां से भागा और सीढ़ियों के रास्ते से ऊपर आया। तभी जिन वहां पर आया। उसने उस स्त्री से तेज आवाज में गरज कर बोला कि तुमने मुझे क्यों बुलाया। उसने कहा कि मैंने तुम्हें नहीं बुलाया। मैंने रखी हुई शराब पी लिया और जिससे कि मेरा पैर मेरे मस्त उसके काबू में नहीं था और गलती से ठोकर लगी और यंत्र के टूट गया।
वह जिन कहने लगा तू झूठी है। मैं तुम्हें भी मृत्यु देकर विदा कर देता हूं। परंतु यह बता इस कुल्हाड़ी और रस्सी को कौन लाया? स्त्री बोली तुम जल्दी-जल्दी में आये थे अभी तुम शायद अपने साथ उसी को ले आए हो। तुम ने ध्यान नहीं दिया। मैंने अभी उस रस्सी को देखा है. कहां से आई है।
उस जिन् उस स्त्री को खूब मारा और वह रोने क्रंदन करने लगी। यह सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। परंतु मैं कर भी क्या सकता था? मैं उस दरवाजे को बंद कर उस पर मिट्टी डाल दिया। मैं अपने आप को निरंतर गाली दे रहा क्योंकि मेरे कारण, मेरी मूर्खता के कारण स्त्री को मार पड़ रही थी और बार बार रो रही थी।
लकड़ियों के कट्टर को जो मैंने कल काटा था वह लेकर में आकर बाजार में बेच कर जो मुद्रा मिली उसे लेकर मैं वापस चला लगा। लिपिक ने मुझे देखा और भगवान का लाख-लाख धन्यवाद कहा और कहा कि तुम कल नहीं दिखे तो मुझे लगा कि डाकू ने तो कहीं पकड़ नहीं लिया। लेकिन ईश्वर का बहुत-बहुत धन्यवाद है। मैंने उसका हृदय से धन्यवाद करके आराम करने लगा।
कुछ समय मैं यह सोच रहा था कि उस स्त्री पर अत्याचार हो रहे हैं जिसका कारण मैं था। लेकिन तभी वह लिपिक आया और कहने लगा कि कोई वृद्ध व्यक्ति आया है जो तुम्हें पूछ रहा है तो शायद अपनी कोई रस्सी जंगल में छोड़ा है। परंतु वह कह रहा है कि मैं यह उन्हें दूंगा जो वहां पर छोड़ कर आए हैं। जब तक वह अपनी पहचान नहीं बताएंगे तब तक मैं नहीं दूंगा।
यह सुनकर मैं बहुत भयभीत हो गया। लिपिक ने मुझसे पूछा की तुम मैं क्या हो रहा है? तुम इतना भयभीत क्यों रहे हो और घबरा क्यो रहे हो? मेरे चेहरे पर पसीना पसीना हो गया। तभी वह जिन मेरे सामने आकर खड़ा हो गया।
मैं अचेत होकर नीचे गिरने लगा। उसे मुझे कमर से पकड़ कर उठाया और मुझे पहाड़ पर बैठा दिया, जहां पर लोगों को महीनों लग जाते हैं चढ़ते चढ़ते। उसने वही स्थान पर बंद कर दिया, जहां मैंने पिछली रात को राजकुमारी के साथ बिताए।
मैंने देखा कि राजकुमारी जमीन पर तड़प रही थी। वह जोर-जोर से रो रो कर उस जिन को कोस रही थी। जिनने कहा कि देख मैने तेरे आशिक को ले आया। जो तुझ पर मोहित है। स्त्री ने कहा मैं इसे जानती तक नहीं। मैंने इससे पहले कभी अपनी जिंदगी में नहीं देखा। जिन्न ने कहा कि तू झूठ बोल रही है। राजकुमारी ने कहा तू इसे मार डालना चाहता है। इसलिए मुझसे झूठ बोला रहा है लेकिन मैं झूठ नहीं बोलेंगे। मैंने आज तक इसे देखा तक नहीं।
जिन्न ने कहा कि तू इस को मार डाल ले तलवार उठा और उसे उसका धड़ उसके सर से अलग कर दें। राजकुमारी ने कहा कि इस अवस्था में उसे तलवार नहीं उठेगी मैं कैसे मारूं। जिन्न मुझसे पूछा कि तू इस स्त्री को जानता है। मैंने भी इंकार कर दिया कि मैं इस स्त्री को पहले कभी नहीं देखा। उसने मुझसे कहा कि ले तलवार और उसके दो टुकड़े कर दे मैं मन में सोचा कि स्त्री ने मेरे लिए इतना किया मैं उसको कैसे मार सकता हूं।
राजकुमारी ने मुझे संकेत किया कि तुम मुझे मार डालो और मैं जान बचाओ लेकिन मैं दो कदम पीछे आते हुए कहा है जिन तू कैसा है? क्या मुझे नामर्द समझा है? यह कार्य मुझसे नहीं होगा मैं किसी स्त्री और जो अपरिचित उसे नहीं मार सकता है या कार्य तुम ही करो तुम्हारा ही कार्य है।
उस क्रूर और अत्याचारी जिनने उस स्त्री के दोनों हाथ काट दिए। पहले ही बेचारी अधमरी हो चुकी थी हाथ काटते हैं वह मर गयी। मैं यह देखकर अचेत हो गया और वहां पर गिर गया जब मुझे होश आया तब मुझे जीन ने कहा कि क्या तुम मुझे मार दो कि यदि हां तो मुझे मार दो मैं भी मर जाना चाहता हूं।
लेकिन जिन ने कहा कि किसी की मृत्यु के बाद हम लोग तुरंत किसी की मृत्यु नहीं करते। मैंने उसका गुस्सा शांत देखा। इसलिए उसने मुझसे कहा कि यदि तुम्हारी कोई इच्छा है तो बताओ। मैं तुम्हें उस जानवर पशु पक्षी जीव जंतु में परिवर्तित कर देता हूं।
मैंने कहा कि तुम यह सब कर सकते हो। तुम मुझे ईष्यालु व्यक्ति की तरह मुझे मनुष्य ही रहने दो। उसने मुझे ईष्यालु व्यक्ति की कहानी पूछी। मैंने बताना प्रारंभ किया। जिन ईमानदार इंसान और ईष्यालु व्यक्ति की कहानी सुनता रहा और मैं सुनाता रहा हूं।
इस पोस्ट के माध्यम से मैंने कहानी की दूसरी भाग दूसरा फकीर की कहानी को आपके सामने प्रस्तुत किया है। अगले पोस्ट के माध्यम से मैं अगली कहानी आपके सामने प्रस्तुत करूंगा और इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और हमें फॉलो करना न भूलें धन्यवाद।
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